कई बार बहुत
काबिल आदमी भी बेवकूफी कर बैठता है। कभी कभी अपनी बेवकूफी पर हंस लेना बड़ी अच्छी
बात होती है। किसी की बेवकूफी का मजाक उड़ाने से अच्छा होता है कि आप बेवकूफी पर
बैठकर दिल खोलकर हंस लें और बाद में ऐसी ही बेवकूफी न करने की प्रण करें।
मुझे एक अपनी बेवकूफी याद आती है। एक नौकरी छूट गई थी। बेरोजगारी के दिन थे इसलिए अखबार में हर नौकरी के इस्तहार पर खास तौर पर नजर रहती थी। इसी तरह एक दिन की बात है कि एक अखबार में मेरे विषय में प्रवक्ता के पद के लिए वैकेंसी दिखी। मुझे रेगिस्तान में पानी दिखाई दिया। फटाफट विज्ञापन काटा। लिखा था कालेज के काउंटर से फार्म मिलेगा। मैंने अगले दिन वहां के लिए बस पकड़ी। कई घंटे का सफर और कई बसें बदलने के बाद कालेज के पास पहुंच गया। मैंने काउंटर पर जाकर फार्म की मांग की। कालेज के कर्ल्क ने कहा पार्थी का नाम बताइए। मैंने कहा कि प्राथी आपके सामने खड़ा है और मैंने अपना नाम बता दिया। उसने कहा कि शायद आपको पता नहीं यह कालेज लड़कियों का है। मैंने कहा तो क्या हुआ लड़कियों के कालेज में पुरूष प्रोफेसर भी तो होते हैं। उसने कहा कि लगता है आपने हमारा विज्ञापन ठीक से नहीं पढ़ा। हमने उसमे साफ साफ लिखा हुआ है कि यह पोस्ट लड़कियों के लिए ही आरक्षित है। अब मेरे पास अपनी बेवकूफी पर हंसने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा था। मेरा एक दिन बरबाद हुआ सो अलग।
मुझे अपनी यह बेवकूफी कई साल बाद कुछ यों याद आई कि पटना की एक सुबह मैं आटो रिक्सा से जा रहा था। एक आदमी मेरे बगल में आकर बैठा। उसके हाथ में एक नौकरी की परीक्षा के लिए प्रवेश पत्र था। वह 100 किलोमीटर से ज्यादा दूर किसी शहर से चल कर आया था। वह शेखपूरा में किसी दफ्तर का पता पूछ रहा था। मैंने शेखपूरा में अपना घर होने के नाते बताया कि वहां तो इस नाम का कोई दफ्तर ही नहीं है। तब उसके प्रवेश पत्र को मांग कर देखा गया। तब पता चला कि उसका प्रवेश पत्र शेखपूरा जिले में उपस्थित होने के बारे में था। वह शहर पटना से कई घंटे की दूरी पर था। अगर उस व्यक्ति ने घर पर बैठे पत्र की सही ढंग से तस्दीक की होती तो शायद उसे परीक्षा से वंचित नहीं होना पड़ता। मुझे उसकी बेवकूफी पर नसीहत देने की सुझी। फिर मुझे याद आया कि इस तरह की बेवकूफी तो कभी मैं भी कर चुका हूं। लिहाजा मैंने उसे ढाढस बंधाया। कोई बात नहीं अब किसी अगली नौकरी के लिए तैयारी करो।
