Monday, 30 November 2009

भोजपुरी फिल्मों का बढ़ता बाजार

सुपर स्टार अमिताभ बच्चन जब लंबी बीमारी केबाद स्वस्थ हुए तो उन्होंने सबसे पहले कौन सी शूटिंग में हिस्सा लिया। वह एक भोजपुरी फिल्म गंगा थी जो उनके मेकअप मैन दीपक सावंत बना रहे हैं। अमिताभ इससे पहले भी एक भोजपुरी फिल्म पान खाएं सैंया हमार में अतिथि भूमिका कर चुके हैं। एक दशक के कैप के बाद भोजपुरी फिल्मों का बाजार एक बार फिर गरमा चुका है। 

भोजपुरी फिल्में अब सिर्फ बिहार या उत्तर प्रदेश तक ही सीमित नहीं है। इनका दायरा बढ़कर दिल्लीमुंबई, पंजाबगुजरात मध्य प्रदेशछत्तीसगढ़ व राजस्थान तक हो गया है। पिछले दिनों मुंबई में जब मनोज तिवारी की ताजी फिल्म रीलिज हुई तो वहां दर्शकों का हुजुम बाक्स आफिस पर टूट पड़ा। अब पटनाहाजीपुर और उसके आसपास हर हप्ते किसी न किसी भोजपुरी फिल्म की शूटिंग चल रही होती है। किसी जमाने में भोजपुरी फिल्मों के स्टार रहे अभिनेता फिर से भोजपुरी फिल्मों की ओर वापस आ रहे हैं। भोजपुरी फिल्मों को इस नए दौर की शुरूआत के स्टार है भभुआ के मनोज तिवारी और रवि किशन और ललितेश झा। रवि किशन की फिल्म पंडित जी बताईं ना बियाह कब होई सुपर हिट रही है। अब वे अपने नाम की ही फिल्म रवि किशनगंगाहमार घरवाली जैसी फिल्मों में काम कर रहे हैं।
सिर्फ दीपक सावंत ही नहीं भोजपुरी फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कूद पड़े हैं और कई बड़े नाम। दिलीप कुमार की पत्नी सायरा बानू, डांस डाइरेक्टर सरोज खान तो शराब और एयरलाइन का बिजनेस करने वाले विजय माल्या भी भोजपुरी फिल्म बना रहे हैं। सायरा बानू की भोजपुरी फिल्म है अब त बन जा सजनवा हमार। कई बड़े नामों का भोजपुरी फिल्म निर्माण के क्षेत्र में आना इस भाषा के लिए सुखद स्थिति है। किसी समय में राकेश पांडे और पद्मा खान भोजपुरी फिल्मों के हिट जोड़ी रही है। अब राकेश पांडे एक बार फिर से भोजपुरी फिल्मों में चरित्र भूमिकाएं करने के लिए आ गए हैं। हालांकि पद्मा खन्ना आजकल लंदन में डांस स्कूल चला रही हैं। पर दक्षिण की नायिका नगमा को आजकल भोजपुरी फिल्मों में खूब भूमिकाएं मिल रही हैं। वे एक साथ कई फिल्मों में काम कर रही हैं।
यह भोजपुरी फिल्मों के विकास का दूसरा दौर है जो आर्थिक और व्यवसायिक रुप से पहले दौर की तुलना में ज्यादा सुनहरा दिखाई दे रहा है। भोजपुरी फिल्मों के पटकथा लेखक और पत्रकार आलोक रंजन कहते हैं कि भोजपुरी भाषा के लिए यह एक अच्छे दौर की शुरूआत जरूर है पर इसमें एक खतरा है। एक दशक पहले भोजपुरी फिल्में एकदम से बननी इसलिए बंद हो गई क्योंकि इस क्षेत्र में दूसरी भाषा के लोग सिर्फ पैसा बनाने की चाह लेकर आ गए थे। उन्होंने इस भाषा का बड़ा अनिष्ट किया। पर अब एक भाषा जो देश में 20 करोड़ से ज्यादा लोग बोलते और समझते हैं उसको लेकर सावधान रहने की जरूरत है फिर कहीं वैसी ही आवृति न हो। क्योंकि इस बार बड़ी संख्या मराठी, गुजराती और अन्य राज्यों के लोग भोजपुरी फिल्मों के निर्माण के क्षेत्र में सिर्फ इसलिए आ रहे हैं कि उन्हें कम लागात में ज्यादा लाभ होता हुआ दिखाई दे रहा है। जरूरत इस बात की है कि भोजपुरी में ऐसे लोग आएं जिनका इस भाषा के प्रति अपनेपन भरा लगाव भी हो तथा भाषा को आगे बढ़ाने के लिए समर्पण का भाव भी। तभी हम अन्य भाषायी फिल्मों की तरह भोजपुरी को भी आगे बढ़ता हुआ देख सकते हैं।
- विद्युत प्रकाश मौर्य ( 2007) 



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