Monday, 17 March 2014

समय का सही इस्तेमाल करें

हमारे समय का बहुत बड़ा हिस्सा यात्रा करते हुए व्यतीत होता है तो काफी घंटे किसी के इंतजार में। कई बार हम इंतजार करते हुए बोर होते रहते हैं। पर हम चाहें तो बेहतर टाइम मैनेजमेंट करके इंतजार की इन घड़ियों का भी सदुपयोग कर सकते हैं। आप यह याद रखें की हर किसी के जीवन में सिर्फ 24 घंटे ही रोज के मिलते हैं। यह आपके उपर निर्भर करता है कि आप इन 24 घंटों का बेहतर इस्तेमाल कैसे कर पाते हैं। कई लोग अपने वक्त का अक्लमंदी से इस्तेमाल कर इसी 24 घंटे में कई काम निपटा लेते हैं तो कई लोग बेकार बैठकर वक्त गुजार देते हैं।

अच्छी किताबें पढ़ें- आप कई बार सिनेमा के टिकट के लिए या रेलवे आरक्षण के लिए लाइन में लगे होते हैं। इसमें कई बार दो से तीन घंटे भी परबाद हो जाते हैं। इस दौरान आप कोई किताब पढ़ सकते हैं। अच्छा होगा कि जब आप घर से निकलें तो कोई न कोई किताब अपने साथ रखें। अगर आपके पास कोई किताब नहीं हो तो जहां लाइन में लगना पड़े वहां से कोई अखबार या मैग्जीन खरीद लें। इस दौरान आप खबरें और अखबार में छपे लेख पढ़ सकते हैं। इससे आपका ज्ञान भी बढ़ेगा और आपके समय का उपयोग हो सकता है।
कई बार ऐसा होता है कि आप किसी दफ्तर में या किसी घर जब किसी से मिलने जाते हैं तो आपको इंतजार करना पड़ता है। कई बार यह इंतजार बड़ा बोरिंग होता है। अगर आप ऐसे समय में कुछ पढ़ सकते हैं तो आपके समय का सदुपयोग हो सकता है। अगर आप किसी महानगर में रहते हों तो आजकर एफएम रेडियो पर गाने सुनकर अपना टाइमपास कर सकते हैं। यह उन लोगों के लिए लागू हो सकता है जो गाने सुनने के शौकीन हैं। पर जो लोग गाने नहीं सुनते उनके लिए पढ़ना ही श्रेयस्कर है। वैसे आजकल एफएम रेडियो पर भी कई रोजक और ज्ञानवर्धक कार्यक्रम आते हैं जिन्हें सुनना आपको रुचिकल लग सकता है।
लाइब्रेरी जाने की आदत डालें - कई लोगों के पास सुबह शाम या दिन में समय होता है। ऐसे लोगों को पुस्तकालय जाने की आदत डालनी चाहिए। आमतौर पर हर शहर में पुस्तकालय होता ही है। अगर आप किसी नए शहर में हों तो वहां भी किसी पुस्तकालय या वाचनालय का पता कर सकते हैं। आजकल यह देखने में आ रहा है कि पुस्तकालयों में भीड़ घट रही है। कई पुस्तकालयों में तो सिर्फ बुर्जुग लोग ही दिखाई देते हैं। अगर आपके घर में बच्चे हैं तो उनके अंदर भी पुस्तकालय जाने की आदत डलवानी चाहिए।
ध्यान या योगासन करें- खाली समय में योगासन या ध्यान भी किया जा सकता है। ये शरीर और सोच दोनों के लिए लाभकारी हो सकता है। यहां तक कि आप रेलवे स्टेशन पार्क आदि में भी खाली समय में योगासन या ध्यान कर सकते हैं। कई बार किसी ट्रेन के इंतजार में काफी समय बर्बाद करना पड़ता है। ऐसे समय का पूरा सदुपयोग करना चाहिए।
आजकल बच्चों में वीडियो गेम जैसी चीजों का शौक बढ़ा है। बच्चों को ऐसी चीजों से बचाना चाहिए। अगर आप इंटरनेट उपयोग करने के आदी हैं, तो किसी भी शहर में साइबर कैफे पता करके वहां नेट यूज कर सकते हैं। इसके लिए रिलायंस वेब वर्ल्ड या सत्यम के साइब कैफे के चेन के सदस्य बन सकते हैं। इनकी एक जगह की सदस्यता पूरे देश में मान्य होती है। इस तरह के कुछ टिप्स को आजमा कर आप अपने बरबाद होने वाले समय को प्रोडक्टिव बना सकते हैं।

 -माधवी रंजना madhavi.ranjana@gmail.com


Sunday, 16 March 2014

पानी के लिए होगा तीसरा विश्व युद्ध

क्या तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए लड़ा जाएगा। इसमें काफी हद तक सच्चाई भी हो सकती है। क्योंकि कई देशों, कई राज्यों या फिर कई जिलों में पानी की विकराला समस्या है। पानी की लड़ाई पीने के पानी को लेकर भी है और सिंचाई के लिए भी। शहरों को उनकी जरूरत के हिसाब से पीने का पानी नहीं मिल पा रहा है तो गांवों को सिंचाई के लिए प्रयाप्त पानी नहीं मिल पा रहा है। भारत और बंग्लादेश के बीच गंगा (पद्मा) नदी के जल को लेकर हमेशा विवाद रहता है। बंग्लादेश का आरोप होता है कि भारत फरक्का बांध पर गंगा का पानी रोक लेता है जिससे की बंग्लादेश को पर्याप्त मात्रा में नदी जल नहीं मिल पाता है।


