क्या तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए लड़ा
जाएगा। इसमें काफी हद तक सच्चाई भी हो सकती है। क्योंकि कई देशों, कई राज्यों या फिर कई जिलों
में पानी की विकराला समस्या है। पानी की लड़ाई पीने के पानी को लेकर भी है और
सिंचाई के लिए भी। शहरों को उनकी जरूरत के हिसाब से पीने का पानी नहीं मिल पा रहा
है तो गांवों को सिंचाई के लिए प्रयाप्त पानी नहीं मिल पा रहा है। भारत और
बंग्लादेश के बीच गंगा (पद्मा) नदी के
जल को लेकर हमेशा विवाद रहता है। बंग्लादेश का आरोप होता है कि भारत फरक्का बांध
पर गंगा का पानी रोक लेता है जिससे की बंग्लादेश को पर्याप्त मात्रा में नदी जल
नहीं मिल पाता है।
वहीं भारत में पंजाब और राजस्थान और हरियाणा
के बीच सतलुज के पानी लेकर लड़ाई भी बहुत पुरानी है। सतलुज यमुना लिंक नहर के विवाद
को अब तक सुलझाया नहीं जा सका है। पंजाब में चाहे किसी भी पार्टी की सरकार आए वह
सतलुज नदी का एक बूंद पानी हरियाणा को नहीं देना चाहती। इसलिए उसने अनपे हिस्से के
सतलुज यमुना लिंक नहर का अभी तक निर्माण भी नहीं कराया है। इस मामले में अदालतों
को फैसले और भारत सरकार के हस्तक्षेप के बाद भी अभी तक कोई हल नहीं निकाला जा सका
है। भारक के राज्यों में जहां नहरी पानी से सिंचाई होता है वहां दो गांवों नहरी
पानी को लेकर भी विवाद हो जाता है।
पर पानी की ताजा लड़ाई दिल्ली को लेकर है।
दिल्ली की बढ़ती आबादी को आखिऱ पीने के पानी की पूरी मात्रा कैसे प्राप्त हो।
दिल्ली के पास अपनी भूजल या नदी जल इतनी मात्रा में नहीं है जिससे की एक करोड़ से अधिक
दिल्ली वासियों की प्यास बुझाई जा सके। लिहाजा दिल्ली को पानी के लिए हरियाणा और उत्तर
प्रदेश पर निर्भऱ रहना पड़ता है। ये दोनों राज्य दिल्ली को गाहेबगाहे पानी के लिए
धमकाते रहते हैं। काफी चिरौरी के बाद उत्तर प्रदेश दिल्ली के सोनिया विहार जल संयत्र
को पानी देने के लिए राजी हुआ है। अगर दिल्ली को उसके पड़ोसी राज्य पेयजल नहीं दें
तो दिल्ली के लोगों को प्यास से तड़प कर दम तोड़ना पड़ सकता है। दिल्ली की आबादी के
कुछ फीसदी लोग बोतलबंद पानी पीकर प्यास बुझा सकते हैं। पर क्या सारे लोग ऐसा कर
सकते हैं।
दिल्ली के समीप शहर गुड़गांव जिसे भारत के
कैलफोर्निया के रुप में विकसित होते हुए देखा जा रहा है। वहां भी पीने के पानी की
जबरदस्त किल्लत है। मध्य प्रदेश के कई शहर भी पीने के पानी की समस्या से जूझ रहे हैं।
सबस बड़े औद्योगिक शहर इंदौर के कई इलाके के लोगों को पीने के लिए बोतलबंद पानी पर
ही आश्रित रहना पड़ता है। सपनों की नगरी मुंबई भी स्वच्छ पेयजल के संकट से जूझ रही
है। वहां के कई इलाके ऐसे हैं जहां पानी के लिए नियमित टैंकर की सप्लाई करनी पड़ती
है। वहां लोगों को पीने के पानी के लिए बाहर से आने वाले टैंकर या फिर बोतलबंद
पानी पर आश्रित रहना पड़ता है।
कमोबेश हिंदुस्तान के सभी बड़े महानगरों में
स्वच्छ पेयजल का संकट है। एक आदमी के दिन में कमसे कम औसतन 25 लीटर पानी चाहिए। पर कई
शहरों में तो लोगों के हिस्से में पांच लीटर पानी भी नहीं आता है। महानगरों के
मध्यमवर्गीय और झुग्गी झोपड़ी वाले इलाकों में हालात बहुत खराब हैं। लोगों को
कपड़े धोने व खाना बनाने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिल पाता है। शहरों
में आप पानी के नल के आगे लंबी लाइन देख सकते हैं जहां कई बार पानी के लिए लड़ाई भी
हो जाती है। कई बार तो मारपीट और खूनखराबे की भी नौबत आ जाती है।
रहिमन पानी रखिए...
