Thursday, 19 November 2020

डॉक्टर राधाकृष्ण सिंह - फ्रेंड, फिलास्फर और गाइड का चले जाना

 एक दिन अचानक वे इस तरह चले जाएंगे इसका अंदेशा न था। डॉक्टर राधाकृष्ण सिंह पटना से साहित्य, पत्रकारिता और राजनीति के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर थे। मेरे लिए वे फ्रेंड, फिलास्फर गाइड जैसे थे। बड़े भाई भी, प्रशिक्षक भी मार्गदर्शक भी। पर कितना दुखद रहा कि उनके न रहने की खबर मुझे देर से मिली। 23 अगस्त 2020 रविवार को दिन बड़ा मनहूस था, 58 साल की उम्र में उनका अचानक हृदय गति रुकने से निधन हो गया। कुछ दिन पहले ही तो उन्होंने फोन करके मेरा हाल चाल पूछा था। 

राधाकृष्ण सिंह की शुरुआत पटना विश्वविद्यालय के जुझारू छात्र नेता के तौर पर हुई। उन्होंने पटना नवभारत टाइम्स में शिक्षा प्रतिनिधि के तौर पर काम किया। उन्होंने हिंदी के प्रकांड विद्वान प्रोफेसर निशांतकेतु के अधीन हिंदी भाषा में ओशो साहित्य पर शोध किया था। 

मेरा उनसे परिचय कुछ यूं हुआ कि वे तीसरी आंख नामक पत्रिका का संपादन करते थे। मैं उस पत्रिका में डाक से अपनी रचनाएं भेजता था। तब मैं कविताएँ लिखता था। पत्र व्यवहार के बाद उनसे मिलना हुआ। तब पटना के महेंद्रू मुहल्ले में पीडी लेन में एक मकान में वे रहते थे। वहीं पहली बार उनसे मिलना हुआ था। उनसे एक परिचय के बाद तमाम लोगों से उनके कारण परिचय हुआ। उनके पड़ोसी प्रकाश चंद्र ठाकुर, प्रकाश पंचम, डॉक्टर सचिदानंद सिंह साथी, डॉक्टर ध्रुव कुमार। जब मैं काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अध्ययन रत था तो एक दिन राधाजी का पत्र लेकर मेरे कमरे में राघवेंद्र सिंह आए। उनकी कोई परीक्षा थी बनारस में। बाद में राघवेंद्र जी भी बिहार की राजनीति में सक्रिय हो गए। 

राधाकृष्ण शुरुआत के दौर में कांग्रेस में सक्रिय थे। एक बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े। बाद में राष्ट्रीय जनता दल में आए। साल 2005 में राजद के टिकट पर चेरिया बरियारपुर से चुनाव लड़े। अच्छी चुनौती दी पर जीत नहीं सके। कभी वे लालू परिवार के बहुत करीबी थे, उन्होंने एक किताब लिखी थी - राबड़ी देवी का राज्यारोहण। काफी समय वे राजद के प्रवक्ता भी रहे। वे प्रोफेसर रामबचन राय के साथ हुआ करते थे। 

नव भारत टाइम्स, आज, प्रभात खबर,  राष्ट्रीय नवीन मेल जैसे अखबारों में संवाददाता के तौर पर काम करने के बाद वे अध्यापन के क्षेत्र में आ गए। मतलब वे पत्रकार, साहित्यकार, राजनेता और शिक्षाविद सब कुछ थे।  बाद में पटना ट्रेनिंग कॉलेज में शिक्षक हो गए। वहां बीएड के छात्र पढ़ते थे। उसके बाद वे पावापुरी में वीरायतन बीएड कॉलेज में प्राचार्य हो गए। इसके बाद पटना के मुंडेश्वरी बीएड कॉलेज के प्राचार्य हुए। आखिरी दिनों में आरएल महतो ट्रेनिंग कॉलेज दलसिंहसराय के प्राचार्य थे। राधाकृष्ण मंच के अच्छे वक्ता होने के साथ कलम के धनी थे। उनकी लेखनी बड़ी सुंदर थी। शब्द विन्यास के धनी थे। पटना के तमाम नवोदित पत्रकारों को वे प्रेस रिलीज बनाना सिखाते थे।   

