Wednesday, 30 November 2016

आदमी को चाहिए वक्त से डरकर रहे...

जब आप देश के अलग अलग शहरों में हो रही घटनाओं को नहीं देख पा रहे हों, या देखकर अनदेखा कर रहे हों तो इसे क्या कहेंगे। आप सच सुनने और देखने को तैयार नहीं हैं तो इससे अराजक स्थिति कुछ और नहीं हो सकती। भले आप आत्ममुग्धता की स्थिति में जी रहे हों पर याद रखिए इतिहास आपको माफ नहीं करेगा।  आबादी में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के तकरीबन हर जिले में 29 नवंबर को बैंकों केबाहर अपनी ही नकदी निकालने क लिए लंबी लंबी लाइनों में लोगों के सब्र का बांध टूटता नजर आया। कहीं लोगों ने बैंक अधिकारियों पर गुस्सा निकाला तो कहीं पुलिस पर। पर हुक्मरान इन दृश्यों को बिल्कुल नजर अंदाज कर रहे हैं। बिहार के नौगछिया में और यूपी के हमीरपुर में 29 नवंबर को एक एक किसान अपने रुपये के इंतजार में अल्लाह को प्यारे हो गए। पर उनके दर्द से भला किसे सरोकार है। सत्ता का नशा बड़ा खतरनाक होता है। पर उससे भी खतरनाक होता है जब आप सही फीडबैक लेने और सुनने को तैयार नहीं हों।
बैंक की शाखाओं को लोगों को बांटने के लिए पर्याप्त राशि तो दूर उनकी मांग का 10 फीसदी भी नहीं मिल पा रहा है। लेकिन आप झूठ पर झूठ बोले जा रहे हैं कि कहीं कोई नोटों की कमी ही नहीं है। जबकि हर जिले के बैंक के मैनेजर कह रहे हैं कि 40 लाख मांगों तो 4 लाख भी नहीं मिल रहा है। हम पब्लिक को कहां से रुपये दें। गांव की शाखाओं में तो एक एक बैंक को रोज एक दो लाख रुपये भी नहीं मिल रहे हैं। गांव के हालात कितने विकराल उसका अंदाजा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि यूपी में हर 20 से 25 गांवों के बीच एक बैंक है। लोग कई किलोमीटर चल कर दो से चार हजार रुपये के लिए आते हैं और निराश लौटकर जाते हैं। आपकी तैयारी नहीं है। पर आपको सच बोलने और सच सुनने में शर्म आ रही है। कोई अगर सच्चाई दिखाना चाहता है तो आप उसका मजाक उड़ा रहे हैं। उन लोगों को जो रोज 200 रुपये भी मुश्किल से कमा पाते हैं उन्हें आप मोबाइल एप से रुपये लेन देन करने और कैशलेस इकोनोमी समझा रहे हैं। यह जमीनी सच्चाइयों से बहुत दूर रहने जैसा ही है। पर ऐसे लोगों को वक्त जवाब देगा जरूर...बकौल शायर
आदमी को चाहिए वक्त से डर कर रहे, जाने किस घड़ी वक्त का बदले मिजाज...


कैशलेस इकोनामी बहुत कठिन है डगर पनघट की...
जो मित्र कैशलेस लेनदेन की वकालत करते फिर रहे हैं वे कैशलेस ट्रांजेक्शन में देखें कि चीन और जापान कहां हैं। चीन आबादी में दुनिया का सबसे बड़ा देश काफी नीचे है, क्योंकि टेक्नोलाजी में आगे होने के बावजूद चीन और जापान इसके खतरे जानते हैं। जर्मनी कहां है जहां 73 फीसदी नकदी का चलन है। कैशलेस सिर्फ 100 फीसदी साक्षर और अमीर देशों में चल सकता है। सिंगापुर और स्वीडन तो हमारे देश के एक राज्य के बराबर भी नही हैं। वहीं कैशलेस के अपने खतरे हैं। सारा डाटा चोरी होने का।आपको पता है न पेटीएम में सबसे बड़ी हिस्सेदारी चीन के अलीबाबा समूह की है। अभी कैशलेस की तरफदारी पेटीएम, जीओ मनी, मोबीक्वीक, ओला मनी, एयरटेल मनी जैसी कंपनियां कर रही हैं क्योंकि ऐसे ट्रांजेक्शन में उनकी 1.5 से 4 फीसदी तक दलाली चलेगी।

- विद्युत प्रकाश मौर्य



Sunday, 27 November 2016

सन 2016 में मोदी बाबा लाए नोट क्रांति

1857 में मंगल बाबा ( मंगल पांडे ) 1942 में गान्ही बाबा ( महात्मा गांधी) 1977 में जेपी बाबा और अब 2106 में मोदी बाबा। इन सब में क्या साम्यता है. सभी क्रांति लेकर आए। मंगल बाबा सिपाही क्रांति किहिन तो आजादी के लिए लड़ने का बिगुल बजा। गान्ही बाबा कहिन अंगरेजन भारत छोड़ो तो जेपी बाबा कहिन संपूर्ण क्रांति अब नारा है भावी इतिहास हमारा है। तो 2016 में मोदी जी काला धन पर बहुते चोट किहिन। इ नोट क्रांति है... एतना चोट की पूरा देस बिलिबिला गया। सब करिया धन वाला लोग ओकरा के उजर करे के उपाय खोज रहा है लेकिन कुछो बुझा नहीं रहा है कि क्या करें। कौने कौने के समझ में आ रहा है त उ कुछ जुगत भिड़ा ले रहा है।

अब आवे वाला पीढ़ी जे लोग स्कूल में टेक्स बुक पढिहें इतिहास के. ओमा मोदी बाबा के नाम नया क्रांतिलावे खातिर लिखल जाई जरूर। ओकरा संगे मोदी बाबा के साथ जेटली बाबा के नाम भी लिखल जाई जरूर से। हमारा सुरेश प्रभु जी से अनुरोध है कि आप एगो ट्रेन चलाईए नोटक्रांति शहीद एक्स्प्रेस। 1857 की क्रांति पर ट्रेन है। 1942 के क्रांति पर अगस्त क्रांति राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन है। 1977 के क्रांति पर संपूर्ण क्रांति एक्सप्रेस है त नोट क्रांति पर भी एगो रेल गाड़ी का नाम होना चाहिए। उ रेल गाड़ी मोदी जी के शहर बनारस से दिल्ली के बीच चले तो अच्छा रहेगा। प्रभु जी अगर देरी किए त इसका श्रेय आने वाले कउनो दूसर रेल मंत्री को मिल जाएगा, एहिसे हम  कहते हैं कि तनी जल्दी करिए। अपना नाम भी मोदी अउर जेटली संघे अमर किजिए।

1942 के क्रांति से आजादी मिला देश को. त हम लोग खुलली हवा में सांस लेने लगे। संपूरण क्रांति में बहुत बवाल मचा पर बाद में सब फुस फुस हो गया। पर सुना है कौनो कौनो राज्य में जेपी आंदोलन मे शामिल लोगिन के पेंसिन मिल रहा है। भक्त लोग कह रहिन है कि इ नोट क्रांति से बहुते लाभ होने वाला है आने वाला दिनन में । माने कि देश में कहूं दू नंबर के धन रहिए नहीं जाएगा। सब जगह एक नंबर। दारू,  सिगररेट, जुआ सब एक नंबर में होगा। पुलिस वाला बिल्कुले रिश्वत नहीं मांगे। सब सरकारी दफ्तर के बाबू लोग सत्यवादी हो जाएगा। माने कौनो मंदिर में दान अउर भिखारी लोग के भीख देना होगा तो एहिजो स्वाइप मशीन चाहे पेटीएम चलेगा नू। 

