Tuesday, 31 May 2011

अंतरराष्ट्रीय समाचार चैनल.. समय की जरूरत


हाल में भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय ने घोषणा की है कि वह बीबीसी और सीएनएन जैसा अंतरराष्ट्रीय टीवी चैनल शुरू करेगा। इस चैलन की शुरूआत के लिए लगभग 350 करोड़ की भारी भरकाम राशि का निवेश किया जाएगा। जाहिर है कि इसके लिए दूरदर्शन दुनिया भर में अपने पत्रकारों की टीम की नियुक्ति करेगा। कुछ लोग इसे सरकार के लिए पैसे की बरबादी मान रहे हैं। पर इस विषय पर गंभीरता से विचार किया जाए तो वास्तव में ऐसा नहीं है। 

आज हम एज हम इन्फारमेशन में जी रहे हैं। इस युग में जो जितना सूचना संपन्न है वह उतना ही शक्तिशाली है। आज दुनिया में लड़ाई सिर्फ हथियारों से ही नहीं लड़ी जा रही है। बल्कि एक लड़ाई ऐसी भी लड़ी जा रही है जिसमें लोगों को सूचना देकर अपने पक्ष में करने की कोशिश की जाती है। यह दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य है कि भारत दुनिया में चीन और अमेरिका के बाद तीसरी सबसे बड़ी शक्ति के रुप में उभर रहा है। ऐसे में भारत को अपनी छवि को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पेश करने के लिए एक सशक्त अंतरराष्ट्रीय समाचार चैनल की आवश्यकता है। जैसी खबरों को लेकर साख बीबीसी  और सीएनएनफाक्स न्यूज या एनबीसी की है उसी तरह का एक चैनल भारत की ओर से हो यह बहुत बड़ी जरूरत है।

जो लोग यह सोचते हैं कि इस चैनल से कोई आर्थिक लाभ नहीं होगावे गलत सोचते हैं। बहुत सारे काम आर्थिक लाभ के लिए ही नहीं किए जाते हैं बल्कि इमेज बिल्डिंग के लिए भी किए जाते हैं। आज भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए अपनी दावेदारी जता रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव पद के लिए अपने उम्मीदवार शशि थरुर को प्रस्तुत कर रहा है। टाइम जैसी अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं की कवर स्टोरी भारत पर बन रही है। ऐसे में भारतीय पक्ष को विश्व पटल पर पेश करने के लिए हमें एक अंतरराष्ट्रीय मंच की बहुत बड़ी जरूरत है।

अब हम बीबीसी और सीएनएन की भूमिका को समझने की कोशिश करें। पूरी दुनिया में बीबीसी की खबरों को लेकर साख है। हिंदुस्तान के गांव के लोग एक जमाने से बीबीसी रेडियो की खबरों की विश्वसनीयता के कायल है। इसके लिए बीबीसी ने हमेशा सबसे अच्छा वेतनमान देकर हिंदी के बेहतरीन पत्रकारों को अपनी सेवा में रखा है। क्या बीबीसी की हिंदी सेवाटीवी चैनल और रेडियो और इंटरनेट पर हिंदी में आकर्षक वेबसाइट ये सब कुछ आर्थिक लाभ के लिए हैं। नहीं यह सब कुछ ग्रेट ब्रिटेन की विदेश नीति का हिस्सा है। वही ब्रिटेन जिसने दुनिया के दर्जनों देशों पर लंबे समय तक शासन किया। 

अब अपनी खबरों की विश्वसनीयता को लेकर दुनिया के अन्य देशों के मानस पटल पर प्रभाव जमा रहा है। यह सब कुछ ब्रिटेन की विदेश नीति का हिस्सा है जिसमें हिंदीउर्दूबांग्ला जैसी कई अन्य भाषाओं के लिए अपनी सेवा आरंभ कर रखी है। अगर हम बीबीसी की खबरों को सूक्ष्मता से समझने की कोशिश करें तो वह हर जगह बड़ी ही सफाई से ग्रेट ब्रिटेन के हितों का ख्याल रखने की कोशिश करता है। इसको आम आदमी नहीं समझ सकता। वह तो बीबीसी की क्रिडेबलिटी का कायल है। यही बीबीसी की बहुत बड़ी सफलता और उसकी जमा पूंजी है। ठीक इसी तरह वाइस आफ अमेरिका और रेडियो जर्मनी जैसे चैनल हैं। या दुनिया कई और संपन्न देश जो हिंदी में पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन करते हैं और रेडियो तथा टीवी चैनलों पर अपनी उपस्थिति पेश करते हैं। यह सब कुछ एक सोची समझी लंबे समय तक चलाई जाने वाली स्ट्रेडजी के तहत होता है।  
---- विद्युत प्रकाश मौर्य - Vidyut Prakash Maurya
E mail - vidyutp@gmail.com 



