Thursday, 19 November 2020

डॉक्टर राधाकृष्ण सिंह - फ्रेंड, फिलास्फर और गाइड का चले जाना

 एक दिन अचानक वे इस तरह चले जाएंगे इसका अंदेशा न था। डॉक्टर राधाकृष्ण सिंह पटना से साहित्य, पत्रकारिता और राजनीति के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर थे। मेरे लिए वे फ्रेंड, फिलास्फर गाइड जैसे थे। बड़े भाई भी, प्रशिक्षक भी मार्गदर्शक भी। पर कितना दुखद रहा कि उनके न रहने की खबर मुझे देर से मिली। 23 अगस्त 2020 रविवार को दिन बड़ा मनहूस था, 58 साल की उम्र में उनका अचानक हृदय गति रुकने से निधन हो गया। कुछ दिन पहले ही तो उन्होंने फोन करके मेरा हाल चाल पूछा था। 

राधाकृष्ण सिंह की शुरुआत पटना विश्वविद्यालय के जुझारू छात्र नेता के तौर पर हुई। उन्होंने पटना नवभारत टाइम्स में शिक्षा प्रतिनिधि के तौर पर काम किया। उन्होंने हिंदी के प्रकांड विद्वान प्रोफेसर निशांतकेतु के अधीन हिंदी भाषा में ओशो साहित्य पर शोध किया था। 

मेरा उनसे परिचय कुछ यूं हुआ कि वे तीसरी आंख नामक पत्रिका का संपादन करते थे। मैं उस पत्रिका में डाक से अपनी रचनाएं भेजता था। तब मैं कविताएँ लिखता था। पत्र व्यवहार के बाद उनसे मिलना हुआ। तब पटना के महेंद्रू मुहल्ले में पीडी लेन में एक मकान में वे रहते थे। वहीं पहली बार उनसे मिलना हुआ था। उनसे एक परिचय के बाद तमाम लोगों से उनके कारण परिचय हुआ। उनके पड़ोसी प्रकाश चंद्र ठाकुर, प्रकाश पंचम, डॉक्टर सचिदानंद सिंह साथी, डॉक्टर ध्रुव कुमार। जब मैं काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अध्ययन रत था तो एक दिन राधाजी का पत्र लेकर मेरे कमरे में राघवेंद्र सिंह आए। उनकी कोई परीक्षा थी बनारस में। बाद में राघवेंद्र जी भी बिहार की राजनीति में सक्रिय हो गए। 

राधाकृष्ण शुरुआत के दौर में कांग्रेस में सक्रिय थे। एक बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े। बाद में राष्ट्रीय जनता दल में आए। साल 2005 में राजद के टिकट पर चेरिया बरियारपुर से चुनाव लड़े। अच्छी चुनौती दी पर जीत नहीं सके। कभी वे लालू परिवार के बहुत करीबी थे, उन्होंने एक किताब लिखी थी - राबड़ी देवी का राज्यारोहण। काफी समय वे राजद के प्रवक्ता भी रहे। वे प्रोफेसर रामबचन राय के साथ हुआ करते थे। 

नव भारत टाइम्स, आज, प्रभात खबर,  राष्ट्रीय नवीन मेल जैसे अखबारों में संवाददाता के तौर पर काम करने के बाद वे अध्यापन के क्षेत्र में आ गए। मतलब वे पत्रकार, साहित्यकार, राजनेता और शिक्षाविद सब कुछ थे।  बाद में पटना ट्रेनिंग कॉलेज में शिक्षक हो गए। वहां बीएड के छात्र पढ़ते थे। उसके बाद वे पावापुरी में वीरायतन बीएड कॉलेज में प्राचार्य हो गए। इसके बाद पटना के मुंडेश्वरी बीएड कॉलेज के प्राचार्य हुए। आखिरी दिनों में आरएल महतो ट्रेनिंग कॉलेज दलसिंहसराय के प्राचार्य थे। राधाकृष्ण मंच के अच्छे वक्ता होने के साथ कलम के धनी थे। उनकी लेखनी बड़ी सुंदर थी। शब्द विन्यास के धनी थे। पटना के तमाम नवोदित पत्रकारों को वे प्रेस रिलीज बनाना सिखाते थे।   

संयोग से पटना में ही 2003 फरवरी में मेरा विवाह हुआ तब वे मेरी शादी में अपनी पत्नी के साथ आए थे। हर साल कुछ मौकों पर उनसे मिलना हो जाता था। अपने जीवन के आखिरी  दिनों में पटना के कांटी फैक्टरी रोड में बुद्धा डेंटल कॉलेज के पास रहते थे। वे मूल रूप से बेगुसराय जिले के वीरपुर प्रखंड का गाड़ा गांव के निवासी थे। 

जब मैं पटना में हूं तो उनके साथ किसी न किसी साहित्यिक या राजनीतिक आयोजन में जाने का मौका जरूर मिलता था। भले वे विधानसभा या विधान परिषद में नहीं जा सके, पर राजनीति के गलियारे में उनका काफी सम्मान था। जाने के लिए 58 साल की उम्र ज्यादा नहीं होती, पर ईश्वर को यही मंजूर था। कुछ साल पहले उनका किडनी ट्रांसप्लांट हुआ था। उसके बाद वे थोड़े कमजोर जरूर हो गए थे पर जिजीविषा में कोई कमी नहीं थी। एक दिन उनके नंबर फोन किया। छोटे भाई प्रफुल्ल ने फोन उठाया, बोेल भैया तो नहीं रहे। जिससे आपने लिखने, बोलने के तरीके सीखे हों उसका यूं चले जाना सुनकर बड़ा झटका लगा। पर सिर्फ शरीर साथ छोड़ जाता है। आत्मा तो अमर है ना। वे अच्छी आत्माएं अपनों को प्रेरित करती रहती हैं। तो उनका भी मार्गदर्शन हमें मिलता रहेगा। ऐसा प्रतीत होता है। हम आपको अलविदा नहीं कह सकते। 

- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com 


 