एकदम देश में सब लोग श्रीमान सत्यवादी हो जाएगा। राजा हरिश्चचंदर के जुग जमाना आ जाएगा। राशन के दोकान वाला लोग सब सामान रशीद काट के बेचेगा। अपना टैक्स एकदम इमानदारी से जमा करेगा। सब लोग जो कई कई ठो घर बनवा के किराया नकद नारायण में वसूलता है उ लोग किरायेदार से किराया बैंक खाता में जमा करवाएगा चाहे स्वाइप मशीन लेके किराया वसूलने आएगा। पक्का रसीद देगा। तमाम निजी यूनीवर्सिटी वाला जो एडमिशन मे डोनेशनन लेता है उ भी चेक लेगा पक्का रसीद देगा। एको पइसा का बेइमानी अब कहीं नहीं चलेगा। इ नोट क्रांति सब क्रांति पर भारी पडेगा। एकदम राम राज आ जाएगा देश में। तब तक लाइन में लगे रहिए।

 - विद्युत प्रकाश मौर्य



Saturday, 26 November 2016

नोटक्रांति के दौरान वीरगति पाने वालों को शहीद का दर्जा मिले

सन 2016 की नोट क्रांति के दौरान बैंक कीलाइन में लगे लगे वीरगति को प्राप्त करने वाले लोगों को शहीद का दर्जा मिले। साथ ही मेरी मांग है कि परिवार को 10 लाख रुपये मुआवजा मिले। परिवार के एक सदस्य को बैंक में नौकरी भी मिले।

कुछ लोगों ने हमारी इस मांग पर सवाल उठाए हैं उनसे मेरा कहना है कि सन 2016 के नोटक्रांति के दौरान परेशानी में मरने वाला हर व्यक्ति शहीद है. यम के दरबार में सबका हिसाब रखा जा रहा है. ये शहीद आत्माएं अपने सताने वालों से चुन चुन कर बदला लेंगी. याद रखिएगा। रही बात सीमा पर शहीद होने वालों की तो उनका मैं पूरा सम्मान करता हूं। पर जो व्यक्ति फौज में भर्ती होने जाता है उसे ये भली प्रकार मालूम होता है कि गोली सामने से आ सकती है और वह शहीद हो सकता है। यह सब जानते हुए वह फौज में भर्ती होने जाता है। शहीद होने पर फौजी भाई के परिवार को 35 से 60 लाख रुपये तक मिल जाते हैं। पर जो लोग नोट की लाइन में लगे हैं, वे अपने ही मेहनत के कमाए हुए पांच से 10 हजार रुपये निकालने के लिए परेशान हैं। उन्हे नहीं पता कि वे शहीद हो सकते हैं। उनके अकाल चलाना होते ही उनके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पडता है उनकी मदद के लिए कोई सरकार आगे नहीं आ रही है। क्या यह चिंताजनक बात नहीं है।
हमारे एक साथी ने सहमति जताते हुए कहा है क नोट क्रांति में शहीद होने वाले परिवारों को जीवन भर रेल में एसी 2 का मुफ्त सफर का पास भी दिया जाए। ठीक है पर ऐसा पास रेल हादसा में अल्लाह के प्यारे होने वाले परिवारों को भी मिलना चाहिए।
मैं मांग कर रहा हूं उधर नोट क्रांत में शहीद होने वालों की संख्या रोज बढ़ती जा रही है। 10 से 25 नवंबर के बीच 80 से ज्यादा लोग शहीद हो चुके हैं। पर सरकार इस मुद्दे पर गंभीर नहीं है। हाल में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के महान विचारक केएन गोविंदाचार्य ने भी कहा कि गोविंदाचार्य ने कहा कि सरकार ने आर्टिकल 21 (राइट टू लाइफ) का उल्लघंन किया है, इसलिए पीड़ितों को उचित मुआवजा देने का कोर्ट निर्देश दें। बीजेपी के पूर्व नेता और संघ विचारक के.एन. गोविंदाचार्य ने नोटबंदी से हो रही मौतों को लेकर मुख्य न्यायाधीश को चिठ्ठी लिखकर लैटर पेटीशन को स्वीकार करने की मांग की है। कमसे कम सरकार गोविंद जी के विचारों को तो गंभीरता से ले।


 - विद्युत प्रकाश मौर्य

Tuesday, 22 November 2016

चौदह दिन बाद दर्द और बढ़ता जा रहा है....

नोटबंदी के 14 दिन गुजर चुके हैं, देश की कराह बढ़ती जा रही है पर हुक्मरान के आंखों पर ऐसा चश्मा चढ़ा हुआ है कि सच देखने और सुनने को तैयार नहीं हैं। बैंक के अधिकारी अपनी ओर से बेहतर करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। वे दिन रात एक करके छुट्टियां भूलाकर काम कर रहे हैं। पर नए नोट छप कर अत्यंत धीमी गति से आ रहे हैं।
बैंक बांट रहे हैं पुराने सड़े गले नोट
ऐसे में आरबीआई उन नोटों को बाजार में फिर से जारी कर रहा है जो तकनीकी भाषा में स्पावाएल यानी नष्ट किए जाने के कगार पर पहुंच चुके थे. मौजूदा संकट से निपटने के लिए अपनी उम्र जी चुके 100-100 के नोटों को दुबारा बाजार में झोंका जा रहा है। इन कटे फटे गले नोटों को परफ्यूम लगाकर बैंक करेंसी चेस्ट के जरिए शाखाओं तक भेज रहे हैं। ऐसे नोट दिल्ली के बैंकों से लेकर गांव तक पहुंच गए। वाराणसी के पास प्रधानमंत्री के गोद लिए गांव जयापुर के यूनियन बैंक आफ इंडिया के शाखा से लोगों को ऐसे नोट बांटे गए। मजबूरी में लोग ऐसे नोट ले भी रहे हैं। जब आजतक के वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने बैंक के स्टाफ से इन नोटों के बारे में पूछा तो उसने कहा बाद में बदल देंगे। अरे बाद में मानोगे तब न कि ये नोट तुमने ही दिए थे।

बैंकों के पास नकदी का संकट बरकरार 
जो लोग ये कह रहे हैं कि बैंक की लाइनें छोटी हो रही हैं वे पूरा सच नहीं देख पा रहे हैं।  दिल्ली के दिलशाद गार्डन इलाके में मृगनयनी चौक पर एक साथ छह बैंकों की शाखाएं हैं। वहां हर बैंक में हर रोज लाइन लंबी हो रही है। बैंकों से माइक लगाकर उदघोषणा की जा रही है कि नकदी खत्म हो गई है, पैसा आएगा तब मिलेगा। शहर लेकर गांव तक लोग परेशान हैं। आप उन ग्रामीण क्षेत्रों तक जाकर देख नहीं पा रहे हैं जहां 40 गांव के बीच एक बैंक की शाखा है। लोग कई किलोमीटर चल कर बैंक पहुंच रहे हैं। लंबी लाइनें लगी हैं। और बैंक के बाहर बोर्ड लटका दिया जाता है कि नकदी नहीं है। हमारे एक वरिष्ठ पत्रकार मित्र लिखते हैं कि बैंक के अधिकारी करेंस चेस्ट से 25 लाख मांग करते हैं तो 5 लाख मिल रहे हैं वह भी दो दिनों में। लोगों की जितनी जरूरत है उसका 10 फीसदी पैसा भी नहीं पहुंच पा रहा है। आखिर कैसी तैयारी थी सरकार की।