Tuesday, 24 May 2011

बाजार में डीटीएच में नए खिलाड़ी


देश की सबसे पुरानी डीटीएच सेवा डिश टीवी है जो जी समूह की ओर से शुरू की गई थी लेकिन डिश टीवी को टक्कर देने आया टाटा के साथ संयुक्त उद्यम के रुप में स्टार की डीटीएच सेवा टाटा स्काई। आज बाजार में सात डीटीएच आपरेटर हैं। डिश टीवी, टाटा स्काई, एयरटेल, सन डाइरेक्ट, रिलायंस बिग, विडियोकान डीटूएच और दूरदर्शन का डीडी डाइरेक्ट प्लस। जब बाजार में पहला डीटीएच आया तो इसे लगाने  में 4000 रूपये से ज्यादा खर्च आ रहा था लेकिन बाजार में कई आपरेटरों के आ जाने के बाद अब डीटीएच सस्ता हो गया है।

अब कई विकल्प मौजूद  - अब उपभोक्ता के सामने डाइरेक्ट टू होम खरीदने के समय भी कई तरह के विकल्प मौजूद हैं। अगर वह बिल्कुल मुफ्त में डीटीएच चाहता है तो उसके सामने दूरदर्शन का डीटीएच मौजूद है। इसमें मुफ्त में 60 से ज्यादा टीवी चैनल मौजूद हैं। अगर आप पैसे देकर देखना चाहते हैं तब जीटीवी समूह का डिश टीवी और टाटा स्काई विकल्प के रुप में हैं। जाहिर है पेड डीटीएच में टीवी चैनलों के ज्यादा विकल्प मौजूद हैं। जब जी टीवी समूह का डीटीएच आया तब लोगों को इस बात का अंदेशा था कि इसमें स्टार टीवी के चैनल नहीं दिखाई देंगे। हुआ भी यही। इसलिए डिश टीवी उतना लोकप्रिय नहीं हो सका। अब नए समझौते के तरह डिश टीवी के बुके मे स्टार के भी सभी चैनल उपलब्ध हैं वहीं स्टार के बुके में जी टीवी समूह के भी सभी चैनल।

अंतर क्वालिटी का - जब आप डीटीएच तकनीक का इस्तेमाल करते हैं तो आपको सबसे बड़ी आजादी इस बात की मिलती है कि आप बेतार सिस्टम से जुड़ जाते हैं। यानी केबल से आजादी। आप अपने डीटीएच सिस्टम को कहीं भी लेकर जा सकते हैं। गांव में भी फार्म हाउस में भी। आमतौर पर केबल आपरेटर शहर या कस्बे की घनी आबादी में ही मौजूद होते हैं। डीटीएच पर आपको डीवीडी क्वालिटी की तस्वीर प्राप्त होती है। जबकि केबल प्रसारण अभी भी आमतौर पर एनलाग तकनीक से हो रहा है। यानी डीटीएच पर केबल की तुलना में साफ तस्वीरें प्राप्त होती हैं। डीटीएच का मुकाबला करने के लिए केबल आपरेटरों को अपनी तकनीक उन्नत करने में लगे हैं। साथ ही मासिक शुल्क को भी प्रतिस्पर्धात्मक रखना केबल आपरेटरों के लिए चुनौती है।
अब बाजार में हाई डेफिनेशन क्वालिटी का डीटीएच भी आ चुका है। इसके सेट टाप बाक्स की कीमत परंपरागत डीटीएच से कुछ अधिक ली जा रही है।  अगर आपके पास हाई डेफिनिशन टीवी है तो आपको डीटीएच भी एचडी ही खरीदना चाहिए।
वैल्यू एडेड सेवाएं - सभी डीटीएच आपरेटर कई तरह की वैल्यू एडेड सेवाएं उपलब्ध करा रहे हैं। इनमें मूवी आन डिमांड और वीडियो गेमिंग जैसी चीजें खास है। डीटीएच आपरेटरों का लक्ष्य है कि आपको घर में अलग से डीवीडी प्लेयर रखने की कोई जरूरत न रहे। आप जो भी नई पुरानी फिल्में देखना चाहते हैं वह सब आपको मूवी आन डिमांड के तहत प्राप्त हो जाएंगी। टाटा स्काई डीटीएच ने बच्चों के लिए खास तौर पर आनलाइन गेमिंग की सेवा आरंभ की है। हां आपको इन सब चीजों के लिए अलग से शुल्क चुकाना पड़ता है।

