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अंतहीन
सड़क पर चला जा रहा
है
बृजमोहन
न जाने
की कितने दिन में
पहुंचेगा
अपने गांव
उस शहर
को वह पीछे
छोड़
आया है जहां
दिन भर
पसीना बहाकर
जुटाता
था अपने घर वालों के लिए
निवाला।
लोगों
ने बताया था किसी
अदृश्य
बीमारी से दुनिया डरी हुई है
तब
बहुत याद आई
अपने गांव की मिट्टी की
अपने गांव की मिट्टी की
तो
निकल पड़ा खुली सड़क पर
नन्ही
मुनिया बोल रही
बापू
मुझसे और चला नहीं जा रहा
न जाने
कितनी दूर है
अभी हमारा गांव
अभी हमारा गांव
अपनी
पोटली से थोड़ा
चबेना
निकालकर मुनिया को देता है
चलते
रहो बिटिया
एक दिन
जरूर पहुंच जाएंगे
अपने
गांव....
- ------- विद्युत प्रकाश मौर्य