वहीं भारत में पंजाब और राजस्थान और हरियाणा के बीच सतलुज के पानी लेकर लड़ाई भी बहुत पुरानी है। सतलुज यमुना लिंक नहर के विवाद को अब तक सुलझाया नहीं जा सका है। पंजाब में चाहे किसी भी पार्टी की सरकार आए वह सतलुज नदी का एक बूंद पानी हरियाणा को नहीं देना चाहती। इसलिए उसने अनपे हिस्से के सतलुज यमुना लिंक नहर का अभी तक निर्माण भी नहीं कराया है। इस मामले में अदालतों को फैसले और भारत सरकार के हस्तक्षेप के बाद भी अभी तक कोई हल नहीं निकाला जा सका है। भारक के राज्यों में जहां नहरी पानी से सिंचाई होता है वहां दो गांवों नहरी पानी को लेकर भी विवाद हो जाता है।

पर पानी की ताजा लड़ाई दिल्ली को लेकर है। दिल्ली की बढ़ती आबादी को आखिऱ पीने के पानी की पूरी मात्रा कैसे प्राप्त हो। दिल्ली के पास अपनी भूजल या नदी जल इतनी मात्रा में नहीं है जिससे की एक करोड़ से अधिक दिल्ली वासियों की प्यास बुझाई जा सके। लिहाजा दिल्ली को पानी के लिए हरियाणा और उत्तर प्रदेश पर निर्भऱ रहना पड़ता है। ये दोनों राज्य दिल्ली को गाहेबगाहे पानी के लिए धमकाते रहते हैं। काफी चिरौरी के बाद उत्तर प्रदेश दिल्ली के सोनिया विहार जल संयत्र को पानी देने के लिए राजी हुआ है। अगर दिल्ली को उसके पड़ोसी राज्य पेयजल नहीं दें तो दिल्ली के लोगों को प्यास से तड़प कर दम तोड़ना पड़ सकता है। दिल्ली की आबादी के कुछ फीसदी लोग बोतलबंद पानी पीकर प्यास बुझा सकते हैं। पर क्या सारे लोग ऐसा कर सकते हैं।
दिल्ली के समीप शहर गुड़गांव जिसे भारत के कैलफोर्निया के रुप में विकसित होते हुए देखा जा रहा है। वहां भी पीने के पानी की जबरदस्त किल्लत है। मध्य प्रदेश के कई शहर भी पीने के पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। सबस बड़े औद्योगिक शहर इंदौर के कई इलाके के लोगों को पीने के लिए बोतलबंद पानी पर ही आश्रित रहना पड़ता है। सपनों की नगरी मुंबई भी स्वच्छ पेयजल के संकट से जूझ रही है। वहां के कई इलाके ऐसे हैं जहां पानी के लिए नियमित टैंकर की सप्लाई करनी पड़ती है। वहां लोगों को पीने के पानी के लिए बाहर से आने वाले टैंकर या फिर बोतलबंद पानी पर आश्रित रहना पड़ता है।
कमोबेश हिंदुस्तान के सभी बड़े महानगरों में स्वच्छ पेयजल का संकट है। एक आदमी के दिन में कमसे कम औसतन 25 लीटर पानी चाहिए। पर कई शहरों में तो लोगों के हिस्से में पांच लीटर पानी भी नहीं आता है। महानगरों के मध्यमवर्गीय और झुग्गी झोपड़ी वाले इलाकों में हालात बहुत खराब हैं। लोगों को कपड़े धोने व खाना बनाने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिल पाता है। शहरों में आप पानी के नल के आगे लंबी लाइन देख सकते हैं जहां कई बार पानी के लिए लड़ाई भी हो जाती है। कई बार तो मारपीट और खूनखराबे की भी नौबत आ जाती है।

रहिमन पानी रखिए...
कवि रहीम ने लिखा है.. रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सुन..। अभी हाल में एक टीवी चैनल पर रिपोटर् आ रही थी झांसी के एक इलाके कुछ दबंग लोक सार्वजनिक हैंडपंप से पानी निकालने के बाद हैंडपंप में ताला लगा देते हैं। यानी हैंडपंप भले ही सार्वजनिक हो पर उससे पानी हर कोई नहीं भर सकता है। देश में ऐसे कई और इलाके हैं जहां इसी तरह पानी पर शोहदों का पहरा लगा हुआ है।

