Monday 31 August 2020

भारतीय संस्कृति में लॉकडाउन की पुरानी परंपरा

आज हम भले ही कोराना महामारी के भय से लॉकडाउन में जीने को मजबूर हुए हैं पर भारतीय संस्कृति में लॉकडाउन की पुरानी परंपरा रही है। पर ये लॉकडाउन किसी डर के कारण नहीं थी। बल्कि सेहत और सामाजिकता को ध्यान में रखकर बनाई गई है।

साल में दो बार नवरात्र आते हैं। इस दौरान फलहार पर रहने की परंपरा है। यानी पके हुए अनाज नहीं खाना। सुना है कि अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो इस दौरान सिर्फ नींबू पानी पर रहते हैं। ये अलग बात  कि शहरों में पैसे वाले घरों की महिलाएं इस दौरान कुट्टू का आटा, सेंधा नमक और फल फूल इतना ज्यादा उदरस्थ कर लेती हैं कि नौ दिन में उनका वजन बढ़ जाता है। पर नवरात्र में उपवास शरीर के इम्युन सिस्टम को बढ़ाने और शरीर से जहरीले तत्व को बाहर निकालने के लिए हैं।

पितृ पक्ष – हर साल आश्विन मास में 15 दिनों का पितृ पक्ष आता है। इस दौरान लोग अपने पुरखों को याद करते हैं। कोई भी नया और शुभ कार्य करने से बचते हैं। ये एक तरह का लॉकडाउन ही है। इसमें घर में रहना, आराम करना प्रमुख अभ्यास है।

सावन के चार माह चातुर्मास – सावन शुरू होते ही चार माह देवता सो जाते हैं। बारिश के दिनों में वैसे भी लंबी यात्राएं या कई तरह के नए कार्यों में दिक्कत आती है। इसलिए ये भी एक तरह का ब्रेक है। तमाम जैन मुनि चातुर्मास के समय एक जगह टिक कर रहते हैं।

एकदशी का व्रत – हर माह में दो बार एकादशी का व्रत करने की परंपरा है। इस दौरान लोग उपवास करते हैं। यह भी शरीर को आराम देने की ही एक प्रक्रिया है।

थारू समाज का बरना उत्सव -  बिहार के चंपारण जिले में एक जनजाति है थारू। थारू समाज के लोग हर साल बरना का उत्सव मनाते हैं। यह तीन दिनों का पूर्ण लॉकडाउन होता है। इस दौरान कोई अपने गांव घर से बाहर नहीं जाता। न तो कोई दूसरे गांव से आता है। थारू समाज मानता है कि ऐसा करने से पेड़ पौधों और प्रकृति को नुकसान होगा। सदियों से थारू समाज यह उत्सव मनाता आ रहा है।
रमजान का महीना – इस्लाम में हर साल रमजान का महीना आता है। इसमें हर रोज उपवास किया जाता है। यह इबादत और संयम का महीना है। हमें इन सारी परंपराओं से सीखने की जरूरत है। और बहुत तेज भागने के बजाय थोड़ा हौले-हौले चलने की जरूत है। प्रकृति के साथ समन्वय बनाकर।
-         -  विद्युत प्रकाश मौर्य – vidyutp@gmail.com

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