संयोग से पटना में ही 2003 फरवरी में मेरा विवाह हुआ तब वे मेरी शादी में अपनी पत्नी के साथ आए थे। हर साल कुछ मौकों पर उनसे मिलना हो जाता था। अपने जीवन के आखिरी  दिनों में पटना के कांटी फैक्टरी रोड में बुद्धा डेंटल कॉलेज के पास रहते थे। वे मूल रूप से बेगुसराय जिले के वीरपुर प्रखंड का गाड़ा गांव के निवासी थे। 

जब मैं पटना में हूं तो उनके साथ किसी न किसी साहित्यिक या राजनीतिक आयोजन में जाने का मौका जरूर मिलता था। भले वे विधानसभा या विधान परिषद में नहीं जा सके, पर राजनीति के गलियारे में उनका काफी सम्मान था। जाने के लिए 58 साल की उम्र ज्यादा नहीं होती, पर ईश्वर को यही मंजूर था। कुछ साल पहले उनका किडनी ट्रांसप्लांट हुआ था। उसके बाद वे थोड़े कमजोर जरूर हो गए थे पर जिजीविषा में कोई कमी नहीं थी। एक दिन उनके नंबर फोन किया। छोटे भाई प्रफुल्ल ने फोन उठाया, बोेल भैया तो नहीं रहे। जिससे आपने लिखने, बोलने के तरीके सीखे हों उसका यूं चले जाना सुनकर बड़ा झटका लगा। पर सिर्फ शरीर साथ छोड़ जाता है। आत्मा तो अमर है ना। वे अच्छी आत्माएं अपनों को प्रेरित करती रहती हैं। तो उनका भी मार्गदर्शन हमें मिलता रहेगा। ऐसा प्रतीत होता है। हम आपको अलविदा नहीं कह सकते। 

- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com 


 


Friday, 13 November 2020

हर इंसान को धनवान बना देता है पांच तरह का धन

धन का अर्थ काफी व्यापक है। इसका अभिप्राय सिर्फ कागज के नोट या मुद्रा से नहीं है। धन वह वह जो आपको सुखी बनाए। शास्त्रों में पांच प्रकार के धन बताए गए हैं - शिक्षा, सेहत, गोधन, पशुधन, रतन यानी मुद्रा। इनमें विद्या को सर्वोत्तम धन माना गया है। आइए धनतेरस के अवसर पर बात करते हैं पांच प्रकार के धन की।

 

शिक्षा व्यये कृते वर्धत एव नित्यम् , विद्या धनं सर्व धनम् प्रधानम्  ( सुभाषितानि) यानी शिक्षा या विद्या ऐसा धन है जो खर्च करने पर रोज बढ़ती है। विद्या धन सभी धनों में प्रधान है।

 

सदगुण गुणा: सर्वत्र पूज्यन्ते न महत्योअपि सम्पद:। पूर्णेन्दु किं तथा वन्द्यो निष्कलंको यथा कृश:। (चाणक्यनीति)  यानी जिस प्रकार पूर्णिमा के चांद के स्थान पर द्वितीय का छोटा चांद पूजा जाता हैउसी प्रकार सद्गुणों से युक्त इंसान निर्धन एवं नीच कुल से संबंधित होते हुए भी पूजनीय होता है।

 

स्वास्थ्य -   शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ( कुमारसंभव, कालिदास) यानी शरीर ही सभी धर्मों को पूरा करने का साधन है। धन संपदा शक्ति का स्रोत स्वस्थ शरीर ही है। दार्शनिक इमर्सन कहते हैं पहला धन स्वास्थ्य है। महात्मा गांधी कहते हैं स्वास्थ्य असली धन है न कि सोने चांदी के टुकड़े।

 