Friday, 13 November 2020

हर इंसान को धनवान बना देता है पांच तरह का धन

धन का अर्थ काफी व्यापक है। इसका अभिप्राय सिर्फ कागज के नोट या मुद्रा से नहीं है। धन वह वह जो आपको सुखी बनाए। शास्त्रों में पांच प्रकार के धन बताए गए हैं - शिक्षा, सेहत, गोधन, पशुधन, रतन यानी मुद्रा। इनमें विद्या को सर्वोत्तम धन माना गया है। आइए धनतेरस के अवसर पर बात करते हैं पांच प्रकार के धन की।

 

शिक्षा व्यये कृते वर्धत एव नित्यम् , विद्या धनं सर्व धनम् प्रधानम्  ( सुभाषितानि) यानी शिक्षा या विद्या ऐसा धन है जो खर्च करने पर रोज बढ़ती है। विद्या धन सभी धनों में प्रधान है।

 

सदगुण गुणा: सर्वत्र पूज्यन्ते न महत्योअपि सम्पद:। पूर्णेन्दु किं तथा वन्द्यो निष्कलंको यथा कृश:। (चाणक्यनीति)  यानी जिस प्रकार पूर्णिमा के चांद के स्थान पर द्वितीय का छोटा चांद पूजा जाता हैउसी प्रकार सद्गुणों से युक्त इंसान निर्धन एवं नीच कुल से संबंधित होते हुए भी पूजनीय होता है।

 

स्वास्थ्य -   शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ( कुमारसंभव, कालिदास) यानी शरीर ही सभी धर्मों को पूरा करने का साधन है। धन संपदा शक्ति का स्रोत स्वस्थ शरीर ही है। दार्शनिक इमर्सन कहते हैं पहला धन स्वास्थ्य है। महात्मा गांधी कहते हैं स्वास्थ्य असली धन है न कि सोने चांदी के टुकड़े।

 

संतोष अन्तो नास्ति पिपासायाः संतोषः परमं  सुखं। तस्मात्संतोषमेवेह धनं पश्यन्ति पण्डिताः। (सुभाषितानि) आर्थात, मानव मन में तृष्णा का  कोई अंत नहीं है। इसलिए जो उपलब्ध हो उस पर संतोष करना ही परम सुख है। विद्वान संतोष को ही असली धन कहते हैं। वहीं गौतम बुद्ध कहते हैं - स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है तो संतोष सबसे बड़ा धन है।

 

शील विदेशेषु धनं विद्या, व्यसनेषु धनं मति, परलोके धनं धर्म, शीलं सर्वत्र वै धनम्। ( सुभाषितानि) मतलब शील यानी संस्कार या चरित्र सभी जगह धन का काम करता है। दार्शनिक बिली ग्राहम कहते हैं - जब धन खोया तो कुछ भी नहीं खोयाजब स्वास्थ्य खोया तो कुछ खोयाजब चरित्र खोया तो सब खो दिया।

Thursday, 12 November 2020

बिहार विधान सभा चुनाव 2020 के नतीजों के निहातार्थ

बिहार विधान सभा चुनाव 2020 के नतीजे बड़े रोचक रहे। दस नवंबर को हुई मतगणना में पहले पोस्टल बैलेट में राजेडी नीत महागठबंधन आगे जाता दिखा। पर दोपहर के बाद एनडीए की सीटें बढ़ने लगी। शाम को कुछ घंटे ऐसा वक्त रहा कि कौन जीतेगा कहना मुश्किल था। पर अंतिम नतीजों में एनडीए को 125 और महागठबंधन को 110 सीटें मिलीं। अंतिम नतीजे कुछ ऐसे रहे -

राजद - 75

कांग्रेस 19 

सीपीआई एमएल - 12

सीपीआई - 02 

सीपीएम - 02  महागठबंधन कुल - 110

एनडीए खेमे के दल 

भाजपा - 74 

जदयू 43

हम -04

वीआईपी 04

दूसरे दल 

एमआईएम - 05

लोजपा -01

बसपा 01

स्वतंत्र 01

कुल 125 सीटें जीतकर एनडीए सरकार बनाने की स्थिति में है। पर ये सरकार पूर्ण बहुमत में ऐसा कहना ठीक नहीं होगा। वीआईपी की 4 और हम की 4 सीटें हैं। इनमें से कोई भी एक दल नाराज हुआ तो सरकार अल्पमत में आ सकती है। बिहार विधान सभा की कुल 243 सीट में से बहुमत के लिए 122 सीटों का होना जरूरी है। वहीं इस बार के नतीजो में सत्तारुढ़ जदयू की सीटें 71 के मुकाबले घट कर 43 पर आ गई हैं। इसलिए इस बार बिहार को लंबे समय से सेवाएं दे रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा, हम, वीआईपी के दबाव में काम करने को मजबूर होंगे। 

उधर महागठबंधन के पास 110 सीटें हैं। अगर ओवैसी की पार्टी एमआईएम उनके साथ जाती है तो वे 115 पर आ जाएंगे। कभी हम और वीआईपी भाजपा से नाराज हो गए तो महागठबंधन के पास 123 का आंकड़ा हो जाएगा फिर पासा पलट सकता है।

अब बात एक-एक उम्मीदवार के जीत की। बिहार में बसपा ने एक सीट जीती है। भभुआ जिले के चैनपुर से बसपा के मोहम्मद आजम खान जीते हैं। वे किधर जाएंगे वे खुद तय करेंगे। अकेले उम्मीदवार के लिए जरूरी नहीं कि वह पार्टी लाइन को माने। वह चाहे तो किसी भी दल में विलय कर सकता है। 

वहीं राम विलास पासवान के निधन के बाद चिराग पासवान की पार्टी लोजपा अकेले लड़ी थी। उसके एक उम्मीदवार राज कुमार सिंह बेगुसराय के मटिहानी से जीते हैं। वे बिहार के बाहुबली रहे कामदेव सिंह के बेटे हैं। उन्होंने जदयू के बाहुबली नेता बोगो सिंह को हराया है। राजकुमार काफी पढ़े लिखे पर दबंग नेता हैं। वे किसको समर्थन देंगे यह भी वे भविष्य में खुद तय कर सकते हैं।  