महंगा नहीं है डीटीएच - अगर आपर डीटीएच स्थापित करना चाहते हैं तो आपको इसके लिए महज उपकरणकी कीमत के रुप में 1500 से से 2000 रुपए तक देने हैं। वहीं दूरदर्शन का फ्री डीटीएच भी 1500 रुपए में स्थापित कराया जा सकता है। जहां तक मासिक शुल्क का सवाल है डीटीएच औसतन 150 रूपये प्रति माह के शुल्क पर उपलब्ध है। लेकिन आपको अपनी पसंद के अलग अलग चैनलों के लिए अलग फीस चुकानी पड़ती है। लेकिन डीटीएच में अपनी पसंद का चैनल चुनने की आजादी उपभोक्ताओं को है। बड़े शहरों में इससे अधिक राशि फिलहाल केबल आपरेटर ले रहे हैं। बाजार में खिलाड़ी आ जाने के बाद इसकी कीमतें फिलहाल बढ़ने की कोई उम्मीद नहीं नजर आ रही है।
सात डीटीएच आपरेटर
1.  डिश टीवी
2.  टाटा स्काई
3.  एयरटेल
4.  सन डाइरेक्ट
5.  रिलायंस बिग
6.  वीडियोकान डीटूएच
7.  दूरदर्शन का डीडी डाइरेक्ट प्लस

दस साल में डीटीएच के सफर की बात करें तो अब सभी डीटीएच आपरेटरों के कुल कनेक्शन की संख्या देश भर में दो करोड़ को पार कर चुकी है।
 -विद्युत प्रकाश मौर्य



Monday, 16 May 2011

अब आया डीवीडी कैमकार्डर का दौर


रिकार्ड कीजिए और तुरंत अपने कंप्यूटर या टीवी पर देखिए। यह संभव हो सकता है डीवीडी कैमकार्डर की बदौलत। पिछले कुछ सालों में लोगों में अपने जीवन से जुड़े यादगार लम्हों के वीडियो बनाने का प्रचलन बढ़ा है। ऐसा इसिलिए भी हो सका है कि वीडियो रिकार्डिंग अब आसान हो गई है। साथ ही मूवी कैमरों की कीमतों में गिरावट आई है वहीं उसकी गुणवत्ता में भी इजाफा हुआ है। कुछ साल पहले जहां सिर्फ शादी व बड़े समारोहों की वीडियो रिकार्डिंग होती थी वहीं अब हर प्रमुख कार्यक्रम की वीडियो बनाना आसान हो गया है। चाहे अपने बच्चे का बर्थ डे मना रहे हों या कहीं भी घूमने जा रहे हों सबकुछ का वीडियो बना सकते हैं। अब स्तरीय कंपनियों के वीडियो कैमरों की कीमतें 11 हजार रुपए से आरंभ हो जाती हैं।
वीएचएस से डीवीडी तक -
कुछ साल पहले जो वीडियो कैमरे प्रचलन में थे उनमें वीएचएस (वीडियो होम सर्विसवाले 180 मिनट के कैसेट डालकर रिकार्डिंग की जाती थी। ये कैमरे आकार में भी बड़े होते थे वहीं इनकी कीमत भी 35 हजार से 70 हजार तक थी। उसके बाद भी इन कैमरों की वीडियो रिकार्डिंग इतनी स्तरीय नहीं होती थी कि उन्हें सालों तक संभाल कर रखा जा सके। उसके बाद छोटे हाईकैसेट वाले कैमरों का दौर आया। भारत में आजकल ज्यादातर लोग ऐसे ही कैमरों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसमें आडियो कैसेट के साइज के फीते वाले एनलाग कैसेट का इस्तेमाल होता है। अगर आप अपने वीडियो फुटेज को सीडी में संभाल कर रखना चाहते हैं इस कैसेट को लैब में ले जाकर सीडी में परिवर्तित कराना पड़ता है। एक सीडी में 80 मिनट तक का वीडियो रिकार्ड करके रखा जा सकता है। वहीं बेहतर क्वालिटी के लिए इन्हें डीवीडी पर रिकार्ड करवाया जा सकता है। एक डीवीडी में दो घंटे से लेकर 18 घंटे तक की रिकार्डिंग की जा सकती है। 

