
विज्ञापनदाताओं का दबाव - किसी भी धारावाहिक को ध्यान से देखें तो
पाएंगे कि उसमें अभिनेत्रियां महंगी साड़ियां और गहने पहनती हैं। पुरूष डिजाइनर
वस्त्र में सजेधजे रहते हैं। वे जिन कंपनियों की साड़ियां और गहने पहनती हैं
धारावाहिक के आगे पीछे उन्हीं कंपनियों के विज्ञापन भी आते हैं। यानी हर धारावाहिक
की कहानी में बड़ी चालाकी से बाजार को घुसाया गया है जिसे आप आसानी से समझ नहीं
पाते हैं। टीवी धारावाहिक बनाने वाले एक निर्देशक का कहना है कि हमें 23 मिनट के धारावाहिक
में काफी कुछ दिखाना पड़ता है। एक एक दृश्य में बाजार की जरूरत के हिसाब से एलीमेंट
डालने का दबाव होता है। यानी ये धारावाहिक विज्ञापनदाताओं के दबाव में अपनी कहानी
बनाते हैं। विज्ञापनदाताओं के दबाव में ही पात्रों के परिधानों का चयन भी करवाते
हैं। इन सबके पीछे एक गहरी साजिश चल रही है जिससे टीवी के सामने बैठा दर्शक अनजान
ही है।
त्योहारों का सेलिब्रेशन - अब धारावाहिकों को भव्य और मनोरंजक
बनाने के लिए उसमें सेलिब्रेशन का एलीमेंट फीट किया जा रहा है। इसके तहत कई सालों
से ये परंपरा चल पड़ी है कि अंतहीन कथानक वाले मेगा धारावाहिकों में होली, दीवाली, रक्षा बंधन, क्रिसमस जैसे सभी त्योहार मनाए जाते
हैं। ये त्योहार उस साल पड़ने वाले त्योहारों की वास्तविक तारीख के बीच ही पड़ते
हैं। इन त्योहारों के साथ भी कई तरह के उपभोक्ता वस्तुओं की मार्केटिंग होती है।
इसलिए धारावाहिक की कहानी में त्योहारों का प्रसंग रखना भी जरूरी है। वैसे भी
अतंहीन धारावाहिकों के लेखक के पास किसी नए विषय वस्तु का अभाव होता है। उसे तो
कोई बहाना चाहिए जिससे धारावाहिक के कुछ एपीसोड आगे खींचे जा सकें।
कुछ नहीं तो गाने सही - कुछ फिल्मों में किसी पुराने फिल्मी
गाने के एक अंतरे को या मुखड़े को रीपिट किया गया था। पर धारावाहिक आजकल कई
लोकप्रिय गानों को अपने सेट पर रीशूट कर रहे हैं। गाना वही म्यूजिक वही बस उस पर
थिरकने वाले पात्र बदलते हैं। यह सब कुछ बहुत आसान भी है। शादी विवाह समारोहों अधिकांश
घरों में लोग लोकप्रिय गानों की धुन पर नाचते हुए देखे जाते हैं। यानी इस काम के
लिए कोई ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है। बस धारावाहिक के सभी पात्र एक जगह जुट
कर कमर हिलाना शुरू कर देते हैं। इसके साथ ही कहानी में म्यूजिक डालने का एक बहना
मिल जाता है। शूटिंग में सेट पर भी थोड़ी मौजमस्ती हो जाती है। इन सबके बीच आम
दर्शकों को गाना बजाना देखने को मिल जाता है। मौका मिले तो ड्राइंग रूम में टीवी देख
रहे लोग भी नाचने लगते हैं।
vidyutp@gmail.com
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