Friday, 20 July 2018

गोपालदास नीरज - लगेंगी सदियां आपको हमें भुलाने में...

गोपालदास नीरज कई पीढ़ी के लोगों के पसंदीदा कवि और गीतकार रहे। वे रुमानियत और श्रंगार के कवि माने जाते थे, पर उनकी कविताओं में जीवन दर्शन भी काफी गहराई से उभर कर आता है। कई दशक तक कवि सम्मेलनों का लोकप्रिय नाम रहे नीरज को हिंदी फिल्म उद्योग ने भी उतने ही सम्मान से अपनाया। उन्होंने हिंदी फिल्मों के गीतों में बेहतरीन भाषायी प्रयोग किए और कई कालजयी गीतों की रचना की। एक साक्षात्कार में नीरज ने कहा था 'अगर दुनिया से रुखसती के वक्त आपके गीत और कविताएं लोगों की जुबां और दिल में हों तो यही आपकी सबसे बड़ी पहचान होगी।

जन्म     -    04 जनवरी 1925 , निधन - 19 जुलाई 2018 ( दिल्ली) 
उपनाम   -    नीरज
जन्म स्थान ग्राम- पुरावलीजिला- इटावाउत्तर प्रदेश
गोपालदास सक्सेना 'नीरजका जन्म 4 जनवरी 1924 को इटावा जिले के पुरावली गांव में हुआ। मात्र छह साल की उम्र में पिता ब्रजकिशोर सक्सेना का साया उनके उपर से उठ गया। नीरज ने 1942 में एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। परिवार की माली हालत अच्छी नहीं थी इसलिए शुरुआत में इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया उसके बाद सिनेमाघर की एक दुकान पर भी नौकरी की। लंबी बेरोजगारी के बाद दिल्ली जाकर सफाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी करने लगे।
कानपुर में संघर्ष के दिन
दिल्ली से नौकरी छूट जाने पर नीरज कानपुर पहुंचे और वहां डीएवी कॉलेज में क्लर्क की नौकरी की। फिर बाल्कट ब्रदर्स नाम की एक प्राइवेट कंपनी में पांच साल तक टाइपिस्ट का काम किया। कानपुर के कुरसंवा मुहल्ले में उनका लंबा वक्त गुजरा। नौकरी करने के साथ ही प्राइवेट परीक्षाएं देकर उन्होंने 1949 में इंटरमीडिएट1951 में बीए और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एमए किया।
कॉलेज शिक्षक की नौकरी
नीरज ने मेरठ कॉलेज मेरठ में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया। बाद में वहां की नौकरी से त्यागपत्र देना पड़ा। उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गए। फिर अलीगढ़ उनका स्थायी ठिकाना बना और मैरिस रोड जनकपुरी अलीगढ़ में स्थायी आवास बनाकर रहने लगे।

कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रिय
अपनी रुमानी कविताओं के कारण नीरज को देश भर के कवि सम्मेलनों से बुलावा आने लगा। वे हिंदी कविता में मंच के लोकप्रिय कवियों में शुमार हो गए। नीरज खुद को कवि बनने में सबसे बड़ी प्रेरणा हरिवंश राय बच्चन की निशा निमंत्रण को मानते हैं।
बॉलीवुड में कदम
नीरज को मुंबई के फिल्म जगत से गीतकार के रूप में फिल्म नई उमर की नई फसल के गीत लिखने का निमन्त्रण मिला। पहली ही फिल्म में उनके लिखे कुछ गीत - कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे... और देखती ही रहो आज दर्पण न तुमप्यार का यह मुहूरत निकल जाएगा...बेहद लोकप्रिय हुए। इसके बाद वे मुंबई में रहकर फिल्मों के लिए गीत लिखने लगे। उन्होंने मेरा नाम जोकर,  शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी कई चर्चित फिल्मों में कई लोकप्रिय गीत लिखे।
तीन फिल्म फेयर पुरस्कार
नीरज को सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए सत्तर के दशक में लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिला।
1970 : काल का पहिया घूमे रे भइया ! ( फिल्म: चन्दा और बिजली)
1971 : बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं ( फिल्म: पहचान)
1972 : ए भाई ! जरा देख के चलो ( फिल्म : मेरा नाम जोकर)
नीरज के कुछ और लोकप्रिय गीत
-   कहता है जोकर सारा जमाना, आधी हकीकत आधा फसाना (मेरा नाम जोकर )
-   दिल आज शायर है, गम आज नगमा है, शब ये गजल है सनम (गैंबलर)
-   आज मदहोश हुआ जाए रे, मेरा मन मेरा मन। (शर्मीली)
-   मेघा छाए आधी रात.. बैरन बन गई निंदिया.. (शर्मीली)
-   लिखे जो खत तुझे, हजारों रंग के नजारे बन गए। ( कन्यादान)
-   फूलों के रंग से दिल की कलम से, तुझको लिखी रोज पाती। ( प्रेम पुजारी)
-   शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब ( प्रेम पुजारी)
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अलीगढ़ वापसी
पर एक दौर ऐसा आया जब नीरज मुंबई की ज़िन्दगी से उब गए। इसके बाद वे अलीगढ़ वापस लौट आए। यह भी कहा जाता है कि बॉलीवुड में उनके गीतों की कद्र करने वाले संगीतकारों की फेहरिश्त खत्म हो गई थी, इसलिए वे अपने शहर लौट आए।
अपने बारे में नीरज कहते हैं -
इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने मेंलगेंगी आपको सदियां हमें भुलाने में।
न पीने का सलीका न पिलाने का शऊरऐसे भी लोग चले आए हैं मयखाने में॥

