चौक पर अचानक राय साहब मिल गए।
उन्होंने छूटते ही कहा जल्दी से बाल श्रम पर एक लेख लिखकर देदो मैं मैगजीन का अगला
अंक बाल श्रम विशेषांक निकाल रहा हूं। मैंने कहा ठीक है शीघ्र ही एक लेख साथ आपकी
सेवा में उपस्थित होउंगा। कुछ दिनों बाद मैं नीयत समय पर लेख लेकर राय साहब के
आवास पर मौजूद था। लेकिन उस समय उनके कमरे का नजारा बदला हुआ था। राय साहब मोटे से
हंटर से दनादन अपने नौकर को पीटे जा रहे थे। कदाचित उनकी रात की शराब का नशा अभी
तक उतरा नहीं था। वे अपने दस साल के नौकर से मुखातिब थे। साले जानते नहीं हो मैं
कितना हरामी आदमी हूं। जब मेरे अंदर का जानवर जाग उठता है तो मैं किसी को भी नहीं पहचानता
हूं। मैंने बीच बचाव की कोशिश की। उन्होने कहा नहीं, मुझे जरा इसकी ठीक से खबर लेने दो। इसने आज मेरा नास्ता बनाकर देने में
पांच मिनट की देरी की है।
(BALSHARAM, SHORT STORY )
मैंने मन ही मन सोचा इतनी छोटी सी गलती के लिए इतनी
पिटाई। मुझे उस छोटे से बच्चे पर तरस आ रहा था। अपने नौकर निवृत होने के बाद राय
साहब मेरी ओर मुखातिब हुए। उन्होंने पूछा कहां है तुम्हारा आलेख? तब तक मैं अपने लेख को अपने हाथों में मोड़ कर टुकड़े टुकड़े कर चुका था।
मैंने प्रकट रूप में जवाब दिया- लेख तो फिर से लिखना पड़ेगा, मुझे कुछ नए संदर्भ याद आ गए हैं।
- विद्युत
प्रकाश मौर्य ( 1996)
1 comment:
Sachchai to yahi h.
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