जमुई जिले के आदिवासी बहुल चकाई से सुमित कुमार सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज की है। हालांकि वे जदयू से टिकट की इच्छा रखते थे। अब वे अपना समर्थन किसे देंगे, यह वे खुद तय करेंगे। उनके दादा कृष्णानंद सिंह दो बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से विधायक रह चुके हैं। उनके भाई अभय सिंह भी विधायक रह चुके हैं। बिहार विधानसभा में एमआईएम के पांच और तीन अकेले जीत दर्ज करने वाले विधायकों की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकती है। 

बिहार चुनाव के 2020 के नतीजों की बात करें तो दर्जनों ऐसी सीट हैं जहां जीत हार 1000 से भी कम मतों से हुई है। ये काफी स्पष्ट है कि 31 साल तेजस्वी यादव की अगुवाई में महागठबंधन ने काफी आक्रमकता से चुनाव लड़ा। ज्यादातर एग्जिट पोल ने राज्य में महागठबंधन की सरकार बनने की भविष्यवाणी की थी। पर मतगणना में देर शाम नतीजे पलटते नजर आए। जीत का मामूली अंतर बिहार की राजनीति में उथलपुथल का माहौल बनाए रखेगा। 


बिहार 2015 के नतीजे

 राजद  80  जदयू 71  कांग्रेस – 27 ( गठबंधन था ) 

भाजपा – 53 लोजपा – 02 (43 ) रालोसपा – 02 (23)

हम 01 ( 21) 

सीपीआई एमएल – 03


बिहार – 2010 के नतीजे

जदयू 115 भाजपा 91  (गठबंधन ) 

राजद 22 एलजेपी 03  ( गठबंधन ) 

कांग्रेस – 04  ( अकेले लड़ी थी ) 

सीपीआई 01

जेएमएम 01

स्वतंत्र  06 


Wednesday, 11 November 2020

गाय के गोबर से तैयार किए दीए और गणेश

वोकल पर लोकल की दिशा में पहल करते हुए प्रशांत द्विवेदी ने मध्य प्रदेश के मैहर में अपने पिता द्वारा शुरू की गई गौशाला को अपनी कर्मभूमि बनाने का निश्चय किया। दिवाली से पहले उन्होंने गौशाला में गोबर से गोमय दीया बनाने का कार्य शुरू किया। इसको पहले एक पायलेट प्रोजेक्ट की तरह शुरू किया गया और शुरुआत में सभी अपने लोगो में बांटा गया।

गांव की महिलाओं को रोजगार - अच्छी फीडबैक मिलने पर गांव की ही तीन महिलाओं को इस कार्य में जोड़ा गया और वहीं से शुरू हुआ गोमय दीये और गोमय गणेश बनाने का कार्य। महिलाओं द्वारा गाय के गोबर का इस्तेमाल करने गोबर के दिए और गोबर गणेश बनाये जा रहे हैं। इन्हें स्थानीय बाजारों में बेचा जा रहा है। इससे उनको काम के साथ-साथ अच्छा दाम और अच्छा मुनाफा मिल जाता है

दिल्ली में भी काफी मांग  - जहां एक ओर गोमय गणेश के दिए की डिमांड स्थानीय बाजारों में काफी है वहीं अब बड़े शहरो में भी इसकी मांग हो रही है। दिल्ली में प्रशांत ने काफी लोगों को ऐसे दीये और गणेश प्रतिमा उपलब्ध कराई है। उन्हों अन्य महानगरों से भी आर्डर मिल रहे हैं।  

ग्लोबल ब्रांड बनाने का सपना - देश के प्रधान मंत्री का वोकल फॉर लोकल का सपना साकार करने के लिए प्रशांत जैसे युवा उद्यमियों ने अपने स्तर पर पहल शुरू की है। इनका सपना गोमय गणेश और दीयों को ग्लोबल ब्रांड बनाने का है ताकि इस प्रकार के लोकल प्रोडक्ट देश की अर्थ व्यवस्था में अपना योगदान कर सकें

प्रशांत द्विवेदी संपर्क – 98730-37187

Thursday, 1 October 2020

लालकृष्ण आडवाणी की हाजीपुर शहर में वह आखिरी सभा

वह 22 अक्तूबर 1990 की रात थी। हाजीपुर शहर का कलेक्ट्रेयेट मैदान। हजारों लोग जमा थे। इंतजार था भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का। वे सोमनाथ से अय़ोध्या की यात्रा लेकर चल रहे थे। उनके पहुंचने का समय रात के नौ बजे का था। एक घंटे देर से उनका रथ पहुंचा। साथ में उनके सारथि प्रमोद महाजन भी थे। लाल कुरता पहने हुए। भीड़ आडवाणी को सुनने के लिए बेताब थी। जैेसे ही आडवाणी जी मंच पर चढ़े भीड़ ने नारा लगाया - सौगंध राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे... आडवाणी जी ने बोलना शुरू किया - बिल्कुल सही नारा है ये। मुझे सुनकर अच्छा लगता है जब लोग ये नारा लगाते हैं। मुझे अच्छा नही लगता है जब कुछ नौजवान मोटर बाइक पर चलते हुए कंधे उचकाकर नारा लगाते हैं - एक धक्का और दो...बाबरी मसजिद तोड़ दो... 

