Tuesday, 2 June 2020

सत्यकाम – हिंदी सिनेमा इतिहास की बेहतरीन प्रेरक फिल्म


हिन्दी फिल्म इतिहास की चंद वे फिल्में जिन्हे बार बार देखने की इच्छा होती है उसमें एक है सत्यकाम। सन 1969 में बनी यह फिल्म कहानी की दृष्टि से अत्यंत उम्दा फिल्म है। फिल्म का नायक किसी भी सूरत में भ्रष्टाचार से समझौता नहीं करता। वह टूट जाता है, कैंसर से पीड़ित होकर मर जाता है पर सत्य और न्याय के मार्ग से समझौता नहीं करता। फिल्म में आदर्शवादी इंजीनियर सत्य प्रिय आचार्य की भूमिका में हैं धर्मेंद्र। सत्यकाम धर्मेंद्र की कालजयी फिल्मों में से है।

फिल्में उनके साथ संजीव कुमार, अशोक कुमार और शर्मिला टैगोर प्रमुख भूमिकाओं में हैं। फिल्म की कहानी सन 1946 से आरंभ होती है जब देश आजादी की दहलीज पर है। एक आदर्शवादी व्यक्ति सत्यप्रिय एक लड़की से मिलता है जिसका बलात्कार हुआ था। वह उसे अपनाता है। उससे शादी करता है। वह अपने आदर्शवाद के साथ उस बच्चे को भी अपनाता है जो उसका अपना नहीं है।
सन 1969 में 4 अप्रैल को प्रदर्शित इस फिल्म के निर्देशक थे ऋषिकेश मुखर्जी। फिल्म की कहानी नारायण सान्याल ने लिखी थी। फिल्म की पटकथा नारायण सान्याल के बांग्ला में इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है। संवाद लेखक थे राजिंदर सिंह बेदी। फिल्म को उस साल सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म की श्रेणी में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला था। सन 1971 में इस फिल्म के लिए राजिंदर सिंह बेदी को बेस्ट डॉयलॉग का फिल्म फेयर अवार्ड मिला।
मैं इंसान हूं, भगवान की सबसे बड़ी सृष्टि, मैं उसका प्रतिनिधि हूं, किसी अन्याय के साथ सुलह नहीं करूंगा।
कुछ साल पहले जब धर्मेंद्र से उनकी श्रेष्ठ फिल्मों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने सत्यकाम का नाम लिया था। फिल्म का एक संवाद है – सत्य बोलने का अंहकार नहीं, सत्य बोलने का साहस होना चाहिए, चाहे सत्य कितना ही कठोर या अप्रिय क्यों न हो।
फिल्म की कहानी संजीव कुमार के वायस ओवर से शुरू होती है। वह अपने दोस्त सत्यकाम की कहानी सुना रहे हैं।

फिल्म के अंतिम दृश्यों में इंजीनियर धर्मेंद्र की मौत हो जाती है। उनके दादा सत्य शरण आचार्य (अशोक कुमार) वहां पहुंच गए हैं। वह सत्यप्रिय की बेसहारा हो चुकी पत्नी और उसके बेटे काबुल ( जो रक्त संबंध से सत्यप्रिय का पुत्र नहीं है) को अपनाने पर मजबूर जता हैं। वे काबुल की सत्य निष्ठा देखकर उसका नाम देते हैं सत्यकाम और कहते हैं - 

खून से वंश की परंपरा नहीं चलती। तो विश्वास का वहन करते हैं वही वंश को चलाते हैं।

आज समाज में जब हम आगे बढ़ने के लिए तुरंत शार्ट कट गलत तरीके अपनाने और भ्रष्ट आचरण करने के लिए तुरंत तैयार हो जाते हैं सत्यकाम जैसी फिल्में आपको प्रेरित करती हैं सत्य और न्याय के पथ पर चलते रहने के लिए।

अनुपमा, आनंद, अभिमान जैसी फिल्मेंन बनाने वाले ऋषिकेश मुखर्जी की बेहतरीन फिल्मों में से है सत्यकाम। फिल्म के कई – दृश्य आपको भावुक कर देते हैं। कई बार अंतर को उद्वेलित करते हैं। मौका मिले तो जरूर देखिए।
सन 1984 में जब मैं आठवीं कक्षा का छात्र था तब एक रविवार को दूरदर्शन पर सत्यकाम पहली बार देखी थी। इसके बाद इस फिल्म को कई बार देख चुका हूं।
-         - विद्युत प्रकाश मौर्य vidyutp@gmail.com 
(  ( SATYAKAM MOVIE, DHARMENDRA, SHARMILA TAGORE ) 

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