Tuesday, 29 April 2008

माइक्रो फाइनेंस के जनक -विक्रम आकुला

एक अनिवासी भारतीय का दिल भारत की गरीबी को देखकर द्रवित हो उठा। उसने भयंकर गरीबी को देखते हुए माइक्रो फाइनेंस की अवधारणा पर काम करना आरंभ किया। भारत में जन्मे विक्रम आकुला का उच्च अध्ययन विदेश में हुआ है। उन्होंने टफ्ट्स विश्वविद्यालय से बीए येल से एमए तथा शिकागो यूनीवर्सिटी से पीएचडी की है।

 पीएचडी के दौरान उनके शोध का विषय गरीबी उन्मूलन की विभिन्न रणनीतियां थी जिसे उन्होंने बाद में जीवन में उतारा भी। सन 1998 में उन्होंने एसकेएस माइक्रो फाइनेंस उद्यम की स्थापना की। आज आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में इसकी 85 शाखाएं हैं। विक्रम के कार्यों का मूल्यांकन करते हुए टाइम पत्रिका ने उन्हें 2006 के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में चयनित किया है। पर विक्रम इसे अपने लिए कोई बड़ा सम्मान नहीं मानते हैं। हां उन्हें इस बात की खुशी जरूर है कि उनके कार्यों को पहचान मिल रही है।

मेडक से हुई शुरूआत - एनआरआई विक्रम आंध्र प्रदेश के मेडक जिले में अपने एक रिश्तेदार के घर आए। वहां उन्होंने जो आसपास में गरीबी देखी उससे वे विचलित हो गए। उसके बाद उन्होंने ने मेडक से ही अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट की शुरूआत की। आज आकुला के प्रोजेक्ट की सफलता देखकर कई विदेशी संस्थान भी इसमें पैसा लगाने को तत्पर हैं।

बिना गिरवी के कर्ज - उनकी संस्था एसकेएस का उद्देश्य है साधनहीन लोगों को सस्ती ब्याज दर पर ऋण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना। इस क्रम में अब तक एसकेएस दो लाख 21 हजार महिलाओं को 240 करोड़ रुपए ऋण के रुप में बांट चुकी है। ये महिलाएं भारत के उन क्षेत्रों से आती हैं जहां भयंकर गरीबी है। भारत में माइक्रो फाइनेंस अभी नया क्षेत्र है। इसका काम करने का तरीका समान्य बैंकिंग से अलग है। यह बिना कुछ गिरवी रखे ऋण प्रदान करता है। साथ ही इसकी ब्याज दरें भी बैंक से कम होती हैं।

विक्रम ने भारत में गरीबी के कारणों का गंभीरता से अध्ययन किया है। अपनी संस्था आरंभ करने से पहले वे फुलब्राइट स्कालरशिप के तहत भारत सरकार द्वारा संचालित जवाहर रोजगार योजना के अंतर्गत खाद्य सुरक्षा के अंतर्गत माइक्रो फाइनेंस उपलब्ध करवाने का काम किया। इसके बाद उन्होंने आंध्र प्रदेश में डेक्कन डेवलपमेंट सोसाइटी का गठन किया।

नए क्षितिज की ओर - आकुल अपनी संस्था का विस्तार आने वाले एक साल में पांच नए राज्यों में करना चाहते हैं और इससे लाभान्वितों की संख्या सात लाख तक पहुंचाना चाहते हैं। पिछले साल एसकेएस की विकास दर 300 फीसदी थी। तमाम बैंक जो सभी कर्ज कुछ गिरवी रख कर ही देते हैं भले ही वसूली के संकट से गुजर रहे हों पर एसकेएस की वापसी (रिकवरी) का दर 98 फीसदी है। जबकि बैंक 90 फीसदी रिकवरी रेट को बहुत शानदार मानते हैं। आकुला ने इस भ्रम को भी तोड़ा है कि गरीब आदमी कर्ज का रुपया नहीं वापस करता है। आकुल की कंपनी एसकेएस आधुनिक तकनीक पर काम करती है। वह अपने ग्राहकों को पैसा उपलब्ध करवाने के लिए स्मार्ट कार्ड का इस्तेमाल करते हैं। उनकी सफलता का एक बहुत बड़ा कारण पारदर्शिता पर जोर देना भी है।

-विद्युत प्रकाश



Sunday, 27 April 2008

बाबा रामदेव और बिहार.......