आडवाणी जी बोले, भला तोड़ने की क्या जरूरत है। वहां तो कोई मस्जिद है ही नहीं। वहां कभी नमाज नहीं पढी जाती। वहां राम लला विराजमान हैं। हमें अयोध्या में मंदिर बनाना है। प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर बनाना है। पर यह हाजीपुर शहर में आडवाणी जी का रथयात्रा के दौरान आखिरी भाषण साबित हुआ। अगले दिन सुबह रेडियो पर हमने समाचार सुना। 23 अक्तूबर 1990 की सुबह आडवाणी जो समस्तीपुर शहर में गेस्ट हाउस में सुबह सुबह सोते हुए ही  गिरफ्तार कर लिया गया। तब बिहार में लालू प्रसाद यादव की सरकार थी। लालू प्रसाद ने आडवाणी की अयोध्या तक रथयात्रा पूरी नहीं होने दी। रथ रुक गया। यात्रा अधूरी रही। आडवाणी को गिरफ्तार करने वाले समस्तीपुर के कलेक्टर थे राज कुमार सिंह। जो बाद में भाजपा से सांसद और केंद्र सरकार में मंत्री बने। ईश्वर ने आडवाणी जो अच्छी सेहत लंबी जिंदगी दी है। नब्बे के पार में भी वे दमखम रखते हैं। पर आडवाणी अयोध्या के हीरो नहीं बन पाए। देश के प्रधानमंत्री भी नहीं बन पाए। राष्ट्रपति भी नहीं बन पाए। समस्तीपुर में आडवाणी जो गिरफ्तार करने के बाद दुमका ले जाकर सरकारी गेस्ट हाउस में रखा गया। तब झारखंड नहीं बना था। दुमका बिहार का हिस्सा था। 

राम मंदिर आंदोलन समय ये नारे देश भर में खूब लगते थे। एक धक्का और दो बाबरी मस्जिद तोड़ दो। छह दिसंबर 1992 को जो हुआ उसे पूरे देश ने देखा। 


30 सितंबर 2020 को लखनऊ में सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले में लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, कल्याण सिंह, विनय कटियार जैसे तमाम नेता मस्जिद गिराए जाने के आरोप से बरी कर दिए गए। सीबीआई अदालत में इन नेताओं के खिलाफ मजबूत सबूत नहीं पेश कर पाई। 

पर आखिर बाबरी मसजिद गिराई किसने। देश भर से हजारों कारसेवक जमा थे। जो लोग मसजिद की छत पर चढ़ गए थे, जाहिर है कि वे लोग भी कारसेवक ही थे। दुनिया ने इबादत घर को गिरते हुए देखा। पर अदालत में किसी पर दोष साबित नहीं हो सका। 6 दिसंबर 1992 को मसजिद गिराए जाने के बाद संघ भाजपा के बड़े नेता गिरफ्तार किए गए। लालकृष्ण आडवाणी एक बार फिर गिरफ्तार हुए। इस बार उन्हें ललितपुर जिले के तालबेहट के पास माताटीला गेस्ट हाउस में नजरबंद करके रखा गया। यह संयोग ही रहा कि मुझे कई साल बाद उस शानदार गेस्ट हाउस में भी एक दिन रहने का मौका मिला। 

कहा जाता है कि राम मंदिर आंदोलन के सबसे बड़े नेता अशोक सिंघल भी मस्जिद की इमारत गिराने के पक्ष में नहीं थे। पर देश भर में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ, बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के आम कार्यकर्ताओं में ये विचार प्रमुखता से भर दिया गया था  कि अयोध्या में बाबर के नाम पर कही जाने वाली किसी इमारत का अस्तित्व नहीं रहना चाहिए। इस इबादत घर के गिराए जाने के बाद देश भर में गर्व से नारे लगते थे - जय श्रीराम...हो गया काम...। पर क्या सचमुच काम हो गया। 

हम एक भव्य राम मंदिर अयोध्या में बना रहे हैं। यह देश का दूसरा सबसे विशाल मंदिर होगा। पर यह राम मंदिर हिंदू आस्था का एक प्रतीक मात्र ही होगा। जरूरत है तो है पूरे देश में राम राज्य लाने की। एक ऐसे न्यायप्रिय देश की जहां बाघ और बकरी एक घाट पर पानी पी सकें। एक ऐसे समाज के निर्माण की जहां कोई खुद को दलित, शोषित या पिछड़ा न समझ सके, तभी सच्चे अर्थों में राम राज्य आ सकेगा। 

रथयात्रा की कुछ और बातें यहां पढ़ें -  https://www.news18.com/news/politics/wont-spare-you-when-lalu-got-advani-arrested-in-1990-for-taking-out-rath-yatra-in-bihar-2092239.html

- विद्युत प्रकाश मौर्य vidyutp@gmail.com - ( 30 सितंबर 2020 ) 


 



Tuesday, 15 September 2020

कोरोना काल और मीडिया के कामकाज के तौर तरीके में बदलाव

CHANGES in WORIKING Of INDIAN MEDIA DURING COVID 19 PERIOD.

-         विद्युत प्रकाश मौर्य – Vidyut Prakash Maurya

 

मार्च 2020 का महीना भारतीय मीडिया के लिए नई चुनौतियां लेकर आया। कोरोना वायरस से आई महामारी के कारण देश दुनिया के तमाम शहरों में प्रशासनिक स्तर पर लॉकडाउन लगाना पड़ा। यानी ऐसी बंदी जिसने लोगों को घर में ही रहने को मजबूर कर दिया। ऐसे दौर में रोज अखबार निकालना बड़ी चुनौती थी। क्योंकि प्रशासन कह रहा था कि सिर्फ बहुत जरूरी सेवाओं वाले लोग ही घर से निकलें। हालांकि मीडिया जरूरी सेवाओं में आता है इसलिए सरकार की तरफ से कोई बंदिश नहीं थी कि आप दफ्तर न जाएं पर कई मीडिया हाउस ने इस दौरान वर्क फ्रॉम हो अपनाने की कोशिश की। इसमें काफी सफलता भी मिली।

देश के सबसे बड़े अखबारों में से एक हिन्दुस्तान टाइम्स समूह के हिन्दुस्तान हिंदी दैनिक ने 25 मार्च से वर्क फ्राम होम का फरमान जारी किया। रिपोर्टिंग से लेकर डेस्क के स्टाफ और फीचर टीम को घर से काम करने को कहा गया। मुख्य संपादक शशि शेखर ने आखिरी बैठक में सबको नई चुनौतियों के लिए तैयार रहने और घर से बेहतर काम करने का संदेश दिया।