कालाधन रखने वालों को कठोर सजा दीजिए न...कौन रोकता है...
नोटबंदी का विरोध करने वालों को प्रधानमंत्री कालाधन का साथ देने वालों के साथ खड़ा देख रहे हैं। आप कालाधन खत्म करें इससे भला किसे विरोध है। पर हमारी मेहनत से कमाया हुआ रूपया काला धन कैसे है। जिनके पास कालाधन है वहां बरामदगी करिए न। कुछदिन पहले महाराष्ट्र के भाजपा सरकार के मंत्री देशमुख साहब की गाड़ी से 91 लाख 50 हजार रुपये बरामद हुए थे उनपर क्या कार्रवाई हुई।
राजस्थान के एक भाजपा विधायक ने कैमरे पर बोला था कि नोटबंदी के बारे में अंबानी जी अडाणी जी को छह महीने पहले से मालूम था। इतना बड़ा झूठ बोलने वाले पर का कार्रवाई हुई।
कब रुकेगा मौतों का ये सिलसिला
उधर, नोट बंदी के बाद हताश निराश लोगों के मरने का सिलसिला जारी है. 14 दिन में ये आंकड़ा 70 को पार कर चुका है। देवरिया में स्टेट बैंक में मची भगदड़ में बुजुर्ग रामानाथ कुशवाहा की कुचलकर मौत हो गई। वे देवरिया में भारतीय स्टेट बैंक की तरकुलवां शाखा में सोमवार सुबह रुपये निकालने गए थे।

नोटबंदी के कारण हुई मौत का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। हाथरस में तीन दिनों तक सिर्फ 1500 रुपये बदलवाने के लिए 70 साल के सियाराम बैंक की लाइन में लगे रहे लेकिन आखिरकार वे गिर पड़े और उनकी मौत हो गई। अब सियाराम का बेटा सरकार से इस मौत का हिसाब मांगने सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है।
उधर बंगाल के बर्दवान के कालना में आदिवासी किसान शिबू ने आत्महत्या कर ली। उसने आरोप लगाया कि नोटबंदी के कारण वह मजदूरों को भुगतान नहीं कर पा रहा था। आखिर ये नोटबंदी और कितने बलिदान लेगी। जब तक ये आंकड़ा जाकर ठहरेगा देश आर्थिक और समाजिक मोर्चे पर काफी नुकसान उठा चुका होगा।
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नोटबंदी के कारण जम्मू के सांबा जिले में एक आठ वर्षीय बच्चे की मौत हो गई। बच्चे के पिता ने कहा कि बैंक में पुराने नोट न बदलने जाने से वह अपने बीमार बच्चे को समय पर अस्पताल नहीं पहुंचा पाया। ( दैनिक जागरण, 22 नवंबर 2016)


Saturday, 19 November 2016

मेरे घर की राह कतरा के निकल जाता है चांद ...

नोटबंदी के दस दिन गुजर गए हैं। हमारे घर के आसपास के कई एटीएम की अकाल मौत हो चुकी है। डीसीबी के एटीएम में तो 10 दिन से कोई पैसा डालने नहीं आया। एक्सिस बैंक वाला भी तीन दिन से खराब है। एचडीएएफसी में चार दिन से कोई पैसा डालने नहीं आ रहा है। हां आईसीआईसीआई बैंक के एटीएम में हर रोज दोपहर के बाद पैसा डालने वैन आती है। पर इसके इंतजार में लोग सुबह 6 बजे से लाइन लगाए होते हैं। कई दिनों से पैसा उन्ही शुरुआती सौ लोगों को मिल पाता है जो सात घंटे से लाइन में है। हमारे पड़ोस की एक आंटी हार्ट पेसेंट हैं, उन्हें पैसों की जरूरत है पर इतने घंटे लाइन में नहीं लग सकतीं तो कुछ लोगों को नया रोजगार मिल गया वे 200 रुपये लेकर आपके लिए कुछ घंटे लाइन में लगते हैं। हमारे पड़ोस की एक भाभी जी पांच दिन से पैसे निकाल पाने में असफल हैं। वे पुराने 1000 रुपये के एवज में दलाल से 800 रुपये लेकर घर का कामकाज चला रही हैं। ये हाल दिल्ली महानगर के एक इलाके का है।

आईसीआईसीआई बैंक की सेवा बाकी निजी बैंको से बेहतर दिखाई दे रही है। 17 नवंबर को उसके एटीएम में इंजीनियरों ने आकर 4 घंटे मशक्कत करके उसे नए 2000 और 500 के नोट के लायक कर दिया. तो18 नवंबर को रात 8 बजे पहली बार उसमें 2000 के नोट डाले गए। 500 के नोट भी डाले गए। मैं रात 12.30 बजेदफ्तर से लौटने के बाद वहां लाइन देखता हूं तो लग जाता हूं इस उम्मीद में कि शायद पहली बार एक गुलाबी नोट मेरे हाथ में भी आ जाए। मेरे आगे लगे पड़ोसी कह रहे हैं....चार दिन तक दूध वाले ने उधार दिया अब वह भी नकदी मांग रहा है। कहां से दूं। बच्चे का गुल्लक भी तोड़ चुका हूं। खैर आज उन्हें पैसे मिल जाते हैं। अब उनके बच्चे के दूध का इंतजाम हो जाएगा।

जब तक मैं एटीएम के करीब पहुंचता हूं मशीन आउट ऑफ सर्विस हो जाती है। अरे लगातार चलते चलते कंप्यूटर हैंग हो जाता है। थोड़ी देर में मशीन रिस्टार्ट होती है। कोई दस मिनट समय लगाती है। मैं हसरत भरी निगाहों से स्क्रीन पर देखता हूं – उसपर संदेश लिखा आता है – दिस एटीएम इज टेंपरोरली आउट ऑफ सर्विस प्लीज कांटेक्ट नियरेस्ट एटीएम।
अब भला मशीन पर गुस्सा करने का क्या फायदा... दस दिन बाद भी दिल्ली के 80 फीसदी एटीएम खाली ही हैं....एक पुराना गीत याद आया
खाली से मत नफरत करना ...खाली सब संसार
ले लो खाली डिब्बा खाली बोतल... खाली एटीएम ....
पर खुद को खुशकिस्मत मान रहा हूं दो दोस्तों का फोन आया है जिन्हें एटीएम से दो हजार रुपये निकालने में सफलता मिल गई है वे उधार देने को तैयार हैं... पर दिवंगत दादा जी याद आते हैं कहते थे न उधो का लेना न माधो का देना... शायर का एक शेर भी याद आता है ..
मेरे घर की राह कतरा के निकल जाता है चांद

रहती है सारी शब भर बाहर ही बाहर चांदनी   
- vidyutp@gmail.com 

Thursday, 17 November 2016

हर एटीएम से लौटे खाली हाथ ...

