Monday, 22 June 2020

लॉकडाउन ने दिखाए नए रास्ते

इस लॉकडाउन ने जीने का तरीका बदल दिया है। तकनीक के इस्तेमाल से जहां लोग अपनों से संपर्क की कोशिश में हैं तो कई तरह के आयोजनों का स्वरूप भी बदल गया है।

मिलना जुलना काफी कम हो गया है तो लोग व्हाट्सएप कॉलिंग और गूगल डियो से कॉलिंग करके एक दूसरे को देखने की कोशिश कर रहे हैं। भला हो कि अब इंटरनेट गांव गांव पहुंच गया है इसलिए यह सब कुछ संभव हो पा रहा है।
स्कूल कॉलेज की कक्षाएं जूम एप, एमएस टीम पर लगने लगी हैं। लॉकडाउन से ठीक पहले मेरे बेटे पटना चले गए थे। पर उनके दिल्ली स्थित स्कूल  की कक्षाएं पहले जूम एप लगने लगीं बाद में माइक्रोसाफ्ट के टिम्स पर। कई कॉलेजों के शिक्षक भी कक्षाएं भी टीम ले रहे हैं। भुवनेश्वर के आकाश इंस्टीट्यूट कोचिंग में फैकल्टी में कार्यरत वीरेंद्र कुमार वर्मा भी कोचिंग में फिजिक्स की कक्षाएं रोज ऑनलाइन ले रहे हैं। जीमेल ने भी गूगल मीट नामक एप अपने फीचर में जोड़ा है जिसमें एक साथ ज्यादा लोग लाइव हो सकते हैं।

तो क्या आने वाले दौर में स्कूल, कॉलेज कोचिंग का स्वरूप बदल जाएगा। हमारे स्कूल शिक्षक साथी दिग्विजय नाथ सिंह कहते हैं कि कई स्कूलों ने इसके लिए पहले से ही तैयारी करनी शुरू कर दी थी। मतलब ऑनलाइन कक्षाएं और उसके लिए सक्षम साफ्टवेयर की तैयारी। तो फिर स्कूलों के विशाल भवन की क्या जरूरत रह जाएगी। छात्र एकलव्य की तरह शिक्षा लिया करेंगे। कई जगह अभिभावक आंदोलन कर रहे हैं कि जब कक्षाएं नहीं तो स्कूल इतनी मोटी मोटी फीस क्यों ले रहे हैं। गाजियाबाद के अभिभावक कह रहे हैं कि स्कूल फीस लेना बंद करें।

शैक्षिक सेमिनारों की जगह वेबिनार ने ले ली है। अब शिक्षाविद लोग जूम एप पर वेबिनार का आयोजन कर रहे हैं। हालांकि कई लोग ऐसे वेबिनार के खिलाफ भी हैं।
वैसे सेमिनार, गोष्ठी या सांस्कृतिक आयोजनों में जाने पर लोगों से जो प्रत्यक्ष संवाद होता था वह इन वेबिनारों में कहां संभव है। कुछ पुराने लोगों से मुलाकात और कुछ नए लोगों से दोस्ती के मौके खत्म हो गए हैं। वेबिनार में सिर्फ पुराने मठाधीशों की चलती है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के आयोजन भी ऑनलाइन होने लगे हैं। रोज मिलने वाले लोग अब आभासी दुनिया में मिलने लगे हैं। 

कई संस्थाओं ने फेसबुक लाइव का चलन शुरू किया है। गायक, संस्कृतिकर्मी और शिक्षाविद अलग अलग लोकप्रिय पेज पर फेसबुक लाइव कर रहे हैं। इसका फायदा है देशदुनिया के अलग अलग शहरों के लोग निश्चित समय पर जुड़ कर एक दूसरे को सुनते हैं।