कवि रहीम ने लिखा है.. रहिमन पानी राखिए बिन पानी
सब सुन..। अभी हाल में एक टीवी चैनल पर रिपोटर् आ रही थी
झांसी के एक इलाके कुछ दबंग लोक सार्वजनिक हैंडपंप से पानी निकालने के बाद हैंडपंप
में ताला लगा देते हैं। यानी हैंडपंप भले ही सार्वजनिक हो पर उससे पानी हर कोई
नहीं भर सकता है। देश में ऐसे कई और इलाके हैं जहां इसी तरह पानी पर शोहदों का पहरा
लगा हुआ है।
अभी हाल में ही बिहार के गया जिले के एक
गांव में एक बुढ़िया प्यास से तड़ कर मर गई। वह कई घरों के बाहर जाकर पानी-पानी की आवाज लगाती रही। पर
उसकी किसी ने नहीं सुनी। अंत में उसने से प्यास से तड़प कर दम तोड़ दिया। दिल्ली
से ज्यादा दूर नहीं है मध्य प्रदेश का चंबल क्षेत्र। महज दिल्ली से पांच घंटे या
300 किलोमीटर की दूरी पर कई ऐसे गांव जहां गांवों में लोगों के लिए
सार्वजनिक हैंडपंप भी मयस्सर नहीं है। गांव के लोग निकट की नदी से जाकर पानी लाते
हैं। किसी गांव के आसपास छोटे-छोटे तालाब हैं, उसी का पानी पीकर काम चलाते हैं। कई गांवों में एक ही तालाब के पानी में जानवर
भी नहाते हैं और आदमी भी। उसी तालाबा का पानी लोग पीते भी हैं और उसी पानी से भोजन
भी बनाते हैं। डाक्टर कहते हैं कि मनुष्य की 40 फीसदी
बीमारियां तो पानी के कारण होती हैं। पर यहां के लोगों ने अपनी सेहत के लिए खुद को
भगवान भरोसे ही छोड़ दिया है।
अभी देश की आधी से अधिक आबादी को सेफ
ड्रिंकिंग वाटर के बारे में कुछ नहीं पता। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू एच ओ) के मानक कहते हैं कि पानी की सप्लाई का पहले वाटर ट्रिटमेंट होना चाहिए।
उसमें एक निश्चित मात्रा में क्लोरीन मिलाई जानी चाहिए। पर महानगरों में बहुत कम
जगह ही पानी की सप्लाई में क्लोरीन मिलाई जाती है। शहरों के बहुत बड़े इलाके में लोग
अभी भी हैंडपंप का गंदा पानी पीने के मजबूर हैं। शहरों के अनियंत्रित विकास होने
के कारण कई शहरों में अवैध कालोनियां विकसित होती हैं जहां पर पानी की नियमित
सप्लाई नहीं होती। ऐसे में लोग अशुद्ध पानी पीकर ही काम चलाते हैं। भारत में बहुत
कम ऐसे गांव हैं जहां पर जन स्वास्थय विभाग की ओर से वाटर सप्लाई की व्यवस्था है। ऐसे
में गांव के लोग तालाब, कुएं या हैंडपंप का पानी ही पीकर काम
चलाते हैं।
उफ ये गरमी और पानी -
हो सकता है आपके पास फ्रीज भी हो और वाटर
प्यूरीफायर भी जिससे आपको हमेशा शीतल जल नसीब हो जाता हो। पर गांवों में गर्मी के
दिनों में वे शीतल जल के लिए मिट्टी के घड़े या सुराही का इस्तेमाल कर लेते हैं।
मध्य प्रदेश व राजस्था के गर्म इलाको में गर्मी के दिनों में कपड़े बने खास किस्म
के बैग का इस्तेमाल करते हैं। इसमें पानी भर कर लोग सफर में भी साथ ले जाते हैं।
यहां तक की शहर में मध्यमवर्गीय परिवार के लोग सुराही का खूब इस्तेमाल करते हैं।
आजकल सुराही में भी कुछ नए प्रयोग हो रहे हैं। इसमें नल भी लगा दिया गया है। पर
भारत में जहां प्यासे को पानी पिलाना पुण्य का काम समझा जाता रहा है, अब बढ़ती आबादी की त्रास को
बुझाने के लिए पानी की कमी होती जा रही है। इसलिए कोई शक नहीं की आने वाले दिनों
में पानी को लेकर होने वाली लड़ाइयां बढ़ जाएं। ऐसे में किसी की भविष्यवाणी सही भी
हो सकती है कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी को लेकर हो सकता है।
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विद्युत
प्रकाश मौर्य
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