नोटबंदी यानी 500 और 1000 के नोट बंद किए जाने के सात दिन गुजर चुके हैं। मैं अपने घर में चौका बरतन करने वाली को उसकी 10 तारीख को दी जाने वाली तनख्वाह नहीं दे पाया हूं। उसने कहा है कि जब आपके पास 100 वाले नोट आएं तो दे देना मैं इंतजार कर लूंगी। उसने पूछने पर बताया कि वह जिन छह घरों में काम करती है कहीं से भी मेहनताना नहीं मिला है। क्योंकि किसी को भी 100 वाले नोट हासिल नहीं हो सके हैं। एक सज्जन के यहां तो पैसों का इतनी परेशानी हो गई कि उन्होंने पुराने 500 को नोट दिए जिसे हमारी कामवाली ने एक आटो वाले के पास ले जाकर पुराने 500 नोट के बदले 400  के 100 वाले नोट लाकर दिए। यानी 20 फीसदी घाटा। इस तरह के कमीशन पर हर मुहल्ले में लोग नोट बदलवाने पर मजबूर हैं।
नोटबंदी के सात दिनों बाद मेरे पास भी छोटे नोट बिल्कुल खत्म हो चुके हैं। अब आटो बस का किराया देने के लिए भी पैसा नहीं बचा। कई दिन से बैंको के एटीएम के आगे लंबी लाइन देख रहा हूं। हलांकि हमारी कालोनी में हमारे घर के आसपास आठ एटीएम हैं। पर किसी भी एटीएम में पैसा आने के कुछ घंटे बाद खत्म हो जाता है। लोग पैसे आने के इंतजार में खाली एटीएम के बाहर लंबी लाइन लगाए रहते हैं। बुधवार 16 नवंबर को बारी बारी से तीन एटीएम में मैं भी लाइन में लगा पर किसी में भी पैसे निकाल पाने में सफलता नहीं मिली। जाहिर है इससे निराशा बढ़ रही है। लाइन में लगे लोग बता रहे हैं कि तीन दिन से वे रुपये पाने की कोशिश में लाइन में लग रहे हैं।
हमारे घर के पास भोपुरा चौक में केनरा बैंक की शाखा में लोग सुबह 4 बजे पहुंच जाते हैं लाइन लगाने के लिए हालांकि बैंक की शाखा सुबह 9.30 बजे खुलती है। सुबह 10 बजे से आए कई लोगों को दोपहर के तीन बजे तक बैंक में प्रवेश पाने में भी सफलता नहीं मिली।
एक दिन पहले दफ्तर आते हुए शेयरिंग आटो में दो ढलाई करने वाले दिहाड़ी मजदूर मिले। बोले मालिक 500 रुपये की दिहाड़ी के एवज में 500 रुपये के पुराने नोट दे रहा है। अब इन पुराने 500 के नोट को दलाल को देकर 400 ले रहा हूं। बच्चों के पेट पालना है इसलिए मजबूरी में ऐसा करना पड़ रहा है। दिन भर नोट बदलने की लाइन में लगा तो अगले दिन की दिहाड़ी कैसे करूंगा। ( 08 नवंबर 2016 को शाम 08 बजे आदरणीय प्रधानमंत्री ने 500 और 1000 के नोट को बंद किए जाने का ऐलान किया )
-        विद्युत प्रकाश मौर्य


नोटबंदी से रोज बढ़ रहा मौत का आंकडा जिम्मेवार कौन

अपनी ही कमाई के चंद कागज के टुकड़ों को बदलने में हो रही देरी से लोगों की मौत का सिलसिला बढ़ता जा रहा है। ये मरने वाले लोग किसी अकाल, बाढ़, सड़क हादसे या युद्ध में नहीं मारे जा रहे हैं। ये तो परेशान हैं क्योंकि उनके ही कमाये हुए रुपये अब बेकार हो चुके हैं, जिस पर लिखा होता था कि मैं धारक को 500 रुपये अदा करने का वचन देता हूं। पर अब इस वचन की डेडलाइन तय हो गई है। पर इंसान की जरूरतें हैं कि मुंह बाए खड़ी हैं और वे हसरत भरी निगाहों से लाइन में। 
किसी को बिटिया के हाथ पीले करने हैं तो किसी को अपने नौनिहालों के लिए दवा खरीदनी है। पर बैंक की लाइन में खड़े खड़े बारी नहीं आने पर जिंदगी में निराशा आ रही है। किसी को दिल का दौरा पड़ रहा है तो कोई आत्मघाती कदम उठा रहा है। नोटबंदी का ऐलान 8 नवंबर की रात में हुआ। नोट बदलवाने की लाइन 10 नवंबर से शुरू हुई। पर 16 नवंबर तक सात दिनों में ही देश के अलग अलग हिस्सों में अब तक 40 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। ये जान गंवाने वाले ऐसे लोग हैं जिनके पास काली कमाई नहीं थी, बल्कि खून पसीना बहाकर संचित की गई कमाई थी। क्या इस तरह की मौत ही उनकी नियती थी। या इसके लिए कोई जिम्मेवार है। टीवी की बहस मेंकुछ नेता इसे छोटी मोटी घटना मान रहे हैं। क्या यह संवेदनहीनता मामला नहीं है।

सारा देश रो रहा है...

16 नवंबर मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में बैंक में रुपए एक्सचेंज करने के लिए कतार में खड़े एक शख्स की हार्ट अटैक से मौत हो गई. मध्यप्रदेश में नोटबंदी से जुड़ा मौत का यह चौथा मामला है। इसी दिन मुंबई के भायंदर में, यूपी के बरेली और बलिया में, बिहार के गया में बैंक की लाइन में लगे लोगों की मौत हुई।
अब कुछ और पिछले मामले देखिए। 15 नवंबर  को बुलंदशहर में नोटबंदी के कारण 12वीं कक्षा के एक छात्र ने फांसी लगाकर जान दी. 

बिहार में औरंगाबाद के दाउदनगर पैसे निकालने गए रिटायर्ड फौजी की मौत
हो गई।  मेरठ में बिहार के दरगंभा निवासी 40 वर्षीय मोहम्मद अजीज की नोट नहीं बदलने के सदमे में बैंक की लाइन में लगने के दौरान मौत हो गई। बैंक ने बिहार की आईडी पर रुपये बदलने से इनकार किया था। हैदराबाद में कतार में खड़े एक बुजुर्ग की मौत हो गई। एक सार्वजनिक क्षेत्र की बैंक की मरेर्डपल्ली शाखा में डेढ़ लाख रुपये जमा करने अकेले आए सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी लक्ष्मण राव की बैंक के प्रवेश द्वार पर मृत्यु हो गई।

14 नवंबर 2016 को सीवान में गर्भवती की मौत हो गई क्योंकि इलाज के लिए सौ सौ के नोट नहीं थे। मोतिहारी में बैंक में पैसा निकालने आए अधेड़ की हार्ट अटैक से मौत हुई। दरभंगा में रुपये जमा करने के दौरान बेहोश अधेड़ की मौत हो गई। आगरा में एक नवजात की मौत हो गई, पिता जेब में पुराने रुपये रहते हुए  बेटी को दिल्ली ले जाने के लिए एंबुलेंस का इंतजाम नहीं कर सका।


