Thursday 11 December 2014

सबसे उपयोगी प्राणी - गधा ( व्यंग्य)


आप पूछेंगे इस धरती पर सबसे उपयोगी प्राणी कौन है। मैं उत्तर दूंगा गधा। निश्चय ही उपयोगिता के पैमाने पर गधा उच्च शिखर पर है, परंतु दुर्भाग्य है कि उसे हमेशा उपेक्षा ही मिलती है।
भारत जैसे विविधापूर्ण देश में और विषम भौगोलिक परिदृष्य में गधे का महत्व और भी बढ़ जाता है। उन लाखों गांवों तक जहां कोई सड़क नहीं जाती, उबड़ खाबड़ पगडंडियों पर सामान ढोने का काम गधा ही करता है। सिर्फ इतना ही नहीं हिमालय की ऊंचाइयों पर बसे पहाड़ी गांवों में गधे का कोई विकल्प नहीं होता। शहर की सभी आवश्यक वस्तुएं गांव में गधा ही ढोकर लाता है। पहाड़ के लोगों के लिए गधे को पालनहार कहा जाए तो कुछ ज्यादा नहीं होगा। लेकिन निरीह समझे जाने वाले गधे का महत्व यहीं आकर खत्म नहीं होता। गधा गांव में जितना लोकप्रिय है उतना ही शहरों में भी। दिल वालों की दिल्ली भले ही फैशन के मामले में पेरिस से मुकाबला करने की उतावली हो लेकिन गधा दिल्ली की जीवन शैली में भी अनिवार्य हिस्सा बना हुआ है। भले ही आपकी जानकारी  में दिल्ली महानगर हो जहां नरूला और विंपी में बैठे प्रेमी युगल सेलुलर फोन पर जुगाली करते हुए पाए जाएं। पर गधा यहां भी अपना काम बड़ी जिम्मेवारी से निभाता है। दिल्ली जैसे महानगर में अभी कई सौ गांव अस्तित्व में हैं। इन गांवों का भूगोल बिल्कुल भारत के किसी दूसरे बड़े और घने गांव जैसा ही है। 



अंतर सिर्फ इतना है कि दिल्ली के गांव में अवैध रूप से चार मंजिला और छह मंजिले मकान बन दए हैं, जिसमें हर साल एक मंजिल बढ़ा दी जाती है गधे की सहायता से। जी हां गधे की ही सहायता से क्योंकि इन गांवों की संकरी गलियों में ईंट, सीमेंट, बदरपुर आदि ढोने का काम गधा ही करता है। गधे से आप चाहे जो काम कराएं, मगर गधा कभी एतराज नहीं करता। गधे की पीठ पर कुछ भी लाद दो गधे को कोई आपत्ति नहीं होती। सही मायने पर आज के दौर में गधा की सच्चा समाजवादी प्राणी है।

दिल्ली के गांवों की बदबूदार और संकरी गलियों में रहने वाले लोग हवा और तेज धूप से भले ही महरूम हों लेकिन उन्हे भोजन पानी गधा ही सुलभ कराता है। गलियों की गांव में बिकने वाले सामान को मंडी की दुकान से लाने का काम गधा ही तो करता है। अब वो जमाना गया जब कहा जाता था कि धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का। आज तो गधा ही हर जगह पालनहार है। चाहे पहाड़, मैदान जंगल या हो शहर जीवन को मंगल करने में गधे की बड़ी भूमिका है।
 जब एक आदमी दूसरे पर नाराज होता है तो कहता है गधा कहीं का। अब आप ये वाक्य किसी गधे के सामने मत कहिएगा। गधा बुरा मान सकता है। मानहानि का केस दायर कर सकता है। कभी आप गधे को आदमी कहीं का कहकर देखें जरूर दुलत्ती चला देगा। राज की बात ये है कि गधा इस सृष्टि का सबसे समझदार प्राणी है। वास्तव में त्वमेव माता च पिता त्वमेव जैसे श्लोक गधे की ही वंदना में लिखे गए हैं। उसका प्रयोग आप चाहे जहां कर लें। एक अक्लमंद राजनेता एक मंदिर में प्रार्थना करता पाया गया कि भगवान मुझे अगले जन्म में गधा बना दो। मेरा कहना कि अखंड हिंदुस्तान में गधे की उपयोगिता को देखते हुए हमें गधे को ही राष्ट्रीय पशु का दर्जा दे देना चाहिए। तो आइए बोलें- वोट फॉर गधा...

--- विद्युत प्रकाश ( 1996 )  ( ASS, NATIONAL ANIMAL , PUBLISHED IN KUBER TIMES DELHI ) 


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