Saturday, 19 April 2008

भोजपुरी के महाकवि - चंद्रशेखर मिश्र और कुंअर सिंह

भोजपुरी समाज के महान योद्धा वीर कुअंर सिंह पर उन्होंने महाकाव्य लिखा और वह भी भोजपुरी में....जी हां हम बात कर रहे हैं बनारस के जाने माने कवि चंद्रशेखर मिश्र की....17 अप्रैल 2008 को वे हमारे बीच से चले गए...

वीर कुँअर सिंह पर महाकाव्य - मैंने पहली बार चंद्रशेखर मिश्र का नाम हाजीपुर के जाने माने पत्रकार तेज प्रताप सिंह चौहान से सुना था...चौहान जी हर 23 अप्रैल को अपने गांव बलवा कुआरी में वीर कुंअर सिंह जयंती का आयोजन का आयोजन करते हैं...इसके लिए उन्हें वीर कुँअर सिंह महाकाव्य की प्रति चाहिए थे....मैं अपने एक दोस्त की मदद से बनारस के अस्सी इलाके में चंद्रशेखर मिश्र के घर गया...उनके छोटे बेटे धर्म प्रकाश मिश्र से मिला और वीर कुँअर सिंह महाकाव्य की प्रति प्राप्त की.....चौहान जी उस प्रति को प्राप्त कर बहुत खुश हुए....चंद्रशेखर मिश्र ने वीर कुँअर सिंह महाकाव्य भोजपुरी में लिखा है....इससे पहले सुभद्रा कुमारी चौहान की वीर कुँअर सिंह पर कविता प्रसिद्ध है....पर वीर कुँअर सिंह जयंती पर चंद्रशेखर मिश्र के महाकाव्य का सस्वर पाठ की बात ही निराली थी....चौहान जी की एक दिल में दबी तमन्ना थी...वे चंद्रशेखर मिश्र जी को बुला कर मंच से सम्मानित करना चाहते थे....अब वे ऐसा नहीं कर पाएंगे......क्योंकि भोजपुरी के वीर रस के कवि चंद्रशेखर मिश्र अब हमारे बीच नहीं हैं....अस्सी साल की उम्र में कई महीने अस्वस्थ रहने के बाद बनारस की धरती पर ही उन्होंने अंतिम सांस ली....उसी इलाके में जहां स्वर्ग प्राप्ति की चाह में लोग आकर महीनों रहते हैं....उन्हें निश्चय ही स्वर्ग में अच्छी जगह नसीब हुई होगी पर हमारे बीच से भोजपुरी और हिंदी का एक प्रकांड विद्वान जा चुका है....चंद्रशेखर मिश्र जी की छाया में साहित्य अठखेलियां करता था...उनके बेटों को विरासत में साहित्य मिला है.....


बनारस की यादें - बनारस में रहते हुए कई बार मुझे मंच पर चंद्रशेखऱ मिश्र जी की कविताएं सुनने का मौका मिला....काशी हिंदू विश्वविद्यालय के मालवीय भवन की एक कवि गोष्टी में मंच पर चंद्रशेखर जी बैठे थे और उनके बेटे श्री प्रकाश मिश्र अपने पिता पर ही व्यंग्य कविताएं पढ़ रहे थे....यह व्यंग्य चंद्रशेखऱ मिश्र जी के श्वेत धवल केश राशि पर था.....सफेद बालों के बीच चंद्रशेखऱ जी के चेहरे से तेज चमकता था...हास्य रस के कवि सम्मेलन में बेटा बाप पर व्यंग्य करता था उस समय का संवाद और माहौल देखने लाय़क होता था.....इस व्यंग्य में कहीं सम्मान का क्षरण नहीं होता था......हम अब उन पलों को भी अनुभूत नहीं कर पाएंगे.....


उन्होंने भरसक न सिर्फ भोजपुरी को आत्मसात किया बल्कि उसे स्थापित करने में भी एड़ी चोटी एक कर दी। पं. मिश्र ने भोजपुरी में अनेक खंडकाव्य व महाकाव्यों की रचना की। वह कई बार राज्य सरकार के पुरस्कारों से नवाजे गए।


सृजन संसार - भोजपुरी साहित्याकाश का.. प्रमुख काव्य संग्रह में द्रौपदी, भीषम बाबा, सीता, लोरिक चंद्र, गाते रूपक, देश के सच्चे सपूत, पहला सिपाही, आल्हा उदल, जागृत भारत, धीर पुंडरिक, रौशन आरा आदि हैं। पं. चंद्रशेखर मिश्र का जन्म मीरजापुर जिले के मिश्रधाप गांव में सन् 1930 में हुआ था। बचपन में ही वह काशी आए और स्थायी तौर पर यहीं बस गए। अंतिम समय में भी वह साहित्य सृजन में लगे रहे। काव्य यात्रा, अंतिम छंद व लव-कुश खंड काव्य लिखने में व्यस्त थे।

( चंद्रशेखर मिश्र - जन्म - 1930,  महाप्रयाण - 17 अप्रैल 2008 , वाराणसी ) 
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com

Thursday, 17 April 2008

प्रकाशक चाहे तो मिल सकती है सस्ते में किताबें


पाठकों को हिंदी में अच्छी किताबें सस्ते दाम पर उपलब्ध हो यह काफी हद तक प्रकाशक पर ही निर्भर करता है।

