जो
बच्चे यूपी में बोर्ड की परीक्षा छोड़ रहे हैं वे बड़े समझदार हैं। अब तक 10 लाख
से ज्यादा बच्चे परीक्षा छोड़ चुके हैं।
वे इस दिव्य ज्ञान से अवगत हो चुके हैं कि ज्यादा पढ़ने लिखने से कोई लाभ होने
वाला नहीं है। सालों बरबाद होंगे। माता पिता की मिहनत की कमाई का रुपया फूंकेगा सो
अलग। उन्हे हाल में पकौड़ा ज्ञान मिल गया है। वास्तव में पकौड़ा तलने का मजाक
उड़ाने की जरूरत नहीं है। पकौड़ा तो अब स्वरोजगार का प्रतीक बनकर उभरा है। इसलिए
गौर फरमाइए-
पढ़ोगे लिखोगे बनोगे ख़राब ! पकोड़ा बेचेगो बनोगे नवाब !!
मध्य
प्रदेश की राज्यपाल और गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल बोलीं- पकौड़ा
बनाना भी कौशल विकास का हुनर,
तीन
साल में रेस्त्रां के मालिक बन सकते हैं। बिल्कुल सही फरमाया है आनंदी बेन ने।
उन्होंने ये भी कहा कि अडानी और अंबानी जैसे कारोबारियों ने भी शुरुआत छोटे कारोबार
से की थी। सभी को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती. हमारा अनुभव है कि पकौड़े तलना भी
कौशल विकास का एक हुनर है।
भाजपा
अध्यक्ष अमित शाह ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी की तरह पकौड़ा रोजगार
की बात को दोहराया है। एक भाषण में शाह ने
कहा कि बेरोजगारी से अच्छा है कि कोई युवा पकौड़ा बेच रहा है, पकौड़ा बेचना शर्म की बात नहीं है इसकी भिखारी के साथ तुलना ना करें। शाह ने कहा कि चाय बेचने वाला आज देश का प्रधानमंत्री है। आज जो पकौड़ा बेच रहा है
वो कल का उद्योगपति बन सकता है।
रोजी रोजगार पर चला हथौडा,
तलो समोसा और बेचो
पकौड़ा
जिस किसी ने ये नारा बनाया वह बेवकूफ है। वास्तव में पकौड़ा
तो रोजगार का प्रतीक बन चुका है। पकौड़ा पर मेरे भी कुछ सुझाव
हैं। बेकार का मजाक बंद करें। मुझे लगता
है साहित्यकारों को भी अब उत्तर आधुनिक विमर्श, स्त्री विमर्श आदि से आगे बढ़कर साहित्य
में पकौड़ा विमर्श की शुरुआत कर देनी
चाहिए।
सरकार
को भी चाहिए कि प्रधानमंत्री पकौड़ा
परियोजना लेकर आए। इसमें युवाओं को पकौड़ा की ठेली लगाने के लिए रोजगार
उपलब्ध कराया जाए। साथ पुलिस वालों को निर्देश हो कि वे पकौड़े की ठेली से हरगिज
रोजाना की अपनी बंधी बंधाई रकम की वसूली बंद करें।
उच्च शिक्षण संस्थाओं में पकौड़ा पर शोध होना चाहिए। आईआईटी
में खास तौर पर पकौड़ा पर शोध शुरू हो जाना चाहिए। जैसे कैसे पकौड़े वाला करोड़पति बना और
उसने पीएचडी किए लोगों को अपने यहां मुलाजिम रखा।
साथ ही मेरी एक और गुजारिश है कि पकौड़े
जैसी नाक कहावत बंद हो। ऐसा कहने वाले पर जुर्माना हो। अब आप अपने बच्चों के नाम पकौड़ी लाल रखें।
अब जरा देखिए कितने किस्म के पकौडे होते हैं। आलू
पकौड़ा, ब्रेड पकौड़ा, प्याज पकौड़ा, मिर्च पकौड़ा, मूंग दाल पकौड़ा, चना दाल पकौड़ा, चिकन पकौड़ा, क्रंची पनीर, पकौड़ा, गोभी पकौड़ा बैगन पकौड़ा
आदि आदि। आपको जो पसंद हो स्वाद लिजिए पर पकौड़े के खिलाफ न बोलें। पकौड़ा को गुजराती भजिया कहते हैं। पर नाम बदल जाने से क्या होता है।
अब जरा पकौड़े के इतिहास पर नजर डालिए। पकौड़ा
एक ऐसा फ्राइड स्नैक्स है जो भारत का ही है।
पर यह
भारत के अलावा पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल में भी बहुत प्रसिद्ध है। बता दें कि पकौड़ा शब्द संस्कृत
का शब्द 'पक्ववट' से बना है. पक्व मतलब होता है
पका हुआ और वट का मतलब है दालों से बना हुआ गोलाकार केक जिसे घी में तला जाता हो।
क्या आपको पता है कि शाहजहां ने मुमताज को पकौड़ा खिलाकर ही
पटाया था। वैसे पकौड़ा को महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में पकौड़ा न कहकर भाजी कहा जाता है जैसे आलू
भाजी, प्याज की भाजी, मिर्च
की भाजी आदि। प्याज
की भाजी बनाने के लिए प्याज को बारीक काटकर हरी मिर्च के साथ मिक्स कर बेसन के घोल
में डूबोकर तला जाता है। स्वादानुसार
मसाले भी मिलाए जाते हैं। इसी
तरह से बेसन या आटे के घोल में डूबोकर तरह-तरह के पकौड़े बनाए जाते हैं।
इक्कीसवीं सदी के महान पत्रकार सुधीर चौधरी ने सरकार
द्वारा किए गए रोजगार के अवसर पैदा करने के वादे के मामले पर सवाल किया तब पीएम
मोदी ने पकौड़ा तलने का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि अगर जी टीवी के बाहर कोई
व्यक्ति पकौड़ा बेच रहा है तो क्या वह रोजगार होगा या नहीं?
मोदी
जी ने जवाब दिया - अगर आपके जीटीवी के आफिस के बाहर कोई पकौड़े बेचताहै और शाम को
200 रुपये कमाकर जाता है तो आप उसे रोजगार मानोगे की नहीं मानोगे... बिल्कुल सही कहा था पीएम साहब ने। शुक्रिया आपने आंखे खोल
दीं।
क्या आपको पता है कि भारत
में पकौड़े का हर दिन का 100 करोड़ के ऊपर का व्यापार है। महीने का 3000 करोड़ । और
साल का 36000 करोड़ अरे येनाम
का ही है पकौड़ा। वैसे तो
अच्छे
- अच्छे को कड़ाही में तल देता है।
( ये व्यंग्य नहीं है, कृपया इसे गंभीरता से ही लें )
( ये व्यंग्य नहीं है, कृपया इसे गंभीरता से ही लें )
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विद्युत
प्रकाश मौर्य