Wednesday, 28 February 2018

भारतीय राजनीति का पकौड़ा काल ( व्यंग्य )

जो बच्चे यूपी में बोर्ड की परीक्षा छोड़ रहे हैं वे बड़े समझदार हैं। अब तक 10 लाख से ज्यादा बच्चे परीक्षा छोड़ चुके हैं। वे इस दिव्य ज्ञान से अवगत हो चुके हैं कि ज्यादा पढ़ने लिखने से कोई लाभ होने वाला नहीं है। सालों बरबाद होंगे। माता पिता की मिहनत की कमाई का रुपया फूंकेगा सो अलग। उन्हे हाल में पकौड़ा ज्ञान मिल गया है। वास्तव में पकौड़ा तलने का मजाक उड़ाने की जरूरत नहीं है। पकौड़ा तो अब स्वरोजगार का प्रतीक बनकर उभरा है। इसलिए गौर फरमाइए-
पढ़ोगे लिखोगे बनोगे ख़राब ! पकोड़ा बेचेगो बनोगे नवाब !!
मध्य प्रदेश की राज्यपाल और गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल बोलीं- पकौड़ा बनाना भी कौशल विकास का हुनर, तीन साल में रेस्त्रां के मालिक बन सकते हैं। बिल्कुल सही फरमाया है आनंदी बेन ने। उन्होंने ये भी कहा कि अडानी और अंबानी जैसे कारोबारियों ने भी शुरुआत छोटे कारोबार से की थी। सभी को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती. हमारा अनुभव है कि पकौड़े तलना भी कौशल विकास का एक हुनर है।
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह पकौड़ा रोजगार की बात को दोहराया है एक भाषण में शाह ने कहा कि बेरोजगारी से अच्छा है कि कोई युवा पकौड़ा बेच रहा हैपकौड़ा बेचना शर्म की बात नहीं है इसकी भिखारी के साथ तुलना ना करें। शाह ने कहा कि चाय बेचने वाला आज देश का प्रधानमंत्री है। आज जो पकौड़ा बेच रहा है वो कल का उद्योगपति बन सकता है।
रोजी रोजगार पर चला हथौडा,
तलो समोसा और बेचो पकौड़ा
जिस किसी ने ये नारा बनाया वह बेवकूफ है। वास्तव में पकौड़ा तो रोजगार का प्रतीक बन चुका है। पकौड़ा पर मेरे भी कुछ सुझाव हैं। बेकार का मजाक बंद करें। मुझे लगता है साहित्यकारों को भी अब उत्तर आधुनिक विमर्श, स्त्री विमर्श आदि से आगे बढ़कर साहित्य में पकौड़ा विमर्श की शुरुआत कर देनी चाहिए
सरकार को भी चाहिए कि प्रधानमंत्री पकौड़ा परियोजना लेकर आए। इसमें युवाओं को पकौड़ा की ठेली लगाने के लिए रोजगार उपलब्ध कराया जाए। साथ पुलिस वालों को निर्देश हो कि वे पकौड़े की ठेली से हरगिज रोजाना की अपनी बंधी बंधाई रकम की वसूली बंद करें।
उच्च शिक्षण संस्थाओं में पकौड़ा पर शोध होना चाहिए। आईआईटी में खास तौर पर पकौड़ा पर शोध शुरू हो जाना चाहिए। जैसे कैसे पकौड़े वाला करोड़पति बना और उसने पीएचडी किए लोगों को अपने यहां मुलाजिम रखा।
साथ ही मेरी एक और गुजारिश है कि पकौड़े जैसी नाक कहावत बंद हो। ऐसा कहने वाले पर जुर्माना हो। अब आप अपने बच्चों के नाम पकौड़ी लाल रखें।

अब जरा देखिए कितने किस्म के पकौडे होते हैं। आलू पकौड़ाब्रेड पकौड़ाप्याज पकौड़ामिर्च पकौड़ामूंग दाल पकौड़ा, चना दाल पकौड़ाचिकन पकौड़ा, क्रंची पनीरपकौड़ागोभी पकौड़ा बैगन पकौड़ा आदि आदि। आपको जो पसंद हो स्वाद लिजिए पर पकौड़े के खिलाफ न बोलें। पकौड़ा को गुजराती भजिया कहते हैं। पर नाम बदल जाने से क्या होता है।

