
अब इसका फायदा टीवी चैनलों
को भी खूब हो रहा है। वे दर्शकों को आमंत्रित करते हैं कि आपके आसपास कोई घटना
होती है तो आपकी उसकी वीडियो फुटेज हमें भेजिए। मुंबई में आई बाढ़ के दौरान काफी
लोगों ने अपने घर और आसपास के हालात के वीडियो बना कर लोगों के भेजा। इससे चैनलों
को यह लाभ हुआ कि उनको मौके की जाती तस्वीरें मिल गईं। यह सत्य है कि हर जगह टीवी चैनलों
के संवाददाता तो हर जगह पहुंच नहीं सकते। मीडिया में सिटीजन जनर्लिस्ट की जो परिकल्पा
शुरु हुई है उसमें मोबाइल कैमरा और मोबाइल वीडियो का बड़ा योगदान है।
अब मोबाइल फोन के इससे भी
बढ़कर अभिनव प्रयोग आरंभ हो चुके हैं। यानी मोबाइल फोन से ही लघु फिल्म बनाने का।
जोहंसबर्ग के उन उत्साही युवाओं के इस प्रयास की तारीफ की जानी चाहिए जिन्होंने इस
तरह का प्रयोग किया। इस टीम ने पहले एक स्क्रिप्ट बनाई। उसके बाद आठ मोबाइल फोन कैमरों
का इस्तेमाल किया। एसएमएस शुगर मैन नामक इस फिल्म की शूटिंग 11 दिनों में
की गई। इसमे कुल तीन कलाकारों ने काम किया। यह फिल्म दो उच्चवर्ग की वेश्याओं की
कहानी है। बाद में इस फिल्म को 35 एमएम के फीचर फिल्म के
आकार में शिफ्ट किया गया। यह फिल्म लो बजट की फिल्म का आदर्श उदाहरण बन गई है। हो सकता
है दुनिया के अन्य देशों के लोग भी इससे कुछ प्रेरणा ले सकें।
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विद्युत प्रकाश मौर्य
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