बाबा बिहार क्या गए बिहार के होकर रह गए। वे बिहारियों के मुरीद हे गए। वे बिहार पर इतने खुश हुए कि खुद को बिहार का ब्रांड एंबेस्डर बनना स्वीकार कर लिया। अब बाबा बिहार के बाहर बिहार का प्रचार करेंगे। हालांकि हमारी जानकारी के अनुसार वे बिहार के रहने वाले नहीं है। उनका पालन पोषण भी बिहार में नहीं हुआ है। पर ठीक उसी तरह जैसे कोई फिल्मी हीरोइन किसी साबुन का प्रचार करती है, बाबा शायद बिहार का प्रचार करेंगे। बिहार की सरकार ने बाबा को अपना ब्रांड एंबेस्डर बना दिया और बाबा ने उसे स्वीकार कर भी लिया। पर सवाल यह उठता है कि बाबा बिहार की किन चीजों का बिहार से बार प्रतिनिधित्व करेंगे। बिहार का सबसे लोकप्रिय खानपान है लिट्टी चोखा। वह गरीब गुरबों की खास पसंद है। क्या बाबा उसका प्रचार करेंगे। या फिर वे क्या सत्तु का प्रचार करेंगे। पर ठहरिए सत्तु का प्रचार तो लालू प्रसाद यादव जी करते हैं। वे प्रेस कान्फ्रेंस में पत्रकारों को सत्तु दिखाते रहते हैं। इसलिए बाबा लालू प्रसाद जी के फेवरिट सत्तू को उनसे छीन नहीं सकते। वैसे बाबा योग के प्रचारक हैं। योगासन करने वालों के लिए सत्तु बडे़ काम की चीज है। क्योंकि यह सात्विक है प्रोटीन भी ताकत भी बढ़ाती है। इसमें कोई मिलावट भी नहीं है।


अब बचते हैं बिहार के रिक्सेवाले। पर उनको शायद किसी ब्रांड एंबेस्डर की जरूरत ही नहीं है। वे जहां भी जाते हैं अपनी मेहनत के बल पर रिक्सा खींच कर लोगों को उनकी छोटी-छोटी मंजिलों तक पहुंचाते हैं। बाबा ने इतना जरूर कहा कि वे बिहारियों के मेहनतकश दमखम को सलाम करते हैं। पर वे उनका प्रतिनिधित्व किस तरह करेंगे इसका उन्होंने ठीक से खुलासा नहीं किया। अब बचते हैं। बिहार के बेरोजगार। पर उनकी अगुवाई को बेरोजगार ही कर सकता है। पर बाबा के पास तो पहले से ही तरह के रोजगार हैं। ब्रांड एंबेस्डर के सामने बहुत बड़ी जिम्मेवारी होती है इमेज बिल्डिंग की। सो अब बाबा तो गए बिहार के। पर क्या बाहर के लोग उन्हें बिहारी मान लेंगे। क्या बाबा बिहार से बाहर भोजपुरी बोलकर दिखाएंगे। क्या वे बिहार से बाहर बार बार बिहार का नाम लेकर लोगों को बिहार में पूंजी निवेश के लिए कहेंगे। वैसे बाबा जब से बिहार से निकल कर बाहर आए हैं उन्होंने एक बार भी बिहार का नाम नहीं लिया है।
बाबा जब एक दो साल बाद बिहार में फिर योगासन के शिविर लगाने जाएंगे तो लोग उनसे पूछेंगे कि बाबा आपने बिहार के ब्रांड एंबेस्डर के रुप में क्या किया। बाबा का मुकाबला महेंद्र सिंह धोनी से है जो पड़ोसी राज्य झारखंड के ब्रांड एंबेस्डर हैं। धोनी का तो बचपन ही रांची में गुजरा है। वे लंबे समय से वहीं रह भी रहे हैं। जब वे क्रिकेट नहीं खेलते तब वे रांची में ही रहते हैं। पर बाबा ने अभी तक पटना में कोई घर नहीं बनाया। हम बाबा को यह सलाह देंगे कि वे बिहार में एक घर जरूर बना लें जिससे उनके बिहारी होने के एहसास हो। साथ ही वे घर बिहार के ऐसे गांव में बनाएं जहां सड़क नहीं है। बिहार के 50 फीसदी गांवों में अभी भी बैलगाड़ी से जाना पड़ता है। उन गांवों में बिजली नहीं है। लालटेन जलता रहता है। लालटेन पर भी फिलहाल लालू प्रसाद जी का कब्जा है। बाबा अगर गांव में घर बना रहने जाते भी हैं तो उन्हें यह समस्या आएगी कि वे अपने घर में रोशनी कैसे करें। खैर मोमबत्ती या दीए से काम चलाया जा सकता है। पर बाबा से हम गुजारिश करेंगे कि वे एक बार बिहार के गांवों का दौरा जरूर करें। 
- विद्युत प्रकाश मौर्य 

Friday, 25 April 2008

अगर तुम ..... अपना दिमाग ठीक रख सकते हो...