अगर आजकल प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पुस्तकों पर नजर डालें तो वे आमतौर लाइब्रेरी एडीशन ही छपती हैं। वे महज 500 से एक हजार प्रतियां छपती हैं और लाइब्रेरी में शोभा बढ़ाती हैं..दाम अधिक होने के कारण उनका काउंटर सेल बहुत कम होता है....पर हर भाषा की तरह हिंदी में भी तमाम ऐसे दीवाने प्रकाशक हैं जो अपने चहेते लेखक की किताबें सस्ते दाम में छापते हैं। सस्ता साहित्य मंडल का नाम ही इस भावन का परिचायक है।

ऐसा ही एक प्रकाशन है-वाराणसी स्थित हिंदी प्रचारक संस्थान।( पता है- प्रचारक ग्रंथावाली परियोजना, हिंदी प्रचारक संस्थान, पो.बा. 1106 पिशाच मोचन, वाराणसी- 221010)हिंदी प्रचारक संस्थान ने भारतेंन्दु समग्र, देवकीनन्दन खत्री समग्र, शरतचंद्र समग्र, वृंदावन लाल वर्मा समग्र, प्रताप चंद्र समग्र, शेक्सपीयर समग्र जैसे कई समग्र प्रकाशित किए हैं। इन सभी समग्र का संपादन भी जाने माने लोगों ने किया है....सभी समग्र सजिल्द हैं। इनमें 500 से 1000 तक पेज हैं...इनकी कीमत इनका अन्दाजा लगा सकते हैं? कीमतें मात्र पचास से सौ रुपये के बीच हैं.... एक सुधी पाठक का कमेंट है कि इतने में आप अकेले एक दिन में शायद चाय पी जाते होंगे या पान खा के थूक देते होंगे।
अगर इन जाने माने लेखकों का समग्र अगर आप अलग अलग खरीदना चाहें तो दो हजार रुपये तक खर्च करने पड़ सकते हैं....पर हिंदी प्रचारक उन्हें महज 200 रुपये में उपलब्ध करा रहा है....
हिंदी प्रचारक संस्थान के दूसरी पीढ़ी के प्रकाशक रहे कृष्ण चंद्र बेरी का सपना था पाठकों को कम कीमत में समग्र उपलब्ध कराने का....जब उन्होंने इस योजना पर काम शुरू किया उनके परिवार के अन्य सदस्यों को इसकी सफलता पर आशंका हुई...लेकिन बेरी जी ने कहा कि सस्ते में समग्र प्रकाशित कर उन्हें कोई घाटा नहीं हुआ है....यह बेरी जी की इच्छा शक्ति का ही कमाल था कि अनमोल ग्रंथ सस्ते में प्रकाशकों तक मिल सके....अब कृष्ण चंद्र बेरी जी हमारे बीच नहीं हैं...उनके बेटे विजय प्रकाश बेरी इस योजना को आगे बढ़ा रहे हैं.....


आप समग्र सूची पत्र के लिए हिंदी प्रचारक संस्थान को लिख सकते हैं.....पता है- 

प्रचारक ग्रंथावाली परियोजना, हिंदी प्रचारक संस्थान, पो.बा. 1106 पिशाच मोचन, वाराणसी- 221010 ( उप्र)
- विद्युत प्रकाश मौर्य

Tuesday, 15 April 2008

शायर नजीर बनारसी की याद


काशी हिंदू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू में मुझे उस दौर में पढ़ने का मौका मिला जब बीएचयू की प्लैटिनम जुबली मनाई जा रही थी.....इसी मौके पर बीएचयू के एमपी थियेटर ग्राउंड में 1992 में एक कवि और शायरों का सम्मेलन आयोजित हुआ वहां नजीर बनारसी की आवाज में एक गजल सुनने को मिली ....उसकी कुछ पंक्तियां बार बार याद आती हैं..........
तेरी मौजूदगी में नजारा कौन देखेगा.....
मेले में सब तुझको देखेंगे मेला कौन देखेगा

जरा रुकिए अभी क्यों जाते हैं शादी की महफिल से
हंसी रात आपने देखी सबेरा कौन देखेगा....

आती है सफेदी बालों में तो आने दे नजीर
जवानी तुमने देखी बुढ़ापा कौन देखेगा.....
अब नजीर बनारसी भी नहीं हैं... 23 मार्च 1996 को उनके निधन की खबर आई तो दिल उदास हो गया। उस कवि सम्मेलन का मंच संचालन कर रहे थे हिंदी के प्रख्यात कवि डा. शिवमंगल सिंह सुमन....डा. शिवमंगल सिंह सुमन की एक कविता बचपन में पढ़ी थी....
हम पंक्षी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएंगे
कनक तिलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाएंगे  
कविता की आखिरी पंक्ति बड़ी मार्मिक थी....
नीड़ न दो चाहे
टहनी का आश्रय
छिन्न कर डालो
पर पंख दिए हैं तो
आकुल उड़ान में बिघ्न न डालो 

डा. शिवमंगल सिंह सुमन ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ा भी और पढ़ाई भी की.....प्लैटिनम जुबली समारोह के कवि सम्मेलन का मंच संचालन करते हुए डा. सुमन ने एक कविता सुनाई.....
मौन भले हों अधर तुम्हारे
प्यासा विहग चहक जाएगा
तुम जूड़े मे गजरा मत बांधों
मेरा गीत भटक जाएगा.....


