नोटबंदी के दस दिन गुजर गए हैं।
हमारे घर के आसपास के कई एटीएम की अकाल मौत हो चुकी है। डीसीबी के एटीएम में तो 10
दिन से कोई पैसा डालने नहीं आया। एक्सिस बैंक वाला भी तीन दिन से खराब है।
एचडीएएफसी में चार दिन से कोई पैसा डालने नहीं आ रहा है। हां आईसीआईसीआई बैंक के
एटीएम में हर रोज दोपहर के बाद पैसा डालने वैन आती है। पर इसके इंतजार में लोग
सुबह 6 बजे से लाइन लगाए होते हैं। कई दिनों से पैसा उन्ही शुरुआती सौ लोगों को
मिल पाता है जो सात घंटे से लाइन में है। हमारे पड़ोस की एक आंटी हार्ट पेसेंट
हैं, उन्हें पैसों की जरूरत है पर इतने घंटे लाइन में नहीं लग सकतीं तो कुछ लोगों
को नया रोजगार मिल गया वे 200 रुपये लेकर आपके लिए कुछ घंटे लाइन में लगते हैं।
हमारे पड़ोस की एक भाभी जी पांच दिन से पैसे निकाल पाने में असफल हैं। वे पुराने 1000
रुपये के एवज में दलाल से 800 रुपये लेकर घर का कामकाज चला रही हैं। ये हाल दिल्ली
महानगर के एक इलाके का है।
आईसीआईसीआई बैंक की सेवा बाकी
निजी बैंको से बेहतर दिखाई दे रही है। 17 नवंबर को उसके एटीएम में इंजीनियरों ने
आकर 4 घंटे मशक्कत करके उसे नए 2000 और 500 के नोट के लायक कर दिया. तो18 नवंबर को
रात 8 बजे पहली बार उसमें 2000 के नोट डाले गए। 500 के नोट भी डाले गए। मैं रात
12.30 बजेदफ्तर से लौटने के बाद वहां लाइन देखता हूं तो लग जाता हूं इस उम्मीद में
कि शायद पहली बार एक गुलाबी नोट मेरे हाथ में भी आ जाए। मेरे आगे लगे पड़ोसी कह
रहे हैं....चार दिन तक दूध वाले ने उधार दिया अब वह भी नकदी मांग रहा है। कहां से
दूं। बच्चे का गुल्लक भी तोड़ चुका हूं। खैर आज उन्हें पैसे मिल जाते हैं। अब उनके
बच्चे के दूध का इंतजाम हो जाएगा।
जब तक मैं एटीएम के करीब
पहुंचता हूं मशीन आउट ऑफ सर्विस हो जाती है। अरे लगातार चलते चलते कंप्यूटर हैंग
हो जाता है। थोड़ी देर में मशीन रिस्टार्ट होती है। कोई दस मिनट समय लगाती है। मैं
हसरत भरी निगाहों से स्क्रीन पर देखता हूं – उसपर संदेश लिखा आता है – दिस एटीएम
इज टेंपरोरली आउट ऑफ सर्विस प्लीज कांटेक्ट नियरेस्ट एटीएम।
अब भला मशीन पर गुस्सा करने का
क्या फायदा... दस दिन बाद भी दिल्ली के 80 फीसदी एटीएम खाली ही हैं....एक पुराना
गीत याद आया
खाली से मत नफरत करना ...खाली
सब संसार
ले लो खाली डिब्बा खाली बोतल...
खाली एटीएम ....
पर खुद को खुशकिस्मत मान रहा
हूं दो दोस्तों का फोन आया है जिन्हें एटीएम से दो हजार रुपये निकालने में सफलता
मिल गई है वे उधार देने को तैयार हैं... पर दिवंगत दादा जी याद आते हैं कहते थे न
उधो का लेना न माधो का देना... शायर का एक शेर भी याद आता है ..
मेरे घर की राह कतरा के निकल
जाता है चांद
रहती है सारी शब भर बाहर ही
बाहर चांदनी
- vidyutp@gmail.com
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