अगर तुम अपना दिमाग ठीक रख सकते हो 
जबकि तुम्हारे चारों ओर सब बेठीक हो रहा हो
और लोग दोषी तुम्हे इसके लिए ठहरा रहे हों...
अगर तुम अपने उपर विश्वास रख सकते हो
जबकि सब लोग तुम पर शक कर रहे हों..
पर साथ ही उनके संदेह की अवज्ञा तुम नहीं कर रहे हो..
अगर तुम अच्छे दिनों की प्रतीक्षा कर सकते हो
और प्रतीक्षा करते हुए उबते न हो..
या जब सब लोग तुम्हें धोखा दे रहे हों
पर तुम किसी को धोखा नहीं दे रहे हो...
या जब सब लोग तुमसे घृणा कर रहे हों पर
तुम किसी से घृणा नहीं कर रहे हो...साथ ही न तुम्हें भले होने का अभिमान हो न बुद्धिमान होने का....अगर तुम सपने देख सकते हो
पर सपने को अपने उपर हावी न होने दो,
अगर तुम विचार कर सकते हो पर
विचारों में डुबे होने को अपना लक्ष्य न बना बैठो...
अगर तुम विजय और पराजय दोनों का स्वागत कर सकते हो पर दोनों में से कोई तुम्हारा संतुलन नहीं बिगाड़ सकता हो...
अगर तुम अपने शब्दों को सुनना मूर्खों द्वारा तोड़े मरोड़े जाने पर भी बर्दाश्त कर सकते हो और उनके कपट जाल में नहीं फंसते हो...
या उन चीजों को ध्वस्त होते देखते हो जिनको बनाने में तुमने अपना सारा जीवन लगा दिया और अपने थके हाथों से उन्हें फिर से बनाने के लिए उद्यत होते हो..
अगर तुम अपनी सारी उपलब्धियों का अंबार खड़ा कर उसे एक दांव लगाने का खतरा उठा सकते हो, हार होय की जीत...
और सब कुछ गंवा देने पर अपनी हानि के विषय में एक भी शब्द मुंह से न निकालते हुए उसे कण-कण प्राप्त करने के लिए पुनः सनद्ध हो जाते हो...
अगर तुम अपने दिल अपने दिमाग अपने पुट्ठों को फिर भी कर्म नियोजित होने को बाध्य हो सकते हो जबकि वे पूरी तरह थक टूट चुके हों...
जबकि तुम्हारे अंदर कुछ भी साबित न बचा हो...सिवाए तुम्हारे इच्छा बल के जो उनसे कह सके कि तुम्हें पीछे नहीं हटना है....
अगर तुम भीड़ में घूम सको मगर अपने गुणों को भीड़ में न खो जाने दो और सम्राटों के साथ उठो बैठो मगर जन साधारण का संपर्क न छोड़ो...
अगर तुम्हें प्रेम करने वाले मित्र और घृणा करने वाले शत्रु दोनों ही तुम्हे चोट नहीं पहुंचा सकते हों...
अगर तुम सब लोगों को लिहाज कर सको लेकिन एक सीमा के बाहर किसी का भी नहीं, अगर तुम क्षमाहीन काल के एक एक पल का हिसाब दे सको.....
.तो यह सारी पृथ्वी तुम्हारी है...
और हरेक वस्तु तो इस पृथ्वी पर है उस पर तुम्हारा हक है....
वत्स तुम सच्चे अर्थों में इंसान कहे जाओगे....
- रुडयार्ड किपलिंग ( यह कविता किपलिंग ने अंग्रेजी में लिखी है जिसका कवि हरिवंश राय बच्चन ने हिंदी में अनुवाद अपनी आत्मकथा में किया है....कविता मुझे अलग अलग समय में काफी प्रेरणा देती है...जीने का साहस देती है....)

Wednesday, 23 April 2008

ई आईपीएल सर्कस ह......( व्यंग्य)

.... के कहता कि सर्कस खत्म हो गईल बा.....अबो सर्कस देखे के मिल रहल बा...सरकस के जीवन दान दान देवे के काम कइले बा आईपीएल। अब ट्वेंटी ट्वेंटी क्रिकेट मैच देखे के बहाने सरकस देखल जा सकेला...इ सरकस मैदान में हो रहल बा...ए में क्रिकेट सिनेमा अउर राजनीति के सुमेल बा....सरकस के मैदान में शाहरुख खान सिटी बजावत लउक जालन...दुगो मैच जीतला के बाद उ कहेलें बा केहु हमरा से बड़ जादुगर...त उनका के चुनौती बड़ दिल वाली प्रीटि जिटा दे रहल बाड़ी...सरकस के उत्साह बढ़ावे खातिर राजनीति के मैदान से फुर्सत निकाल के कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भी आपन बहिन अउर दामाद के लेके पहुंच जा रहल बाड़न...

आईपीएल सरकस में सबसे बड़ बात बा एके टिकट लेके मैदान में देखल जा सकेला...अगर टिकट नइखी ले सकत ता सोनी के सेटमैक्स चैनल पर भी देख सकत बानी....जब पुरान जमाना में सरकस देखे जात रही जां त ओमे कम कपड़ा पेन्ह के लइकी लोग बड़ा सुनर सुनर करतब देखावत रही जा...आईपीएल सरकस में भी लइकी लोग बड़ा मस्त मस्त अदा देखावत बाड़ी जा...जइसे जइसे चउका अउर छक्का लागेला ओइसे ओइसे मस्त अदा लोग देखा रहल बा...इस सब देख के बुढ़ पुरनिया आदमी के भी जीव जुड़ा जात बा....शाहरुख खान एतना नीक नीक लइकी एक आईपीएल सरकस में लेके आइल बाड़े की का बताई जां..दिल खुश हो जा रहल बा मैच देख के....केहु कहता कि एह से क्रिकेट के साथ अन्याय हो रहल बा...


