एक बार फिर गांधी चर्चा में हैं। पहला
कारण तो है सत्याग्रह आंदोलन के 100 साल पूरे होना। 11 सितबंर
1906 गांधी जी दुनिया को लड़ाई के लिए एक नया अस्त्र प्रदान किया। सत्याग्रह
निर्बलों के लिए बहुत बड़ा अस्त्र साबित हुआ। पर अभी हास्य फिल्मों की श्रंखला में
मुन्नाभाई एमबीबीएस का नया सिक्वल आया है लगे रहो मुन्नाभाई। इसमें टपोरी मुन्ना की
मुलाकात गांधी जी से हो जाती है। वह अपनी कई समस्याओं को गांधीवाद से सुलझाने की कोशिश
की गई है। फिल्म में हास्य व्यंग्य के माध्यम से ही गांधीवाद के कई पहलूओं को छूने
की बड़ी सफल कोशिश की गई है। गांधी जी के पोते तुषार गांधी को भी इस फिल्म का
संदेश बहुत अच्छा लगा। पिछले साल भी गांधीजी पर केंद्रित एक फिल्म आई थी मैंने
गांधी को नहीं मारा। इसमें अनुपम खेर ने शानदार अभिनय किया था। इसमें गांधी को
अपराध बोध शैली में याद करने की कोशिश की गई।
वास्तव में गांधी विचार समग्र जीवन दर्शन
है। यह एक व्यवहारिक एप्रोच है। इससे दुनिया के कई बड़े आंदोलनों ने प्रेरणा ली
है। तभी कुछ साल पहले हुए के सर्वेक्षण में गांधी जी को 20 वीं सदी का दुनिया
का सबसे लोकप्रिय नेता घोषित किया गया।
कुछ लोग गांधी को श्रेष्ठ राजनेता मानते
हैं तो कुछ समाजसुधारक तो कुछ लोग सफल अर्थशास्त्री। गांधी एक सफल संचारक भी थे। इसके
बावजूद की वे कोई ओजपूर्ण वाणी के वक्ता नहीं थे। गांधी का मजाक उड़ाने वाले
उन्हें देश आजाद होने के कुछ साल बाद ही आउटडेटेड मानने लगे। पर हर कुछ साल बाद
कुछ ऐसे प्रकरण आते हैं जो गांधी को एक बार फिर प्रासंगिक सिद्ध कर देते हैं।
गांधी जी ने हमें लड़ने के लिए अंहिंसा जैसा अस्त्र दिया जिससे दुनिया में लाखों लोगों
ने प्रेरणा ली है। आज भी दुनिया के कई देशों में गांधीवादी तरीके से लोकतंत्र की
बहाली के लिए लड़ाई लड़ी जा रही है।
हालांकि लगे रहो मुन्नाभाई फिल्म में जिस
तरह गांधी जी के दर्शन को गांधीगिरी के नाम से दिखाया गया है उस पर कई गांधीवादियों
को आपत्ति है। वास्तव में गांधीगिरी को दादागिरी जैसे मुहावरे से जोड़कर देखा जा रहा
है जो ठीक नहीं हैं। हमें शब्दों के हमेशा शाब्दिक अर्थ पर ही नहीं बल्कि उसके भाव
पर जाना चाहिए। गांधीजी के ही वंशज तुषार गांधी जी को आज भी गांधीवाद के प्रचार
प्रसार को लेकर चिंतित और सक्रिय रहते हैं उन्हें यह फिल्म एकदम झक्कास लगी है। एक
ही संदेश को ज्ञापित करने का सबका अपना अलग अलग तरीका हो सकता है। हमें किसी फिल्म
निर्माता की तारीफ करनी चाहिए जो फिल्म में कोई अच्छा मैसेज डालने की कोशिश करता
है।
यह तो तय बात है कि मीडिया के रूप में
फिल्मों का समाज पर जबरदस्त प्रभाव है। फिल्में आम जनता पर बहुत गहरा प्रभाव डालती
हैं। लोग फिल्मों के पात्रों और उनकी गतिविधियों को हर रूप में नकल करने की कोशिश
करते हैं। ऐसे में कोई फिल्म अगर अच्छे संदेश देगी तो इसका समाज पर कुछ न कुछ अच्छा
प्रभाव तो पड़ेगा ही। यह उसी शिक्षक की तरह है जो खेल खेल में बच्चों को ज्ञान की
बातें याद करा देता है। वहीं कई शिक्षक उसे बोरिंग ढंग से पेश करते हैं जिसका
बच्चों पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता है। बहरहाल गांधी जी आज भी हमारे बीच में ही
हैं। यह हमारे ऊपर निर्भऱ करता है कि हम उन्हें कितना आत्मसात करते हैं।
-विद्युत प्रकाश vidyutp@gmail.com
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