Friday, 13 November 2020

हर इंसान को धनवान बना देता है पांच तरह का धन

धन का अर्थ काफी व्यापक है। इसका अभिप्राय सिर्फ कागज के नोट या मुद्रा से नहीं है। धन वह वह जो आपको सुखी बनाए। शास्त्रों में पांच प्रकार के धन बताए गए हैं - शिक्षा, सेहत, गोधन, पशुधन, रतन यानी मुद्रा। इनमें विद्या को सर्वोत्तम धन माना गया है। आइए धनतेरस के अवसर पर बात करते हैं पांच प्रकार के धन की।

 

शिक्षा व्यये कृते वर्धत एव नित्यम् , विद्या धनं सर्व धनम् प्रधानम्  ( सुभाषितानि) यानी शिक्षा या विद्या ऐसा धन है जो खर्च करने पर रोज बढ़ती है। विद्या धन सभी धनों में प्रधान है।

 

सदगुण गुणा: सर्वत्र पूज्यन्ते न महत्योअपि सम्पद:। पूर्णेन्दु किं तथा वन्द्यो निष्कलंको यथा कृश:। (चाणक्यनीति)  यानी जिस प्रकार पूर्णिमा के चांद के स्थान पर द्वितीय का छोटा चांद पूजा जाता हैउसी प्रकार सद्गुणों से युक्त इंसान निर्धन एवं नीच कुल से संबंधित होते हुए भी पूजनीय होता है।

 

स्वास्थ्य -   शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ( कुमारसंभव, कालिदास) यानी शरीर ही सभी धर्मों को पूरा करने का साधन है। धन संपदा शक्ति का स्रोत स्वस्थ शरीर ही है। दार्शनिक इमर्सन कहते हैं पहला धन स्वास्थ्य है। महात्मा गांधी कहते हैं स्वास्थ्य असली धन है न कि सोने चांदी के टुकड़े।

 

संतोष अन्तो नास्ति पिपासायाः संतोषः परमं  सुखं। तस्मात्संतोषमेवेह धनं पश्यन्ति पण्डिताः। (सुभाषितानि) आर्थात, मानव मन में तृष्णा का  कोई अंत नहीं है। इसलिए जो उपलब्ध हो उस पर संतोष करना ही परम सुख है। विद्वान संतोष को ही असली धन कहते हैं। वहीं गौतम बुद्ध कहते हैं - स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है तो संतोष सबसे बड़ा धन है।

 

शील विदेशेषु धनं विद्या, व्यसनेषु धनं मति, परलोके धनं धर्म, शीलं सर्वत्र वै धनम्। ( सुभाषितानि) मतलब शील यानी संस्कार या चरित्र सभी जगह धन का काम करता है। दार्शनिक बिली ग्राहम कहते हैं - जब धन खोया तो कुछ भी नहीं खोयाजब स्वास्थ्य खोया तो कुछ खोयाजब चरित्र खोया तो सब खो दिया।

1 comment:

crypto said...

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