- विद्युत प्रकाश मौर्य

Sunday, 13 April 2008

चल सखी मेट्रो में....( व्यंग्य)

जब से दिल्ली में मेट्रो रेलगाड़ी चल गोइल बिया दिल्ली में रहे वालन के जिनगी में बहार आ गोइल बा...कालेज जाइ ओली बबुनी के रोमांस करे के एगो नया जगह मिल गोइल बा...अब जब बबुनी के मोबाइल फोन टुनटुना ता त उ गते से कहेली...अभी फोन मत करे मेट्रो में भेंट होई...
रउया जैसे हीं मेट्रो रेलगाड़ी में घुसब सीढ़ी प बइठल कई गो लोग मिल जाइहन जे कान में मोबाइल फोन लगवले गते-गते अपना संघतियां संघे संवाद स्थापित करत होहन....रउआ आपन काम धाम निपटा के जब लौटत त देखब की दू घंटा बाद भी उ लइकी ओइजी बइठ के बतिया रहल बिया...अब का कइल जाए बहरी के धूप से इइजा निजात बा....जब दिल्ली यूनिवर्सिटी से मेट्रो केंद्रीय सचिवालय खातिर चलेले त ओमे न जाने केतना सौ दिल समा जाला...सबके एहिजा खुल के बतिआवे के मौका मिलेला...काल्ह कहां मिलल जाई इ सब कुछ भी आज तय हो जाला....पहले कतना दिकत हो रहे...याद करीं बस के धाका....आ उ लटकल भीड़....गरमी में त आतनी पसीना आवत रहे कि आधा घंटा में ही कपड़ा से टप टप पानी चूए लागत रहे....शीला जी दिल्ली के सब कोना में मेट्रो रेल चला के बडा उपकार कइले बाड़ी....अब केहु से मिले के टाइम तय करेके बा त बस इहे कह देता लोग कि फलाना मेट्रो स्टेशन के सीढ़ी पर मिल जइह ओहिजा से साथ हो लेल जाई....
एक दिन मेट्रो में एगो नउकी भौजाई चढ़ली....उनका मेट्रो के माहौल एतना निमन लागल एहिए भइया के साथ लिपटाए लगली....बार बार भइया से चिपकल जात रही...भला बस में चले में इस सुख कहां बा....क गो प्रेमी-प्रेमिका त मेट्रो के पहिला स्टेशन पर पर रेलगाड़ी बइठ जात बाड़न फिर लौट के दू घंटा बाद एहिजे आ जात बाडन...भला एकरा से सेफ जगह कहां बा...एगो गीत बा...नू....दो दिल मिल रहे हैं मगर चुपके चुपके....
लेकिन मेट्रो मे त .....दो दिल मिल रहे हैं जरा खुल के.......

आती है क्या खंडाला का भोजपुरी अनुवाद

ए चलबू का खंडाला...
का करब हम जाके खंडाला
घूमल जाई फिरल जाइ घूपचुप खाइल जाई अउर का....

-विद्युत प्रकाश
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Friday, 11 April 2008

दलित पीएम पर कांग्रेस का दांव


नए पोर्टल एनडीटीवी खबर डाट काम पर एक खबर आई है कि कांग्रेस अगले चुनाव में किसी दलित को प्रधानमंत्री बना सकती है...बकौल गृह राज्यमंत्री श्री प्रकाश जायसवाल मायावती के पीएम रुप में प्रोजेक्ट किए जाने को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया है.....
सरकार भले ही यह राजनीतिक दांव खेल रही होस पर भारतीय राजनीति के लिए यह एक शुभ संकेत हो सकता है...क्योंकि देश मे दलित राष्ट्रपति के बाद अब दलित प्रधानमंत्री की बारी है...सवाल यह नहीं उठता कि वह दलित नेता प्रधानमंत्री के रुप में कितना सफल होगा...

दलित पीएम बनाए जाने से दलित समाज का मनोबल बढ़ेगा...जो लोग भी हिंदुस्तान के मूल निवासी ( आदि वासी ) हैं वे सभी दलित ही हैं....हम अभी तक देश में किसी पिछड़े को पीएम नहीं बना सकें....जगजीवन राम दलित होने के कारण पीएम बनते बनते रह गए...

अगर सोनिया जी इस तरह की बात सोच रही हैं तो हमें उनका साधुवाद देना चाहिए...पर हमें एक ऐसे दलित नेता की खोज करनी होगी जो सही मायने में दलित समाज का नुमाइंदा हो...वह सरमाएदार न हो....हमें मीरा कुमार जैसा पीएम नहीं चाहिए....कांग्रेस को चाहिए कि अभी से एक ऐसे नेता की खोज करे और उसे अगले पीएम के रूप में प्रोजेक्ट करके चुनाव की तैयारी शुरू कर दे....देश की राजनीति में इसके सकारात्मक परिणाम दिखाई देंगे...हमने एक इकोनोमिस्ट पीएम देखा है...जो अभी महंगाई और शेयर बाजार की दरकती दीवार से लड़ रहा है....ऐसे में अब किसी दलित को पीएम की कुरसी पर देखने में कोई बुराई नहीं है....