रिपोर्टिंग की चुनौतियां - अब अखबार ने वर्क फ्रॉम होम को सफलतापूर्वक अंजाम कैसे दिया। अखबार में काम करने वाले संवाददाताताओं के लिए पहले ही रोज दफ्तर आकर रिपोर्ट फाइल करना जरूरी नहीं है। वे हिंदी में भी यूनिकोड टाइपिंग की सुविधा आ जाने के बाद कोई भी रिपोर्ट अपनी रिपोर्ट अपने घर से अपने लैपटॉप से टाइप करके भेज सकता है। यहां तक कि छोटी मोटी रिपोर्ट तो मोबाइल पर वाह्ट्सएप संदेश में भी या जीमेल पर सीधे टाइप करके भेजी जा सकती है। तो रिपोर्टर पहले से ही घर से या किसी सार्वजनिक स्थल से रिपोर्ट भेजने के लिए अभ्यस्त थे। तो उन्हें कोई परेशानी नहीं आई। हां रिपोर्टर के लिए चुनौती थी खबरों को जुटाने के लिए अपने बीट से जुड़े हुए स्थलों तक जाना। कोरोना काल में इसमें रिस्क था। पर रिपोर्टरों ने रिस्क लिया। पर संस्थान की ओर से अब हर खबर के लिए फील्ड में जाने की बाध्यता नहीं थी। रिपोर्टरों को ज्यादातर खबरें फोन से फोटो और प्रेस विज्ञप्तियों को ईमेल से प्राप्त करने के लिए कहा गया। हिन्दुस्तान के संवाददाता के तौर पर कार्यरत संजय कुशवाहा और हेमवती नंदन राजौरा कहते हैं कि बहुत जरूरी हो तो रिपोर्ट लेने के लिए मौके पर पहुंचना ही पड़ता है।

वीपीएन का सहारा -  अखबार में सबसे बड़ी चुनौती थी डेस्क के काम को घर में शिफ्ट करना। इसके लिए अखबार ने जिन लोगो के पास निजी लैपटॉप थे उन्हे दफ्तर में इस्तेमाल होने वाले साफ्टवेयर उसमें डालने की सुविधा प्रदान की। जिनके पास अपना कंप्यूटर सिस्टम नहीं था उन्हें दफ्तर की ओर से कंप्यूटर सिस्टम उपलब्ध कराए गए। सभी लोगों को अपने घरों में ब्रॉडबैंड कनेक्शन लगवाने को कहा गया। अब सिस्टम घर में चालू हो गया। पर अखबार के दफ्तरों में सारे सिस्टम एलएएन यानी लोकल एरिया नेटवर्क से जुड़े रहते हैं। हर घर में मौजूद सिस्टम को दफ्तर के सिस्टम से जोड़ने के लिए वर्चुअल प्राईवेट नेटवर्क यानी वीपीएन का सहारा लिया गया। सीस्को और फोर्टीक्लाएंट जैसी वीपीएन सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों की सेवाएं ली गईं। वीपीएन की सुविधा से अलग अलग घरों में बैठे संपादकीय विभाग के साथी अपनी फाइलों को एक दूसरे से साझा कर सकते हैं। इससे दफ्तर काम घर बैठे करना संभव हो सका।

घर से काम करने की अपनी चुनौतियां भी हैं। हिन्दुस्तान के संपादकीय विभाग में कार्यरत विवेक विश्वकर्मा कहते हैं कि पर कई बार अलग अलग इलाके में डाटा की स्पीड कम होने के कारण सिस्टम धीमा काम करने लगता है। इससे काम को समय पर पूरा करने में दिक्कत आती है। पर ये चुनौतियां भी स्वीकार की गई और कार्य को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया।

वाट्सएप ग्रूप का सहारा – अलग अलग घरों मे  बैठे लोगों को कंप्यूटर में साफ्टवेयर और हार्डवेयर संबंधी आने वाली दिक्कतों के समाधान के लिए कंपनी ने ऑनलाइन आईटी सपोर्ट टीम तैयार की। यह सपोर्ट टीम वाट्सएप समूह पर सभी कार्यरत सदस्यों की शिकायत सुनती है और समस्या का तुरंत समाधा करने की कोशिश करती है। कंप्यूटर में बड़ी दिक्कत आने पर एनीडेस्क साफ्टवेयर के सहारे आईटी टीम सिस्टम का नियंत्रण अपने पास ले लेती है और सिस्टम को ठीक कर देती है। इस तरह से हिन्दुस्तान हिंदी दैनिक में 25 मार्च से 31 मई तक वर्क फ्राम होम को सफलतापूर्वक संचालित किया गया। एक जून से आठ जून के बीच 20 फीसदी कर्मचारियों को दफ्तर बुलाया गया। फिर नौ जून से सात जुलाई तक सारे कर्मचारियों ने घर से ही काम को अंजाम दिया। हिन्दुस्तान ने सिर्फ अपने दिल्ली संस्करण बल्कि देश के अन्य सभी 20 संस्करणों में भी ज्यादातर स्टाफ के लिए वर्क फ्राम को का फार्मूला अपनाया जो काफी सफल रहा।

देश के सबसे बड़े अखबार के नेटवर्क दैनिक भास्कर ने भी सभी रिपोर्टरों को घर से ही रिपोर्ट फाइल करने के निर्देश दिए। वहीं संपादकीय के लोगों के लिए ऐसी व्यवस्था की गई कि दफ्तर में कम लोग आएं जिससे फिजिकिल डिस्टेंसिंग यानी भौतिक दूरी बनी रही। भागलपुर दैनिक भास्कर के स्थानीय संपादक राजेश रंजन और मुजफ्फरपुर में दैनिक भास्कर के स्थानीय संपादक कुमार भावानंद बताते हैं कि कोरोना के संक्रमण काल में दफ्तर आने वाले स्टाफ की संख्या कर दी गई है। लोगों को एक दिन के अंतराल पर दफ्तर बुलाया जा रहा है। इससे दफ्तर में कुल स्टाफ की संख्या 50 फीसदी से भी कम रहती है। इससे भौतिक दूरी के नियम का आसानी से पालन हो पाता है।