...और भी हैं पिछले मामले

1 मुंबई में एक नवजात शिशु की मौत हो गई क्योंकि प्राइवेट अस्पताल वालों ने उसे एडमिट नहीं किया। उस बच्चे के पिता के पास हजार-हजार के नोट थे और अस्पताल वोलों ने उसे लेने से इंकार कर दिया, जिसके कारण नवजात की मौके पर मौत हो गई।
2. दिल्ली में उत्तर-पूर्व की एक 24 वर्षीय महिला ने दुपट्टे गले में डालकर खुद को सीलिंग फैन से लटका लिया। वह तीन दिन से पैसों के लिए दर-दर भटक रही थी। जब पैसा नहीं मिल पाया तो उसने परेशान होकर आत्महत्या कर ली।
3. राजस्थान के पाली ज़िले के रहने वाले चंपालाल मेघवाल के नवजात बच्चे को एंबुलेंस ने अस्पताल ले जाने से मना कर दिया, क्योंकि उनके पास 500 और 1000 के पुराने नोट थे। जब चंपालाल 100-100 के नोट लाए तब तक उनके बच्चे की मौत हो चुकी थी।
4. गुजरात के सूरत जिला में एक 50 वर्षीय मां और उसके बच्चों ने आत्महत्या कर ली। क्योंकि पास खाने को राशन नहीं था और दुकानदारों ने पुराने नोटों लेने से इंकार कर दिया।
5. उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में सरकार के नोटबंदी फरमान से एक बुज़ुर्ग महिला की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई।
6. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली में एक 20 वर्षीय महिला ने आत्महत्या कर ली। उसका भाई जब पुराने नोट बदलकर घर लौटा तो  बहन को पंखे लटका हुआ पाया।
7. हैदराबाद में एक मां ने अपनी बेटी की शादी के लिए कुछ ही दिन पहले ही ज़मीन बेचकर नकदी 54 लाख रुपये जुटाए थे लेकिन नोटबंदी की खबर आने के बाद और नोट न बदवा पाने से परेशान होकर मां ने जान दे दी।
8. कर्नाटका में एक 40 वर्षीय महिला ने सुसाइड कर लिया, क्योंकि 15 हजार रुपये लेकर बैंक बदलवाने गई और उसका पैस चोरी हो गया।
9. पश्चिम बंगाल के हावड़ा में एक पति ने अपनी पत्नी की जान सिर्फ इसलिए मार दिया क्योंकि वह एटीएम से नए नोट निकालने में नाकाम हो गई।
10. छत्तीसगढ़ में 45 साल के एक किसान ने आत्महत्या कर लिया, क्योंकि तीन दिनों तक बैंकों का चक्कर लगाने के बाद भी उसका 3,000 रूपया नहीं बदला जा सका।
11. बिहार के कैमूर में एक पिता के बेटी की शादी थी। उसे इस बात का डर था कि दहेज में बेटी के ससुराल वाले पुराने नोट लेगें। इसी चिंता में दिल का दौरा पड़ा और उसकी मौत हो गई।
12. गुजरात के लिम्बडी शहर में, एक 69 साल के बुजुर्ग की मौत हो गई। वो बैंक ऑफ इंडिया शाखा की साखा में नोट चेंज करने के लिए खड़े थे और दिल का दौरा पड़ा और उनकी मौत हो गई।
13. कानपुर में एक बुजुर्ग महिला नोटबंदी के बाद अपने पैसे को गिन रही थी, इसी दौरान दिल का दौरा पड़ा और मौत हो गई।
14. केरल के थलासेरी के रहने वाले बिजली विभाग के एक कर्मचारी का सीढ़ी से फिसलकर मौत हो गई जब वो पुराने नोट बदलने के लिए बैंक का चक्कर लगा रहा।
15. विशाखापत्तनम में एक 18 महीने बच्चे की मौत हो गई, क्योंकि उसके माता-पिता के पास दवा खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। अस्पताल वालों ने 500 और हजार पुराने नोट लेने से इंकार कर दिया।
 16. कानपुर में एक व्यक्ति को 8 दिसंबर को दिल का दौरा पड़ा जब वह प्रधानमंत्री को टीवी पर नोटबंदी का घोषणा करते सुना। दिल का दौरा पड़ा और उसकी मौत हो गई। कुछ ही दिनों पहले उसने अपनी जमीन के ग्राहकों से 70 लाख रूपये एडवांस लिए थेा
17. यूपी के मैनपुरी में डॉक्टरों ने एक साल के बच्चे का इलाज करने से मना कर दिया। बच्चे को तेज बुखार था और माता-पिता के पास 100 रुपये में नोट नहीं थे फीस जमा करने के लिए। मजबूरन माता-पिता उसे लेकर घर गए जहां बच्चे मौत हो गई।
18. उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में एक कपड़ा धोने वाली महिला की मौत हो गई। वह बैंक में अपने एक-एक हजार के दो नोटों को लेकर जमा करने गई थी। जब बैंक वालों की तरफ से बताया गया कि यह रुपया अब नहीं चलेगा तो सदमे में उसकी मौत हो गई।
20. तेलंगाना के महुबाबाद जिले के रहने वाले 55 वर्षीय कंदुकूरी विनोदा नाम की महिला की तब मौत हो गई जब उन्हें पता चला की अब पुराने नोट नहीं चलेंगे। उन्होंने 54 लाख रुपये जमीन बेचकर जमा किए थे।
21. केरल के थालास्सेरी में एक 45 साल के व्यक्ति की मौत हो गई। वो नोटबंदी के बाद अपने 5 लाख रुपये जमा करने के लिए जमा करने के लिए गया था।
22. मुंबई में 72 साल के एक वृद्ध विश्वास वर्तक की मौत बैंक में पुराने नोटों को जमा करने के दौरान हो गई।
23. गुजरात के तारापुर में एक 47 वर्षीय किसान की मौत बैंक में पुराने नोटों का आदान-प्रदान करने के दौरान मौत हो गई। वो अपनी बारी आने के इंतजार में लाइन में खड़े थें और दिल का दौरा पड़ा और निधन हो गया।

24. केरल के अलाप्पुझा में एक 75 वर्षीय कार्तिकेयन की मौत बैंक लाइन में खड़ा रहने के दौरान हो गई।
25. कर्नाटक के उडुपी में एक 96 वर्ष के एक व्यक्ति की मौत बैंक की कतार में खड़े होने दौरान हो गई। उनका बैंक खाता नहीं था।
26. मध्य प्रदेश में एक 69 वर्षीय एक व्यक्ति विनय कुमार पांडेय की मौत हो गई। वे एक सेवानिवृत्त बीएसएनएल कर्मचारी थे और रूपये चेंज करने बैंक गए थे, जहां एक कतार में उनकी मृत्यु हो गई।
27. भोपाल में स्टेट बैंक के एक कैशिअर की मौत दिल का दौरा पड़ने से हो गई। बैंक कर्मचारियों पर सरकार की तरफ से अतिरिक्त घंटे लगाने और बड़े कतारों को उन्होंने देखा जिससे उन्हे दौरा पड़ा।
28. उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में एक व्यापारी ने प्रधानमंत्री को 8 नवंबर को नोटबंद करने की घोषणा करते हुए सुना। सीने में दर्द महसूस हुआ और डॉक्टर के पास ले जाते समय उनकी मौत हो गई।

(NOTE BAN, DEATH, MONEY ) 

Thursday, 10 November 2016

एटीएम में 2000 के नोट डालने का विकल्प ही नहीं

एक एटीएम में 8 लाख के 100 वाले नोट आते हैं ...