अभी हाल में ही बिहार के गया जिले के एक गांव में एक बुढ़िया प्यास से तड़ कर मर गई। वह कई घरों के बाहर जाकर पानी-पानी की आवाज लगाती रही। पर उसकी किसी ने नहीं सुनी। अंत में उसने से प्यास से तड़प कर दम तोड़ दिया। दिल्ली से ज्यादा दूर नहीं है मध्य प्रदेश का चंबल क्षेत्र। महज दिल्ली से पांच घंटे या 300 किलोमीटर की दूरी पर कई ऐसे गांव जहां गांवों में लोगों के लिए सार्वजनिक हैंडपंप भी मयस्सर नहीं है। गांव के लोग निकट की नदी से जाकर पानी लाते हैं। किसी गांव के आसपास छोटे-छोटे तालाब हैं, उसी का पानी पीकर काम चलाते हैं। कई गांवों में एक ही तालाब के पानी में जानवर भी नहाते हैं और आदमी भी। उसी तालाबा का पानी लोग पीते भी हैं और उसी पानी से भोजन भी बनाते हैं। डाक्टर कहते हैं कि मनुष्य की 40 फीसदी बीमारियां तो पानी के कारण होती हैं। पर यहां के लोगों ने अपनी सेहत के लिए खुद को भगवान भरोसे ही छोड़ दिया है।

अभी देश की आधी से अधिक आबादी को सेफ ड्रिंकिंग वाटर के बारे में कुछ नहीं पता। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू एच ओ) के मानक कहते हैं कि पानी की सप्लाई का पहले वाटर ट्रिटमेंट होना चाहिए। उसमें एक निश्चित मात्रा में क्लोरीन मिलाई जानी चाहिए। पर महानगरों में बहुत कम जगह ही पानी की सप्लाई में क्लोरीन मिलाई जाती है। शहरों के बहुत बड़े इलाके में लोग अभी भी हैंडपंप का गंदा पानी पीने के मजबूर हैं। शहरों के अनियंत्रित विकास होने के कारण कई शहरों में अवैध कालोनियां विकसित होती हैं जहां पर पानी की नियमित सप्लाई नहीं होती। ऐसे में लोग अशुद्ध पानी पीकर ही काम चलाते हैं। भारत में बहुत कम ऐसे गांव हैं जहां पर जन स्वास्थय विभाग की ओर से वाटर सप्लाई की व्यवस्था है। ऐसे में गांव के लोग तालाब, कुएं या हैंडपंप का पानी ही पीकर काम चलाते हैं।

उफ ये गरमी और पानी -
हो सकता है आपके पास फ्रीज भी हो और वाटर प्यूरीफायर भी जिससे आपको हमेशा शीतल जल नसीब हो जाता हो। पर गांवों में गर्मी के दिनों में वे शीतल जल के लिए मिट्टी के घड़े या सुराही का इस्तेमाल कर लेते हैं। मध्य प्रदेश व राजस्था के गर्म इलाको में गर्मी के दिनों में कपड़े बने खास किस्म के बैग का इस्तेमाल करते हैं। इसमें पानी भर कर लोग सफर में भी साथ ले जाते हैं। यहां तक की शहर में मध्यमवर्गीय परिवार के लोग सुराही का खूब इस्तेमाल करते हैं। आजकल सुराही में भी कुछ नए प्रयोग हो रहे हैं। इसमें नल भी लगा दिया गया है। पर भारत में जहां प्यासे को पानी पिलाना पुण्य का काम समझा जाता रहा है, अब बढ़ती आबादी की त्रास को बुझाने के लिए पानी की कमी होती जा रही है। इसलिए कोई शक नहीं की आने वाले दिनों में पानी को लेकर होने वाली लड़ाइयां बढ़ जाएं। ऐसे में किसी की भविष्यवाणी सही भी हो सकती है कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी को लेकर हो सकता है।
-    विद्युत प्रकाश मौर्य

Thursday, 13 March 2014

लो फिर आ गया वसंत ( व्यंग्य)

वसंत ऋतु की मीठी धूप को महसूस कर मानस में हजार बातें हिलोरें मारने लगती हैं। सरदी ने भी छूट दे रखी है अब थोड़ा सा रुमानी हो जाईए। कैलेंडर हिंदी का हो या अंग्रेजी का फरवरी का महीना और वसंत ऋतु एक साथ ही आते हैं। हर साल। इस महीने में सरसों भी खिलती है और इसी महीने में आंग्ल प्रेम दिवस वेलेंटाइन डे भी आता है। ईधर कुछ सालों से अपने देश में भी खुल कर इजहार करने का चलन बढ़ा है। तमन्ना जवान होती है और दिल में कुछ कुछ होने लगता है। वसंत प्यार करने वालों का महीना है। 