आज समाज - चंडीगढ़, अंबाला और दिल्ली से प्रकाशित समाचार पत्र आज समाज के समन्वय संपादक अजय शुक्ला कहते हैं कि हमने लॉकडाउन के ऐलान से पहले ही स्थिति को भांप कर वर्फ फ्राम होम कराने का फैसला ले लिया था। 18 मार्च 2020 को ही अखबार के सभी लोगों को वर्क फ्राम होम करने को कहा गया। इसके लिए कर्मचारियों को कंप्यूटर और ब्राडबैंड की सुविधा प्रदान की गई। हमने इस दौरान मोबाइल पत्रकारिता को प्रोमोट किया। रिपोर्टरों को खबर भेजने के लिए ज्यादा से ज्यादा मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने को कहा गया। इसमें काफी सफलता भी मिली।


यह तय किया गया है कि सिर्फ बहुत जरूरी स्टाफ ही दफ्तर आए। दफ्तर आने से पहले सैनेटाइजेशन के पूरे इंतजाम किए गए। दफ्तर के प्रवेश द्वार पर ही सेनेटाइज गेट लगाए गए। दफ्तर में जगह जगह 70 फीसदी अल्कोहल वाले सेनेटाइजर बूथ लगाए गए। हमारे अखबार के समूह की कंपनी खुद सेनेटाइजर भी बनाती है, इसलिए हमने उच्च गुणवत्ता वाला सेनेटाइजर का इस्तेमाल किया।

अजय शुक्ला बताते हैं कि इस दौरान हमने दफ्तर की कैंटीन भी बंद नहीं की। पर कैंटीन में फिजिकल डिस्टेंसिंग का पूरा ख्याल रखा गया। हालांकि कई अखबारों ने लॉकडाउन के दौरान अपनी कैंटीन बंद कर दी। क्योंकि इस दौरान अंदेशा था कि लोग वहां एक दूसरे के ज्यादा करीब  आ सकते हैं। पर आज समाज के दफ्तर में कैंटीन में लोगों के बीच दूरी कायम रहे इसका पूरा ख्याल रखा गया।

लॉकडाउन के दौरान इस मीडिया समूह से जुड़े 11 लोगों में कोरोना पॉजिटिव होने के मामले आए पर इनमें से एक भी मामला दफ्तर के अंदर नहीं आया। सभी संक्रमण बाहरी क्षेत्रों में हुए।

नवोदय टाइम्स , दिल्ली - पंजाब केसरी समूह के अखबार नवोदय टाइम्स नई दिल्ली में कार्यरत सुधीर राघव बताते हैं कि उनके दफ्तर में सभी संवाददाताओं को वर्क फ्राम होम करने को निर्देश दिया गया। इससे दफ्तर में ज्यादा सिस्टम उपलब्ध हो गए और बाकी स्टाफ के लिए भौतिक दूरी के साथ काम करने की सुविधा मिल गई। कुछ संपादकीय विभाग के कर्मचारी इस दौरान वर्क फ्राम होम से भी अपने कार्यों को अंजाम देते रहे।

अमर उजाला , नोएडा - देश के बड़े हिंदी समाचार पत्रों के समूह में से एक अमर उजाला ने भी कोरोना काल में भौतिक दूरी बनाने के लिए कई कोशिशों को अंजाम दिया। कंपनी ने अपने इंटरनेट डिविजन के सारे स्टाफ को वर्क फ्राम होम करने को कहा। इंटरनेट डिविजिन के लिए यह काम कर पाना आसान हैं। इंटरनेट के साफ्टवेयर एचटीएमएल के आधार पर काम करते हैं। इसलिए वेबसाइट अपडेट करने के कार्य के लिए कोई अलग से साफ्टवेयर इंस्टाल करने की जरूरत आम तौर पर नहीं पड़ती है। इसलिए इंटरनेट डिविजन यानी वेबसाइट अपडेट करने वाले संपादकीय विभाग के साथियों के लिए घर से काम को अंजाम देना कोई मुश्किल कार्य नहीं था। हां ऐसे कर्मचारियों को अपने कार्य संबंधी निर्देश प्राप्त करने के लिए अपने विभागीय बॉस का निर्देश लेना पड़ता है। इसके लिए वे सुबह में अपने वरिष्ठ साथियों के से बात कर लेते हैं।

दैनिक जागरण, नोएडा - देश के सबसे बड़े बहुसंस्करण अखबारों में से एक दैनिक जागरण ने भी अपने दफ्तर में सुरक्षा को लेकर कई बदलाव किए। सभी संवाददाताओं को घर से काम करने की छूट दी गई। दफ्तर में जगह जगह कोरोना से बचाव के लिए हिदायतें क्या करें क्या न करें आदि लिखकर प्रकाशित की गई। सभी स्टाफ को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए दफ्तर में काम करने को कहा गया। कुछ स्टाफ जो घर से काम कर सकता था उसके लिए ऐसी सुविधा प्रदान की गई। दैनिक जागरण में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार आनंद सिंह कहते हैं कि दफ्तर की कार्यप्रणाली कोरोना काल में ऐसी रखी गई जिससे सावधानी भी रहे और दफ्तर का कामकाज प्रभावित भी नहीं हो।

प्रभात खबर, रांची - हिंदी के एक और बड़े अखबार प्रभात खबर ने भी सुरक्षा के लिए कई बदलाव किए। अखबार ने अपने रोज दफ्तर आने वाले स्टाफ को आधा कर दिया। प्रभात खबर में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार संजय मिश्रा कहते हैं कि स्टाफ को दफ्तर एक दिन छोड़कर आने को कहा गया। इससे दफ्तर में लोगों को सुरक्षित दूरी के साथ बैठने का मौका मिल गया। यहां भी सभी संवाददादाताओं को दफ्तर के बजाय घर से ही अपनी खबरों को फाइल करने की छूट दी गई। कोरोना काल में स्टाफ की जिम्मेवारियां बढ़ गई पर इसे स्टाफ ने चुनौती के तौर पर लिया और दफ्तर का कामकाज सुचारू तौर पर चलता रहा।

