कई साल पुराने कई दोस्त एक साथ मिल जाएं तो अनुभव कितना सुखद हो सकता है, इसे सिर्फ महसूस ही किया जा सकता है। दिल्ली की एक सर्द भरी शाम में ऐसे ही कुछ पुराने दोस्तों से मुलाकात हो गई। मौका था 25 दिसंबर को मालवीय जयंती का। वैसे तो मालवीय जयंती हर साल मनाई जाती है। लेकिन दीन दयाल उपाध्याय मार्ग पर नव निर्मित मालवीय स्मृति भवन में इस बार मेरे बैच के कई दोस्तों ने तय किया कि हमलोग आयोजन में पहुंचने की कोशिश करेंगे।
तो 1993 बैच के स्नातक और 1995 बैच के एमए के कई साथ मिल गए इस मौके पर। संजीव गुप्ता, राजेश गुप्ता बंधु तो कई सालों से दिल्ली में हैं। अमिताभ चतुर्वेदी, गाजियाबाद, शक्तिशरण सिंह, उत्तम कुमार, ज्ञान प्रकाश, अमित कौशिक का एक साथ मिल जाना महज संयोग ही था। बीएचयू एलुमिनी एशोसिएशन में सक्रिय रोहित सिन्हा जो दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट में वकालत करते हैं हमारे समकालीन ही हैं। आदर्श सिंह, ( जनसत्ता में कार्यरत ) और हरिकेश बहादुर (दूरदर्शन ) और चंदन कुमार पहुंच नहीं सके। लेकिन सबसे सुखद रहा अलख निरंजन से मिलना।
मनोविज्ञान के साथी अलख इन दिनों अरूणाचल प्रदेश में एक आवासीय विद्यालय चला रहे हैं। वे अपनी पत्नी और नन्ही सी बिटिया के साथ आए थे। दक्षिण भारत दौरे से लौटे अलख अपने दोस्तों से मुलाकात के लिए ही दिल्ली में रूक गए थे। इस बार के हुए कार्यक्रम में लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने सुरों की धार बहाई।
तो 1993 बैच के स्नातक और 1995 बैच के एमए के कई साथ मिल गए इस मौके पर। संजीव गुप्ता, राजेश गुप्ता बंधु तो कई सालों से दिल्ली में हैं। अमिताभ चतुर्वेदी, गाजियाबाद, शक्तिशरण सिंह, उत्तम कुमार, ज्ञान प्रकाश, अमित कौशिक का एक साथ मिल जाना महज संयोग ही था। बीएचयू एलुमिनी एशोसिएशन में सक्रिय रोहित सिन्हा जो दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट में वकालत करते हैं हमारे समकालीन ही हैं। आदर्श सिंह, ( जनसत्ता में कार्यरत ) और हरिकेश बहादुर (दूरदर्शन ) और चंदन कुमार पहुंच नहीं सके। लेकिन सबसे सुखद रहा अलख निरंजन से मिलना।
मनोविज्ञान के साथी अलख इन दिनों अरूणाचल प्रदेश में एक आवासीय विद्यालय चला रहे हैं। वे अपनी पत्नी और नन्ही सी बिटिया के साथ आए थे। दक्षिण भारत दौरे से लौटे अलख अपने दोस्तों से मुलाकात के लिए ही दिल्ली में रूक गए थे। इस बार के हुए कार्यक्रम में लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने सुरों की धार बहाई।
अब थोड़ी सी बात मालिनी के गीतों की कर लें तो मालिनी जी की स्टेज परफारमेंस बड़ा ही रोचक, मनभावन और नाट्य प्रस्तुति लिए होता है। उन्हें टीवी पर सुनना और लाइव सुनना दोनो ही अलग अलग अनुभूति है। गिराजा देवी की शिष्या मालिनी अपने ट्रूप के साथ आई थीं। ईश वंदना के बाद उन्होने सोहर पेश किया। इस मौके पर सोहर का इतिहास और उसकी बारिकियां भी बताती गईं। उनकी दूसरी प्रस्तुति मां शारदे का गीत था। और फूट पड़ी बनारस की कजरी...मिर्जापुर कइल गुलजार कचौड़ी गली सुन कईल बलमू....इस कजरी की रचयिता गौहर जान की कहानी भी मालिनी जी ने साथ साथ सुनाई....
और पुराना लोकगीत...बन्ना बुलाए बन्नी नहीं आए...अटरिया सुनी पड़ी...( दूर कोई गाए धुन ये सुनाए....तेरे बिन छलिया रे...ये फिल्मी गीत इसी धुन पर है) इसके बाद रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे.....तो सुरों की गंगा बहती रही घंटो...इसके साथ ही मालवीय स्मृति भवन में सभी पूर्व छात्रों के लिए भोजन का भी उम्दा प्रबंध था। सबसे पुराने एलुमनी डा. पीएल जायसवाल, एल एंड टी में कार्यरत आईटी बीएचयू के एलुमनी शक्तिधर सुमन की मेहनत आयोजन मे साथ झलक रही थी.... ( 25 दिसंबर 2010 )
विद्युत प्रकाश मौर्य ( MA BHU, 1995)