
अब बचते हैं बिहार के रिक्सेवाले। पर
उनको शायद किसी ब्रांड एंबेस्डर की जरूरत ही नहीं है। वे जहां भी जाते हैं अपनी मेहनत
के बल पर रिक्सा खींच कर लोगों को उनकी छोटी-छोटी मंजिलों तक पहुंचाते हैं। बाबा ने इतना जरूर कहा
कि वे बिहारियों के मेहनतकश दमखम को सलाम करते हैं। पर वे उनका प्रतिनिधित्व किस
तरह करेंगे इसका उन्होंने ठीक से खुलासा नहीं किया। अब बचते हैं। बिहार के
बेरोजगार। पर उनकी अगुवाई को बेरोजगार ही कर सकता है। पर बाबा के पास तो पहले से
ही तरह के रोजगार हैं। ब्रांड एंबेस्डर के सामने बहुत बड़ी जिम्मेवारी होती है
इमेज बिल्डिंग की। सो अब बाबा तो गए बिहार के। पर क्या बाहर के लोग उन्हें बिहारी
मान लेंगे। क्या बाबा बिहार से बाहर भोजपुरी बोलकर दिखाएंगे। क्या वे बिहार से
बाहर बार बार बिहार का नाम लेकर लोगों को बिहार में पूंजी निवेश के लिए कहेंगे।
वैसे बाबा जब से बिहार से निकल कर बाहर आए हैं उन्होंने एक बार भी बिहार का नाम
नहीं लिया है।
बाबा जब एक दो साल बाद बिहार में फिर
योगासन के शिविर लगाने जाएंगे तो लोग उनसे पूछेंगे कि बाबा आपने बिहार के ब्रांड एंबेस्डर
के रुप में क्या किया। बाबा का मुकाबला महेंद्र सिंह धोनी से है जो पड़ोसी राज्य
झारखंड के ब्रांड एंबेस्डर हैं। धोनी का तो बचपन ही रांची में गुजरा है। वे लंबे
समय से वहीं रह भी रहे हैं। जब वे क्रिकेट नहीं खेलते तब वे रांची में ही रहते
हैं। पर बाबा ने अभी तक पटना में कोई घर नहीं बनाया। हम बाबा को यह सलाह देंगे कि
वे बिहार में एक घर जरूर बना लें जिससे उनके बिहारी होने के एहसास हो। साथ ही वे
घर बिहार के ऐसे गांव में बनाएं जहां सड़क नहीं है। बिहार के 50 फीसदी गांवों में
अभी भी बैलगाड़ी से जाना पड़ता है। उन गांवों में बिजली नहीं है। लालटेन जलता रहता
है। लालटेन पर भी फिलहाल लालू प्रसाद जी का कब्जा है। बाबा अगर गांव में घर बना
रहने जाते भी हैं तो उन्हें यह समस्या आएगी कि वे अपने घर में रोशनी कैसे करें।
खैर मोमबत्ती या दीए से काम चलाया जा सकता है। पर बाबा से हम गुजारिश करेंगे कि वे
एक बार बिहार के गांवों का दौरा जरूर करें।
- विद्युत प्रकाश मौर्य
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