छपरा, दिल्ली, पटना, बनारस, न्यूयार्क सब एक साथ ये फेसबुक लाइव पर संभव है। यहां कमेंट्स के माध्यम से दो तरफा संवाद भी संभव हो पाता है। पिछले 21 जून को मुझे सारण भोजपुरिया समाज के फेसबुक पेज पर बतकही करने का मौका मिला। भोजपुरी में एक घंटे बोलना था। भोजपुरी क्षेत्र के पर्यटक स्थलों के बारे में। कई सौ लोग जुड़े। बाद में इस लाइव को हजारों लोगों ने सुना। इतनी रोचकता रही कि समय कम पड़ गया। यह सब कुछ तकनीक से संभव है।

हिन्दुस्तान हिंदी दैनिक के मुख्य संपादक शशि शेखर जी पिछले दिनों हम बीएचयू के लोग के फेसबुक पेज पर लाइव हुए। फिर वे हरि सिंह गौड़ विश्वविद्यालय सागर के छात्रों को फेसबुक लाइव से संबोधित करते नजर आए। फेसबुक लाइव का फायदा है कि आपको घर से कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं। और देश दुनिया के लोग आपको सुन सकते हैं। रियल टाइम में भी और बाद में भी। तो यह सब कुछ भविष्य में भी जारी रहने वाला है। लॉकडाउन ने हमें कुछ नए रास्ते दिखा दिए हैं।
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com 
( LOCKDOWN, SEMINAR, WEBINAR, FACEBOOK LIVE, ZOOM APP, MS TEAM )  


  


3 comments:

Robin said...

Great to hear

Atmia education said...

Why choose Philippines to Study MBBS Abroad?
MBBS education is also known as MD (Doctor of medicine) in Philippines. It is amongst the top most preferable options for international students for studying medicine abroad. Most of the universities in Philippines have standard conditions to get admission. The requirements are very standard and hence it is easier for international students to succeed in acquiring admission for studying MD in Philippines. There are many medical colleges in Philippines and out of all, amongst the top Mbbs in philippines
is UV Gullas College of Medicine.
Something about UV Gullas College of medicine:
UV Gullas College is more than a centuary old as it was established in the year 1919 and since the time of its establishment they have been continuously providing high quality education and giving out best quality of education and doctors.
One of the oldest and top most preferred college is UV Gullas College for studying MD in Philippines. The best part about the college is that it has highly skilled and educated professors and doctors who are part of their teaching, education and practical faculties.
Like most of the other colleges in the Philippines, the UV Gullas College of medicine is recognised, accredited and certified by most of the recognition agencies such as Educational Commission for Foreign Medical Graduates(ECFMG), The General Medical Council (GMC), World Health Organization(WHO), Educational Commission for Foreign Medical Graduates(ECFMG), The General Medical Council (GMC), Medical Council of India (MCI), Commission on Higher Education, Philippines(CHED), The United States Medical Licensing Examination(USMLE), Foundation for Advancement of International Medical Education and Research(FAIMER).

The mode of instructions in UV Gullas College is in English language and therefore it is convenient for students coming from abroad countries to be able to understand and most of the students know English language and therefore they need not learn any new language.
As far as the fees is concerned, UV Gullas college of medicine is affordable for foreign students, the fees payment can be made upfront or facilitated in in easy instalments. It is also to be noted that with the reputation of the college, the students get facility to obtain loan for the purpose of educationso one should Study MBBS Abroad.
Before choosing the university people should consider uvgullas college of medicine annual tuition fees.

uncancer said...

Constipation and Cancer: How are they connected?


Whether due to surgery, chemotherapy, pain medications or because of other medical conditions, constipation can start as an uncomfortable feeling and progress to a painful affair. How you manage it depends on how you define the kind of constipation you experience. The condition is relative, referring to a shift from the normal in bowel movement for a person. Normal bowel movement can vary from once or twice a day to onee in two days even. One definition of the condition is the "four toos – stools that are too hard, too small, too difficult to expel, and too infrequent".

constipation and cancer