संतोष अन्तो नास्ति पिपासायाः संतोषः परमं  सुखं। तस्मात्संतोषमेवेह धनं पश्यन्ति पण्डिताः। (सुभाषितानि) आर्थात, मानव मन में तृष्णा का  कोई अंत नहीं है। इसलिए जो उपलब्ध हो उस पर संतोष करना ही परम सुख है। विद्वान संतोष को ही असली धन कहते हैं। वहीं गौतम बुद्ध कहते हैं - स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है तो संतोष सबसे बड़ा धन है।

 

शील विदेशेषु धनं विद्या, व्यसनेषु धनं मति, परलोके धनं धर्म, शीलं सर्वत्र वै धनम्। ( सुभाषितानि) मतलब शील यानी संस्कार या चरित्र सभी जगह धन का काम करता है। दार्शनिक बिली ग्राहम कहते हैं - जब धन खोया तो कुछ भी नहीं खोयाजब स्वास्थ्य खोया तो कुछ खोयाजब चरित्र खोया तो सब खो दिया।

Thursday, 12 November 2020

बिहार विधान सभा चुनाव 2020 के नतीजों के निहातार्थ

बिहार विधान सभा चुनाव 2020 के नतीजे बड़े रोचक रहे। दस नवंबर को हुई मतगणना में पहले पोस्टल बैलेट में राजेडी नीत महागठबंधन आगे जाता दिखा। पर दोपहर के बाद एनडीए की सीटें बढ़ने लगी। शाम को कुछ घंटे ऐसा वक्त रहा कि कौन जीतेगा कहना मुश्किल था। पर अंतिम नतीजों में एनडीए को 125 और महागठबंधन को 110 सीटें मिलीं। अंतिम नतीजे कुछ ऐसे रहे -

राजद - 75

कांग्रेस 19 

सीपीआई एमएल - 12

सीपीआई - 02 

सीपीएम - 02  महागठबंधन कुल - 110

एनडीए खेमे के दल 

भाजपा - 74 

जदयू 43

हम -04

वीआईपी 04

दूसरे दल 

एमआईएम - 05

लोजपा -01

बसपा 01

स्वतंत्र 01

कुल 125 सीटें जीतकर एनडीए सरकार बनाने की स्थिति में है। पर ये सरकार पूर्ण बहुमत में ऐसा कहना ठीक नहीं होगा। वीआईपी की 4 और हम की 4 सीटें हैं। इनमें से कोई भी एक दल नाराज हुआ तो सरकार अल्पमत में आ सकती है। बिहार विधान सभा की कुल 243 सीट में से बहुमत के लिए 122 सीटों का होना जरूरी है। वहीं इस बार के नतीजो में सत्तारुढ़ जदयू की सीटें 71 के मुकाबले घट कर 43 पर आ गई हैं। इसलिए इस बार बिहार को लंबे समय से सेवाएं दे रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा, हम, वीआईपी के दबाव में काम करने को मजबूर होंगे। 

उधर महागठबंधन के पास 110 सीटें हैं। अगर ओवैसी की पार्टी एमआईएम उनके साथ जाती है तो वे 115 पर आ जाएंगे। कभी हम और वीआईपी भाजपा से नाराज हो गए तो महागठबंधन के पास 123 का आंकड़ा हो जाएगा फिर पासा पलट सकता है।

अब बात एक-एक उम्मीदवार के जीत की। बिहार में बसपा ने एक सीट जीती है। भभुआ जिले के चैनपुर से बसपा के मोहम्मद आजम खान जीते हैं। वे किधर जाएंगे वे खुद तय करेंगे। अकेले उम्मीदवार के लिए जरूरी नहीं कि वह पार्टी लाइन को माने। वह चाहे तो किसी भी दल में विलय कर सकता है। 

वहीं राम विलास पासवान के निधन के बाद चिराग पासवान की पार्टी लोजपा अकेले लड़ी थी। उसके एक उम्मीदवार राज कुमार सिंह बेगुसराय के मटिहानी से जीते हैं। वे बिहार के बाहुबली रहे कामदेव सिंह के बेटे हैं। उन्होंने जदयू के बाहुबली नेता बोगो सिंह को हराया है। राजकुमार काफी पढ़े लिखे पर दबंग नेता हैं। वे किसको समर्थन देंगे यह भी वे भविष्य में खुद तय कर सकते हैं।  