आईए थोड़ा सा रुमानी हो जाएं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपकी उम्र क्या है। वसंत और फागुन का महीना साथ साथ ही आते हैं। और फागुन में बुढ़वा भी देवर लगता है। गांव भर की भौजाईयां हशरत भरी निगाहों से अपनी देवरों की ओर देखती हैं। कोई आए और उन्हें छेड़ जाए। वसंत में लाज भरी आंखों में एक खास किस्म की चमक आ जाती है। चाहे गांव की गोरी हो शहर की छोरी सबका मन मयूर नाच उठता है। थोड़ी देर के लिए भूल जाइए, जीवन का संघर्ष और प्रतिस्पर्धा की वो लड़ाईएं। आईए नीले गगन के तले हरी-हरी घास पर फुर्सत के कुछ पल गुजार लें। कवियों ने वसंत पर हजारों गीत लिखे हैं। वसंत का फूल पीला होता है तो दिल गुलाबी-गुलाबी और मौसम हल्का सा शराबी-शराबी। थोडे़ से मतवाले हम थोड़े मतवाले तुम.. कि आओ इन पलों को हसीन बना दें। ऐसे पल जो कभी न भुलाए जा सकें।
वसंत ऐसा मौसम है जिस पर उपभोक्तावाद की नजर नहीं है। चाहे आपके दिन मुफलीशी के हों, जेब में कड़की हो पर आपको कोई रुमानी होने से नहीं रोक सका। अगर साल भर आप दिल की बात नहीं कह पाए तो इस वसंत में कह ही डालें। एक मशहूर कवि ने अपनी कविता में लिखा है- जो कुछ कहना है अभी कह डालिए हो सकता है बाद में कुछ कहने का अर्थ न रह जाए। अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप दिल का हाल बयां करना चाहते हैं या फिर कुतुबमीनार पर खड़े होकर झंडी हिलाते रहना चाहते हैं। कई प्यार करने वाले (एक तरफा) दिल की बातों सालों तक नहीं कह पाते। कई तो दिल में रखे रखे ही इस दुनिया से कूच कर जाते हैं। वैसे कई बार दिल की बात कह पाना मुश्किल जरूर होता है। पर आप इस वसंत में साहस जरूर किजिए। कहतें हैं वेलेंटाइन डे प्रोपोज करने के लिए सबसे अच्छा दिन होता है। इस मौसम में लड़कियां जिससे प्यार नहीं करतीं उसके इजहार से भी नाराज नहीं होतीं। तो देर किस बात है। वैसे आपके साथ इस प्रक्रिया में कोई दुर्घटना हो जाए ( जूते पड़े...या..) तो इन पंक्तियों के लेखक को तलवार लेकर मत ढूंढना। इजहारे इश्क है खोता है क्या...आगे आगे देखिए होता है क्या.. . वसंत का आलम उनके लिए दर्द भरा है जो तन्हाई में हैं। पर कोई बात नहीं..आप दिल को खुश रखने को अच्छे दिनों को याद करें।
-विद्युत प्रकाश


​सवालों से क्यों बचते हैं मोदी

अक्सर देखा गया है कि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी किसी भी पत्रकार के सीधे सवालों का सामना करने से बचते हैं। इसलिए वे पत्रकारों को इंटरव्य देना नहीं चाहते। भले ही भाषण में कुछ भी बोलते रहें। क्रास क्वेश्चनिंग से बचते हैं। खास तौर पर ऐसे इंटरव्यू जहां लाइव सवाल आने वाले होते हैं वहां वे जाने से कतराते हैं। जाहिर सी बात है वे डिबेट के मंच पर भी जाने से बचेगें। जबकि लोकतंत्र की ताकत है सवाल और जवाब।

भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की फेसबुक पर 4 मार्च मंगलवार को होने वाली लाइव चैट को अचानक कैंसिल कर दिया। इसके लिए हजारों लोगों ने अपने सवाल भी पोस्ट कर दिए थे। इससे पहले भाजपा के नेता अरुण जेतली ने ट्विटर के जरिये लाइव लोगों से बातचीत की थी और उनके सवालों के जवाब भी दिए थे। फेसबुक ने हाल ही में घोषणा की थी कि उसके माध्यम से प्रमुख नेताओं को बातचीत के लिए बुलाया जा रहा है। इस इवेंट का संचालन मशहूर पत्रकार मधु त्रेहन कर रही हैं।  इस आयोजन की शुरूआत मंगलवार को नरेंद्र मोदी से होने वाली थी लेकिन मोदी ने ये कार्यक्रम कैंसिल कर दिया। कहा जा रहा है कि भाजपा के मीडिया सलाहकारों ने ये माना कि मोदी का फेसबुक के जरिये लोगों से बात करना घातक हो सकता है।

पहले भी पलायन - 20 अक्टूबर 2007 को सीएनएन-आईबीएन पर प्रसारित वरिष्‍ठ पत्रकार करन थापर के कार्यक्रम 'डेविल्‍स एडवोकेट' में मोदी गोधरा कांड के संबंध में पूछे गए सवालों से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी इतने परेशान हो गए कि साक्षात्‍कार बीच में ही छोड़कर चलते बने। तब इस प्रकरण की मीडिया में काफी चर्चा हुई थी।
अभी हाल में गुजरात दौरे पर गए आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल के सवालो का भी नरेंद्र मोदी ने जवाब नहीं दिया। हालांकि उन्होंने सवालों की फेहरिस्त मीडिया के सामने पढ़ी थी और मोदी से मिलने का वक्त भी मांगा था।

ये थे केजरीवाल के 16 सवाल

7 मार्च को गुजरात दौरे पर गए आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से 16 सवालों का जवाब जानना चाहा है।

1. क्या गुजरात सरकार केजी बेसीन से निकलने वाली गैस की कीमत 16 डॉलर करने जा रही है. यूपीए सरकार ने गैस की कीमत 4 डॉलर से 8 डॉलर करने के बाद देश में बवाल है. सवाल है कि क्या जब आप देश के पीएम बनेंगे तो गैस की कीमत 16 डॉलर की जाएगी?

2 क्या यह सच है कि गुजरात सरकार सोलर एनर्जी 16 रुपये प्रति यूनिट बिना टेंडर के खरीद रही है. जबकि मध्य प्रदेश में 7.5 रुपये प्रति यूनिट टेंडर के साथ खरीद रही और कर्नाटक में 5.5 रुपये प्रति यूनिट टेंडर के साथ खरीद जा रही है. सवाल है कि इतनी महंगी कीमत पर सोलर एनर्जी क्यों खरीदी जा रही है?

