भारत में पेपर करंसी छापने की
शुरुआत 18वीं शताब्दी में हुई। सबसे पहले बैंक ऑफ बंगाल, बैंक
ऑफ बांबे और बैंक ऑफ मद्रास जैसे बैंकों ने पेपर करंसी छापना शुरू किया। पेपर
करंसी एक्ट 1861 के बाद करंसी छापने का पूरा अधिकार भारत
सरकार को दे दिया गया। 1935 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की
स्थापना तक भारत सरकार करंसी छापती रही। जिसके बाद रिजर्व बैंक ने यह जिम्मेदारी
अपने हाथों में ले ली।
रिजर्व बैंक छापता है नोट
1938 में पहली बार रिजर्व
बैंक ने पेपर करंसी छापी, यह पांच का नोट था, इसी साल 10 रुपये, 100 और 1000 रुपये के नोट छापे गए।
1946 में 1000 और 10,000 रुपये के नोट बंद कर दिए गए
1954 में एक बार फिर से 1,000 और 10,000 रुपये के नोट छापे गए। साथ ही 5,000 रुपये के नोट की भी छपाई की गई।
1954 में 1000 रुपये का नोट पहली बार जारी हुआ
1978 जनवरी में 1000,
5,000 और 10,000 के नोट को पूरी तरह से बंद कर
दिया गया।
2016 में 8 नवंबर को 500 और 1000 के नोट बंद करने का ऐलान हुआ.
2016 में 8 नवंबर को 500 और 1000 के नोट बंद करने का ऐलान हुआ.
500 और 1000 के नोट
1987 अक्तूबर में 500 रुपये का नोट पहली बार जारी हुआ
2000 में दूसरी बार 1000 रुपये का नोट जारी हुआ था
2005 में सुरक्षा की दृष्टि
से नोट में कुछ बदलाव किए गए (सुरक्षा धागा, वाटरमार्क और
नोट जारी होने का साल)
नेपाल में 500,
1000 रुपये के नोट पर बैन
नकली नोट की बढ़ती घटनाओं को
देखते हुए नेपाल ने भारतीय 500 और 1000 रुपये के नोट पर प्रतिबंध लगा रखा है। इतना ही नहीं अगर अगर इन नोट के
साथ नेपाल में कोई पकड़ा जाता है तो उसे दंड का भी प्रावधान है।
1978 में बंद किए थे बड़े नोट
इमरजेंसी हटने के बाद 1977 में आई जनता पार्टी की सरकार ने बड़े नोटों को बंद करने का ऐतिहासिक फैसला
लिया था। तब पूर्व आईसीएस और वित्तीय मामलों के जानकार एचएम पटेल को मोरारजी देसाई
ने वित्तमंत्री बनाया था और एम नरसिम्हन आरबीआई के गर्वनर थे, जिनकी अगुवाई में यह फैसला लिया गया। खुद मोरारजी देसाई भी कांग्रेस के
शासन में कई बार वित्तमंत्री रह चुके थे।
बड़ा फैसला लिया
1978 में 16 जनवरी को साउथ ब्लॉक में हुई बैठक में
केंद्र सरकार ने 1000 और उससे बड़े नोटों को बंद करने
का फैसला लिया।
1.5 फीसदी के आसपास थे बड़े
नोट बाजार में मौजूद कुल राशि के
90 करोड़ या इससे ज्यादा बड़े
नोटों का कालेधन के तौर पर इस्तेमाल की रिपोर्ट थी आरबीआई गर्वनर के पास
क्या हुआ असर
05 से 10 फीसदी तक अर्थव्यवस्था में मंदी आई बड़े नोट बंद करने के फैसले के बाद
16 करोड़ रुपये लोगों ने
बैंकों में जमा किए बड़े नोट, सरकार के ऐलान के बाद
144 करोड़ रुपये कभी जमा नहीं
हुए, ये माना जाता है यह राशि कालेधन के तौर पर थी जो लोगों
के पास ही रह गई
70 फीसदी कम मूल्य पर काफी
लोगों ने बड़े नोटों मुंबई के झवेरी बाजार में भी बेचा
कांग्रेस पर हमले की कोशिश थी
कहा जाता है कि मोरारजी देसाई
की सरकार ने यह फैसला तब सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस पार्टी को हानि पहुंचाने के
लिए लिया था, क्योंकि उनका मानना था कि
पार्टी के पास बड़े नोट के रूप में बड़ी मात्रा में कालाधन मौजूद था।
रिजर्व बैंक के लिए चुनौती
बड़े नोटों के अचानक से बंद करके
नए नोट छापने पर रिजर्व बैंक को बड़ा घाटा उठाना पड़ेगा। एक साल पहले के नोट छापने