यानी इसको संभालकर रखना व कहीं लेकर जाना बहुत आसान हो गया है।
पर अब कैमरा बनाने वाले कंपनियां लोगों की मुश्किलों को और आसान करने में लगी हैं। उन्होंने अब डीवीडी कैमकार्डर पेश कर दिया है। सोनी और नेशनल पानासोनिक जैसी कंपिनयां ऐसा कैमकार्डर लेकर आ गई हैं। इनमें आप सीधे एक डीवीडी लगा सकते हैं जो कुछ भी आप शूट करेंगे वह सीधे ही डीवीडी पर रिकार्ड होता रहेगा। इस तरह के कैमकार्डर में आमतौर पर साढ़े चार घंटेतक की रिकार्डिंग की जा सकती है। एक अगर भर गया तो तुरंत दूसरी डिस्क लगा दीजिए पर अपनी रिकार्डिंग को निर्बाध तरीके से जारी रख सकते हैं।

आसान हुई राह -
डीवीडी कैमकार्डर ने वीडियो बनाने की पेचीदगियों को कम कर दिया है वहीं कई मिक्सिंग व ट्रांसफर के चरणों को आसान कर दिया है। आप खुद रिकार्ड करने के बाद अपने कंप्यूटर पर उसका संपादन भी कर सकते हैं। आने वाले कुछ साल में बाजार से सीडी की खपत कम होगी और स्टोरेज क्षमता की अधिकता के कारण डीवीडी की लोकप्रिय होंगे। अगर आप वीडियो शूट करने के लिए किसी मूवी कैमरा को खरीदने की योजना बना रहे हैं तो आप सीधे डीवीडी कैमकार्डर खरीदने के विकल्प पर विचार करें। यह अभी सीसीडी कैमकार्डर की तुलना में थोड़ा मंहगा जरूर है पर इसमें उपलब्ध सुविधाओं आपकी कई मुश्किलों को आसान भी कर देंगी।
---- vidyutp@gmail.com




Thursday, 12 May 2011

मनोरंजन चैनल बनाम समाचार चैनल


कई बार टीवी पर कोई समाचार चैनल देखते हुए यह प्रतीत होता है मानो कोई मनोरंजन चैनल ही देख रहे हों। समाचार चैनल अब अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए मनोरंजक कार्यक्रमों को तरजीह देने लगे हैं। वे फैशन और ग्लैमर से भरे कार्यक्रमों को स्क्रीन पर पर्याप्त समय देते हैं। जैसे किसी फैशन शो की कवरेज पांच से सात मिनट तक लंबी दिखाई जाती है। फिल्मी पार्टियों और समारोहों को खास तवज्जों दी जाती है। आजकल स्टार न्यूज और आजतक जैसे चैनल पर हर रोज आधे से एक घंटे तक फिल्मी खबरें देखी जा सकती हैं। जबकि पहले इस तरह के फिल्मी न्यूज और गासिप के बुलेटिन सिर्फ जी सिनेमा और सेट मैक्स जैसे फिल्मी चैलनों पर आया करते थे। स्टार न्यूज ने तो इससे आगे बढ़कर टीवी सीरियलों पर आधारित खबरों का कार्यक्रम आरंभ कर दिया है। इसमें न सिर्फ स्टार प्लस बल्कि अन्य टीवी चैलनों के धारावाहिकों से जुड़ी हुई खबरें और गासिप प्रसारित किया जाता है। हम बात कर रहे हैं सास बहू और साजिश की।