-- vidyutp@gmail.com

Wednesday, 9 April 2008

भोजपुरी पत्रकारिता का दौर

मेरे कई साथियों ने यह जानना चाहा है कि 12 साल तक हिंदी पत्रकारिता करने के बाद भोजपुरी में क्यों..क्या मैं मेनस्ट्रीम से अलग हो रहा हूं..मैं उन दोस्तों को बता दूं कि कुछ भी मेन स्ट्रीम से अलग नहीं है....पत्रकारिता में हमेशा नए प्रयोग होते रहते हैं.....कुछ दशक पहले किसी ने कल्पना नहीं की होगी कि डाट काम पत्रकारिता एक विधा हो सकती है। पर आज वेब पत्रकारिता फलफूल रही है। और कुछ सालों बाद यह टीवी और अखबार के समानांतर खड़ी हो जाएगी..आज लोग अपडेट खबरों के लिए बीबीसी हिंदी, जोस 18, जागरण डाट काम देखते हैं। हाल में एनडीटीवी खबर डाट काम भी हिंदी मे नया पोर्टल शुरू हुआ है....जब वेब दुनिया ने इस क्षेत्र में पहल की थी तब लोगों की कई तरह की शंकाएं थी...वेब दुनिया को कई शहरों के आनलाइन पोर्टल शुरू करने में सफलता नहीं मिल पाई थी.. पर वेब दुनिया का सपना आज फलफूल रहा है....

मैंने अपनी पत्रकारिता जीवन के कई साल पंजाब में गुजारे...पांच साल पंजाब में रहने के बाद हमने देखा वहां पंजाबी चैनल को फलते फूलते हुए...पूरी दुनिया में दो करोड़ पंजाबी बोलने वाले भाई हैं...पर पांच पंजाबी चैनलों ने सफलता पूर्वक जगह बना ली...पर 19 करोड़ भोजपुरी बोलने वालों का अपना कोई चैनल नहीं हैं...अगर आप किसी ऐसे शहर मे रहते हैं जहां भोजपुरी बोलने वाले गिने चुने लोग हैं तो आप अपना मनोरंजन कैसे करेंगे....


कई सालों में कई लोगों ने सपना देखा योजनाएं बनाई ...पर अब जाकर इन सपनों को पंख लगना शुरू हुआ है.. अब कई योजनाएं जमीनी हकीकत बनने वाली हैं....ऐसे भोजपुरी चैनल का सपना साकार होने वाला है...जहां खबरें भी होंगी, गाने भी होंगे...फिल्में भी होंगी...हंसी ठिठोली भी होगी....भोजपुरी माटी की सोंधी-सोंधी खुशबू होगी...यह एक नए युग के शुरूआत जैसा ही तो है...इस शुरूआत में मैं भी सहभागी बन रहा हूं तो यह मेरा सौभाग्य है...कि मुझे अनपी मां बोली की सेवा करने का एक मौका मिला है....
अगर कोई पंजाबी का पत्रकार हिंदी या अंग्रेजी में भी लिखता है तो उसकी योग्यता दुगुनी हो जाती है क्योंकि वह बाई लिंगुवल जर्नलिस्ट माना जाता है...ठीक इसी तरह मैं या मेरे साथी अगर हिंदी के साथ भोजपुरी भी उतनी अच्छी लिखते पढ़ते हैं तो इससे उनकी प्रतिभा में कुछ एडीशन ही होता है न कि कुछ कमी आती है....


मैंने अपने कैरियर मे चुनावी सर्वेक्षण का काम भी किया...एक्जिट पोल और ओपिनियन पोल भी कराए....लिखते हुए हिंदी केबल टीवी, मीडिया और बाजार के विभिन्न विषयों पर कलम चलाई है...तो ये डाइवर्सिफिकेशन का दौर है....कई बड़े पत्रकार भोजपुरी की ओर रुख कर रहे हैं...यह भोजपुरी के लिए बड़े अच्छे संकेत हैं... हिंदी पत्रकारिता में बड़ी संख्या में भोजपुरी पृष्ठभूमि के लोग हैं....वे भी इसे सकारात्मक दृष्टि से देख रहे हैं....तो आइए कुछ नई चीजों के स्वागत के लिए तैयार हो जाएं..... 


( लंबी तैयारी के बाद महुआ चैनल 11 अगस्त 2008 से प्रसारित होना आरंभ हुआ। ) 

-विद्युत प्रकाश मौर्य,
vidyutp@gmail.com

Sunday, 30 March 2008

मतदाताओं को मिले पेंशन

जरा सोचिए आपको वोट डालने के बदले में पेंशन दिया जाए तो कैसा लगेगा। यह प्रस्ताव है एक राजनैतिक दल का। राष्ट्रीय समानता दल जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष मोतीलाल शास्त्री हैं उनका मानना है कि देश के हर मतदाता को 1750 रुपये मासिक की दर से मतदाता पेंशन मिलना चाहिए। शास्त्री जी का मानना है कि इस तरह के पेंशन से भ्रष्टाचार का खात्मा हो सकेगा। साथ ही आम जनता की प्रजातंत्र में भागीदारी बेहतर ढंग से हो सकेगी।
मतदाता को पेंशन यह बात सुनने में कुछ अटपटी लगती है, पर है बहुत रूचिकर...राष्ट्रीय समानता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोतीलाल शास्त्री कहते हैं कि दुनिया के कुछ देशों में इस तरह के पेंशन दिए जाने का प्रावधान भी है।