3 आप हर जगह कहते हैं कि गुजरात में कृषि विकास दर 11 फीसदी है. जबकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2006-07 और 2012-13 के बीच कृषि उत्पादन में 1.18 फीसदी गिरावट आई है. तो बातएं 11 फीसदी कृषि विकास कैसे हुआ?

4 बीते 10 साल में राज्य में दो तिहाई लघु उद्योग धंधे बंद हो गए हैं. मैंने मेहसाणा में देखा कि 187 में 140 लघु औद्योगिक यूनिट बंद हो गए हैं. ऐसे में आपका विकास मॉडल क्या है. क्या आप चाहते हैं कि लघु और मध्य उद्योग धंधे बंद हो जाएं और देश का उद्योग चार से पांच बड़े उद्योगपतियों के पास हो?

5 आप कहते हैं कि गुजरात में भ्रष्टाचार नहीं है... लेकिन सरकारी दफ्तरों में तो जमकर भ्रष्टाचार हो रहा है. यहां तक के बीपीएल कार्ड बनाने के लिए भी पैसे देने पड़ते हैं.

6 आपके मंत्रिमंडल में बाबूभाई बोखारिया हैं, उनके खिलाफ अवैध खनन के मामले हैं. अदालत तीन साल की सजा दे चुकी है. अभी जमानत पर हैं. 4.5 करोड़ के मछली घोटाले के आरोपी पुरुषोत्तम सोलंकी मंत्री है. सवाल है कि क्या 6 करोड़ गुजरातियों में एक भी ऐसा गुजरात नहीं है जो इनके बदले में मंत्री बन सके.?
7 आप ने अंबानी परिवार के दामाद सौरव पटेल को मंत्री बना रखा है और उन्हें उर्जा, खनन और तेल जैसे मंत्रालय दे रखा है. ऐसा करके आपने अंबानी को गुजरात के उर्जा, खनन और तेल सौंप दी है. आप ऐसा क्यों कर रहे है.

8 गुजरात में भारी बरोज़गारी है, बीते दिनों तलाटी की सरकारी नौकरी के लिए 1500 सीटों के लिए 13 लाख निवेदन आए.  यह आंकड़े बताते हैं कि राज्य में बरोज़गारी का हाल क्या है.

9 आपकी सरकार ठेके पर युवाओं को नौकरी देती है. ऐसा करके आप युवाओं का शोषण कर रहे हैं, आप ठेके पर रखे युवाओं को 5300 रुपये प्रति महीने देते हैं. आखिर 5300 में एक परिवार कैसे चले.

10 क्या आप मानते हैं कि देश के गरीब लोगों को अच्छी शिक्षा देनी की जिम्मेदारी सरकार की है. हमने राज्य में अनेक सरकारी स्कूलों का दौरा किया और पाया कि सरकारी स्कूलों की स्थिति बहुत खराब है. एक कॉलेज में 600 छात्र हैं, लेकिन एक प्रिंसिपल के साथ तीन अध्यापक थे.

11 क्या आप मानते हैं कि देश के गरीब लोगों को अच्छी स्वास्थ्य सेवा देनी की जिम्मेदारी सरकार की है. हमने राज्य में अनेक सरकारी अस्पातालों का दौरा किया और पाया कि सरकारी स्पतालों की स्थिति बहुत खराब है. कई गांवों में सरकारी अस्पताल बंद हैं या खंडहर हो गए हैं. तालुका और जिला स्तर पर अस्पताल में आधे पद खाली हैं। सरकारी अस्पताल में दवाइयां नहीं मिलती..ऐसा है तो अच्छे स्वास्थ्य का दावा कैसे सकते हैं?

12 राज्य का किसान दुखी है. लागात से कम पैसे उन्हें दिए जा रहे हैं. किसान की सब्सिडी बंद कर दी गई है. बीते दिनों 800 किसानों ने आत्महत्या किया.

13 आप कहते हैं कि गुजरात के हर गांव में बिजली है, जबकि आपकी सरकार के पास बिजली कनेक्शन के लिए 4 लाख आवेदन लंबित हैं।

14 बहुत सारे लोगों को स्वच्छ पानी नहीं मिल रहा है.

15 कच्छ के सिखों पर अदालत में केस क्यों लगा रखा है? क्या आप उनकी जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं?

16 आपके पाक किसने हवाई जहाज़ हैं? आपने खरीदा है या किसी ने दिया... अब तक आपके हवाई जहाज़ के दौरे पर कितना खर्चा हुआ है। 



Tuesday, 11 March 2014

मोदी के लिए आसान नहीं लालकिले की राह

नरेंद्र मोदी के लिए लालकिला की राह आसान नहीं दिखाई देती। मोदी का विजय रथ रोकने के लिए पार्टी के अंदर भी कई लोग लगे हैं ऐसा प्रतीत होता है। भाजपा अब तक तीन सूची जारी कर चुकी है लेकिन नरेंद्र मोदी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी सरीखे नेताओं की सीटें तय नहीं कर पाई है। पार्टी से बाहर ही नहीं पार्टी के अंदर भी नरेंद्र मोदी को बुजुर्ग नेताओं से मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