समाचार चैनलों ने कई धार्मिक आयोजन और कई फिल्मी पार्टियों के लाइव टेलीकास्ट की भी व्यवस्था की है। अभी हाल में उद्योगपति विजय मल्या ने अपना 50वां जन्म दिन मनाया तो कई टीवी चैनलों के कैमरे गोवा में चार दिन के जश्न में मौजूद थे और पल-पल की खबरें दर्शकों तक पहुंचा रहे थे। कई बार दर्शकों की किसी विषय में खास रुचि नहीं होती है। पर टीवी चैनल उन्हें बार बार दिखा दिखा कर खबरों को काफी प्रचारित कर देते हैं। मध्य प्रदेश के एक शहर के मामूली से ज्योतिषी ने अपने मरने की तारीख मुकर्रर कर दी। उसके बाद दिन भर कुछ टीवी चैनल इस कार्यक्रम को लाइव दिखाते रहे। हालांकि वह व्यक्ति नहीं मरा। पर देश भर के लोगों का इस अंधविश्वास पूर्ण घटना के साथ वक्त जरूर बर्बाद हुआ।

मनोरंजन और खबर के बीच एक पतली सी ही सही पर सीमा रेखा जरूर खींची जानी चाहिए। अगर समाचार चैनल ही लोगों का मनोरंजन करने लग जाएं तो मनोरंजन चैनलों का प्रोफाइल क्या रह जाएगा। यह जरूर है कि खबरों की प्रस्तुति रोचक होनी चाहिए। परंतु रोचकता भी कितनी।

 31 दिसंबर को आजतक ने साल भर की प्रमुख घटनाओं पर आधारित कार्यक्रम बनाया गजब भयो रामा। इस कार्क्रम की एंकर मिनी स्कर्ट और स्लीवलेस टाप में अलग अलग पब्लिक प्लेसेज में घूम-घूम कर साल भर की घटनाओं को चासनी लगा कर अपनी मधुर आवाज में पेश कर रही थीं। यानी की टीवी की एंकरों का पहनावा भी अब किसी माडल की तरह होना चाहिए। क्या उन्हें लोगों की नजरों में चढ़ने के लिए अंग प्रदर्शन करना पड़ेगा। जब टीवी चैनल की एंकर किसी खास स्थल से रिपोर्टिंग करती है तो उसका पहनावा वहां के वातावरण के अनुकूल होता है। यह एक हद तक जायज भी है। पर समाचार चैनलों का मुख्य उद्देश्य सूचना देना ही होना चाहिए न कि मनोरंजन करना।
-विद्युत प्रकाश, vidyutp@gmail.com

Tuesday, 10 May 2011

कमाई के बडे साधन है सूचना विज्ञापन- टेली शापिंग


टीवी पर आप कई बार आधे-आधे घंटे का विज्ञापन प्रोग्राम देखते हो। यानी ऐसे विज्ञापन जो किसी प्रोडक्ट केबारे में विस्तार से बताते हैं। वास्तव में ये सूचना विज्ञापन कमाई के बहुत बड़े साधन हैं। 1984 में अमेरिका सरकार ने निजी टीवी चैनलों को यह छूट प्रदान कर दी कि वे दो मिनट से ज्यादा बडे़ विज्ञापन दिखा सकते हैं। इससे पहले कोई भी विज्ञापन दो मिनट से कम का ही होता था। पर इस कानून के पास हो जाने के बाद टीवी चैनलों को आजादी मिल गई। वे टीवी धारावाहिक जैसे ही विज्ञापन बनाने लगे। अब टीवी पर जब टेली शापिंग के एड चलने लगते हैं तो कई बार यह समझना मुश्किल हो जाता है कि यह धारावाहिक चल रहा है या विज्ञापन। इन विज्ञापनों में कई बार जाने माने फिल्म स्टार आते हैं जो इन प्रोडक्ट के बारे में अपने निजी अनुभव बताते हैं। कई बारे खेल जगत के सितारे होते हैं।
इन दिनों टीवी पर सूचना विज्ञापनों की बाढ़ आ गई है। इसके साथ ही शुरू हुआ टेली शापिंग का दौर। यानी टेलीविजन पर चलने वाली दुकानें। नब्बे के दशक में दुनिया के लगभग हर देश में टीवी पर सूचना विज्ञापनों की बाढ़ सी आ गई। ये सूचना विज्ञापन महज विज्ञापन नहीं होते। ये आपको किसी नए प्रोडक्ट के बारे में विस्तार से सूचना देते हैं। ठीक ऊसी तरह जैसे अखबार के बिजनेस पन्ने पर आप देखते हैं। हालांकि ये सूचना विज्ञापन टीवी चैनलों की कमाई के बहुत बड़े जरिया के रुप में ऊभरे है। नए उत्पादों के संपूर्ण परिचय के बाद ये बताते हैं कि इन उत्पादों को आनलाइन कहां से खरीदा जा सकता है। बस एक फोन घुमाएं और सामान घर पर ही मंगवाएं।