लेकिन हम कहतानी की एह से सरकस के नया जीवन मिल रहल बा...हमार आईपीएल के आयोजक से गुजारिश बा कि आईपीएल के मैच( सरकस पढ़ी) के दौरान पिंजड़ा में शेर, बाघ, भालू भी लेके आईं जा....एह से लोग के दिल अउर खुश हो जाई मैच देख के....अब सेट मैक्स चैनल के भी देखीं उ आईपीएल मैच ( सरकस समझी) के परचार कइसे कर रहल बिया....टीवी पर बार बार एड आ रहल बा कि देखीं मनोरंजन के बाप.....सचमुच सिनेमा आ सरकस देख के पहिले लोग मनोरंजन करत रहे....पर अब मनोरंजन के साधन बदल गोइल बा....ई आईपीएल सरकस सचमुच मनोरंजन के बापे हउए....हम सेटमैक्स चैनल के भी बहुते शुक्रगुजार बानी...कि उ मनोरंजन के बाप ले के आइल बाड़न...

- विद्युत प्रकाश मौर्य

Monday, 21 April 2008

बढ़ रही है ब्लॉग पर हिंदी

हिंदी का प्रसार कंप्यूटर पर ब्लॉग में खूब हो रहा है। बड़ी संख्या में कंप्यूटर हिंदी का इस्तेमाल करने वाले लोग ब्लाग्स का इस्तेमाल करने लगे हैं। ब्लाग्स के कारण वर्ल्ड वाइड वेब पर हिंदी का प्रसार तेजी से हो रहा है। पूरी दुनिया में हिंदी जानने वाले लोग अब अपनों से संवाद स्थापित करने के लिए हिंदी में बने ब्लाग का सहारा ले रहे हैं।

 अगर आप अपने कंप्यूटर पर विंडो एक्सपी संस्करण का इस्तेमाल कर रहे हैं तो इसमें आप अपनी भाषा हिंदी को एक्टिवेट कर सकते हैं। इसके बाद गूगल सहित कई और साइटों पर जाकर अपने ब्लाग बना सकते हैं। इन ब्लाग पर आप अपनी मन की बात खुल कर कह सकते हैं। हिंदी के साहित्य प्रेमियों ने बड़ी संख्या में कंप्यूटर पर ऐसे ब्लाग का निर्माण कर रखा है जिस पर कविताएं कहानियां और संस्मरण आदि उपलब्ध हैं। इन्हें न सिर्फ आप खोल कर पढ़ सकते हैं बल्कि इनमें अपनी बातें जोड़ भी सकते हैं।
कंप्यूटर पर हिंदी को लोकप्रिय बनाने में ब्लाग की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। 

ब्लाग का मतलब है कि बिना किसी खर्च के आप इंटरनेट पर अपनी साइट बना सकते हैं। ब्लाग शब्द वेब लाग से मिल कर बना है। गूगल डाट की ब्लाग साइट का पता है www.blogger.comआप इस साइट पर जाकर अपने लिए नए ब्लाग का निर्माण कर सकते हैं। या फिर मौजूदा ब्लाग में जाकर कुछ भी खोज सकते हैं। गूगल की ब्लाग साइट आपको हिंदी में अपनी बात लिखने का मौका देती है। आप www.wordpress.com पर भी ब्लाग बना सकते हैं।

आप अपने विचार, लेख, कविता कहानी कुछ भी अपने ब्लाग पर जारी कर सकते हैं। इस तरह के ब्लाग को आप कुछ लोगों के साथ मिलकर शेयर भी कर सकते हैं। इसमें सभी सदस्य अपनी अपनी इंट्री को समय समय पर इंटरनेट पर जारी कर सकते हैं। कुछ लोगों ने तो अपना पारिवारिक ब्लाग बना रखा है। जैसे आप कहीं घूमने गए तो उसके संस्मरण और उससे संबंधित फोटोग्राफ को अपने ब्लाग पर जारी कर दें। अपने मित्रों और रिश्तेदारों को अपना ब्लाग पता बताएं वे जाकर सबकुछ देख सकते हैं। कोई चाहे तो तस्वीरों को डाऊनलोड भी कर सकता है।

कई लेखक अपने विचारों और लेखों को भी अपने ब्लाग पर जारी करने लगे हैं। एक तरह के विचार के लोगों को आपसी चर्चा करने के लिए ब्लाग बहुत अच्छा माध्यम बन गए हैं। आपके विचार चाहे कितने भी लंबे क्यों न हों आप उन्हें ब्लाग पर जारी कर सकते हैं। यहां तक कि इंटरनेट पर हास्य व्यंग्य और अश्लील विचारों वाले ब्लाग भी लोगों ने बनाने आरंभ कर दिए हैं। पर किसी भी तरह के विचार रखने वाले छोटे समूहों के लिए ब्लाग आशा की किरण हैं। आपका लेख कोई अखबार नहीं छापता हो, कोई संपादक आपकी चिट्ठी नहीं छापता है तो आप उसे ब्लाग पर जो जारी कर ही सकते हैं।
-    विद्युत प्रकाश मौर्य


Saturday, 19 April 2008

भोजपुरी के महाकवि - चंद्रशेखर मिश्र और कुंअर सिंह

भोजपुरी समाज के महान योद्धा वीर कुअंर सिंह पर उन्होंने महाकाव्य लिखा और वह भी भोजपुरी में....जी हां हम बात कर रहे हैं बनारस के जाने माने कवि चंद्रशेखर मिश्र की....17 अप्रैल 2008 को वे हमारे बीच से चले गए...

