Sunday 15 November 2009

कैमरा फोन से फिल्म बनाएं

टीवी पर ऐसी फिल्म का प्रदर्शन हो चुका है जो कैमरा फोन से बनाई गई है। यह प्रयोग के एक नए दौर की शुरूआत है। दक्षिण अफ्रीका के जोहंसबर्ग में फिल्माई गई इस फिल्म में आठ कैमरा युक्त मोबाइल फोन की मदद ली गई। एक दक्षिण अफ्रीकी निर्देशक के मन में यह आइडिया आया कि क्यों न हम मोबाइल फोन की मदद से ही फिल्म बनाएं। आजकल ऐसे मोबाइल फोन आ गए हैं जिनमें दो घंटे तक की वीडियो शूट की सुविधा उपलब्ध है। जब
मोबाइल फोन में कैमरा की सुविधा का आगमन हुआ तब यह लोगों के मजाकिया इस्तेमाल में ही आ रहा था। पर जल्द ही मोबाइल फोनों में उन्नत किस्म के कैमरों का इस्तेमाल होने लगा। अब मोबाइल फोन में 1.2 मेगा पिक्सेल से ज्य़ादा क्षमता वाले कैमरे आ गए हैं। इनके रिजल्ट का व्यवसायिक इस्तेमाल हो सकता है। इससे आगे बढ़ते हुए ऐसे मोबाइल फोन आ गए जिसमें कैमरे के अलावा वीडियो शूट की सुविधा उपलब्ध है। अगर आपके पास आधे घंटे से दो घंटे के वीडियो शूट का कैमरा उपलब्ध है तो कई जगह अपने काम की फिल्म बना सकते हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा है कि बड़ा वीडियो कैमरा लेकर कहीं जाने की जरूरत नहीं है। अगर आपको कहीं भी आते-जाते कोई खास विजुअल नजर आता है जिसका कोई इस्तेमाल हो सकता है तो आप उसकी वीडियो फुटेज तैयार कर सकते हैं।
अब इसका फायदा टीवी चैनलों को भी खूब हो रहा है। वे दर्शकों को आमंत्रित करते हैं कि आपके आसपास कोई घटना होती है तो आपकी उसकी वीडियो फुटेज हमें भेजिए। मुंबई में आई बाढ़ के दौरान काफी लोगों ने अपने घर और आसपास के हालात के वीडियो बना कर लोगों के भेजा। इससे चैनलों को यह लाभ हुआ कि उनको मौके की जाती तस्वीरें मिल गईं। यह सत्य है कि हर जगह टीवी चैनलों के संवाददाता तो हर जगह पहुंच नहीं सकते। मीडिया में सिटीजन जनर्लिस्ट की जो परिकल्पा शुरु हुई है उसमें मोबाइल कैमरा और मोबाइल वीडियो का बड़ा योगदान है।
अब मोबाइल फोन के इससे भी बढ़कर अभिनव प्रयोग आरंभ हो चुके हैं। यानी मोबाइल फोन से ही लघु फिल्म बनाने का। जोहंसबर्ग के उन उत्साही युवाओं के इस प्रयास की तारीफ की जानी चाहिए जिन्होंने इस तरह का प्रयोग किया। इस टीम ने पहले एक स्क्रिप्ट बनाई। उसके बाद आठ मोबाइल फोन कैमरों का इस्तेमाल किया। एसएमएस शुगर मैन नामक इस फिल्म की शूटिंग 11 दिनों में की गई। इसमे कुल तीन कलाकारों ने काम किया। यह फिल्म दो उच्चवर्ग की वेश्याओं की कहानी है। बाद में इस फिल्म को 35 एमएम के फीचर फिल्म के आकार में शिफ्ट किया गया। यह फिल्म लो बजट की फिल्म का आदर्श उदाहरण बन गई है। हो सकता है दुनिया के अन्य देशों के लोग भी इससे कुछ प्रेरणा ले सकें।

-    विद्युत प्रकाश मौर्य


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