में आने वाले खर्च के मुताबिक आरबीआई को तकरीबन 2770 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे। अभी तक जो 1000 और 500 के नोट छापने में खर्च आया है उसका घाटा भी बैंक को उठाना पड़ेगा। अगर सभी
मौजूद 500 और 1000 की नोट की जगह 100 रुपये के नोट छापने पड़े तो 11,900 करोड़ रुपये का
खर्च आएगा जो व्यवहारिक नहीं होगा।
नोट छापने का खर्च
3.17 रुपये खर्च आता है
आरबीआई को 1000 का एक नोट छापने में
2.5 रुपये खर्च आते हैं
आरबीआई को 500 का एक नोट छापने में
30 फीसदी सस्ता पड़ता है 500 और 1000 रुपये जैसे बड़े नोटों को छापना।
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1000 और 500 के नोट
84 फीसदी बाजार में उपलब्ध
मुद्रा में 1000 और 500 के नोट हैं
39 फीसदी 1000 के नोट की साझेदारी है
45 फीसदी 500 रुपये के नोट की साझेदारी है।
40 अरब के कागज के करेंसी के
नोट भारत में चलन में हैं, जिसमें 7
अरब नोट दस रुपये मूल्य वर्ग के हैं।
(आंकड़े 2014-15 के )
नकली नोटों का मकड़जाल
भारत की अर्थव्यस्था को हानि
पहुंचाने के लिए पड़ोसी देश पाकिस्तान से संचालित आईएसआई और दूसरे आतंकी संगठन भारत
में बड़े पैमाने पर नकली नोट की खेप भेजते हैं। खासतौर पर 1000 और 500 रुपये के नकली नोट छापकर भारतीय बाजार में
हर साल भेजे जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक 70 अरब रुपये की
जाली करेंसी भारतीय बाजार में है जो अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रही है।
पाकिस्तान से जाली नोट
समय-समय पर ऐसी खबरें आती हैं
पाकिस्तान सरकार और आईएसआई के नियंत्रण और संरक्षण में भारतीय जाली नोट छापे जाते
हैं। भारतीय गुप्तचर एजेंसियों के पास ऐसी रिपोर्ट है कि कराची स्थित टकसाल में
पाकिस्तान की करेंसी छापी जाती है उसी में भारतीय जाली नोट भी छापे जाते हैं।
40 फीसदी तक लाभ कमाती है
आईएसआई भारत में जाली नोट छापकर भेजने में
1600 करोड़ रुपये आईएसआई ने
भारत में नकली करेंसी भेजी साल 2010 में
70 करोड़ रुपये हर साल जाली
करेंसी भारतीय बाजार में खपाई जाती है।
50 फीसदी नकली नोटों में
हिस्सेदारी है 1000 रुपये वाले नोट की
जाली नोट की बरामदगी
30.43 करोड़ रुपये नकली नोट
बरामद किए गए साल 2015 में
788 एफआईआर दर्ज किए गए नकली
नोट के चलाने के मामले में
10 फीसदी कमी आई है नकली नोट
की बरामदगी में पिछले तीन साल में
33 फीसदी नकली करेंसी ही
एजेंसियां पकड़ पाती हैं हर साल
10 करोड़ रुपये की जाली करेंसी
बरामद की गई 2010 में
दिल्ली में सबसे ज्यादा नकली
नोट
43 फीसदी कुल नकली नोटों का
दिल्ली और यूपी से बरामद हुआ 2015 में
10.35 करोड़ रुपये बरामद हुए 2013-14 में
9.09 करोड़ बरामद हुए 2014-15 में
9.31 करोड़ बरामद हुए 2015-16 में
निपटने के लिए कदम
केंद्र सरकार ने जाली नोटों से
निपटने के लिए फेक नोट कोआर्डिनेशनन समूह गृहमंत्रालय में गठित किया है जो केंद्र
और राज्य सरकार के सुरक्षा एजेंसियों के साथ जानकारी साझा करता है। इसके अलावा
टेरर फंडिंग और फेक करेंसी सेल का गठन एनआईए के अधीन किया गया है जो खासतौर पर
नकली करेंसी के मामलों की जांच करता है।
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विद्युत
प्रकाश मौर्य
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