वीर कुँअर सिंह पर महाकाव्य - मैंने पहली बार चंद्रशेखर मिश्र का नाम हाजीपुर के जाने माने पत्रकार तेज प्रताप सिंह चौहान से सुना था...चौहान जी हर 23 अप्रैल को अपने गांव बलवा कुआरी में वीर कुंअर सिंह जयंती का आयोजन का आयोजन करते हैं...इसके लिए उन्हें वीर कुँअर सिंह महाकाव्य की प्रति चाहिए थे....मैं अपने एक दोस्त की मदद से बनारस के अस्सी इलाके में चंद्रशेखर मिश्र के घर गया...उनके छोटे बेटे धर्म प्रकाश मिश्र से मिला और वीर कुँअर सिंह महाकाव्य की प्रति प्राप्त की.....चौहान जी उस प्रति को प्राप्त कर बहुत खुश हुए....चंद्रशेखर मिश्र ने वीर कुँअर सिंह महाकाव्य भोजपुरी में लिखा है....इससे पहले सुभद्रा कुमारी चौहान की वीर कुँअर सिंह पर कविता प्रसिद्ध है....पर वीर कुँअर सिंह जयंती पर चंद्रशेखर मिश्र के महाकाव्य का सस्वर पाठ की बात ही निराली थी....चौहान जी की एक दिल में दबी तमन्ना थी...वे चंद्रशेखर मिश्र जी को बुला कर मंच से सम्मानित करना चाहते थे....अब वे ऐसा नहीं कर पाएंगे......क्योंकि भोजपुरी के वीर रस के कवि चंद्रशेखर मिश्र अब हमारे बीच नहीं हैं....अस्सी साल की उम्र में कई महीने अस्वस्थ रहने के बाद बनारस की धरती पर ही उन्होंने अंतिम सांस ली....उसी इलाके में जहां स्वर्ग प्राप्ति की चाह में लोग आकर महीनों रहते हैं....उन्हें निश्चय ही स्वर्ग में अच्छी जगह नसीब हुई होगी पर हमारे बीच से भोजपुरी और हिंदी का एक प्रकांड विद्वान जा चुका है....चंद्रशेखर मिश्र जी की छाया में साहित्य अठखेलियां करता था...उनके बेटों को विरासत में साहित्य मिला है.....


बनारस की यादें - बनारस में रहते हुए कई बार मुझे मंच पर चंद्रशेखऱ मिश्र जी की कविताएं सुनने का मौका मिला....काशी हिंदू विश्वविद्यालय के मालवीय भवन की एक कवि गोष्टी में मंच पर चंद्रशेखर जी बैठे थे और उनके बेटे श्री प्रकाश मिश्र अपने पिता पर ही व्यंग्य कविताएं पढ़ रहे थे....यह व्यंग्य चंद्रशेखऱ मिश्र जी के श्वेत धवल केश राशि पर था.....सफेद बालों के बीच चंद्रशेखऱ जी के चेहरे से तेज चमकता था...हास्य रस के कवि सम्मेलन में बेटा बाप पर व्यंग्य करता था उस समय का संवाद और माहौल देखने लाय़क होता था.....इस व्यंग्य में कहीं सम्मान का क्षरण नहीं होता था......हम अब उन पलों को भी अनुभूत नहीं कर पाएंगे.....


उन्होंने भरसक न सिर्फ भोजपुरी को आत्मसात किया बल्कि उसे स्थापित करने में भी एड़ी चोटी एक कर दी। पं. मिश्र ने भोजपुरी में अनेक खंडकाव्य व महाकाव्यों की रचना की। वह कई बार राज्य सरकार के पुरस्कारों से नवाजे गए।


सृजन संसार - भोजपुरी साहित्याकाश का.. प्रमुख काव्य संग्रह में द्रौपदी, भीषम बाबा, सीता, लोरिक चंद्र, गाते रूपक, देश के सच्चे सपूत, पहला सिपाही, आल्हा उदल, जागृत भारत, धीर पुंडरिक, रौशन आरा आदि हैं। पं. चंद्रशेखर मिश्र का जन्म मीरजापुर जिले के मिश्रधाप गांव में सन् 1930 में हुआ था। बचपन में ही वह काशी आए और स्थायी तौर पर यहीं बस गए। अंतिम समय में भी वह साहित्य सृजन में लगे रहे। काव्य यात्रा, अंतिम छंद व लव-कुश खंड काव्य लिखने में व्यस्त थे।

( चंद्रशेखर मिश्र - जन्म - 1930,  महाप्रयाण - 17 अप्रैल 2008 , वाराणसी ) 
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com