थोड़ा सावधान रहें - अक्सर टीवी पर टेली शापिंग में वैसे ही प्रोडक्ट होते हैं जो हर किसी को अपनी जरूरत प्रतीत होते हैं। जैसे कद बढ़ाने वालेरंग गोरा करने वालेमोटापा घटाने वाले। अगर आप टीवी पर देखकर किसी सामान का आर्डर करते हैं तो थोड़ा सावधान रहें। हो सकता है ये प्रोडक्ट बाजार में आपको इससे भी सस्ते दामों पर ही उपलब्ध हो। अगर इन प्रोडक्ट विज्ञापन आपका कोई पसंदीदा स्टार या रोल माडल कर रहा हो तो भी धोखे में न आएं।
भारत में लगभग सभी म्यूजिक चैनलोंमनोरंजन चैनलों और कुछ समाचार चैनलों पर इस तरह के सूचना विज्ञापन आते हैं। कई चैलनो पर तो देर रात इस तरह के विज्ञापनों की भरमार देखने को मिलती है। आप कोई भी चैनल बदलें उसपर कोई इस तरह का विज्ञापन आता हुआ दिखाई देता है। टेलीशापिंग पर कोई भी आर्डर करने से पहले यह भी अच्छी तरह परख लेना चाहिए कि क्या वास्तव में आपको इस तरह के किसी प्रोडक्ट की जरूरत है। कई बार ऐसे विज्ञापन आपको भ्रमित कर देते हैं। आप उनके शब्दजाल में फंस जाते हैं और फटाफट फोन घुमा कर आर्डर कर देते हैं।
-विद्युत प्रकाश, vidyutp@gmail.com


Sunday, 8 May 2011

बड़ा होकर गायक बनूंगा...


किसी जमाने में कहावत थी पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाबखेलोगे कूदोगे होगे खराब....पर नए जमाने में यह कहावत बदल गई है। अब बच्चे खेलकूद कर सचिन सहवाग बनना चाहतें है। उन्हें खेल में भी संभावना नर आती है। कैरियर नजर आता है। पर अब कैरियर का एक नया विकल्प आ गया है। अब जिस टीवी चैनल को स्वीच करो वहां बच्चे गीत गाते हुए नजर आते हैं और पुराने गायक उन्हें दिल से आशीर्वाद दे रहे होते हैं। हां तुम बड़े होकर बहुत बड़े गायक बनोगे। किसी चैनल पर लिट्ल चैंप्स नाम से तो किसी चैनल पर छोटे उस्ताद नाम से बच्चों के बीच गायकी के मुकाबले करवाए जा रहे हैं। 

