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लेकिन फिलहाल सरकार इन भगवान के नाम पर देदे अल्लाह के नाम पर देदे...कहने वालों के खाने पीने का इंतजाम करने में लगी है। इसके बाद हमने पूरी दिल्ली में जगह जगह बड़े बडे व्यू कटर्स लगवाए हैं। खास तौर पर उन जगहों पर जहां जहां कूड़े के ढेर लगे थे। उन कूड़े के ढेर और गंदगी को छिपा कर विदेशी मेहमानों के स्वागत में बड़े बड़े होर्डिंग लगा दी गई है। दिल्ली आपका स्वागत करती है...भला भोले भाले विदेशी मेहमानों को क्या पता चल पाएगा कि इन कूड़े के ढेर के पीछे बदबू का अंबार है। ठीक उसी तरह जब किसी गरीब आदमी के घर की दीवारों की पपड़ियां गिरने लगती हैं तो उन्हें कैलेंडर या पोस्टर चिपका कर छिपा दिया जाता है। इसी तरह हमने भी शहर बदरंग दिखाने वाली गंदगी को छिपा दिया है। इतना ही नहीं हमने उन ब्लू लाइन बसों को भी 20 दिन नहीं चलने का आदेश दे दिया है। जो हमारे शहर की खूबसूरती में बदनुमा धब्बा थी।
अगर चलना ही है तो खूबसूरत एसी बसों में चलो। अगर जो जेब में पैसे नहीं हैं तो घर में रहो। हमने अपने प्यारे नागरिकों को आग्रह किया है कि वे दफ्तर जाने के लिए बसें नहीं मिलती तो अगले 20 दिन सहयोग करें। हो सके तो घर से ही नहीं निकलें। दफ्तर नहीं जाएं तो अच्छा है। घर में बैठकर टीवी पर कामनवेल्थ खेलों के मजे लें। भला देश के लिए इतना तो कर ही सकते हैं। हमें भीष्म साहनी की लोकप्रिय कहानी चीफ की दावत की याद आती है। जिसमें अपने बॉस को पार्टी में घर बुलाने के समय बाबू अपनी बूढ़ी मां को जो बार बार खांसती है स्टोर में छिपा देता है। सो गरीबी पर पेबंद लगाने की हमारी आदत पुरानी रही है। कई गरीब लोग अपनी गरीबी छुपाने के लिए घर के दरवाजे पर रंगीन परदे लगवा देते हैं। जब कोई मेहमान घर में आए तो पहले परदे के पास दस्तक दे। लेकिन तब क्यो हो जब बकौल शायर...
आधी-आधी रात को जब चुपके से कोई मेरे घर में आ जाता है...
तब कसम गरीबी की, अपने गरीबखाने पर बड़ा तरस आता है।
- विद्युत प्रकाश मौर्य
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