Thursday, 17 April 2008

प्रकाशक चाहे तो मिल सकती है सस्ते में किताबें


पाठकों को हिंदी में अच्छी किताबें सस्ते दाम पर उपलब्ध हो यह काफी हद तक प्रकाशक पर ही निर्भर करता है।

अगर आजकल प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पुस्तकों पर नजर डालें तो वे आमतौर लाइब्रेरी एडीशन ही छपती हैं। वे महज 500 से एक हजार प्रतियां छपती हैं और लाइब्रेरी में शोभा बढ़ाती हैं..दाम अधिक होने के कारण उनका काउंटर सेल बहुत कम होता है....पर हर भाषा की तरह हिंदी में भी तमाम ऐसे दीवाने प्रकाशक हैं जो अपने चहेते लेखक की किताबें सस्ते दाम में छापते हैं। सस्ता साहित्य मंडल का नाम ही इस भावन का परिचायक है।

ऐसा ही एक प्रकाशन है-वाराणसी स्थित हिंदी प्रचारक संस्थान।( पता है- प्रचारक ग्रंथावाली परियोजना, हिंदी प्रचारक संस्थान, पो.बा. 1106 पिशाच मोचन, वाराणसी- 221010)हिंदी प्रचारक संस्थान ने भारतेंन्दु समग्र, देवकीनन्दन खत्री समग्र, शरतचंद्र समग्र, वृंदावन लाल वर्मा समग्र, प्रताप चंद्र समग्र, शेक्सपीयर समग्र जैसे कई समग्र प्रकाशित किए हैं। इन सभी समग्र का संपादन भी जाने माने लोगों ने किया है....सभी समग्र सजिल्द हैं। इनमें 500 से 1000 तक पेज हैं...इनकी कीमत इनका अन्दाजा लगा सकते हैं? कीमतें मात्र पचास से सौ रुपये के बीच हैं.... एक सुधी पाठक का कमेंट है कि इतने में आप अकेले एक दिन में शायद चाय पी जाते होंगे या पान खा के थूक देते होंगे।
अगर इन जाने माने लेखकों का समग्र अगर आप अलग अलग खरीदना चाहें तो दो हजार रुपये तक खर्च करने पड़ सकते हैं....पर हिंदी प्रचारक उन्हें महज 200 रुपये में उपलब्ध करा रहा है....
हिंदी प्रचारक संस्थान के दूसरी पीढ़ी के प्रकाशक रहे कृष्ण चंद्र बेरी का सपना था पाठकों को कम कीमत में समग्र उपलब्ध कराने का....जब उन्होंने इस योजना पर काम शुरू किया उनके परिवार के अन्य सदस्यों को इसकी सफलता पर आशंका हुई...लेकिन बेरी जी ने कहा कि सस्ते में समग्र प्रकाशित कर उन्हें कोई घाटा नहीं हुआ है....यह बेरी जी की इच्छा शक्ति का ही कमाल था कि अनमोल ग्रंथ सस्ते में प्रकाशकों तक मिल सके....अब कृष्ण चंद्र बेरी जी हमारे बीच नहीं हैं...उनके बेटे विजय प्रकाश बेरी इस योजना को आगे बढ़ा रहे हैं.....


आप समग्र सूची पत्र के लिए हिंदी प्रचारक संस्थान को लिख सकते हैं.....पता है- 

प्रचारक ग्रंथावाली परियोजना, हिंदी प्रचारक संस्थान, पो.बा. 1106 पिशाच मोचन, वाराणसी- 221010 ( उप्र)
- विद्युत प्रकाश मौर्य

Tuesday, 15 April 2008

शायर नजीर बनारसी की याद


काशी हिंदू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू में मुझे उस दौर में पढ़ने का मौका मिला जब बीएचयू की प्लैटिनम जुबली मनाई जा रही थी.....इसी मौके पर बीएचयू के एमपी थियेटर ग्राउंड में 1992 में एक कवि और शायरों का सम्मेलन आयोजित हुआ वहां नजीर बनारसी की आवाज में एक गजल सुनने को मिली ....उसकी कुछ पंक्तियां बार बार याद आती हैं..........
तेरी मौजूदगी में नजारा कौन देखेगा.....
मेले में सब तुझको देखेंगे मेला कौन देखेगा

जरा रुकिए अभी क्यों जाते हैं शादी की महफिल से
हंसी रात आपने देखी सबेरा कौन देखेगा....

आती है सफेदी बालों में तो आने दे नजीर
जवानी तुमने देखी बुढ़ापा कौन देखेगा.....
अब नजीर बनारसी भी नहीं हैं... 23 मार्च 1996 को उनके निधन की खबर आई तो दिल उदास हो गया। उस कवि सम्मेलन का मंच संचालन कर रहे थे हिंदी के प्रख्यात कवि डा. शिवमंगल सिंह सुमन....डा. शिवमंगल सिंह सुमन की एक कविता बचपन में पढ़ी थी....
हम पंक्षी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएंगे
कनक तिलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाएंगे  
कविता की आखिरी पंक्ति बड़ी मार्मिक थी....
नीड़ न दो चाहे
टहनी का आश्रय
छिन्न कर डालो
पर पंख दिए हैं तो
आकुल उड़ान में बिघ्न न डालो 

डा. शिवमंगल सिंह सुमन ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ा भी और पढ़ाई भी की.....प्लैटिनम जुबली समारोह के कवि सम्मेलन का मंच संचालन करते हुए डा. सुमन ने एक कविता सुनाई.....
मौन भले हों अधर तुम्हारे
प्यासा विहग चहक जाएगा
तुम जूड़े मे गजरा मत बांधों
मेरा गीत भटक जाएगा.....


