Friday 18 May 2018

नेता जी की बकरी ( व्यंग्य )

गांधी जी बकरी पालते थे। अब पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की आंखें भी खुल गई हैं। वे अभी अब अपने मांडा स्टेट के पुराने किले में बकरी पालने की योजना बना रहे हैं। उन्हें एक विशेषज्ञ की यह सलाह पसंद आ गईहै कि बकरियां किसी चलते फिरते बैंक की तरह हैं। आप जब चाहे अपनी छोटी-मोटी जरूरतों के लिए बकरियों को बेच सकते हैं।
भला बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी। गांधी जी को तो बकरी के ज्यादा फायदे नहीं मालूम थे। वे सिर्फ बकरी का दूध ही पीते थे। पर अब लोगों को बकरी के कई फायदे नजर आने लगे हैं। आप बकरे के मांस का व्यवसाय भी कर सकते हैं। बकरी पालन की शुरूआत भी थोड़ी सी पूंजी से ही की जा सकती है। दुनिया के कई महापुरूषों न बकरी चराने का काम किया है। हम ही बकरी के महत्व को समझ नहीं पाए और इसे निकृष्ट किस्म का पेशा समझते रहे। अब वीपी सिंह जैसे विशिष्ट व्यक्ति के बकरी पालने से इस पेशे की भी ख्याति बढ़ेगी। पूरी दुनिया ने गांधी से न जाने क्या क्या सीखने की कोशिश की पर उनसे बकरी पालन का गुण नहीं सीखा।
वैसे सुनने में आता है कि गांधी जी बकरी बड़ी वीआईपी थी। वह काजूकिसमिस और बादाम भी खाती थी। तो फिर वह दूध भी जरूर उम्दा किस्म का देती होगी। हालांकि डाक्टर बकरी के दूध को ज्यादा पौष्टिक नहीं मानते। पर गांधी जी ने डाक्टरों की बात कभी नहीं मानी वे बकरी का दूध ही पीते रहे। अब वीपी सिंह के दिव्य चक्षु बुढ़ापे में खुल गए हैं। वे बकरी पालन का ब्रांड एंबेस्डर बनने को तैयार हो गए हैं। यह विचार उनके दिमाग में स्वतः स्फूर्त ही आया है। भारत जैसे गरीब देश के लिए जहां लोगों की क्रय क्षमता अधिक नहीं है बकिरयां आदर्श हो सकती हैं। भला अब गाय और भैंस खरीदकर पालना सबके बस की बात कहां है। वहीं बकरी कोई भी खरीद सकता है। एक मजदूर भी। बकरी को रखने के लिए ज्यादा जगह भी नहीं चाहिए। भले ही हिंदुस्तानी लोग गाय को मां समान मानते हों पर हर हिंदुस्तानी गाय नहीं खरीद सकता। पर बकरी हर कोई खरीद सकता है। मुझे लगता है कि वीपी सिंह आने वाले चुनाव में जिस राजनीतिक दल में हो उन्हें अपना चुनाव चिन्ह भी बकरी लेना चाहिए। बकरी ही सच्चे समाजवाद का प्रतीक है।
आजकल लोगों की पाचन शक्ति भी ज्यादा मजबूत नहीं होती। इसलिए गाय या भैंस का दूध पीकर पचा पाना हर किसी के बस का रोग नहीं है। इसलिए सबको बकरी का दूध ही पीना चाहिए। अभी राजस्थान सरकार ऊंटनी के दूध के मार्केटिंग की योजना बना रही है। यूपी व बिहार सरकार को बकरी के दूध की मार्केटिंग की योजना बनानी चाहिए। वह ज्यादा कारगर सिद्ध हो सकती है। वह जब पूर्व प्रधानमंत्री के स्तर के लोग ऐसे प्रोडक्ट के ब्रांड एंबेस्डर हों तो क्या कहना।
अगर इस विंदु पर ठीक से काम हुआ तो देश में समाजवाद बकरी पर चढ़कर अवतरित हो सकता है। जेपी आंदोलन के बाद खुद को सच्चे समाजवादी का दावा करने वाले लोग धीरे-धीरे तो पूंजीवादी होते चले गए पर अब बकरी आंदोलन से फिर से सच्चे समाजवाद की शुरूआत की जा सकती है। देश के आजाद होने के बाद हमसे दो भारी भूलें हुई। हमने गांधी को तो भूला ही दिया। उनकी बकरी को भी याद नहीं रखा। अगर हम सिर्फ उनकी बकरी को ही सही ढंग से याद रखते तो देश में सच्चा समाजवाद कब का आ चुका होता। खैर अभी भी देर नहीं हुई है। जब जागो तभी सवेरा।
-विद्युत प्रकाश मौर्य




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