सड़क पर
चलते हुए एक विशाल होर्डिंग पर नजर गई- योर फाइनेस्ट एड्रेस इन साउथ दिल्ली। यानी
दक्षिण दिल्ली में आपका बेहतरीन पता। भला पते में क्या रखा है। साकेत का हो, विकासपुरी का या फिर रोहिणी का। पता तो पता ही भर
है। लेकिन नहीं साहब दिल्ली में तो पते से ही सब कुछ जाना जाता है।
बिहार
ग्रामीण इलाके से दिल्ली आने के बाद थोड़े दिन तक मैं इस खुशफहमी का शिकार अवश्य
हुआ कि दिल्ली में जातिवाद जैसी बीमारी नहीं है। ग्लोबलाइजेशन के बयार ने सबको
बराबर कर दिया है। अब खाट पर सोने वाले और चौकी पर बैठने वाले में कोई भेद नहीं है।
दिल्ली में तो सभी सोफे पर बैठते हैं या फिर लोदी गार्डन और बुद्धा गार्डन की हरी
हरी घास पर। परंतु हमारा ये भ्रम तब टूटा जब पता चला कि दिल्ली में आपका स्टेटस इस
बात से तय होता है कि आप कौन सी लोकलिटी में रहते हैं। ग्रेटर कैलाश, वसंत विहार, माडल टाउन,
डिफेंस कालोनी, साउथ एक्सटेंशन, शालीमार बाग, विकासपुरी, जनकपुरी, उत्तमनगर, संगम विहार,
अंबेडकर नगर महज मुहल्ले के नाम भर नहीं है। बल्कि इन मुहल्लों के
नाम पर भर लिए जाने से आपका स्टेटस तय हो जाता है। अगर आप यमुना पर शकरपुर,
लक्ष्मीनगर, गणेशनगर, पांडव
नगर, पटपड़गंज, मयूर विहार, दिलशाद गार्डन, प्रीत विहार जैसे इलाके में रहते हैं
तो आप कुछ अलग किस्म के आदमी हो सकते हैं। दिल्ली में रहने वाले यमुना पर में रहने
वालों को कुछ अलग निगाह से देखते हैं। पहले कहावत मशहूर थी- सारे दुखिया जमुना
पार...लेकिन अब यमुना पार इलाका भले ही खुशहाल हो गया हो लेकिन यहां भी अलग अलग
मुहल्लों के हिसाब से अलग अलग तरह की श्रेणियां बनी हुई हैं।
आप कह सकते
हैं कि दिल्ली मानवों का महासमुद्र है के लेकिन इस समंदर का पानी किसी एक रंग का
नहीं है। अनोखा समुद्र है जिसमें कई रंग के पानी हैं। सोचने की बात हो सकती है कि
ग्रेटर कैलाश और किसी जेजे कालोनी मे रहने वालों की धमनियों में एक रंग का रक्त
कैसे प्रवाहित हो सकता है। केंटुकी फ्राइड चिकेन या नाथू स्वीट्स में रस मलाई खाने
वाले और किसी फुटपाथी ढाबे में अपनी पेट की आग बुझाने वाले धमनियों में एक जैसा
रक्त कैसे प्रवाहित हो सकता है।
अब तो
लालकिले से घोषणा कर देनी चाहिए कि दिल्ली से जातिवाद का सफाया हो गया है। अब यहां
ब्रांड आधारित भेदभाव का दौर रह गया है। आपकी पहचान इस बात से होती है कि आपने
घड़ी कौन से ब्रांड की बांध रखी है जींस किस लेबल का पहन रखा है, या आपका पता क्या है। दिल्ली की प्रेयसियां अपना
ब्वाय फ्रेंड चुनने से पहले ये नहीं देखती हैं कि उसकी टाइटिल शर्मा, वर्मा या गुप्ता है। बल्कि ये देखा जाता है कि उसके शूज कौन सी कंपनी के
हैं, वह परफ्यूम कौन से ब्रांड के लगाता है। सिगरेट कौन सी
पीता है। बाइक कौन सी कंपनी का है। जाति का तो कहीं नामोनिशान नहीं है। मुझे
उम्मीद है इसी तरह एक दिन पूरे देश से जातियां खत्म होंगी और ब्रांड आधारित पहचान
के सुहाने दिन आएंगे। परंतु ये सब कुछ होने के साथ अपने अस्तित्व को बचाए रखने के
लिए आपका पता भी खूबसूरत होना चाहिए। सिर्फ साउथ दिल्ली में ही नहीं बल्कि साउथ
दिल्ली की कोई बेहतरीन जगह। वर्ना अच्छे लोग आपको पत्र लिखने, फोन करने या मिलने से कतराएंगे।
- विद्युत प्रकाश
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