नरेंद्र मोदी के वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे हैं। पर 2009 में वाराणसी सीट से जीते भाजपा के मुरली मनोहर जोशी के वाराणसी के चौक चौराहों पर पोस्टर लगे हैं जिनका आशय ये है कि काशी विश्वनाथ भी इस बार मुरली मनोहर जोशी का साथ देंगे। भला इतने आत्मविश्वास के साथ पोस्टर कौन लगवा सकता है। और कोई नेता नाम जारी होने से पहले ऐसे पोस्टर लगवाए तो पार्टी उसके ऊपर अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकती थी। पर ये दिग्गजों के बीच बंद कमरे में असंतोष जैसी स्थिति है।
भाजपा के सबसे बुजुर्ग और वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने साफ कर दिया है कि वे रिटायर नहीं हुए हैं और लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। वे गांधीनगर से 2009 में जीते थे। फिर वहीं से लड़ना चाहते हैं। पार्टी की पहली सूची में उनका नाम नहीं आया। इसका दर्द गांधी नगर में उनके चेहरे पर छलक आया था। उन्होंने पार्टी की स्थानीय बैठक में हिस्सा लेने के बाद अपनी मंशा मीडिया में जाहिर कर दी। आडवाणी ने कहा था, पार्टी ने पहली सूची जारी कर दी है उसमें मेरा नाम नहीं है। मैं यहां बैठक में आया हूं इससे साफ है कि मैं चुनाव लड़ना चाहता हूं। जाहिर है पार्टी में बुजुर्ग अनुभवी और वरिष्ठ जनों की जिस तरह उपेक्षा हो रही है वह पार्टी के भविष्य के लिए अहितकर है। अगर पार्टी 80 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का कोई नियम बनाना चाहती है तो वह आडवाणी, जोशी और कल्याण सिहं सबके ऊपर लागू करे।
-    विद्युत प्रकाश मौर्य  


Monday, 10 March 2014

राजनीतिक के मैदान में रवि किशन

रवि किशन के मंजे हुए अभिनेता हैं। वे न सिर्फ भोजपुरी फिल्मों के निर्विविदत तौर पर सुपर स्टार हैं बल्कि हिंदी फिल्मों में भी उन्होंने मजबूत मौजूदगी दर्ज कराई है। उनकी अभिनय क्षमता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है वे मणिरत्नम और श्याम बेनेगल जैसे निर्माताओं कि पसंद हैं। जिन लोगों ने श्याम बेनेगल की वेलकम टू सज्जनपुर और मणिरत्नम की युवा और रावण जैसी फिल्में देखी है वे इसमें रवि किशन के अभिनय की बानगी देख सकते हैं। उन्हें फूहड़ अभिनेता कहना कत्तई सही नहीं होगा। भोजपुरी फिल्मों की जरूरत के हिसाब से वे वहां पर अभिनय करते हैं पर जहां मौका मिलता है अपनी अभिनय की कलात्मकता दिखा देते हैं। हाल में बनारस की पृष्ठभूमि पर आई हिंदी फिल्म इसक और यूपी की राजनीति पर केंद्रित बुलेट राजा में उन्होने खलनायक की भी दमदार भूमिका की।
स्पाइडर मैन के भोजपुरी संस्करण में उन्होने आवाज दी थी जो यादगार बन गई। अब रवि किशन राजनीति में हाथ आजमाने के लिए कूद गए हैं। उन्होंने सीट चुनी है अपने गृह जिला जौनपुर और पार्टी कांग्रेस। रवि किशन ने पहले भी कांग्रेस पार्टी का प्रचार किया था। 2009 के लोकसभा चुनाव में भी उन्हें कांग्रेस पार्टी ने टिकट आफर किया था पर तब उन्होंने अपनी फिल्मी व्यस्ततता देखते हुए लड़ने से इनकार कर दिया था। लेकिन 2014 में वे मैदान में है। वे भोजपुरी फिल्म के दूसरे सितारे मनोज तिवारी की तरह बार बार अपनी राजनीतिक निष्ठा नहीं बदलते। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई करने वाले रविकिशन जौनपुर जिले के किराकत इलाके के रहने वाले हैं। अब वे राजनीति में कूद पड़े हैं तो उन्हें मालूम भी होगा कि राजनीति की राहें आसान नहीं होतीं। इलाहाबाद से सुपर स्टार अमिताभ बच्चन को राजनीति रास नहीं आई थी। पर राज बब्बर अपनी राजनीतिक पारी में सफल रहे हैं। अब रवि किशन से इलाके के जनता को उम्मीद हैं। उन्हें उम्मीदों पर खरा उतरना होगा।
- विद्युत प्रकाश मौर्य


