मेरे मुहल्ले में कई महीने से चल रहा स्पेंसर्स का रिटेल स्टोर बंद हो गया। मंदी के कारण स्टोर में बिक्री कम हो रही थी , लिहाजा एक दिन शटर गिर गया। अगले साप्ताहिक अवकाश में मैं फिल्म देखने गया। दिल्ली से सटे हुए भीड़भाड़ वाला मुहल्ला है शालीमार गार्डन। यहां एक शापिंग कांप्लेक्स है एसएम वर्ल्ड। इस एसएम वर्ल्ड में तीन 3 स्क्रीन मल्टीप्लेक्स है। मेरी इच्छा फिल्म देखने की हुई। तीनो आडिटोरियम में अलग अलग फिल्में चल रही थीं। मैंने लव आजकल देखने का निर्णय लिया।
टिकट काउंटर पर जाने पर मालूम हुआ है कि लव आजकल की एक भी टिकट नहीं बिक पाई है, लिहाजा इसमें संदेह है कि शो चलेगा भी की नहीं। बुकिंग करने वाली लड़की ने सलाह दी कि आप कमीने देख लें। मैं घर से फिल्म देखने का तय करके चला था लिहाजा मैंने कमीने ही देखने को सोची। जब मैं सिनेमाघर अंदर दाखिल हुआ तो कमीने देखने वाले भी सिर्फ पांच लोग थे। पांच सौ लोगों की क्षमता वाला आडिटोरियम पूरा खाली था। यानी सिनेमाघर के एसी चलाने का भी खर्चा निकालाना मुश्किल है।
दिल्ली के आसपास के कई मल्टीप्लेक्स का ऐसा ही हाल है। मल्टीप्लेक्स वाले सिनेमाघर तो बड़ी संख्या में बन गए हैं लेकिन फिल्में देखने आने वाले लोग कम दीख रहे हैं। क्या ये मल्टीप्लेक्स की महंगी टिकटों के कारण है या फिर आने वाली मंदी का असर।
बचपन में कस्बे के सिनेमाघर में फिल्म देखने जाता था तो कभी ऐसा नहीं सुना की पूरे सिनेमाघर में सिर्फ पांच लोग हों, या फिर लोगों की कमी से सिनेमा का शो ही नहीं चला हो। लेकिन शहरों में ऐसा हो रहा है। मल्टीप्लेक्स में टिकट की दरें कुछ ज्यादा जरूर है लेकिन मल्टीप्लेक्स वाले लोगो को अपनी ओर खींचने के लिए टिकट की दरें तो घटाने मे लग गए हैं। दिल्ली एनसीआर के कई सिनेमाघरो में मार्निंग शो की टिकट दरें कम करनी शुरू कर दी है। सौ से 125 रूपये की जगह 30 से 50 रूपये की टिकटें कर दी गई हैं। फिर भी मल्टीप्लेक्स में वीरानगी छाई दिखाई दे रही है। मल्टीप्लेक्स वाले इसके लिए सस्ती सीडी और डीवीडी को दोषी ठहरा सकते हैं। पाइरेसी में सस्ती फिल्में मिल जाती हैं, लेकिन मल्टीप्लेक्स वाले पॉपकार्न के नाम पर जो लूटपाट मचाते हैं भला उसके लिए कौन जिम्मेवार है। अब शायद ऐसा दौर आने वाला है कि कुछ मल्टीप्लेक्स में ताला लग सकता है।
बात रिटेल स्टोर से शुरू की थी, सो फिर वहीं आता हूं। मल्टीप्लेक्स में आदित्यविक्रम बिड़ला समूह का मोर रिटेल शॉप है, जहां शाम के समय भी ग्राहकों का टोटा दिखाई देता है। कई तरह के आफर हैं लेकिन खऱीददार नजर नहीं आते हैं। उपरी मंजिल पर एक और रिटेल स्टोर है। उसके मैनेजर का कहना है कि स्पेंसर रिटेल की तरह मोर पर भी ताला लग सकता है। जाहिर सी बात है, स्टाफ का वेतन, बिजली का बिल और किराया निकालना भी मुश्किल हो जाए तो कोई बड़ा उद्योगपति भी ज्यादा दिन तक रिटेल स्टोर खोल कर कैसे रह सकता है। घर फूंक कर तमाशा देखने को तैयार कोई भी नहीं हैं। तो क्या मल्टीप्लेक्स की चका चौंध अब धीमी पड़ने वाली है। पूर्वी दिल्ली का एक और शापिंग मॉल है इडीएम। इडीएम की उपरी मंजिल पर फूड कोर्टस हैं। लेकिन एक शाम को जब फूड कोर्ट सेक्सन में गया तो आठ दस बड़े बड़े रेस्टोरेंट्स में ग्राहक बहुत कम दिखाई दे रहे थे।
-विद्युत प्रकाश मौर्य
