एक अनिवासी भारतीय का
दिल भारत की गरीबी को देखकर
द्रवित हो उठा। उसने भयंकर
गरीबी को देखते हुए माइक्रो
फाइनेंस की अवधारणा पर काम
करना आरंभ किया। भारत में
जन्मे विक्रम आकुला का उच्च
अध्ययन विदेश में हुआ है।
उन्होंने टफ्ट्स विश्वविद्यालय से
बीए येल से एमए तथा शिकागो
यूनीवर्सिटी से पीएचडी की है।
पीएचडी के दौरान उनके शोध का
विषय गरीबी उन्मूलन की विभिन्न
रणनीतियां थी जिसे उन्होंने बाद
में जीवन में उतारा भी।
सन 1998 में उन्होंने एसकेएस माइक्रो
फाइनेंस उद्यम की स्थापना की। आज
आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में
इसकी 85 शाखाएं हैं। विक्रम के कार्यों
का मूल्यांकन करते हुए टाइम
पत्रिका ने उन्हें 2006 के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों
में चयनित किया है। पर विक्रम
इसे अपने लिए कोई बड़ा
सम्मान नहीं मानते हैं। हां
उन्हें इस बात की खुशी जरूर है कि
उनके कार्यों को पहचान मिल रही
है।
मेडक से हुई शुरूआत - एनआरआई विक्रम आंध्र
प्रदेश के मेडक जिले में अपने एक
रिश्तेदार के घर आए। वहां
उन्होंने जो आसपास में गरीबी
देखी उससे वे विचलित हो गए।
उसके बाद उन्होंने ने मेडक
से ही अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट
की शुरूआत की। आज आकुला के
प्रोजेक्ट की सफलता देखकर कई
विदेशी संस्थान भी इसमें
पैसा लगाने को तत्पर हैं।
बिना गिरवी के कर्ज - उनकी संस्था एसकेएस का उद्देश्य
है साधनहीन लोगों को सस्ती
ब्याज दर पर ऋण देकर उन्हें
आत्मनिर्भर बनाना। इस क्रम में
अब तक एसकेएस दो लाख 21 हजार महिलाओं को 240 करोड़ रुपए ऋण के रुप में बांट
चुकी है। ये महिलाएं भारत के
उन क्षेत्रों से आती हैं जहां
भयंकर गरीबी है। भारत में
माइक्रो फाइनेंस अभी नया क्षेत्र
है। इसका काम करने का तरीका
समान्य बैंकिंग से अलग है। यह बिना
कुछ गिरवी रखे ऋण प्रदान करता
है। साथ ही इसकी ब्याज दरें
भी बैंक से कम होती हैं।
विक्रम ने भारत में गरीबी
के कारणों का गंभीरता से
अध्ययन किया है। अपनी संस्था
आरंभ करने से पहले वे
फुलब्राइट स्कालरशिप के तहत भारत सरकार द्वारा संचालित जवाहर रोजगार योजना के अंतर्गत खाद्य सुरक्षा के अंतर्गत माइक्रो फाइनेंस उपलब्ध करवाने का काम किया। इसके बाद उन्होंने आंध्र प्रदेश में डेक्कन डेवलपमेंट सोसाइटी का गठन किया।
नए क्षितिज की ओर - आकुल अपनी संस्था का विस्तार
आने वाले एक साल में पांच नए
राज्यों में करना चाहते हैं
और इससे लाभान्वितों की
संख्या सात लाख तक पहुंचाना
चाहते हैं। पिछले साल एसकेएस
की विकास दर 300 फीसदी थी। तमाम बैंक जो
सभी कर्ज कुछ गिरवी रख कर ही
देते हैं भले ही वसूली के संकट
से गुजर रहे हों पर एसकेएस की
वापसी (रिकवरी) का दर 98 फीसदी है। जबकि बैंक 90 फीसदी रिकवरी रेट को बहुत शानदार
मानते हैं। आकुला ने इस भ्रम
को भी तोड़ा है कि गरीब आदमी
कर्ज का रुपया नहीं वापस करता है।
आकुल की कंपनी एसकेएस
आधुनिक तकनीक पर काम करती है। वह
अपने ग्राहकों को पैसा उपलब्ध
करवाने के लिए स्मार्ट कार्ड का
इस्तेमाल करते हैं। उनकी
सफलता का एक बहुत बड़ा कारण
पारदर्शिता पर जोर देना भी है।
-विद्युत प्रकाश
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