उन्होंने ही तो
तुम्हारे घर की
दीवार जोड़ी थी
जिस आलीशान अपार्टमेट में तुम
आज रहते हो
उसका रंग रोगन
उन्होंने ही तो किया
था
तुम्हारे घर की बिजली जब जब
खराब
है जाती है
तुम्हारे नालियां जब जब
जाम हो
जाती हैं
वे ही तो ठीक करने आते हैं।
इस महानगर में कदम कदम पर
तुम्हारी सहायता के लिए
वे खड़े मिल जाते थे।
आज उनके लिए ये शहर
बेगाना क्यों हो गया है।
अपनी छह साल की बिटिया
की उंगली पकड़े वे
एक हजार मील की पैदल यात्रा कर
अपने गांव को जाने के लिए
मजबूर क्यों हुए
आखिर उनका देश कहां है...
तुम जो रोटी खाते हो उसमें
उनका भी तो हिस्सा
रोक लो उन्हें
कि उनके बिना तुम्हारा
ये सिस्टम नहीं चल पाएगा।
एक दिन तुम्हें जब फिर
उनकी जरूरत पड़ेगी तो
वे तब बहुत दूर जा चुके होंगे।
हां रोक लो उन्हें
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विद्युत प्रकाश मौर्य
(
29 मार्च 2020 )
2 comments:
मार्मिक कविता.....
धन्यवाद भाई
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