Wednesday, 25 November 2009

लालू जी हम भी गरीब हैं (व्यंग्य)

लालू जी बड़े गरीब नवाज हैं। जहां भी रहते हैं गरीबों की सुध लेते हैं। गरीबों को सपने दिखाने में उनका कोई सानी नहीं है। लिहाजा उन्होंने रेलवे में भी गरीबों के लिए नई रेलगाड़ी शुरू कर दी है। गरीब रथ। इस गरीब रथ में देश की जनता जनार्दन वातानुकुलित कोच में चलने का आनंद उठा सकेगी वह भी सस्ते में। 
इस रेलगाड़ी में चलने के लिए आपको यह घोषणा करनी पड़ेगी कि आप गरीब हैं तभी आप गरीब रथ में सवार हो सकेंगे। पर क्या यह रेलगाड़ी गरीबों की गरीबी का मजाक उड़ाती नहीं प्रतीत होती है। आखिर आज के दौर में कौन खुद को गरीब कहलाना पसंद करता है। सभी लोग अमीर बनना चाहते हैं। भले ही कोई जेब से फकीर हो पर वह नहीं चाहता है कि उसे कोई गरीब कहे। अगर किसी ने गरीब रथ में यात्रा कर ली तो अब उसके नाम के आगे तो मार्का ही लग जाएगा कि वह गरीब है। किसी गरीब को अगर आप याद दिलाएं कि वह गरीब है तो वह इसे अपने आत्मसम्मान पर ले लेता है। भला तुम कौन होते हो मुझे गरीब कहने वाले। क्या है तुमसे मांग कर खाते हैं।
गरीब भले ही गरीब हो पर वह अपने आत्मसम्मान के साथ कोई समझौता नहीं करेगा। वह फिर उसी सेकेंड क्लास के डिब्बे में जलालत और गरमी के बीच यात्रा करना चाहेगा पर खुद को गरीब डिक्लियर करके गरीब रथ के वातानुकूलित कोच में नहीं बैठेगा। वहीं जो लोग चालू पुर्जा किस्म के हैं, भले ही उनके पास पैन कार्ड हो इनकम टैक्स भी जमा करते हों पर सस्ती यात्रा करने के लिए थोड़ी देर के लिए गरीब बन जाएंगे। कई अमीर लोग हमेशा गरीब ही बने रहना चाहते हैं। वे अपनी असली आमदनी का खुलासा नहीं करना चाहते। वे अमीर की चादर में गरीबी की पेबंद लगाकर सोना चाहते हैं। वे ऐसा करके देश के गरीबों को और सरकार को धोखा देते हैं। वे आयकर विभाग को चकमा देकर चूना लगाते हैं। तो भला ऐसे लोगों को रेलवे को चकमा देने में कौन सी देर लगेगी। कहेंगे लो जी हम भी गरीब हैं। हमें भी गरीब रथ का टिकट दे दो। इस तरह अमीर भी लूटेंगे सस्ते में गरीबी का मजा। पर यह क्या लालू जी आप तो गरीबों की आदत बिगाड़ रहे हैं। 

गरीबों के घर में तो अभी तक बिजली भी नहीं पहुंची है। पंखे भी नहीं लगे हुए हैं। जिनके घर में पंखे लगे हुए हैं वे भी भला कौन सा हमेशा पंखे में सो पाते हैं। क्या करें बिजली रानी ही नहीं आतीं। अब भला जिन्हें पंखे भी नसीब नहीं हैं वे कुछ घंटे के लिए अगर गरीब रथ के वातानूकुलित डिब्बे में सफर कर लेंगे तो उनकी आदत नहीं बिगड़ जाएगी। वे फिर घर वापस आएंगे तो उसी मुफलिसी का सामना करना पड़ेगा। कहेंगे अरे बापू ट्रेन में बड़ी प्यारी नींद आई थी। गरमी के दिन में भी ठंडी ठंडी हवा चल रही थी। अब गांव वापस आने पर फिर से सूरज की गरमी से चमड़ी जल रही है। यह गरीबों की गरीबी का मजाक नहीं तो और क्या है। थोड़ी देर के लिए उनको ठंडी ठंडी हवा में सपने दिखा देते हो। अगर असली गरीबों के हमदर्द हो तो पहले उनके घरों को वातानूकुलित करने की योजना बनाओ न। तुम तो सिर्फ सपने दिखाने में लगे हुए हैं। गरीब रथ में सफर करके लौटने के बात एक तो अपनी गरीबी का एहसास हो ही जाता है। उपर से अपनी गरीबी पर बड़ा रोना भी आता है। किसी शायर ने कहा है-
आधी-आधी रात को चुपके से कोई जब मेरे घर में आ जाता है।
कसम गरीबी की अपने गरीब खाने पर बड़ा तरस आता है।
 इसलिए लालू जी कुछ ऐसा इंतजाम कीजिए कि एक अदद एयर कंडीशनर हमारे गरीबखाने में भी लग जाए।
- vidyutp@gmail.com


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