जमुई जिले के आदिवासी बहुल चकाई से सुमित कुमार सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज की है। हालांकि वे जदयू से टिकट की इच्छा रखते थे। अब वे अपना समर्थन किसे देंगे, यह वे खुद तय करेंगे। उनके दादा कृष्णानंद सिंह दो बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से विधायक रह चुके हैं। उनके भाई अभय सिंह भी विधायक रह चुके हैं। बिहार विधानसभा में एमआईएम के पांच और तीन अकेले जीत दर्ज करने वाले विधायकों की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकती है। 

बिहार चुनाव के 2020 के नतीजों की बात करें तो दर्जनों ऐसी सीट हैं जहां जीत हार 1000 से भी कम मतों से हुई है। ये काफी स्पष्ट है कि 31 साल तेजस्वी यादव की अगुवाई में महागठबंधन ने काफी आक्रमकता से चुनाव लड़ा। ज्यादातर एग्जिट पोल ने राज्य में महागठबंधन की सरकार बनने की भविष्यवाणी की थी। पर मतगणना में देर शाम नतीजे पलटते नजर आए। जीत का मामूली अंतर बिहार की राजनीति में उथलपुथल का माहौल बनाए रखेगा। 


बिहार 2015 के नतीजे

 राजद  80  जदयू 71  कांग्रेस – 27 ( गठबंधन था ) 

भाजपा – 53 लोजपा – 02 (43 ) रालोसपा – 02 (23)

हम 01 ( 21) 

सीपीआई एमएल – 03


बिहार – 2010 के नतीजे

जदयू 115 भाजपा 91  (गठबंधन ) 

राजद 22 एलजेपी 03  ( गठबंधन ) 

कांग्रेस – 04  ( अकेले लड़ी थी ) 

सीपीआई 01

जेएमएम 01

स्वतंत्र  06 


Wednesday, 11 November 2020

गाय के गोबर से तैयार किए दीए और गणेश

वोकल पर लोकल की दिशा में पहल करते हुए प्रशांत द्विवेदी ने मध्य प्रदेश के मैहर में अपने पिता द्वारा शुरू की गई गौशाला को अपनी कर्मभूमि बनाने का निश्चय किया। दिवाली से पहले उन्होंने गौशाला में गोबर से गोमय दीया बनाने का कार्य शुरू किया। इसको पहले एक पायलेट प्रोजेक्ट की तरह शुरू किया गया और शुरुआत में सभी अपने लोगो में बांटा गया।

गांव की महिलाओं को रोजगार - अच्छी फीडबैक मिलने पर गांव की ही तीन महिलाओं को इस कार्य में जोड़ा गया और वहीं से शुरू हुआ गोमय दीये और गोमय गणेश बनाने का कार्य। महिलाओं द्वारा गाय के गोबर का इस्तेमाल करने गोबर के दिए और गोबर गणेश बनाये जा रहे हैं। इन्हें स्थानीय बाजारों में बेचा जा रहा है। इससे उनको काम के साथ-साथ अच्छा दाम और अच्छा मुनाफा मिल जाता है

दिल्ली में भी काफी मांग  - जहां एक ओर गोमय गणेश के दिए की डिमांड स्थानीय बाजारों में काफी है वहीं अब बड़े शहरो में भी इसकी मांग हो रही है। दिल्ली में प्रशांत ने काफी लोगों को ऐसे दीये और गणेश प्रतिमा उपलब्ध कराई है। उन्हों अन्य महानगरों से भी आर्डर मिल रहे हैं।  

ग्लोबल ब्रांड बनाने का सपना - देश के प्रधान मंत्री का वोकल फॉर लोकल का सपना साकार करने के लिए प्रशांत जैसे युवा उद्यमियों ने अपने स्तर पर पहल शुरू की है। इनका सपना गोमय गणेश और दीयों को ग्लोबल ब्रांड बनाने का है ताकि इस प्रकार के लोकल प्रोडक्ट देश की अर्थ व्यवस्था में अपना योगदान कर सकें

प्रशांत द्विवेदी संपर्क – 98730-37187