देश में जो वर्तमान में बैंकों के एटीएम संचालित हैं उनमें फिलहाल 2000 रुपये के या फिर नए पांच सौ के नोट डालने की सुविधा नहीं है। दो हजार के नए नोट डालने के लिए एटीएम में हार्डवेयर और साफ्टवेयर के स्तर पर बदलाव लाना पड़ेगा। इसलिए सभी एटीएम में सिर्फ 100 रुपये के नोट  डाले जा रहे हैं। एक एटीएम में 100 रुपये के अधिकतम 8 लाख रुपये ही रखने की जगह होती है। अगर एक एटीएम में पूरी क्षमता पर भर नोट डाले जा रहे हैं तो अधिकतम 400 लोग ही 2000 रुपये तक निकाल सकते हैं। इसलिए एटीएम कुछ ही घंटे में खाली हो जा रहे हैं। चूंकि 500 और 1000 के नए नोट आए नहीं हैं और 2000 के नए नोट डालने का एटीएम में विकल्प ही नहीं है इसलिए आप लंबे वक्त तक आर्थिक मोर्चे पर परेशानी झेलने के लिए तैयार रहिए।
नए आए पांच सौ के नोट का आकार भी पुराने 500 के नोट से अलग है। यह आकार में छोटा है इसलिए इसके लिए भी एटीएम के कैसेट में बदलाव करना पड़ेगा। 

देश भर में दो लाख एटीएम

देश भर में कुल दो लाख एटीएम हैं। इन सभी एटीएम में तकनीकी बदलाव करने के लिए इंजीनियर को हर एटीएम तक जाना पड़ेगा। जाहिर है इसमें वक्त लगेगा।

एक बैंकिग विशेषज्ञ के मुताबिक देश में सभी बैंकों के लिए एटीएम बनाने का काम दो ही कंपनियां करती हैं एनसीआर और डायबोल्ड। किसी एटीएम में 2000 का नोट रखने के लिए इसमें नया कैसेट बनाना पडेगा, क्योंकि 2000 रुपये के नोट का आकार वर्तमान नोटों से अलग है। इसके लिए हर मशीन में हार्डवेयर के स्तर पर बदलाव लाना होगा। साथ ही मशीन 2000 रुपये का नोट उगले इसके लिए साफ्टवेयर भी बदलना पड़ेगा। इसके लिए बारी बारी से सभी एटीएम को बंद भी करना पड़ेगा। यानी आमजन की परेशानी इतनी जल्दी खत्म नहीं होने वाली है।


किसी भी बैंक के एटीएम के मुख्य सर्वर में सॉफ्टवेयर को परिवर्तित करने के बाद ही दो हजार के नोट जारी किए जा सकेंगे। भारतीय स्टेट बैंक का मुख्य सर्वर मुंबई में है। इसी प्रकार सभी बैंकों के अलग-अलग सर्वर हैं जो अलग अलग शहरों में लगे हैं। इन सभी के मुख्य सर्वर में साफ्टवेयर संबंधी जरूरी परिवर्तन करना होगा।

दो हजार के नोट पर पूर्व आईपीएस ध्रुव गुप्त लिखते हैं -  मैं दो हजार के नोट जारी करने के खिलाफ हूं। आम आदमी के लिए इस नोट की कोई उपयोगिता नहीं। छोटी-छोटी ख़रीद करने निकलो तो छुट्टा भी नहीं देगा कोई। लगता है कि यह नोट सिर्फ हराम की कमाई वालों,घूसखोरों और काला धन रखने वालों की सुविधा के लिए ही जारी किया गया है। पहले उनके जो नोट बोरों में आते थे, अब शायद अटैचियों में आ जाएंगे। मतलब काला धन का पहला अध्याय खत्म होने के पहले ही दूसरे अध्याय का श्रीगणेश।

-          विद्युत प्रकाश मौर्य  

Wednesday, 9 November 2016

18वीं शताब्दी में पेपर करंसी छापने की शुरुआत हुई

भारत में पेपर करंसी छापने की शुरुआत 18वीं शताब्दी में हुई। सबसे पहले बैंक ऑफ बंगाल, बैंक ऑफ बांबे और बैंक ऑफ मद्रास जैसे बैंकों ने पेपर करंसी छापना शुरू किया। पेपर करंसी एक्ट 1861 के बाद करंसी छापने का पूरा अधिकार भारत सरकार को दे दिया गया। 1935 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना तक भारत सरकार करंसी छापती रही। जिसके बाद रिजर्व बैंक ने यह जिम्मेदारी अपने हाथों में ले ली।


रिजर्व बैंक छापता है नोट
1938 में पहली बार रिजर्व बैंक ने पेपर करंसी छापी, यह पांच का नोट था, इसी साल 10 रुपये, 100 और 1000 रुपये के नोट छापे गए।
1946 में 1000 और 10,000 रुपये के नोट बंद कर दिए गए
1954 में एक बार फिर से 1,000 और 10,000 रुपये के नोट छापे गए। साथ ही 5,000 रुपये के नोट की भी छपाई की गई।
1954 में 1000 रुपये का नोट पहली बार जारी हुआ
1978 जनवरी में 1000, 5,000 और 10,000 के नोट को पूरी तरह से बंद कर दिया गया।
2016 में 8 नवंबर को 500 और 1000 के नोट बंद करने का ऐलान हुआ.

500 और 1000 के नोट
1987 अक्तूबर में 500 रुपये का नोट पहली बार जारी हुआ
2000 में दूसरी बार 1000 रुपये का नोट जारी हुआ था
2005 में सुरक्षा की दृष्टि से नोट में कुछ बदलाव किए गए (सुरक्षा धागा, वाटरमार्क और नोट जारी होने का साल)

नेपाल में 500, 1000 रुपये के नोट पर बैन
नकली नोट की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए नेपाल ने भारतीय 500 और 1000 रुपये के नोट पर प्रतिबंध लगा रखा है। इतना ही नहीं अगर अगर इन नोट के साथ नेपाल में कोई पकड़ा जाता है तो उसे दंड का भी प्रावधान है।

1978 में बंद किए थे बड़े नोट
इमरजेंसी हटने के बाद 1977 में आई जनता पार्टी की सरकार ने बड़े नोटों को बंद करने का ऐतिहासिक फैसला लिया था। तब पूर्व आईसीएस और वित्तीय मामलों के जानकार एचएम पटेल को मोरारजी देसाई ने वित्तमंत्री बनाया था और एम नरसिम्हन आरबीआई के गर्वनर थे, जिनकी अगुवाई में यह फैसला लिया गया। खुद मोरारजी देसाई भी कांग्रेस के शासन में कई बार वित्तमंत्री रह चुके थे।