मुझे एक अपनी बेवकूफी याद आती है। एक नौकरी छूट गई थी। बेरोजगारी के दिन थे इसलिए अखबार में हर नौकरी के इस्तहार पर खास तौर पर नजर रहती थी। इसी तरह एक दिन की बात है कि एक अखबार में मेरे विषय में प्रवक्ता के पद के लिए वैकेंसी दिखी। मुझे रेगिस्तान में पानी दिखाई दिया। फटाफट विज्ञापन काटा। लिखा था कालेज के काउंटर से फार्म मिलेगा। मैंने अगले दिन वहां के लिए बस पकड़ी। कई घंटे का सफर और कई बसें बदलने के बाद कालेज के पास पहुंच गया। मैंने काउंटर पर जाकर फार्म की मांग की। कालेज के कर्ल्क ने कहा पार्थी का नाम बताइए। मैंने कहा कि प्राथी आपके सामने खड़ा है और मैंने अपना नाम बता दिया। उसने कहा कि शायद आपको पता नहीं यह कालेज लड़कियों का है। मैंने कहा तो क्या हुआ लड़कियों के कालेज में पुरूष प्रोफेसर भी तो होते हैं। उसने कहा कि लगता है आपने हमारा विज्ञापन ठीक से नहीं पढ़ा। हमने उसमे साफ साफ लिखा हुआ है कि यह पोस्ट लड़कियों के लिए ही आरक्षित है। अब मेरे पास अपनी बेवकूफी पर हंसने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा था। मेरा एक दिन बरबाद हुआ सो अलग।
मुझे अपनी यह बेवकूफी कई साल बाद कुछ यों याद आई कि पटना की एक सुबह मैं आटो रिक्सा से जा रहा था। एक आदमी मेरे बगल में आकर बैठा। उसके हाथ में एक नौकरी की परीक्षा के लिए प्रवेश पत्र था। वह 100 किलोमीटर से ज्यादा दूर किसी शहर से चल कर आया था। वह शेखपूरा में किसी दफ्तर का पता पूछ रहा था। मैंने शेखपूरा में अपना घर होने के नाते बताया कि वहां तो इस नाम का कोई दफ्तर ही नहीं है। तब उसके प्रवेश पत्र को मांग कर देखा गया। तब पता चला कि उसका प्रवेश पत्र शेखपूरा जिले में उपस्थित होने के बारे में था। वह शहर पटना से कई घंटे की दूरी पर था। अगर उस व्यक्ति ने घर पर बैठे पत्र की सही ढंग से तस्दीक की होती तो शायद उसे परीक्षा से वंचित नहीं होना पड़ता। मुझे उसकी बेवकूफी पर नसीहत देने की सुझी। फिर मुझे याद आया कि इस तरह की बेवकूफी तो कभी मैं भी कर चुका हूं। लिहाजा मैंने उसे ढाढस बंधाया। कोई बात नहीं अब किसी अगली नौकरी के लिए तैयारी करो।
कई बार बड़े
विद्वान लोग भी अपने जीवन में बड़ी बेवकूफी कर देते हैं। पर हमें इन बेवकूफियों से
कुछ सीखना चाहिए। कहते हैं कि महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के पास एक आदमी
आया। उसने उन्हे लिफ्ट के फायदे के बारे में बताना आरंभ किया। आइंस्टीन ने सब कुछ
सुन कर अपने मकान में लिफ्ट लगाने का आदेश दे किया। बाद में उन्हें अहसास हुआ कि उनका
मकान तो सिर्फ एक मंजिल का ही है। इसमें लिफ्ट लगाना तकनीकी तौर पर संभव नहीं है
साथ ही इसकी कोई यहां जरूरत भी नहीं है। वास्तव में हमें किसी बेवकूफ या कम बुद्धि
के आदमी का भी उसकी बुद्धिमता या ज्ञान का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। लगातार प्रयास
से कई बार बेवकूफ आदमी भी कालांतर में विद्वान बन जाता है। कई लोग स्कूल जीवन के
तेज छात्र हाई स्कूल पास करके आईआईटी करके मेकेनिक हो जाते हैं वहीं कमजोर
विद्यार्थी धीरेधीरे अध्ययन करते करते एक दिन यूनीवर्सिटी में प्रोफेसर बन जाता
है।
---- विद्युत प्रकाश vidyutp@gmail.com
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