कई योजनाओं में भ्रष्टाचार- शास्त्री जी के अनुसार स्कूलों में मिड डे मील और पोलियो उन्मूलन अभियान जैसी योजनाओं पर सरकार हजारों करोड़ रुपये पानी में बहा रही है। मिड डे मिल तो बच्चों को एक तरह से भीखमंगा बनाने की योजना है। वहीं मिड डे मिल में देश के कोने कोने से भ्रष्टाचार की खबरें भी आती हैं। इसलिए स्कूलों में खैरात में भोजन बांटने के बजाए हर वोट देने वाले नागरिक को पेंशन दिया जाए तो वह अपने बच्चों को बेहतर ढंग से पढ़ा सकेगा। शास्त्री जी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का हवाला देते हैं , उन्होंने एक बार कहा था कि केंद्र सरकार से चले पैसे का सिर्फ 15 फीसदी ही लोगों तक सही रूपमें पहुंच पाता है, बाकी 85 फीसदी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। आजकल मिड डे मिल, काम के बदले अनाज जैसी दर्जनों भ्रष्टाचार क गंगा बहाने वाली योजनाएं चलाई जा रही हैं। इन सभी योजनाओं को बंद कर मतदाता पेंशन योजना शुरू की जानी चाहिए।
मोतीलाल शास्त्री 


फंड की कोई कमी नहीं- शास्त्री साफ शब्दों में कहते हैं कि देश के सारे वोटरों को मतदाता पेंशन देने के लिए सरकार के पास फंड की कोई कमी नहीं रहेगी। सरकार को बस वैसी कई योजनाएं बंद करनी होगी जो भ्रष्टाचार की गंगा बहा रही हैं।
खरीद फरोख्त पर लगेगी रोक- मतदाता पेंशन दिए जाने से चुनाव के दौरान वोटों की की जाने वाली खरीद फरोख्त को भी रोक लग सकेगा। हर मतदाता गर्वान्वित होकर वोट डाल सकेगा। वह अपने वोट को थोड़े से रुपये के लालच में आकर बेचेगा नहीं। अगर देश के हर वोटर को मासिक तौर पर पेंशन दिया जाए तो गरीब आदमी का स्वाभिमान बेहतर हो सकेगा और वह खुश होकर प्रजातंत्र में अपनी भागीदारी निभाएगा।
राष्ट्रीय समानता दल ने मतदाता पेंशन को अपने चुनावी घोषणा पत्र में प्रमुखता से रखा है और मोतीलाल शास्त्री जहां कहीं भी चुनावी भाषण देने जाते हैं, इस मुद्दे को प्रमुखता से रखते हैं। फिलहाल यह पार्टी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान में चुनाव लड़ती है।
-विद्युत प्रकाश मौर्य

Friday, 7 March 2008

बाबा आम्टे - सच्चे मामलों में भारत रत्न थे...

बाबा आम्टे, सच्चे मामलों में भारत रत्न थे। पूरी जिंदगी उन्होंने पीड़ित मानवता की सेवा में होम कर दिया। नागपुर के पास चंद्रपुर नामक का एक रेलवे स्टेशन। भारत के नक्शे में चंद्रपुर कोई खास स्थान नहीं रखता है पर यह जगह बहुत खास भी है। यहां से थोड़ी दूर पर है। वरोरा जहां बसा है आनंदवन। जी हैं आनंदवन वही जगह है जिसने हजारों ऐसे लोगों को नया जीवन दिया है जिन्हें समाज के लोग तिरस्कार भरी नजरों से लोग देखते हैं। हां कुष्ठ जैसी बीमारी....इस बीमारी से ग्रस्त लोगों के आसपास फटकना भी लोग नहीं पसंद करते हैं।

 पर आनंदवन ने ऐसे तमाम लोगों को एक नया जीवन दिया है। जी हां हम मंदिर में मंदिर में जाकर अपनी औकात के मुताबिक लाखों करोड़ो दान दे आते हैं, पांच सितारा होटलों में लाखों उड़ा देते हैं। पर किसी कोढ़ से पीडि़त व्यक्ति को नफरत भरी निगाह से देखकर मुंह फेर लेते हैं। पर ऐसे पीडि़त लोगों को देखकर एक व्यक्ति का दिल पसीज आया और उसने पीड़ित मानवता की जीवन भर सेवा करने की ठानी । उसने कोढ़ से पीडि़त हजारों लोगों को जीवन में आशा किरण भरी। न सिर्फ उन्हें बीमारी से ठीक करके नई जिंदगी दी बल्कि उनके लिए पुनर्वास के लिए उनके रोजगार का इंतजाम भी किया। उस महापुरूष का नाम मुरलीधर देवीदास आम्टे है, जिसे लोग बाबा आम्टे के नाम से जानते हैं।
कुष्ठ रोगियों की सेवा  
हजारों कुष्ठ रोगियों की जिंदगी में नई रोशनी देने वाले बाबा आम्टे ने नौ फरवरी 2008 को 94 साल की उम्र में इस धरती से विदाई तो ले ली पर उनके द्वारा शुरू किया गया प्रकल्प दुनिया भर के लोगों के लिए हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। बाबा आम्टे ने जो प्रकल्प आनंदवन में शुरू किया वह दुनिया भर के ऐसे लोगों के लिए खास तौर पर प्रेरणा देता रहेगा जो दूसरों की किसी भी रूप में सेवा करना चाहते हैं। बाबा द्वारा स्थापित संस्था महारोगी सेवा समिति को उनके बड़े बेटे डा. विकास आम्टे देखते हैं और यहां कुष्ठ रोगियों की सेवा का काम अनवरत चलता ही रहेगा। हम अक्सर तीर्थ यात्राओं पर जाते हैं बड़े बड़े मंदिर और मस्जिद में जाकर मत्ठा टेकते हैं। पर हमें कभी आनंदवन भी जाना चाहिए जो सही मायने में ऐसा मंदिर है जो लोगों को सेवा करने की प्रेरणा देता है।
जाने माने फिल्म स्टार नाना पाटेकर ग्लैमर की चकाचौंध भरी दुनिया के बीच से समय निकालकर आनंदवन जाते रहे हैं और दूसरे लोगों को भी वहां जाने की प्रेरणा देते हैं।