नीरज की प्रमुख कृतियां
दर्द दिया हैप्राण गीतआसावरीगीत जो गाए नहींबादर बरस गयोदो गीतनदी किनारेनीरज की गीतीकाएंनीरज की पातीलहर पुकारे,मुक्तकीगीत-अगीतविभावरीसंघर्षअंतरध्वनिबादलों से सलाम लेता हूंकुछ दोहे नीरज के, कारवां गुजर गया

पुरस्कार - सम्मान
1970, 1971, 1972 फिल्म फेयर पुरस्कार
1991 में पद्मश्री
1994 में यशभारती
2007 में पद्म भूषण



नीरज का प्रसिद्ध गीत -
कारवां गुजर गया
स्वप्न झरे फूल सेमीत चुभे शूल से,
लूट गए सिंगार सभी बाग के बबूल से,
और हम खड़े खड़े बहार देखते रहे।
कारवां गुजर गयागुबार देखते रहे!

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पांव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई,
पातपात झर गए कि शाख़शाख़ जल गई,
चाह तो निकल सकी नपर उमर निकल गई,
गीत अश्क बन गएछंद हो दफन गए,
साथ के सभी दिऐ धुआंधुआं पहन गए,
और हम झुके झुकेमोड़ पर रुके रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।
कारवां गुज़र गयागुबार देखते रहे।

क्या शबाब था कि फूल फूल प्यार कर उठा,
क्या सुरूप था कि देख आइना सिहर उठा,
इस तरफ जमीन उठी तो आसमान उधर उठा,
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नजर उठा,
एक दिन मगर यहांऐसी कुछ हवा चली,
लूट गई कली कली कि घुट गई गली गली,
और हम लूटे लूटेवक्त से पिटे पिटे,
सांस की शराब का खुमार देखते रहे।
कारवां गुज़र गयागुबार देखते रहे।

हाथ थे मिले कि जुल्फ चांद की संवार दूं,
होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूं,
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूं,
और सांस यूं कि स्वर्ग भूमि पर उतार दूं,
हो सका न कुछ मगर,शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि दह गए किले बिखर बिखर,
और हम डरे डरेनीर नयन में भरे,
ओढ़कर कफनपड़े मजार देखते रहे।
कारवां गुज़र गयागुबार देखते रहे!

मांग भर चली कि एकजब नई नई किरन,
ढोलकें धुमुक उठीं,  ठुमक उठे चरनचरन,
शोर मच गया कि लो चली दुल्हनचली दुल्हन,
गांव सब उमड़ पड़ाबहक उठे नयन नयन,
पर तभी जहर भरीगाज एक वह गिरी,
पुंछ गया सिंदूर तार तार हुई चुनरी,
और हम अनजान सेदूर के मकान से,
पालकी लिए हुए कहार देखते रहे।
कारवां गुजर गयागुबार देखते रहे।
- गोपालदास नीरज ( फिल्म नई उमर नई फसल, स्वर मोहम्मद रफी, संगीत रोशन )

याद आएंगे ....
जब चले जाएंगे लौट के सावन की तरह,
याद आएंगे प्रथम प्यार के चुंबन की तरह।
जिक्र जिस दम भी छिड़ा उनकी गली में मेरा,
जाने शरमाए क्यों वह गांव की दुल्हन की तरह।


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