अखबारों के इंटरनेट डिविजन में काम करने वाले लोगों ने वर्क फ्रॉम के दौरान किसी और शहर से भी काम को अंजाम दिया। दैनिक भास्कर के डॉट काम यानी इंटरनेट डिविजन में दिल्ली में कार्यरत करुणा बताती हैं कि वे लॉकडाउन का ऐलान होने के बाद अपने घर पटना चली गईं। वे वहीं से अपने घर से दफ्तर काम निपटाती रहीं। दरअसल जब आप ऑनलाइन काम कर रहे हैं तो जरूरी नहीं है कि आपकी टीम के सारे सदस्य एक ही शहर में हों। सभी लोग अलग अलग शहरों से भी काम को अंजाम दे सकते हैं। बस इसके लिए अच्छी स्पीड वाला इंटरनेट कनेक्शन उपलब्ध होना जरूरी है।

वर्चुअल मीटिंग का सहारा -  दफ्तर में काम करने के दौरान आजकल योजनाएं बनाने के लिए बैठकों की बहुत जरूरत होती है। पर लॉकडाउन के दौरान ज्यादातर अखबारों के संपादकीय विभाग में वर्चुअल मीटिंग का सहारा लिया जाने लगा। ऐसी मीटिंग के लिए वाट्सएप कालिंग, जूम एप, एमस टीम्स या फिर गूगल मीट का सहारा लिया जाने लगा। छोटे समूह के लोग वाट्सएस की आडियो कॉलिंग में समूह में एक साथ जुड़कर मीटिंग कर लेते हैं। इसके बाद मिले निर्देशों के बाद वे अपना कामकाज शुरू कर देते हैं। अगर बड़े समूह में मीटिंग करनी है तो वीडियों कान्फ्रेसिंग का सहारा लिया जाता है। हिंदी के सभी बहु संस्करण वाले अखबार अपने अलग अलग शहरों में बैठे संपादकों के संग बैठक करने के लिए पहले से ही वीडियो कान्फ्रेंसिंग का सहारा लेते आ रहे हैं। अब लॉकडाउन आने पर इस तरह की बैठकों का सिलसिला और बढ़ गया है।

संकट नए रास्ते दिखा देता है। आपदा अवसर प्रदान करती है। हिन्दुस्तान के पटना संस्करण में काम करने वाले उप संपादक अविनाश मिश्रा मार्च महीन के आखिरी हफ्ते से ही अपने घर वैशाली जिले के सुभई गांव में बैठकर अपने कार्यों को अंजाम दे रहे हैं। अविनाश बताते हैं कि रिलायंस जियो से रोज 1.5 जीबी डाटा मिलता है उससे दफ्तर का काम निपटा लेता हूं। मतलब आप गांव में रहकर भी दफ्तर के काम को अंजाम दे सकते हैं। ये बदलाव कोरोनाकाल में आया है।

राजस्थान पत्रिका – राजस्थान, मध्य प्रदेश,  छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक जैसे राज्यों से प्रकाशित बहु संस्करण के समाचारपप पत्र राजस्थान पत्रिका ने भी कोरोना की आहट को देखते हुए कार्य पद्धति में कई बदलाव किए। इस समाचार पत्र से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार निरजंन कंजोलिया बताते हैं कि हमारे अखबार में वर्क फ्राम होम की शुरुआत 21 मार्च से कर दी गई थी। जिन लोगों के घर में कंप्यूटर सिस्टम नहीं थे उन्हें कंप्यूटर दफ्तर की ओर से मुहैय्या कराए गए। चुनौतियां बड़ी थी, पर अखबार ने उसका सामना किया। काफी लोग लंबे समय तक घर से ही अपने कार्यों को अंजाम देते रहे। दफ्तर आने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए सभी जरूरी ऊपाय अपनाए गए।

जयपुर अजमेर और कोटा से प्रकाशित राजस्थान के एक और प्रमुख हिंदी दैनिक दैनिक नवज्योति के सलाहकार संपादक योगेंद्र रावत बताते हैं कि कोविड 19 की चुनौतियों के लिए हमारे प्रबंधन ने भी पूरी तैयारी की। स्टाफ की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखा गया। दफ्तर के प्रवेश द्वार पर और दफ्तर के अंदर सेनेटाइजेशन के पूरे इंतजाम किए गए। यह प्रबंधन के उठाए गए पहलकदमी रही कि मार्च से जुलाई के दौरान कोरोना का कोई केस दफ्तर के अंदर नहीं आया।

 निष्कर्ष – कोरोना काल में समाचार पत्रों के पत्रकारों के लिए अपनी ड्यूटी को अंजाम देना चुनौतिपूर्ण कार्य रहा है। खास तौर पर संवाददाताओं के लिए जो खबरों संकलन के लिए अलग अलग स्थानों पर भ्रमण भी करते हैं। यह दुखद रहा है कि इस दौरान कई पत्रकारों की कोरोना से संक्रमित होकर मौत भी हो गई। 8 मई 2020 को आगरा में दैनिक जागरण के पत्रकार पंकज कुलश्रेष्ठ की मौत हो गई। 6 जुलाई 2020 को दैनिक भास्कर से जुड़े पत्रकार तरुण सिसौदिया की दुखद मौत दिल्ली एम्स में हो गई। कोरोना संक्रमित होने के बाद उनका उपचार चल रहा था। पर उन्होने निराश होकर आत्महत्या कर ली। वहीं 6 अगस्त 2020 को दैनिक जागरण वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार राकेश चक्रवर्ती को कोरोना ने लील लिया।  मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में शासन द्वारा निर्धारित किए गए कोविड सेंटर चिरायु अस्पताल में नई दुनिया के कोरोना पॉजिटिव पत्रकार श्री सिराज हाशमी की संदिग्ध मौत हो गई। (भोपाल समाचार)  ओडिशा में 12 जुलाई को समाज  दैनिक के पत्रकार प्रियदर्शी पटनायक का कोरोना से निधन हो गया। तमाम सुरक्षा उपायों के बीच देश भर के कई समाचार पत्रों के न्यूज रूम तक कोरोना वायरस ने दस्तक भी दे दी।

17 मार्च 2020 को कोरोना वायरस के खतरे से निपटने में डाक्टरों और नर्सो सहित चिकित्सा कर्मियों की भूमिका तथा जागरुकता फैलाने के लिए मीडिया की सराहना करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी सभी से सतर्क रहने को कहा।

