Sunday, 7 December 2014

उपनाम का चक्कर ( व्यंग्य)


साहित्य में उपनामों की परंपरा रही है। बिना उपनाम रखे कोई भी साहित्यकार बड़ा या स्थापित नहीं हो पाता है, ऐसा माना जाता है। हमने भी जब साहित्य जगत में कदम रखने की सोची तो ख्याल आया कि कोई न कोई उपनाम जरूर होना चाहिए। बिना उपनाम के तो पहचान बनानी मुश्किल हो सकती है। सो पिछले कई दिनों से मैं उपनाम की तलाश में हूं। सोचते सोचते खाना पीना सब हराम हो गया है लेकिन कोई उपनाम नहीं सूझ रहा है। एक मित्र ने सलाह दी कि अपना उपनाम दीपक रख लो,,,लेकिन मुझे लगा कि अब दीपक आउटडेट हो गया है। मेरे जेहन में आया क्यों नहीं उपनाम लालटेन रख लिया जाए। परंतु अब लालटने का भी जमाना गया, अब तो विद्युत से प्रकाश होता है। सो बल्ब, ट्यूब लाइट या सीएफएल जैसे उपनाम रखे जा सकते हैं। लेकिन ये सभी प्रकाश के कृत्रिम स्रोत हैं। लेखक तो सहज और स्वाभाविक होता है। लिहाजा ये उपनाम व्यंग्यात्मक लग रहे हैं। मैं तो कुछ गंभीर उपनाम ढूंढ रहा हूं। साहित्यकार पहले से ही सारे सीरियस नाम हथिया चुके हैं। वियोगी, अज्ञेय, निराला, दिनकर, रत्नाकर, रूद्र, नीरज, प्रभाकर, विभाकर, निशाचर, मानव, दानव और न जाने क्या क्या..कोई भी गंभीर उप नाम मेरे लिए सुरक्षित नहीं बचा। एक बड़े साहित्यकार हुए हैं व्यथित हृदय मैंने सोचा क्यों नहीं उनकी परंपरा में अपना नाम रूदित या क्रंदित हृदय रख लूं। परंतु मेरे एक बाल सखा की सलाह थी कि इससे बच्चे डर जाएंगे। वास्तव में मैं बच्चों को डराना तो नहीं चाहता। बच्चे अब भी मुझे प्रिय हैं।

फूलों पर भी कई साहित्यकारों के नाम हैं। यथा कमल, गुलाब, पुष्प आदि। पक्षियों के नामपर भी उपनाम रखे गए हैं यथा विहग, चंचल, पंक्षी आदि। मेरी चटोर बहन ने सलाह दी कि किसी खाने पीने की चीज पर अपना उपनाम रख लोग। जैसे नींबू, अनानास, मौसमी, संतरा, आदि। अगर इसी में कुछ एक्सक्लूसिव चाहते हो तो टमाटर, चेरी, स्ट्राबेरी, चीकू या फिर आलू बुखारा रख सकते हो। वैसे तुम काले हो तो जामुन भी ठीक रहेगा। मुझे तो आलू बुखारा पसंद आ गया। इस नाम से मैं ख्यातिलब्ध हो सकता हूं। लेकिन मेरे आलोचकों ने कहा कि इस नाम के साथ तुम सिर्फ व्यंग्य रचनाएं ही लिख पाओगे। आलू बुखारा में कुछ भी सिरियस नहीं लगता। 


गांव के लोग तो समझेंगे कि आलू को ही बुखार आ गया। मैं अपनी साहित्यिक मौत नहीं चाहता। मैं तो मरने के बाद भी जिंदगी में यकीन रखता हूं। अतमैंने इस नाम के प्रति अपना आइडिया बदल दिया। आजकल फ्यूजन का जमाना है पूरब और पश्चिम का फ्यूजन हो रहा है। गाने की लाइनों में फ्यूजन हो रहा है। संगीत में फ्यूजन हो रहा है। खानपान में फ्यूजन हो रहा है। अब इटैलियन पिज्जा की दीवानियां भारत के सड़कों पर घूम रही हैं। हो सकता है कि कोई खानसामा मसाला डोसा और पिज्जा का फ्यूजन पेश कर कोई नई डिश तैयार कर दे। लेकिन इस फ्यूजन में कनफ्यूजन बहुत है। हालांकि फ्यूजन के रहनुमा पैसा बहुत कमा रहे हैं।

मेरे मन में ये भी ख्याल आ रहा है कि क्यों न कोई फ्यूजन उपनाम रखा जाए और फ्यूजन साहित्य का सृजन किया जाए। अब तक देश में विदेशों का अनुवादित साहित्य आ रहा है जिसे पढकर लोग पूर्ण आनंद की प्राप्ति नहीं कर पाते। फ्यूजन से साहित्य में एक नए युग का अविर्भाव भी संभव है। सो मैं यहां भविष्य की अच्छी संभावनाएं देख रहा हूं। फिलहाल उपनाम को लेकर मैं भी कनफ्यूज हो रहा हूं। सो मैं फैसला पाठकों पर छोड़ता हूं। आप हमारे लिए कोई उपनाम सुझाइए। अगर पसंद आ गया तो पहली किताब की रायल्टी आपके नाम कर दूंगा। इसमें कोई कनफ्यूजन नहीं है।
-    विद्युत प्रकाश मौर्य 

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