Friday, 7 March 2014

कौन लहराएगा लाल किले से तिरंगा

मैं लाल किला हूं। दिल्ला में लगभग 200 सालों तक मुगल बादशाहों की राजधानी रहा। मेरा निर्माण 1648 में मुगल बादशाह शाहजहां ने कराया था। लाल पत्थरों से बनी इमारत होने के कारण मेरा नाम बड़े प्यार से लोगों ने लालकिला रखा। मेरे सीने से देश की हुकुमत चलती रही। 1857 में आखिरी मुगल का मैं निवास स्थान बना रहा। तो ब्रिटिश हुकुमत ने एक समय में मुझे जेल भी बना दिया था। पर 1947 में जब देश आजाद हुआ तब मेरे प्राचीर से ही जनतंत्र का उद्घोष हुआ। ब्रिटिश यूनिनय जैक उतारा गया और माथे पर तिरंगा लहराने लगा। मैं बन गया राजतंत्र से आगे अब लोकतंत्र का प्रतीक। अब सत्ता की चाबी किसी राजा में केंद्रित न होकर कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैली आवाम तक पहुंच गयी। प्रधानमंत्री चुनती है हर पांच साल बाद जनता।

मेरे प्राचीर पर पहला तिरंगा पंडित जवाहरलाल नेहरु ने लहराया। 15 अगस्त 1947 की रात उन्होंने मेरे प्राचीर से देश के आजाद होने का एलान किया और पूरे देश में दिवाली मनाई गई। उसके बाद देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री बने जिन्होंने जय जवान जय किसान का नारा दिया था। इसके बाद गुलजारी लाल नंदा, इंदिरा गांधी, मोराजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, पीवी नरसिंहराव, अटल बिहारी वाजपेयी, एचडी देवेगोड़ा,  इंद्र कुमार गुजराल और मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बने।
श्री गुलजारी लाल नंदा और श्री चंद्रशेखर को लालकिले से तिरंगा लहराने का मौका नहीं मिल सका क्योंकि उनके कार्यकाल में 15 अगस्त की तारीखें नहीं आईं।  
अब साल 2014 आ गया है। देश 16वीं लोकसभा के लिए नई सरकार चुनने जा रहा है। दस साल से प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह ने कह दिया है कि अगली बार कांग्रेस सत्ता में आई तो भी मैं प्रधानमंत्री नहीं बनूंगा। मुझे अब इंतजार है कि 15 अगस्त 2014 को मेरे प्राचीर से तिरंगा कौन लहराता है।

-    विद्युत प्रकाश मौर्य

Thursday, 6 March 2014

सावधान रहे चिटफंट कंपनियों के जाल से

तमाम नान बैंकिंग कंपनियों में अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई निवेश करने से पहले सावधान रहें। ज्यादातर जनता अधिक ब्याज के लोभ में ऐसी कंपनियों के बहकावे में आ जाती है। हमें आर्थिक मामलों में सावधान रहने की जरूरत है। खून पसीने की कमाई सरकारी बैंक की सुरक्षित योजनाओं में ही लगाना चाहिए। आपके पास अगर मेहनत और इमानदारी से कमाया धन है तो कभी किसी चिट फंड, पोंजी स्कीम, निजी नान बैंकिग संस्थाओं में न लगाएं।

वास्तव में ऐसी कंपनियां कोई वास्तविक उत्पादन नहीं करती हैं। बल्कि जनता से उगाहे गए धन से ही ब्याज देती हैं, अपने कर्मचारियों को वेतन देती हैं और इसके उच्चाधिकारी एय्याशी भरा जीवन जीते हैं। कोई भी बैंक आपके जमा रुपये पर तभी ब्याज दे पाता है जब वह उससे ज्यादा कमाता है। बैंक लोगों को सावधि जमा पर जो ब्याज देते हैं, उससे ज्यादा दर पर लोगों को कर्ज देते हैं। यही उनकी कमाई का जरिया होता है। पर नान बैंकिंग कंपनियों का अर्थशास्त्र ऐसा नहीं होता। वे पुराने निवेशक को मैच्यूरिटी पर पैसा नए निवेशक के जमा धन में से देती रहती हैं। इसमें लोगों का ही पैसा रोटेट होता रहता है। कहीं उत्पादन नहीं होता। कंपनी की कमाई के ठोस साधन नहीं होने के कारण एक दिन कंपनी तबाह हो जाती है। कुछ दशक या कुछ साल मेंजब  ऐसी कंपनियों सच सामने आता है। तब तक लाखों निवेशक तबाह होने लगते हैं। आपने हाल में 2013 में बंगाल में शारदा समूह का बड़ा घोटाला तो देखा ही है जिसमें बड़ी संख्या में गरीब जनता का धन डूब गया। सहारा के मामले में भी बस थोडा इंतजार करें पता चलेगा कि निवेशक किस बुरी तरह ठगे गए हैं।
रही बात रोजगार की तो तमाम ठगी का धंधा करने वाली कंपनियां भी रोजगार देती हैं। इससे वे पवित्र नही हो जाती। सहारा समूह ने लोगों से प्राप्त धन को ज्यादातर घाटे के उपकर्मों में लगाया है। अब घडा फूटने का वक्त आ गया है। त्राहि माम के लिए तैयार रहे। निवेशकों दीवाली काली होगी ये तय है।
हमने 1999 के बाद जेवीजी और कुबेर जैसी कंपनियों को बर्बाद होते देखा है। इसके बाद उत्तर भारत की कई दर्जन छोटी बड़ी कंपनियां माचिस के डिब्बे की तरह भरभरा कर गिरने लगीं। कई कंपनियों के मालिक लंबे समय तक जेल में रहे। लेकिन निवेशकों को उनकी जमा राशि का मूल धन भी नहीं मिल सका। क्योंकि इन कंपनियों के पास लोगों जमा धन के बराबर संपदा नहीं थी। वे जनता के पैसे से मौज कर काफी रुपया पहले ही बर्बाद कर चुके थे।
सहारा की घटना के बादएक बार फिर ऐसे ही दौर की आहट सुनाई द रही है। इसी तरह की तमाम कंपनियों में निवेश करने वालों को सावधान हो जाना चाहिए और अपनी धन राशि को कहीं सुरक्षित जगह निवेश करना चाहिए।
-    विद्युत प्रकाश मौर्य