बड़ा फैसला लिया
1978 में 16 जनवरी को साउथ ब्लॉक में हुई बैठक में  केंद्र सरकार ने 1000 और उससे बड़े नोटों को बंद करने का फैसला लिया।
1.5 फीसदी के आसपास थे बड़े नोट बाजार में मौजूद कुल राशि के
90 करोड़ या इससे ज्यादा बड़े नोटों का कालेधन के तौर पर इस्तेमाल की रिपोर्ट थी आरबीआई गर्वनर के पास
क्या हुआ असर
05 से 10 फीसदी तक अर्थव्यवस्था में मंदी आई बड़े नोट बंद करने के फैसले के बाद
16 करोड़ रुपये लोगों ने बैंकों में जमा किए बड़े नोट, सरकार के ऐलान के बाद
144 करोड़ रुपये कभी जमा नहीं हुए, ये माना जाता है यह राशि कालेधन के तौर पर थी जो लोगों के पास ही रह गई
70 फीसदी कम मूल्य पर काफी लोगों ने बड़े नोटों मुंबई के झवेरी बाजार में भी बेचा

कांग्रेस पर हमले की कोशिश थी
कहा जाता है कि मोरारजी देसाई की सरकार ने यह फैसला तब सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस पार्टी को हानि पहुंचाने के लिए लिया था, क्योंकि उनका मानना था कि पार्टी के पास बड़े नोट के रूप में बड़ी मात्रा में कालाधन मौजूद था।
रिजर्व बैंक के लिए चुनौती
बड़े नोटों के अचानक से बंद करके नए नोट छापने पर रिजर्व बैंक को बड़ा घाटा उठाना पड़ेगा। एक साल पहले के नोट छापने में आने वाले खर्च के मुताबिक आरबीआई को तकरीबन 2770 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे। अभी तक जो 1000 और 500 के नोट छापने में खर्च आया है उसका घाटा भी बैंक को उठाना पड़ेगा। अगर सभी मौजूद 500 और 1000 की नोट की जगह 100 रुपये के नोट छापने पड़े तो 11,900 करोड़ रुपये का खर्च आएगा जो व्यवहारिक नहीं होगा।

नोट छापने का खर्च
3.17 रुपये खर्च आता है आरबीआई को 1000 का एक नोट छापने में
2.5 रुपये खर्च आते हैं आरबीआई को 500 का एक नोट छापने में
30 फीसदी सस्ता पड़ता है 500 और 1000 रुपये जैसे बड़े नोटों को छापना।

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1000 और 500 के नोट
84 फीसदी बाजार में उपलब्ध मुद्रा में 1000 और 500 के नोट हैं
39 फीसदी 1000 के नोट की साझेदारी है
45 फीसदी 500 रुपये के नोट की साझेदारी है।
40 अरब के कागज के करेंसी के नोट भारत में चलन में हैं, जिसमें 7 अरब नोट दस रुपये मूल्य वर्ग के हैं।
(आंकड़े 2014-15 के )

नकली नोटों का मकड़जाल
भारत की अर्थव्यस्था को हानि पहुंचाने के लिए पड़ोसी देश पाकिस्तान से संचालित आईएसआई और दूसरे आतंकी संगठन भारत में बड़े पैमाने पर नकली नोट की खेप भेजते हैं। खासतौर पर 1000 और 500 रुपये के नकली नोट छापकर भारतीय बाजार में हर साल भेजे जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक 70 अरब रुपये की जाली करेंसी भारतीय बाजार में है जो अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रही है।

पाकिस्तान से जाली नोट
समय-समय पर ऐसी खबरें आती हैं पाकिस्तान सरकार और आईएसआई के नियंत्रण और संरक्षण में भारतीय जाली नोट छापे जाते हैं। भारतीय गुप्तचर एजेंसियों के पास ऐसी रिपोर्ट है कि कराची स्थित टकसाल में पाकिस्तान की करेंसी छापी जाती है उसी में भारतीय जाली नोट भी छापे जाते हैं।


40 फीसदी तक लाभ कमाती है आईएसआई भारत में जाली नोट छापकर भेजने में
1600 करोड़ रुपये आईएसआई ने भारत में नकली करेंसी भेजी साल 2010 में
70 करोड़ रुपये हर साल जाली करेंसी भारतीय बाजार में खपाई जाती है।
50 फीसदी नकली नोटों में हिस्सेदारी है 1000 रुपये वाले नोट की

जाली नोट की बरामदगी
30.43 करोड़ रुपये नकली नोट बरामद किए गए साल 2015 में
788 एफआईआर दर्ज किए गए नकली नोट के चलाने के मामले में
10 फीसदी कमी आई है नकली नोट की बरामदगी में पिछले तीन साल में
33 फीसदी नकली करेंसी ही एजेंसियां पकड़ पाती हैं हर साल
10 करोड़ रुपये की जाली करेंसी बरामद की गई 2010 में

दिल्ली में सबसे ज्यादा नकली नोट
43 फीसदी कुल नकली नोटों का दिल्ली और यूपी से बरामद हुआ 2015 में
10.35 करोड़ रुपये बरामद हुए 2013-14 में
9.09 करोड़ बरामद हुए 2014-15 में
9.31 करोड़ बरामद हुए 2015-16 में

निपटने के लिए कदम
केंद्र सरकार ने जाली नोटों से निपटने के लिए फेक नोट कोआर्डिनेशनन समूह गृहमंत्रालय में गठित किया है जो केंद्र और राज्य सरकार के सुरक्षा एजेंसियों के साथ जानकारी साझा करता है। इसके अलावा टेरर फंडिंग और फेक करेंसी सेल का गठन एनआईए के अधीन किया गया है जो खासतौर पर नकली करेंसी के मामलों की जांच करता है।

-         विद्युत प्रकाश मौर्य


Tuesday, 8 November 2016

पहचान के लिए स्त्रियों को ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है...

रंगकर्म में स्त्रियों को पुरुषवादी समाज के बीच अपनी पहचान बनाने के लिए ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है। खासतौर पर निर्देशन की बात करें तो यह 24 घंटे व्यस्त रखने वाला कार्य है, इसलिए इसमें महिलाएं कम दिखाई देती हैं। पर अगर महिला रंगमंच में निर्देशक के तौर पर आती है तो वह महिला पात्रों को ज्यादा मौलिक स्वरूप में पेश करती है। ये विचार हैं प्रख्यात रंगकर्मी और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) की पूर्व निर्देशक श्रीमती कीर्ति जैन के। कीर्ति जैन 1989 से 1995 तक एनएसडी की निर्देशक रहीं। वे इस राष्ट्रीय संस्थान की पहली महिला निर्देशक भी रहीं।

कीर्ति जैन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कालेज  में सात नवंबर को हिंदी रंगमंच और महिलाएं विषय पर हुए सेमिनार के पहले सत्र में मुख्यवक्ता के तौर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि महिलाओं को जब मौका मिला है वे नए तरह का रंगमंच लेकर आई हैं। वैसे बहुत कम नाटक लिखे गए हैं जो महिलाओं के प्रोसपेक्टिव में हों। हालांकि कीर्ति जैन कहती हैं कि जयशंकर प्रसाद का लिखा हुआ ध्रुवस्वामिनी पहला नाटक है जिसे फेमनिस्ट कहा जा सकता है। आज के दौर में मीराकांत, मृदुला गर्ग और मृणाल पांडे ने महिला केंद्रित नाटक लिखे हैं।


सेमिनार – हिंदी रंगमंच और स्त्रियां
कीर्ति जैन कहती हैं - अगर कोई महिला लिखती है तो उसमें विजुअल इमेजरी ( विम्ब) अलग किस्म का उभर कर आता है। उनके अनुभव अलग किस्म के हैं। मैं खास तौर पर पंजाबी की नाटककार नील मान सिंह चौधरी को याद करना चाहूंगी जिसनेक नाटक में महिलाएं काफी अलग किस्म की दिखाई देती हैं। अब हालात बदल रहे हैं महिलाएं किसी भी तरह का रिस्क लेने के तैयार हैं।