जोड़ो जोड़ो भारत जोड़ो 
बाबा आम्टे ने न सिर्फ जीवन भर कुष्ठ रोगियों की सेवा की बल्कि देश भर के करोड़ो नौजवानों को प्रेरणा देने के लिए भारत जोड़ो यात्रा निकाली। उनका नारा जोडो़-जोड़ो भारत जोड़ो..जाति-पाति के बंधन तोड़ो भारत जोड़ो काफी लोकप्रिय हुआ। भारत जोड़ो यात्रा में शामिल कई लोगों ने इस नारे को जीवन में उतारते हुए दूसरे राज्य और दूसरे बिरादरी से अपने लिए जीवन साथी भी चुना। हालांकि बाबा को बाद में स्पाइनल कोर्ड की हड्डी में शिकायत हो गई थी जिससे वे बैठ नहीं सकते थे।

94 साल तक सक्रिय रहे 
बाबा की जीजिविषा जबरदस्त थी 94 साल की उम्र तक वे सक्रिय रहे कभी नर्मदा बचाओ आंदोलन को सपोर्ट किया तो कभी किसी और जन आंदोलन को। बाबा की सेवाओं को महत्व प्रदान करते हुए उन्हें टेंपल्टन अवार्ड दिया गया तो प्राइज मनी की दृष्टि से नोबेल प्राइज से भी बड़ा है। इसके अलावा मैग्सेसे पुरस्कार समेत कई बड़े पुरस्कार भी उनकी झोली में गए। बाबा के जाने के साथ धरती से एक सच्चा मानवतावादी हमसे दूर हो गया है पर बाबा का जीवन हमेशा लाखों करोड़ों लोगों को प्रेरणा देता रहेगा। 
( बाबा आम्टे 26 दिसंबर 1914 - 9 फरवरी 2008) 


बाबा आम्टे द्वारा स्थापित संगठन महारोगी सेवा समिति की वेबसाइट  - http://www.anandwan.in/  लोक बिरादरी प्रकल्प हेमलकशा की वेबसाइट -http://lokbiradariprakalp.org/ देख सकते हैं। अगर आप आनंदवन जाना चाहते हैं तो संस्था की वेबसाइट पर जाकर वहां आवास व्यवस्था की बुकिंग करा सकते हैं। आप चाहें तो न्यूनतम दो माह के लिए वालंटियर के तौर पर अपनी सेवाएं भी दे सकते हैं।

बाबा को मिले पुरस्कार सम्मान
- 1971 में भारत सरकार से पद्मश्री 
- 1984 मैग्सेसे अवार्ड
- 1990 टेंपलटन पुरस्कार
- 1986 में पद्मभूषण मिला। 

Wednesday, 13 February 2008

कोई इनको भी तो कंडक्ट सीखाओ


जब आप बस में चढते हैं तो आपका पहला सामाना बस के कंडक्टर से होता है। यह बहुत बड़ा सवाल है कि वह कंडक्टर आपके साथ कैसा व्यवहार करता है। खास कर जब दिल्ली में किसी प्राइवेबट बस में चढते हैं तो आप कंडक्टर का व्यवहार नहीं भूला सकते है। अगर कोई दिल्लीवासी हो तो उसे यह बताने की जरूरत नहीं है कि दिल्ली की बसों में कंडक्टर का व्यवहार कैसा होता है, क्योंकि दिल्लीवाले तो उन्हें सालों से झेलते आ रहे हैं। मतलब की वे इसके आदी हो चुके हैं। पर कोई आदमी पहली बार दिल्ली में आता हो और किसी प्राइवेट बस में बैठ जाता हो तो वह कंडक्टर के व्यवहार को देखकर जरूर कई तरह की बातें सोच सकता है।

 अब यह बताने की जरूरत नहीं है कि कंडक्टर का व्यवहार कैसा होता है। अगर हम कंडक्टर के शाब्दिक अर्थ पर जाएँ तो यह शब्द ही कंडक्ट करने से बना है। यानी कंडक्टर के लिए व्यवहार ही सबसे बड़ी जरूरत है। पर दिल्ली के निजी बस के कंडक्टरों का व्यवहार से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं है। उन्हें दरअसल इसकी कभी ट्रेनिंग भी नहीं दी गई। इसके उल्ट सरकारी डीटीसी बसों के कंडक्टरों का व्यवहार आम लोगों के साथ अच्छा होता है।अगर आप दिल्ली की किसी ब्लू लाइन बस में घंटे दो घंटे का सफर करें और कंडक्टर का उतरने चढ़ने वाले लोगों के साथ संवाद पर गौर फऱमाएं तो बेहतर समझ सकते हैं कि वह लोगों के साथ कैसे पेश आता है। टिकट खरीदने के लिए लोगों को बुरी तरह के से चिल्लाकर कहना, लोगों को अंदर चलने और उतरने चढने के लिए हल्ला मचाना इसके साथ ही छोटी-छोटी बातों को लेकर यात्रियों के साथ बकझक करना...यह सब किसी के लिए भी बड़े बुरे अनुभव हो सकते हैं। अगर हम पूरी दुनिया की या भारत की भी बात करें तो हर जगह पब्लिक डिलिंग करने वालों लोगों को इस बात की खास तौर पर ट्रेनिंग दी जाती है कि वे लोगों के साथ कैसा व्यवहार करें। इसके लिए कई संस्थानों में समय समय पर वर्कशाप लगाए जाते हैं और रिफ्रेशर कोर्स भी कराए जाते हैं। 


