अखबारों में संपादकीय लिखने की परंपरा बहुत पुरानी है। कहते हैं संपादकीय अखबार की आत्मा होती है। चुंकि संपादकीय विचार प्रधान होता है इसलिए लोग उस पर अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त करते हैं। कई अखबारों के संपादक हर हफ्ते अपने नाम से विशेष संपादकीय लिखते हैं। अब जबकि ई मेल का जमाना है तो पाठक अपनी फटाफट प्रतिक्रिया भी जताते हैं। ऐसे में हर अखबार को अपने संपादकीय विचार पर लोगों की प्रतिक्रिया सुनने के लिए खुला मंच प्रदान करन चाहिए।
हिंदुस्तान दैनिक में हर रविवार को शशिशेखर जी आजकल कालम लिखते हैं। कालम के अंत में उनका ईमेल आईडी छपता है जिसपर पाठक अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हैं। वहीं नई दुनिया में आलोक मेहता के कालम के साथ भी अखबार में प्रतिक्रिया देने के लिए ईमेल आईडी प्रकाशित होता है। नवभारत टाइम्स जैसे अखबार ने संपादकीय पर लोगों की प्रतिक्रिया लेने के लिए पहले से फोरम खोल रखा है। अब एक एक अच्छी बात हुई है कि नव भारत टाइम्स और दैनिक भास्कर जैसे समाचार पत्रों ने हर खबर पर लोगों को अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए विकल्प खोल दिया है। अगर आप यूनीकोड टाइपिंग जानते हैं तो सीधे अपनी प्रतिक्रिया दें। कई अंग्रेजी के अखबार हर खबर के साथ अपने रिपोर्टर की ईमेल आईडी प्रकाशित करते हैं।
यह बहुत अच्छी बात कही जा सकती है लेकिन कई बड़े अखबार इस मामले में कंजूस हैं। वे पाठकों की प्रतिक्रिया को कोई महत्व नहीं देते। अगर आप संपादकीय या कोई विशेष अग्रलेख लिखते हैं तो ये हजारों लाखों लोगों के बीच जाता है। ऐसे में हमें हर अच्छे बुरे विचार का स्वागत करना चाहिए। विचारों पर चर्चा की शुरूआत करनी चाहिए। और अगर विचारों पर कोई चर्चा नहीं चाहते तो ऐसे लोगो को लिखना भी बंद कर देना चाहिए। बिना किसी संपादकीय के भी अखबार निकालना चाहिए। संपादकीय का मतलब विचारों की धक्केशाही तो हरगिज नहीं होना चाहिए।
एक पत्रकार के रूप में जब किसी पर भी अपने विचारों से प्रहार करते हैं तो आपको उस पर आने वाली प्रतिक्रियाओं के लिए भी तैयार रहना चाहिए। पत्रकार वह प्राणी है जो हमेशा संवाद खोलने का काम करता है। किसी विषय पर दिया गया कोई भी विचार अंतिम नहीं होता। उसमें सुधार की और बदलाव की गुंजाइश हमेशा रहती है। इतिहास गवाह रहा है कि बड़े से बड़े पत्रकार पाठकों के विचारों का स्वागत करते रहे हैं। विचारों पर होने वाली चर्चा से नई अवधारणाओं का जन्म होता है। हमें इसके लिए तैयार रहना चाहिए।
- vidyutp@gmail.com
हिंदुस्तान दैनिक में हर रविवार को शशिशेखर जी आजकल कालम लिखते हैं। कालम के अंत में उनका ईमेल आईडी छपता है जिसपर पाठक अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हैं। वहीं नई दुनिया में आलोक मेहता के कालम के साथ भी अखबार में प्रतिक्रिया देने के लिए ईमेल आईडी प्रकाशित होता है। नवभारत टाइम्स जैसे अखबार ने संपादकीय पर लोगों की प्रतिक्रिया लेने के लिए पहले से फोरम खोल रखा है। अब एक एक अच्छी बात हुई है कि नव भारत टाइम्स और दैनिक भास्कर जैसे समाचार पत्रों ने हर खबर पर लोगों को अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए विकल्प खोल दिया है। अगर आप यूनीकोड टाइपिंग जानते हैं तो सीधे अपनी प्रतिक्रिया दें। कई अंग्रेजी के अखबार हर खबर के साथ अपने रिपोर्टर की ईमेल आईडी प्रकाशित करते हैं।
यह बहुत अच्छी बात कही जा सकती है लेकिन कई बड़े अखबार इस मामले में कंजूस हैं। वे पाठकों की प्रतिक्रिया को कोई महत्व नहीं देते। अगर आप संपादकीय या कोई विशेष अग्रलेख लिखते हैं तो ये हजारों लाखों लोगों के बीच जाता है। ऐसे में हमें हर अच्छे बुरे विचार का स्वागत करना चाहिए। विचारों पर चर्चा की शुरूआत करनी चाहिए। और अगर विचारों पर कोई चर्चा नहीं चाहते तो ऐसे लोगो को लिखना भी बंद कर देना चाहिए। बिना किसी संपादकीय के भी अखबार निकालना चाहिए। संपादकीय का मतलब विचारों की धक्केशाही तो हरगिज नहीं होना चाहिए।
एक पत्रकार के रूप में जब किसी पर भी अपने विचारों से प्रहार करते हैं तो आपको उस पर आने वाली प्रतिक्रियाओं के लिए भी तैयार रहना चाहिए। पत्रकार वह प्राणी है जो हमेशा संवाद खोलने का काम करता है। किसी विषय पर दिया गया कोई भी विचार अंतिम नहीं होता। उसमें सुधार की और बदलाव की गुंजाइश हमेशा रहती है। इतिहास गवाह रहा है कि बड़े से बड़े पत्रकार पाठकों के विचारों का स्वागत करते रहे हैं। विचारों पर होने वाली चर्चा से नई अवधारणाओं का जन्म होता है। हमें इसके लिए तैयार रहना चाहिए।
- vidyutp@gmail.com
3 comments:
यह अच्छी बात हुई है कि नव भारत टाइम्स और दैनिक भास्कर जैसे समाचार पत्रों ने हर खबर पर लोगों को अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए विकल्प खोल दिया है। इस का स्वागत किया जाना चाहिए क्यों की अब अख़बार को तुंरत पता चल जायेगा की पाठक को क्या पसंद है और क्या नहीं और अच्छी खबर लिखने पर पत्रकार का भी मनोबल बड़ेगा संपादको का एक अधिकार भी टूटेगा क्यों की अब तक किसी भी पत्रकार की अच्छी खबर के लिए संपादको को ही बधाई मिलती थी अब सीधे पत्रकार को मिलेगी जिस से नए पत्रकारों का भी मनोबल बढेगा और अच्छी खबर अख़बार में पड़ने को मिलेगी
ek baat jiske liye har kisi ko tayyar rahna chahye wo ye kya ki agar kisi me kuch likhne ki aadat hai to use is chiz ke liye hamesha hi tayyar rahna chahye ki pratikriya to aayegi hi???????????wo pakh me bhi ho sakti hai wipakh me bhi ?????????
आपसे सहमति है. एक बार हमने भी कुछ लिखा था पर साहब ने छपने नहीं दिया.
:)
क्या कीजिएगा वे तो अपनी ही चलाएंगे न !!
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