- विद्युत प्रकाश मौर्य

Sunday, 13 April 2008

चल सखी मेट्रो में....( व्यंग्य)

जब से दिल्ली में मेट्रो रेलगाड़ी चल गोइल बिया दिल्ली में रहे वालन के जिनगी में बहार आ गोइल बा...कालेज जाइ ओली बबुनी के रोमांस करे के एगो नया जगह मिल गोइल बा...अब जब बबुनी के मोबाइल फोन टुनटुना ता त उ गते से कहेली...अभी फोन मत करे मेट्रो में भेंट होई...
रउया जैसे हीं मेट्रो रेलगाड़ी में घुसब सीढ़ी प बइठल कई गो लोग मिल जाइहन जे कान में मोबाइल फोन लगवले गते-गते अपना संघतियां संघे संवाद स्थापित करत होहन....रउआ आपन काम धाम निपटा के जब लौटत त देखब की दू घंटा बाद भी उ लइकी ओइजी बइठ के बतिया रहल बिया...अब का कइल जाए बहरी के धूप से इइजा निजात बा....जब दिल्ली यूनिवर्सिटी से मेट्रो केंद्रीय सचिवालय खातिर चलेले त ओमे न जाने केतना सौ दिल समा जाला...सबके एहिजा खुल के बतिआवे के मौका मिलेला...काल्ह कहां मिलल जाई इ सब कुछ भी आज तय हो जाला....पहले कतना दिकत हो रहे...याद करीं बस के धाका....आ उ लटकल भीड़....गरमी में त आतनी पसीना आवत रहे कि आधा घंटा में ही कपड़ा से टप टप पानी चूए लागत रहे....शीला जी दिल्ली के सब कोना में मेट्रो रेल चला के बडा उपकार कइले बाड़ी....अब केहु से मिले के टाइम तय करेके बा त बस इहे कह देता लोग कि फलाना मेट्रो स्टेशन के सीढ़ी पर मिल जइह ओहिजा से साथ हो लेल जाई....
एक दिन मेट्रो में एगो नउकी भौजाई चढ़ली....उनका मेट्रो के माहौल एतना निमन लागल एहिए भइया के साथ लिपटाए लगली....बार बार भइया से चिपकल जात रही...भला बस में चले में इस सुख कहां बा....क गो प्रेमी-प्रेमिका त मेट्रो के पहिला स्टेशन पर पर रेलगाड़ी बइठ जात बाड़न फिर लौट के दू घंटा बाद एहिजे आ जात बाडन...भला एकरा से सेफ जगह कहां बा...एगो गीत बा...नू....दो दिल मिल रहे हैं मगर चुपके चुपके....
लेकिन मेट्रो मे त .....दो दिल मिल रहे हैं जरा खुल के.......

आती है क्या खंडाला का भोजपुरी अनुवाद

ए चलबू का खंडाला...
का करब हम जाके खंडाला
घूमल जाई फिरल जाइ घूपचुप खाइल जाई अउर का....

-विद्युत प्रकाश
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Friday, 11 April 2008

दलित पीएम पर कांग्रेस का दांव


नए पोर्टल एनडीटीवी खबर डाट काम पर एक खबर आई है कि कांग्रेस अगले चुनाव में किसी दलित को प्रधानमंत्री बना सकती है...बकौल गृह राज्यमंत्री श्री प्रकाश जायसवाल मायावती के पीएम रुप में प्रोजेक्ट किए जाने को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया है.....
सरकार भले ही यह राजनीतिक दांव खेल रही होस पर भारतीय राजनीति के लिए यह एक शुभ संकेत हो सकता है...क्योंकि देश मे दलित राष्ट्रपति के बाद अब दलित प्रधानमंत्री की बारी है...सवाल यह नहीं उठता कि वह दलित नेता प्रधानमंत्री के रुप में कितना सफल होगा...

दलित पीएम बनाए जाने से दलित समाज का मनोबल बढ़ेगा...जो लोग भी हिंदुस्तान के मूल निवासी ( आदि वासी ) हैं वे सभी दलित ही हैं....हम अभी तक देश में किसी पिछड़े को पीएम नहीं बना सकें....जगजीवन राम दलित होने के कारण पीएम बनते बनते रह गए...