आप किसी दफ्तर में प्रवेश करते हैं तो वहां बैठा रिसेप्सनिस्ट आपके साथ मुस्कराकर बातें करता है और आपके साथ अच्छा व्यवहार करता है।निश्चित तौर पर कहीं भी अच्छा व्यवहार जहां किसी को भी शुकुन प्रदान करता है तो बुरे व्यहार से खीज होती है...तनाव होता है...जब लिफ्ट में चढते हैं लिफ्ट वाला, या रोज रोज टकराने वाले तमाम पेशेवर लोग आपके साथ मधुरवाणी में पेश आते हैं। देश के कई अन्य महानगरों में चले जाएं तो वहां के बस कंडक्टरों का व्यवहार भी आमतौर पर ठीक होता है। आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद में तो बसों में महिला कंडक्टरों की नियुक्ति कर दी गई है। वहां महिला कंडक्टर जहां अपना काम पूरी तत्परता से करती हैं वहीं वे लोगों के साथ अच्छा व्यवहार भी करती हैं। वैसे भी आप आमतौर पर महिलाओं से गाली गलौज वाली जुबान की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। पर दिल्ली के बस कंडक्टर तो बात बात में गाली-गलौच पर उतारू हो जाते हैं। इसलिए जरूरत इस बात की है भले ही कंडक्टर प्राइवेट बसों में काम करते रहे हैं पर उन्हें बस में बहाल करने से पहले लोगों के साथ व्यवहार करने के तौर तरीकों की अनिवार्य तौर पर ट्रेनिंग दी जाए। जिस तरह ड्राइवर बनने के लिए प्रशक्षिण और उसके बाद लाइसेंस लेना जरूरी किया गया है। उसी तरह से कंडक्टर का भी प्रशिक्षण और प्रमाण पत्र होना चाहिए।


 हो सकता है इससे दिल्ली का कंडक्टरों का व्यवहार पूरी तरह नहीं बदल पाए पर बसों होने वाले हो हल्ला और तनाव में कमी जरूर आएगी। अभी दिल्ली के भीड़ भरी किसी निजी बस में सफर करना एक बुरे सपने जैसा ही है। दिल्ली की निम्न मध्यमवर्गीय जनता इसको सालों साल से झेलने की आदी हो गई है, इसलिए उसे कोई सुधार की उम्मीद नजर नहीं आती। हाल के सालो में कंडक्टरों के लिए वर्दी और उनके नाम का बैच लगाना जरूरी कर दिया गया है। पर बात इतने से बनने वाली नहीं है, जब तक उन्हें सही तरीके से व्यवहार करना नहीं सीखाया गया तो हम 2010 के लिए जिस दिल्ली को तैयार कर रहे हैं उसमें कहीं न कहीं बट्टा लगा हुआ रह ही जाएगा।
--  विद्युत प्रकाश मौर्य

Monday, 4 February 2008

युवाओं के प्रेरणास्रोत सुब्बाराव


सबके प्यारे...भाईलाखों युवा उन्हें प्यार से भाई जी कहते हैं। उनका असली नाम है एस एन सुब्बराव। उनका जन्म 7 फरवरी 1929 को कर्नाटक के बेंगलूर शहर में हुआ। उनके पुरखे तमिलनाडु में सेलम से आए थे। इसलिए उनका पूरा नाम सेलम नानजुदैया सुब्बराव है। सुब्बराव एक ऐसे गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता हैं जिन्होंने गांधीवाद को अपने जीवन में पूर्णता से अपनाया है। पर उनका सारा जीवन खास तौर पर नौजवानों को राष्ट्रीयता, भारतीय संस्कृति, सर्वधर्म समभाव और सामाजिक उत्तरदायित्वों की ओर जोड़ने में बीता है। वे सही मायने में एक मोटिवेटर हैं। उनकी आवाज में जादू है। शास्त्रीय संगीत में सिद्ध हैं। कई भाषाओं में प्रेरक गीत गाते हैं। उनकी चेहरे में एक आभा मंडल है। जो एक बार मिलता है उनका हो जाता है। उन्हें कभी भूल नहीं पाता। कई पीढ़ियों के लाखों लोगों ने उनसे प्रेरणा ली है।

सारा भारत अपना घर - सुब्बराव जी का कोई स्थायी निवास नहीं है। सालों भर वे घूमते रहते हैं। देश के कोने कोने में राष्ट्रीय एकता व सांप्रदायिक सद्भावना के शिविर। शिवर नहीं तो किसी न किसी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि। देश के हर बड़े छोटे शहर में युवा उन्हें जानते हैं। जहां से गुजरना हो पहले पोस्टकार्ड लिख देते हैं। लोग उनका स्वागत करते हैं। वे अपने युवा साथियों के घर में ठहरते हैं। कभी होटल या गेस्ट हाउस में नहीं। दिल्ली बंगलोर नहीं उनके लिए देश के लाखों युवाओं का घर अपने घर जैसा है।