मिरांडा हाउस दिल्ली विश्वविद्यालय की हिंदी विभाग की शिक्षक डाक्टर रमा यादव कहती हैं भरतमुनि ने नाट्य शास्त्र को पंचम वेद कहा है और इसमें स्त्री के लिए जगह है। जयशंकर प्रसाद के नाटकों में स्त्री प्रमुखता से आई है। रविंद्र नाथ टैगोर के विसर्जन नाटक में भी स्त्री प्रमुखता से आई है। डाक्टर रमा ने अपने दो साल के हंगरी प्रवास की चर्चा की जहां उन्होंने मीरा पर नाटक रचा था जो काफी लोकप्रिय हुआ।

सेमिनार में हंसराज कालेज के हिंदी विभाग के छात्र छात्राओं ने भी गंभीरता से हिस्सा लिया। सेमिनार का आयोजन पत्रकारिता के प्रख्यात शिक्षक डॉक्टर रामजीलाल जांगिड के सानिध्य में भारतीय जनसंचार संघ द्वारा किया गया। पहले सत्र की अध्यक्षता पत्रकार विद्युत प्रकाश मौर्य ने की। कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत हंसराज कालेज की प्राचार्य डाक्टर रमा जैन ने किया। पत्रकार रविंद्र साधु ने विषय प्रवेश प्रस्तुत किया।

नाटक का मूल उद्देश्य मनोरंजन – दया प्रकाश सिन्हा

सेमिनार के दूसरे सत्र में पूर्व आईएएस लेखक और रंगकर्मी दया प्रकाश सिन्हा ने के रंगकर्म विशद चर्चा की। उन्होंने कहा नाटक कला भी है और साहित्य भी है। यह द्विआयामी विधा है। पर नाटक का मूल उद्देश्य लोगों का मनोरंजन करना है। मनोरंजन यानी जो मन को रंग दे। मनोरंजन में ज्ञानवर्धन भी शामिल हो सकता है। पर मैं इससे सहमत नहीं हूं कि यह कोई क्रांति करने के लिए हथियार है। 

सिन्हा ने कहा,  भरत मुनि ने नाट्य शास्त्र की रचना ही देवताओं के मनोरंजन के लिए की थी। इसी तरह देश में पारसी थियेटर ब्रिटिश अधिकारियों के मनोरंजन के लिए आया। हालांकि बाद में इसका इस्तेमाल उद्देश्य परक होने लगा। 1935 में प्रगतिशील लेखक संघ और 1942 में भारतीय जन नाट्य संघ ( इप्टा) स्थापना हुई। जाहिर इप्टा के नाटकों का उद्देश्य वाम विचारों का प्रसार था तो  दक्षिण पंथी विचार धारा के लोगों ने संस्कार भारती की स्थापना की।
वहीं सरकार की संस्थाएं भी सरकारी नीतियों के प्रचार प्रसार के लिए नाटकों का सहारा लेती हैं। इसमें कुछ गलत नहीं है पर नाटकों का उद्देश्य इतना भर ही नहीं है। 1960 बैच के आईएएस दया प्रकाश सिन्हा ने अपने 1955 के काल के इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अनुभव भी साझा किए जिसमें उन्हें नाटक करने में और खास तौर पर स्त्री पात्रों को नाटकों में शामिल करने के लिए तैयार करने में कितनी मुश्किलें आईं। दूसरे सत्र की अध्यक्षता प्रख्यात पत्रकार और आईआईएमसी के अंगरेजी पत्रकारिता विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर प्रदीप माथुर ने की। हंसराज कॉलेज के हिंदी विभाग के पूर्व शिक्षक प्रोफेसर प्रभात कुमार ने अतिथियों का धन्यवाद किया।  

डॉक्टर जांगिड ने मनाया 78वां जन्मदिन


यह महज संयोग ही रहा है कि 7 नवंबर हिंदी पत्रकारिता की कई पीढ़ियों को शिक्षित करने वाले और कई भाषाओं के हजारों पत्रकारों को गढने वाले डाक्टर रामजीलाल जांगिड का 78वां जन्मदिन था। तो सबकी ओर से कार्यक्रम के अंत में केक काटकर उन्हें जन्मदिन की बधाई दी गई।

जीवन के  77 साल पूरे करने के बाद जिस ऊर्जा और उत्साह स डाक्टर जांगिड सक्रिय हैं वह हमेशा युवाओं को प्रेरणा देता रहेगा। दो माह पहले उनकी सहधर्मिणी डाक्टर सत्या जांगिड उन्हे इस संसार से छोड़कर चली गईं पर जिंदगी जिंदादिली का नाम है.. ये कोई उनसे सीखे।
 -vidyutp@gmail.com
( SEMINAR, HANSRAJ, COLLEGE, DELHI UNIVERSITY ) 


Monday, 7 November 2016

देश के हर कोने में भगवान भास्कर को अर्ध्य देकर मनाया छठ

छठ सिर्फ बिहार और उत्तर प्रदेश का उत्सव नहीं रह गया है। हर साल दिल्ली मुंबई और पंजाब से लाखों लोगों के छठ करने की तस्वीरें आती हैं। पर इस साल आप देश के कोने कोने से छठ की तस्वीरें देख सकते हैं.


देश के द्वीप राज्य अंडमान निकोबार में लोग बड़ी श्रद्धा से समंदर किनारे छठ मनाते हैं। यहां पिछले दो सौ सालों से बिहार और यूपी के लोग जाकर बसने का सिलसिला जारी है। वहां का छठ देख यूं लगता है जैसे पटना का घाट हो। समंदर के किनारे नारियल के पेड़ों का झुरमुट और छठ के गीत....



दक्षिण भारत में चेन्नई में देश के सबसे विशाल समुद्र तट मरीना बीच पर भी बड़ी संख्या में लोग छठ व्रत करते हैं।


कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू में छठ पर आस्था के साथ गीत संगीत का रंग भी देखने को मिलता है। बेंगलुरू के कई इलाके में बिहार का समाज बड़ी संख्या में मौजूद है जो लंबे समय से छठ की तैयारी में लगा रहता है।



तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में विशाल हुसैनसागर झील के किनारे बिहार यूपी के लोग बड़ी श्रद्धा से छठ के लिए जुटते हैं। तो हैदराबाद के वनस्थलीपुरम इलाके में भी लोग हर साल छठ मनाते हैं।




पूर्वोत्तर के सबसे बड़े शहर गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र के किनारे भी हजारों परिवार छठ करते हैं। गुवाहाटी से लेकर ठिब्रूगढ़, तिनसुकिया जैसे असम के हर शहर में छठ का का त्योहार उल्लास से मनाया जाता है।




बंगाल के दुआर्स इलाके में भूटान की सीमा से लगे छोटे से शहर हासीमारा में भी बिहार का समाज है जो छठ का त्योहार पूरी आस्था से तोरसा नदी के तट पर मनाता है, यहां तैनात फौजी भी इसमें पूरा सहयोग करते हैं। 
- vidyutp@gmail.com

( सभी चित्र दोस्तों के फेसबुक वाल से साभार )