अगर सोनिया जी इस तरह की बात सोच रही हैं तो हमें उनका साधुवाद देना चाहिए...पर हमें एक ऐसे दलित नेता की खोज करनी होगी जो सही मायने में दलित समाज का नुमाइंदा हो...वह सरमाएदार न हो....हमें मीरा कुमार जैसा पीएम नहीं चाहिए....कांग्रेस को चाहिए कि अभी से एक ऐसे नेता की खोज करे और उसे अगले पीएम के रूप में प्रोजेक्ट करके चुनाव की तैयारी शुरू कर दे....देश की राजनीति में इसके सकारात्मक परिणाम दिखाई देंगे...हमने एक इकोनोमिस्ट पीएम देखा है...जो अभी महंगाई और शेयर बाजार की दरकती दीवार से लड़ रहा है....ऐसे में अब किसी दलित को पीएम की कुरसी पर देखने में कोई बुराई नहीं है....

-- vidyutp@gmail.com

Wednesday, 9 April 2008

भोजपुरी पत्रकारिता का दौर

मेरे कई साथियों ने यह जानना चाहा है कि 12 साल तक हिंदी पत्रकारिता करने के बाद भोजपुरी में क्यों..क्या मैं मेनस्ट्रीम से अलग हो रहा हूं..मैं उन दोस्तों को बता दूं कि कुछ भी मेन स्ट्रीम से अलग नहीं है....पत्रकारिता में हमेशा नए प्रयोग होते रहते हैं.....कुछ दशक पहले किसी ने कल्पना नहीं की होगी कि डाट काम पत्रकारिता एक विधा हो सकती है। पर आज वेब पत्रकारिता फलफूल रही है। और कुछ सालों बाद यह टीवी और अखबार के समानांतर खड़ी हो जाएगी..आज लोग अपडेट खबरों के लिए बीबीसी हिंदी, जोस 18, जागरण डाट काम देखते हैं। हाल में एनडीटीवी खबर डाट काम भी हिंदी मे नया पोर्टल शुरू हुआ है....जब वेब दुनिया ने इस क्षेत्र में पहल की थी तब लोगों की कई तरह की शंकाएं थी...वेब दुनिया को कई शहरों के आनलाइन पोर्टल शुरू करने में सफलता नहीं मिल पाई थी.. पर वेब दुनिया का सपना आज फलफूल रहा है....

मैंने अपनी पत्रकारिता जीवन के कई साल पंजाब में गुजारे...पांच साल पंजाब में रहने के बाद हमने देखा वहां पंजाबी चैनल को फलते फूलते हुए...पूरी दुनिया में दो करोड़ पंजाबी बोलने वाले भाई हैं...पर पांच पंजाबी चैनलों ने सफलता पूर्वक जगह बना ली...पर 19 करोड़ भोजपुरी बोलने वालों का अपना कोई चैनल नहीं हैं...अगर आप किसी ऐसे शहर मे रहते हैं जहां भोजपुरी बोलने वाले गिने चुने लोग हैं तो आप अपना मनोरंजन कैसे करेंगे....


कई सालों में कई लोगों ने सपना देखा योजनाएं बनाई ...पर अब जाकर इन सपनों को पंख लगना शुरू हुआ है.. अब कई योजनाएं जमीनी हकीकत बनने वाली हैं....ऐसे भोजपुरी चैनल का सपना साकार होने वाला है...जहां खबरें भी होंगी, गाने भी होंगे...फिल्में भी होंगी...हंसी ठिठोली भी होगी....भोजपुरी माटी की सोंधी-सोंधी खुशबू होगी...यह एक नए युग के शुरूआत जैसा ही तो है...इस शुरूआत में मैं भी सहभागी बन रहा हूं तो यह मेरा सौभाग्य है...कि मुझे अनपी मां बोली की सेवा करने का एक मौका मिला है....
अगर कोई पंजाबी का पत्रकार हिंदी या अंग्रेजी में भी लिखता है तो उसकी योग्यता दुगुनी हो जाती है क्योंकि वह बाई लिंगुवल जर्नलिस्ट माना जाता है...ठीक इसी तरह मैं या मेरे साथी अगर हिंदी के साथ भोजपुरी भी उतनी अच्छी लिखते पढ़ते हैं तो इससे उनकी प्रतिभा में कुछ एडीशन ही होता है न कि कुछ कमी आती है....


मैंने अपने कैरियर मे चुनावी सर्वेक्षण का काम भी किया...एक्जिट पोल और ओपिनियन पोल भी कराए....लिखते हुए हिंदी केबल टीवी, मीडिया और बाजार के विभिन्न विषयों पर कलम चलाई है...तो ये डाइवर्सिफिकेशन का दौर है....कई बड़े पत्रकार भोजपुरी की ओर रुख कर रहे हैं...यह भोजपुरी के लिए बड़े अच्छे संकेत हैं... हिंदी पत्रकारिता में बड़ी संख्या में भोजपुरी पृष्ठभूमि के लोग हैं....वे भी इसे सकारात्मक दृष्टि से देख रहे हैं....तो आइए कुछ नई चीजों के स्वागत के लिए तैयार हो जाएं..... 


( लंबी तैयारी के बाद महुआ चैनल 11 अगस्त 2008 से प्रसारित होना आरंभ हुआ। ) 

-विद्युत प्रकाश मौर्य,
vidyutp@gmail.com