हाफ पैंट व बुशर्टलंबे समय से खादी का हाफ पैंट और बुशर्ट ही उनका पहनावा है। हमनेउनको उत्तरकाशी में दिसबंर की ठंड में भी देखा है जब एक पूरी बाजी की ऊनी शर्ट पहनी, पर उतनी ठंड में भी हाफ पैंट में रहे। यह उनकी आत्मशक्ति है। सालों भर दुनिया के कई देशों में यात्रा करते हुए भी उनका यही पहनावा होता है। कई लोग उनके व्यक्तित्व व सादगी से उनके पास खींचे चले आते हैं उनका परिचय पूछते हैं।चंबल का संतसुब्बराव जी की भूमिका चंबल घाटी में डाकूओं के आत्मसमर्पण कराने में रही है। उन्होंने डाकुओं से कई बार जंगल में जाकर मुलाकात की। अपने प्रिय भजन आया हूं दरबार में तेरे... गायक डाकुओं का दिल जीता।

 उनके द्वारा स्थापित महात्मा गांधी सेवा आश्रम जौरा, मुरैना (मप्र) में ही  जय प्रकाश नारायण के समक्ष माधो सिंह, मोहर सिंह सहित कई सौ डाकुओं ने आत्मसमर्पण किया था। सुब्बराव जी का आश्रम इन डाकुओं के परिजनों को रोजगार देने के लिए कई दशक से खादी और ग्रामोद्योग से जुड़ी परियोजनाएं चला रहा है। चबंल घाटी के कई गांवों में सुब्बराव जी की ओर दर्जनों शिविर लगाए गए जिसमें देश भर युवाओं ने आकर काम किया और समाज सेवा की प्रेरणा ली।पूरे देश में युवा शिविर-सुब्बराव जी द्वारा संचालित संस्था राष्ट्रीय युवा योजना अब तक देश के कोने कोने में 200 से अधिक राष्ट्रीय एकता शिविर लगा चुकी है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक, लक्षद्वीप, पोर्ट ब्लेयर, शिलांग, सिलचर से लेकर मुंबई तक। आतंकवाद के दौर में पंजाब में और नक्सलवाद से ग्रसित बिहार में भी। कैंप से युवा संदेश लेकर जाते हैं । देश के विभिन्न राज्यों के लोगों के साथ सद्भावनापूर्ण व्यवहार करने का, दोस्ती का और सेवा का। हजारों युवाओं की जीवनचर्या इन कैंपों ने बदल दी है। कई पूर्णकालिक समाजसेवक बन जाते हैं जो कई जीवन किसी भी क्षेत्र में रहकर सेवा का संकल्प लेते हैं।कैंप ही जीवन है जीवन ही कैंप-भाई जी के लिए पूरा जीवन ही एक कैंप की तरह है। तभी उन्होंने विवाह नहीं किया। कोई स्थायी घर नहीं बनाया। बहुत कम संशाधनों में उनका गुजारा चलता है। दो खादी के झोले और एक टाइपराइटर। यही उनका घर है। 78 वर्ष की उम्र में भी अक्सर देश के कोने-कोने में अकेले रेलगाड़ी में सफर करते हैं। रेलगाड़ी में बैठकर भी चिट्टियां लिखते रहते हैं। अगले दो महीने में हर दिन का कार्यक्रम तय होता है। एक कैंप खत्म होने के बाद दूसरे कैंप की तैयारी। सुब्बराव जी को केवड़िया गुजरात में 25 हजार नौजवानों का तो बंगलोर में 1200 नौजवानों का शिविर लगाने का अनुभव है।

पोस्टकार्ड की ताकत- सालों से पोस्टकार्ड लिखना उनकी आदत है। टेलीफोन ई-मेल के दौर में भी उनका अधिकांश संचार पोस्टकार्ड पर चलता है। पूर्व रेल मंत्री सीके जाफरशरीफ कहते हैं कि सुब्बराव जी एक पोस्टकार्ड लिख देंगे तो नौजवान बोरिया बिस्तर लेकर कैंप में पहुंच जाते हैं। यह सच भी है। उनके आह्वान पर उत्तरकाशी भूकंप राहत शिविर, साक्षरता शिविर और दंगों के बाद लगने वाले सद्भावना शिविर में देश भर से युवा पहुंचे हैं।विदेशों में गांधीवाद का प्रसार-हर साल के कुछ महीने सुब्बराव जी विदेश में होते हैं। वहां भी कैंप लगाते हैं, खासकर अप्रवासी भारतीय परिवारों के युवाओं के बीच। इस क्रम में वे हर साल अमेरिका, जर्मनी, जापान, स्वीटजरलैंड जैसे देशों की यात्राएं करते हैं।

पुरस्कार सम्मान से दूर- सुब्बराव जी पुरस्कार सम्मान से दूर रहने वाले व्यक्ति हैं। उन्होंने पद्म पुरस्कारों के लिए बड़ी सदाशयता से ना कर दी। उन्हें जिंदाबाद किए जाने से सख्त विरोध है। वे कहते हैं जो जिंदा है उसका क्या जिंदाबाद। हालांकि समय समय पर उन्हें कई पुरस्कारों से नावाजा गया है। सांप्रदायिक सौहार्द के लिए उन्हें राजीव गांधी सद्भावना अवार्ड से नवाजा जा चुका है।

-विद्युत प्रकाश मौर्य         ईमेल -vidyutp@gmail.com