अब जरा पकौड़े के इतिहास पर नजर डालिए। पकौड़ा एक ऐसा फ्राइड स्नैक्स है जो भारत का ही है। पर यह भारत के अलावा पड़ोसी देश पाकिस्तानबांग्लादेश और नेपाल में भी बहुत प्रसिद्ध हैबता दें कि पकौड़ा शब्द संस्कृत का शब्द 'पक्ववटसे बना है. पक्व मतलब होता है पका हुआ और वट का मतलब है दालों से बना हुआ गोलाकार केक जिसे घी में तला जाता हो
क्या आपको पता है कि शाहजहां ने मुमताज को पकौड़ा खिलाकर ही पटाया था। वैसे पकौड़ा को महाराष्ट्रकर्नाटक और आंध्रप्रदेश में पकौड़ा न कहकर भाजी कहा जाता है जैसे आलू भाजीप्याज की भाजीमिर्च की भाजी आदिप्याज की भाजी बनाने के लिए प्याज को बारीक काटकर हरी मिर्च के साथ मिक्स कर बेसन के घोल में डूबोकर तला जाता हैस्वादानुसार मसाले भी मिलाए जाते हैंइसी तरह से बेसन या आटे के घोल में डूबोकर तरह-तरह के पकौड़े बनाए जाते हैं

इक्कीसवीं सदी  के महान पत्रकार सुधीर चौधरी ने सरकार द्वारा किए गए रोजगार के अवसर पैदा करने के वादे के मामले पर सवाल किया तब पीएम मोदी ने पकौड़ा तलने का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि अगर जी टीवी के बाहर कोई व्यक्ति पकौड़ा बेच रहा है तो क्या वह रोजगार होगा या नहीं?
मोदी जी ने जवाब दिया - अगर आपके जीटीवी के आफिस के बाहर कोई पकौड़े बेचताहै और शाम को 200 रुपये कमाकर जाता है तो आप उसे रोजगार मानोगे की नहीं मानोगे... बिल्कुल सही कहा था पीएम साहब ने। शुक्रिया आपने आंखे खोल दीं।
क्या आपको पता है कि भारत में पकौड़े का हर दिन का 100 करोड़ के ऊपर का व्यापार हैमहीने का 3000 करोड़ और साल का 36000 करोड़ अरे येनाम का ही है पकौड़ा। वैसे तो अच्छे - अच्छे को कड़ाही में तल देता है।
( ये व्यंग्य नहीं है, कृपया इसे गंभीरता से ही लें )
-        विद्युत प्रकाश मौर्य

Tuesday, 13 February 2018

पुराने दोस्तों के संग बातें... ( कविता )


आज मैंने अपनी पुरानी डायरी
के कुछ पन्ने पलटे..
इनमें कुछ पुराने दोस्तो के नाम थे..
वे नाम जो वाट्सएप फेसबुक के जमाने से पहले
मेरे साथ हुआ करते थे...

इनमें से कुछ अब भी साथ हैं
तो कुछ वहीं पड़े हैं पुरानी डायरी के पन्नों में ही...

सोचा चलो चलकर मिलते हैं उनसे
फुरसत में
करेंगे ढेर सारी बातें

वे बातें
जिनका सिलसिला कभी नहीं रुकता

पुराने दोस्त कुछ ऐसे थे
जो फोन करके पूछते थे
नौकरी कैसी चल रही है...

और बेरोजगारी के दिनों में पूछा करते थे
पैसे खत्म हो गए क्या
कहो तो कुछ रुपये भिजवा दूं
जो मैंने अपनी पत्नी से छिपाकर 
अलग से जमा कर रखा है...
जब बन पड़े लौटा देना।

पुराने दोस्त मुझे सीखाते थे
महानगर में रहने का सलीका...

ये सीखाते थे कैसे बचाए जाए
बुरे वक्त के लिए दो पैसा। 
कहते थे बासमती का टुकड़ा चावल 
खरीदा करो... कुछ रुपये बचेंगे..

वे पुराने दोस्त कुछ ऐसे थे
जिनके कंधे पर सिर रखकर
देर तक रोने की इच्छा होती थी

आभासी दुनिया के
इन फेसबुकिया दोस्तों के बीच
पुराने दोस्त कहीं खो गए हैं...

चलो एक बार फिर ढूंढते हैं
पुरानी डायरी से
उनका नाम और पता..