टिकट काउंटर पर जाने पर मालूम हुआ है कि लव आजकल की एक भी टिकट नहीं बिक पाई है, लिहाजा इसमें संदेह है कि शो चलेगा भी की नहीं। बुकिंग करने वाली लड़की ने सलाह दी कि आप कमीने देख लें। मैं घर से फिल्म देखने का तय करके चला था लिहाजा मैंने कमीने ही देखने को सोची। जब मैं सिनेमाघर अंदर दाखिल हुआ तो कमीने देखने वाले भी सिर्फ पांच लोग थे। पांच सौ लोगों की क्षमता वाला आडिटोरियम पूरा खाली था। यानी सिनेमाघर के एसी चलाने का भी खर्चा निकालाना मुश्किल है।
दिल्ली के आसपास के कई मल्टीप्लेक्स का ऐसा ही हाल है। मल्टीप्लेक्स वाले सिनेमाघर तो बड़ी संख्या में बन गए हैं लेकिन फिल्में देखने आने वाले लोग कम दीख रहे हैं। क्या ये मल्टीप्लेक्स की महंगी टिकटों के कारण है या फिर आने वाली मंदी का असर।
बचपन में कस्बे के सिनेमाघर में फिल्म देखने जाता था तो कभी ऐसा नहीं सुना की पूरे सिनेमाघर में सिर्फ पांच लोग हों, या फिर लोगों की कमी से सिनेमा का शो ही नहीं चला हो। लेकिन शहरों में ऐसा हो रहा है। मल्टीप्लेक्स में टिकट की दरें कुछ ज्यादा जरूर है लेकिन मल्टीप्लेक्स वाले लोगो को अपनी ओर खींचने के लिए टिकट की दरें तो घटाने मे लग गए हैं। दिल्ली एनसीआर के कई सिनेमाघरो में मार्निंग शो की टिकट दरें कम करनी शुरू कर दी है। सौ से 125 रूपये की जगह 30 से 50 रूपये की टिकटें कर दी गई हैं। फिर भी मल्टीप्लेक्स में वीरानगी छाई दिखाई दे रही है। मल्टीप्लेक्स वाले इसके लिए सस्ती सीडी और डीवीडी को दोषी ठहरा सकते हैं। पाइरेसी में सस्ती फिल्में मिल जाती हैं, लेकिन मल्टीप्लेक्स वाले पॉपकार्न के नाम पर जो लूटपाट मचाते हैं भला उसके लिए कौन जिम्मेवार है। अब शायद ऐसा दौर आने वाला है कि कुछ मल्टीप्लेक्स में ताला लग सकता है।
बात रिटेल स्टोर से शुरू की थी, सो फिर वहीं आता हूं। मल्टीप्लेक्स में आदित्यविक्रम बिड़ला समूह का मोर रिटेल शॉप है, जहां शाम के समय भी ग्राहकों का टोटा दिखाई देता है। कई तरह के आफर हैं लेकिन खऱीददार नजर नहीं आते हैं। उपरी मंजिल पर एक और रिटेल स्टोर है। उसके मैनेजर का कहना है कि स्पेंसर रिटेल की तरह मोर पर भी ताला लग सकता है। जाहिर सी बात है, स्टाफ का वेतन, बिजली का बिल और किराया निकालना भी मुश्किल हो जाए तो कोई बड़ा उद्योगपति भी ज्यादा दिन तक रिटेल स्टोर खोल कर कैसे रह सकता है। घर फूंक कर तमाशा देखने को तैयार कोई भी नहीं हैं। तो क्या मल्टीप्लेक्स की चका चौंध अब धीमी पड़ने वाली है। पूर्वी दिल्ली का एक और शापिंग मॉल है इडीएम। इडीएम की उपरी मंजिल पर फूड कोर्टस हैं। लेकिन एक शाम को जब फूड कोर्ट सेक्सन में गया तो आठ दस बड़े बड़े रेस्टोरेंट्स में ग्राहक बहुत कम दिखाई दे रहे थे।
-विद्युत प्रकाश मौर्य
2 comments:
सर जी बड़ा मजा आया ये सुन कर की मल्टीप्लेक्स में दर्शक खोजे नहीं मिल रहे है एक वो जमाना था की फिल्म की टिकट के लिए सिनमा घरो पर चाकू चल जाया करते थे और आज ये जमाना है की टिकिट खिड़की पर बैठी लड़की सलाह देती है की टिकिट न बिकने की वजह से शो नहीं चल पाए गा किसी ज़माने में भीड़ में टिकट लेने का में विशेषज्ञये हुआ करता था
yadavdharmender17@yahoo.com
dharmender yadav faridabad
आपने पढा, विचार दिए. आभारी हूं, लेकिन वाकई ये महानगरो के मल्टीप्लेक्स की सच्चाई है....
विद्युत
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