Saturday, 1 March 2014

क्रेडिट कार्ड में को ब्रांडेड कार्ड का दौर

अगर आप किसी बैंक का क्रेडिट कार्ड लेना चाहते हैं तो को ब्रांडेड कार्ड के बारे में एक बार जांच पड़ताल कर लें। आजकल हर लोकप्रिय क्रेडिट कार्ड बेचने वाली कंपनी किसी न किसी पापुलर कंपनी के साथ को ब्रांडेड कार्ड पेश कर रही है। को ब्रांडेड कार्ड लेने का सबसे बड़ा फायदा है कि इसमें आपको ज्वाएनिंग फीस और सालाना शुल्क में रियायत मिलती है। इसके साथ ही कई और तरह के सुविधाएं भी प्राप्त होती हैं तो को ब्रांडेड कार्ड में मौजूद होती हैं। ये सुविधाएं साधारण कार्ड के ग्राहकों को नहीं मिल पाती हैं।

क्या है को ब्रांडेड कार्ड -  ये कार्ड किसी क्रेडिट कार्ड जारी करने वाले बैंक और किसी अन्य उपभोक्ता कंपनी के साथ मिल कर जारी किए जाते हैं। ये खास तौर पर उन्ही उपभोक्ताओं के लिए होते हैं जो उनकी सुविधाओं का लगातार इस्तेमाल करते हैं। जैसे मान लिजिए आपके पास मारूति कार है तो मारुति का स्टेट बैंक के साथ को ब्रांडेड कार्ड हो सकता है। देश के जाने माने सुपर मार्केट की श्रंखला बिग बाजार ने आईसीआईसीआई बैंक के साथ मिलकर को ब्रांडेड कार्ड लांच किया है तो विशाल मेगा मार्ट ने स्टेट बैंक आफ इंडिया के साथ मिलकर को ब्रांडेड क्रेडिट कार्ड जारी किया है। इनमें कार्ड खरीददारी करने वाले ग्राहकों को कुछ खास सुविधाएं दी जाती हैं।


जैसे कुछ लोग किसी खास एयरलाइन से लगातार सफर करते हैं उनके लिए को ब्रांडेड कार्ड में टिकट खरीद पर पांच से 10 फीसदी डिस्काउंट देने का प्रावधान होता है। ठीक इसी तरह किसी खास कार कंपनी के साथ मिलकर दिया जाने वाले कार्ड उसके उपभोक्ताओं को सर्विसिंग और स्पेयर पार्टस खरीदने के समय कुछ छूट प्रदान करता है। स्टेट बैंक आफ इंडिया ने हीरो होंडा मोटर साइकिल रखने वालों के लिए सालों से क्रेडिट कार्ड पेश किया हुआ है। भारत में क्रेडिट कार्ड बेचने वाली प्रमुख बैंको में एबीएन एम्रो, स्टेट बैंक आईसीआईसीआई, एचडीएफसी, स्टैंडर्ड चार्टड बैंक किसी न किसी के साथ ही को ब्रांडेड कार्ड जरूर पेश कर रहे हैं।

अगर आप किसी बैंक में को ब्रांडेड कार्ड के लिए आवेदन करते हैं तो आपको अपेक्षाकृत कम औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ती है। यहां पर आपको कोई गारंटी भी नहीं देनी पड़ती है। आमतौर पर जिस उत्पाद के आप उपयोक्ता हैं उसको ही गारंटी मान लिया जाता है। खासकर वे लोग जो खास तरह की सेवाओं का उपयोग करते हैं उनके लिए को ब्रांडेड कार्ड अच्छे हो सकते हैं। पेट्रोल पंप कंपनियों के और मोबाइल फोन कंपनियों के भी को ब्रांडेड कार्ड उपलब्ध हैं। टाटा इंडीकाम ने भी को ब्रांडेड कार्ड आरंभ किया है। आप जब किसी बैंक से कार्ड बनवाएं तो यह देख लें कि उसमें कौन से पावर हैं और वह कहां कहां स्वीकार्य है। जैसे वीजा और मास्टर कार्ड आमतौर पर सभी आउटलेट में स्वीकार किए जाते हैं वहीं अमेरिकन एक्सप्रेस की स्वीकार्यता थोड़ी कम है।

क्रेडिट कार्ड को अच्छी आदत बनाएं- आप भले ही किसी भी कंपनी के साथ क्रेडिट कार्ड बनवाएं, पर इसे हमेशा उधार लेने की आदत के रुप में नहीं इस्तेमाल करें। अगर आपके उपर ज्यादा उधार हो गया तो आपको ब्याज में ज्यादा राशि चुकानी पड़ सकती है। इसलिए उतनी ही उधार खरीददारी करें जितना आप अगले महीने में आसानी से चुका सकें।

-विद्युत प्रकाश vidyutp@gmail.com