पर इन सब के बीच उन समाचार पत्रों के प्रबंधन का व्यवहार अनुकरणीय है जिन्होंने इस बीमारी के संक्रमण से अपने मानव संसाधन को बचाने के लिए तमाम तरह के जरूरी ऊपाय किए, सावधानियां बरतीं।

संदर्भ –

1 नवभारत टाइम्स https://navbharattimes.indiatimes.com/india/prime-minister-appreciated-the-contribution-of-medical-personnel-media-in-dealing-with-corona-virus/articleshow/74668167.cms

2. हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, अमर उजाला, प्रभात खबर, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, दैनिक नवज्योति के विभिन्न पत्रकारों से बातचीत।

3. आज समाज के समन्वय संपादक- श्री अजय शुक्ला से बातचीत।

4. https://www.jagran.com/uttar-pradesh/varanasi-city-senior-journalist-rakesh-chaturvedi-working-in-dainik-jagran-varanasi-dies-from-corona-20599836.html

5. https://www.bbc.com/hindi/india-53318400

6 https://www.bhopalsamachar.com/2020/08/bhopal-news_3.html

7. https://insightonlinenews.in/

8. https://www.bbc.com/hindi/india-52054618

-         विद्युत प्रकाश मौर्य – Vidyut Prakash Maurya

-         (MA (hist) BHU, PG Diploma in Journalism from IIMC, Delhi, MMC from GJU, HISAR. UGC NET Quilified.

-         Email- vidyutp@gmail.com

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Sunday, 13 September 2020

बहुमुखी प्रतिभा के धनी संपादक थे श्री माधवकांत मिश्र


श्री माधव कांत मिश्र। एक पत्रकार, एक संपादक, एक ओजस्वी वक्ता, एक आध्यात्मिक संत, एक अभिनेता। उनके व्यक्तित्व के कई पहलू थे। भला अपने कैरियर पहली नौकरी देने वाले को आप कैसे भूल सकते हैं। तो मुझे उन्होंने पहली नौकरी दी थी, 1996 में कुबेर टाइम्स में। पर मैं ही नहीं देश में ऐसे कई सौ पत्रकार होंगे जिन्हे उन्होंने पहला मौका दिया। भरोसा किया। उनमें से कई लोग आज संपादक हैं, बड़े पदों पर हैं। अपनी क्षेत्र के माहिर पत्रकार बने हैं।
माधव कांत मिश्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य से एमए करके निकले थे। वे महान साहित्ययकार प्रोफेसर जगदीश गुप्त के दामाद थे। वैसे रहने वाले वे बिहार के भोजपुरी इलाके के थे। पढ़ाई के बाद पत्रकारिता की शुरुआत इलाहाबाद की धरती से की। पर उनके वाणी में जो साहित्यिक अंदाज था उससे लोग उन्हे इलाहाबादी ही समझते थे। उन्हें श्रेय जाता है कई नए अखबारों को संपादक के तौर पर शुरू करने का। पटना से पाटलिपुत्र टाइम्स, बरेली से विश्वमानव, सूर्या इंडिया, कुबेर टाइम्स आदि। वे आज हिंदी दैनिक के दिल्ली ब्यूरो प्रमुख रहे। राष्ट्रीय सहारा में बड़े पदों पर रहे। स्वतंत्र भारत लखनऊ में संपादक बने।

बाद के दिनों में कई धार्मिक चैनलों के भी संपादक बने। आस्था, संस्कार, प्रज्ञा, दिशा जैसे धार्मिक चैनलों से गुजरते हुए एक दिन वे महामंडलेश्वर बन बैठे। गेरुआ बाना धारण कर लिया। उनका नाम हो गया श्री श्री 108 मार्तंड पुरी जी महाराज। इस दौरान वे देश दुनिया का दौरा करते हुए रुद्राक्ष अभियान चला रहे थे। देश भर में रुद्राक्ष के पौधे लगाने के लिए लोगों को प्रेरित करते।

उनके व्यक्तित्व का एक और पक्ष था। वे अच्छे अभिनेता भी थे। कुछ भोजपुरी फिल्मों में अभिनय किया था। दूरदर्शन के कुछ धारावाहिकों और टेली फिल्मों में भी अभिनय किया था।

उनका जन्म 10 जुलाई 1947 को हुआ था। जाने के लिए 73 वर्ष की उम्र वैसे तो ज्यादा नहीं होती, पर 12 सितंबर 2020 को अचानक वे अनंत यात्रा पर प्रस्थान कर गए। महामंडलेश्वर बनने के बाद भी उनसे कई बार मिलना हुआ था। डॉक्टर रामजीलाल जांगिड द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज में और कालिंदी कालेज में आयोजित सेमिनार में वे मिले थे।

सन 1995 के अगस्त महीने में आईआईएमसी हिंदी पत्रकारिता की कक्षा में आने वाले पहले अतिथि व्याख्याता पत्रकार थे। जहां मेरा उनसे पहली बार मिलना हुआ था। उसके बार फरवरी 1996 में कुबेर टाइम्स में मेरी पहली नौकरी में वे मेरे पहले संपादक रहे।

अपने सैकड़ों शिष्यों को वे बड़े स्नेह से याद रखते थे। जब जहां वे संपादक रहे। अपनी टीम के लोगों के साथ न कभी बदतमीजी से बात की, न कभी किसी को नौकरी से बर्खास्त किया। हां, अपने ज्ञान और अनुभव से लोगों का मार्गदर्शन करते रहते थे। ऐसे संपादक विरल होते हैं। उनको याद करते हुए, उनके श्रीमुख से सुनी पंक्तियां जो हमेशा याद रहती हैं...
पुण्य हूं न पाप हूं
जो भी अपने आप हूं
अंतर देता दाह
जलने लगता हूं।
अंतर देता राह
चलने लगता हूं।

-         -  विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com 
    ( MADHAV KANT MISHRA, MAHAMANDLESHWAR SWAMI MARTAND PURI JI MAHARAJ ) 

हंसराज कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में 15 अक्तूबर 2013 को भाषा पत्रकारिता पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्टी में।