मैं लाल किला हूं।
दिल्ला में लगभग 200 सालों तक मुगल बादशाहों की राजधानी रहा। मेरा निर्माण 1648
में मुगल बादशाह शाहजहां ने कराया था। लाल पत्थरों से बनी इमारत होने के कारण मेरा
नाम बड़े प्यार से लोगों ने लालकिला रखा। मेरे सीने से देश की हुकुमत चलती रही। 1857
में आखिरी मुगल का मैं निवास स्थान बना रहा। तो ब्रिटिश हुकुमत ने एक समय में मुझे
जेल भी बना दिया था। पर 1947 में जब देश आजाद हुआ तब मेरे प्राचीर से ही जनतंत्र
का उद्घोष हुआ। ब्रिटिश यूनिनय जैक उतारा गया और माथे पर तिरंगा लहराने लगा। मैं
बन गया राजतंत्र से आगे अब लोकतंत्र का प्रतीक। अब सत्ता की चाबी किसी राजा में
केंद्रित न होकर कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैली आवाम तक पहुंच गयी। प्रधानमंत्री
चुनती है हर पांच साल बाद जनता।
मेरे प्राचीर पर
पहला तिरंगा पंडित जवाहरलाल नेहरु ने लहराया। 15 अगस्त 1947 की रात उन्होंने मेरे
प्राचीर से देश के आजाद होने का एलान किया और पूरे देश में दिवाली मनाई गई। उसके
बाद देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री बने जिन्होंने जय जवान जय किसान
का नारा दिया था। इसके बाद गुलजारी लाल नंदा, इंदिरा गांधी, मोराजी देसाई, चौधरी
चरण सिंह, राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, पीवी नरसिंहराव, अटल
बिहारी वाजपेयी, एचडी देवेगोड़ा, इंद्र
कुमार गुजराल और मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बने।
श्री गुलजारी लाल
नंदा और श्री चंद्रशेखर को लालकिले से तिरंगा लहराने का मौका नहीं मिल सका क्योंकि
उनके कार्यकाल में 15 अगस्त की तारीखें नहीं आईं।
अब साल 2014 आ गया
है। देश 16वीं लोकसभा के लिए नई सरकार चुनने जा रहा है। दस साल से प्रधानमंत्री
रहे मनमोहन सिंह ने कह दिया है कि अगली बार कांग्रेस सत्ता में आई तो भी मैं
प्रधानमंत्री नहीं बनूंगा। मुझे अब इंतजार है कि 15 अगस्त 2014 को मेरे प्राचीर से
तिरंगा कौन लहराता है।
- विद्युत प्रकाश मौर्य
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