तय करते हैं एक मुलाकात...
और फुटपाथ पर बैठकर
पीएंगे कटिंग चाय...
देर तक लड़ाएंगे गप्प..

और पूछेंगे एक दूसरे से
ये कहां आ गए हम....
यूं दूर- दूर चलते हुए....

-    विद्युत प्रकाश मौर्य  ( मार्च 2017 ) 

Sunday, 11 February 2018

मेरी मां ( कविता )


बातें उसकी माखन मिश्री
स्पर्श उसका चंदन है
जिंदगी तुझपे वार दूं
चरणों में तेरे वंदन है
मेरी पूजा मेरी मां.....

शाम का संगीत है
रात की वो लोरी है
नेह की नदिया है
दूध की कटोरी है
शहद सी मीठी मेरी मां.....

गरमी की शीतल छांव है
अमराई की वो गांव है
सरदी की सुनहरी धूप है
अनगिनत उसके रूप हैं।
अनूठी अलबेली मेरी मां।


-         ----  विद्युत प्रकाश मौर्य
-         08 मई 2013

Friday, 9 February 2018

कागज की नाव ( कविता )


  


बारिश में भींगते हुए 

पानी के संग खेलते हुए

बनाई है मैंने देखो

कितनी प्यारी 

कागज की नावें

तैरती हैं छोटे से सागर में

सात समंदर पार 

ये जाएंगी

मेरे लिए कुछ 

सौगात लेकर आएंगी

कल्पना की मंजिल 


की राह में जाएंगी

अज्ञात प्रेमिका का

पता ढूंढ लाएंगी

प्रेरणा बनकर ये मेरा 

साथ निभाएंगी

रखूंगा सहेज कर मैं इन्हें


ये मेरे भविष्य का 

रास्ता दिखाएंगी...


(अगस्त 1985 ) 

Wednesday, 7 February 2018

जुल्फें ( कविता )

यूं न बिखराईए
इन जुल्फों को...

नादां दिल है
इन्ही में खोकर
रह जाएगा.....

मंजिल तो दूर है
रास्ता भी...

इन्ही वादियों में
सिमट कर रह जाएगा....

-
 विद्युत प्रकाश

( प्रकाशित -साहित्य संगम, 1989) 

Monday, 5 February 2018

अब खुशबू नहीं आती ( कविता )

सर्दी की सुबह की मीठी धूप को
कुहरे ने ढक लिया
कुछ पुराने रिश्ते
सह नहीं सके
तेज धूप का तीखापन

कि अब किसी के आने जाने से
खुशबू नहीं आती
चांदी के चंद ठीकरों
के मोह में
कुछ दोस्तों ने गिरवी रख दिया
स्वाभिमान...


दरिद्रता के दौर में जी रहे हैं वो
जो दावा करते थे
सूचना के सौदागर बनने का
जिन्होंने कहा था
वक्त पर काम आएंगे


पहली बरसात में ही
उनके घर की दीवारें रिस गईं
खिड़की और दरवाजे खुले थे
हवा आई और सारा घर
उड़ा कर ले गई...


फिर भी बची है आस्था
नींव के ईंटों में
कि एक दिन लौटकर आएगा
गुजरा जमाना....

-    विद्युत प्रकाश

Saturday, 3 February 2018

सपना अच्छे दिन का... ( कविता )


हर सुबह 

जब मैं उठता हूं
देखता हूं उस लाल सूरज को
संजोता हूं सपना
एक खूबसूरत दिन का


जब जाता हूं नाश्ते की टेबल पर
देखता हूं वहां
आज की ताजा खबर
ताजा की जगह
फिर वही होता है बासी
युद्ध और आतंकवाद के साए में
पलती विश्व की तस्वीर


कोई नहीं जाता
एवरेस्ट पर
हां कुछ बहुएं अवश्य
जलाई जाती हैं..

ये धार्मिक आंदोलन
वो विश्वबंधुत्व का सपना

हां थोड़ी शीतलता
विज्ञापन दे जाते हैं
दुनिया रंगीन और लुभावनी है
वे ये कह जाते हैं।

लेकिन फिर वही मनहूस खबरें
नहीं होने देतीं कभी अपना
मेरे खूबसूरत दिन का सपना।

-             -----   विद्युत प्रकाश मौर्य  ( साल -1992 )