पहले तो नौजवान गायकों के बीच गायकी के मुकाबले करवाए गएपर जब कई चैनलों ने इन नौजवानों गायकों को स्थापित कर दिया तो अब बच्चों का बीड़ा उठाया है। वैसे हमने सुना है कि कई चैनलों के विजेता गायकों को भी बाद में फिल्मों में ज्यादा काम नहीं मिला। कई जब विजेता बने थे तो देश भर में धूम थीलाखों एसएमएस आ रहे थे पर बाद में सब कुछ समान्य हो गया। बड़ी मुश्किल से एक म्यूजिक चैनल के विजेता गायक ने अपना अलबम निकाला भी तो उसको बाजार नहीं मिला।
अब टीवी चैनल वाले बड़े गायकों पर हाथ आजमा लेने के बाद नन्हीं उम्र के गायकों में संभावानाएं तलाशने में लगे हैं। सभी बड़े महानगरों में आडिशन लिए जा रहे हैं और नन्ही उम्र में गायकी की प्रतिभा तलाशी जा रही है। पर क्या नन्ही उम्र के ये गायक बड़े होकर गायकी को अपना कैरियर बना सकेंगे। अगर हम निष्पक्ष रूप से देखें तो स्कूली उम्र पढ़ाई की होती है। इस दौरान अगर कोई एजुकेशनल प्रतियोगिता कराई जाए तो इसका लाभ बच्चों को मिलता है। इसके लिए नेशनल टैलेंट सर्च जैसी प्रतियोगिताएं भी हैं। जिन बच्चों में किसी खेल की प्रतिभा होती है उन्हें बचपन से ही उस खेल का प्रशिक्षण दिया जाता है। ठीक इसी तरह जिसको म्यूजिक का शौक होता हैउन्हें गायकी सिखाई जाती है। इसके लिए नियमित रूप से म्यूजिक के क्लास दिए जाते हैं। आगे चलकर बच्चे म्यूजिक को कैरियर के रुप में भी चुन लेते हैं। पर टीवी चैनलों पर जो संगीत प्रतियोगिता कराई जाती हैवह एकेडमिक म्यूजिक से कुछ अलग हटकर है। यहां बच्चों को फिल्मी गानों की पैरोडी गानी पड़ती हैहालांकि संगीत और सुर यहां भी हैपर यह एक तरह की नकल भी है। यहां प्रतिभा का प्रदर्शन कम है। देश में ऐसे हजारों लाखों लोग हैं जो किसी फिल्मी गाने को नकल करके गा देते हैं। पर वे सभी लोग बाद में सफल गायक इसलिए नहीं बन पाते क्योंकि उन्होंने म्यूजिक की कोई नियमित तालीम नहीं ली होती है। कई टीवी चैनलों पर नियमित तौर पर आने वाले गानों पर आधारित रियलिटी शो इसमें भाग लेने वाले बच्चों का महीनो समय तो बरबाद करते ही हैं साथ ही देखने वालों का भी काफी समय बरबाद होता है। इससे देश के करोड़ो बच्चे अपनी नियमित स्कूली पढ़ाई से विमुख हो रहे हैं। जैसे टैलेंट हंट निकले नौजवान गायक म्यूजिक के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं कुछ इसी तरह का हाल इन बच्चों के साथ भी हो सकता है। गायक के रुप में कैरियर बनाना हो तो उस प्लेटफार्म पर जगह बहुत थोड़ी है। पर गायक बनने की होड़ में काफी लोग हैं। इसलिए रियलिटी शो के दौरान देश भर में चर्चा में रहने वाले गायकों को लोग बाद में भूल जाते हैं। उनके आडियो कैसेट या सीडी को कोई खरीदने वाला भी नहीं होता। हमें आने वाली पीढ़ी को ऐसे खतरों से बचाना होगा। 
--- विद्युत प्रकाश मौर्य vidyutp@gmail.com



Friday, 6 May 2011

अब मोबाइल फोन में ही देखिए टीवी


आप कहीं भी चले आपका टीवी भी आपके साथ साथ होगायानी मोबाइल फोन में ही मुकम्मल टीवी देखने की सुविधा। भारत में इसकी शुरूआत भी हो गई है। टाइम्स समूह का समाचार चैनल टाइम्स नाउ को टीवी पर लांच करने से पहले रिलांयस के मोबाइल फोनों पर लांच किया गया है। पर इसके लिए उन्नत तकनीक के मोबाइल फोनों की जरूरत होगी।

मोबाइल हैंडसेट बनाने वाली कंपनियां भी इस तरह के हैंडसेट बनाने की कोशिश में लगी हैं जिसमें लाइव टीवी देखा जा सकेगा। यह कनवरजेंस का एक और नया दौर है। मोबाइल में कैलकुलेटरघड़ीआरगेनाइजरएफम रेडियो और कैमरा के बाद अब टीवी की बारी है। अभी तक लोग मोबाइल से एक दूसरे को एसएमएस करते थेवालपेपर डाउनलोड करते थे। रिंगटोनों का आदान प्रदान करते थे पर अब बारी है अपना मनपसंद चैनल लगातार देखने की। पूरी दुनिया में इस बात पर शोध चल रहा है कि टेलीविजन सिग्नल का स्तरीय प्रसारण मोबाइल फोन पर किया जा सके।
इस बारे में मोबाइल हैंडसेट बनाने वाली कंपनी नोकिया ने पहल की है। नोकिया ने चिपमेकर कंपनी इंटेल और अन्य तकनीकी कंपनियों के साथ एक समझौता किया है जिसके तहत ऐसे हैंडसेटों के निर्माण किया जा सके जिसमें टीवी देखने की सुविधा उपलब्ध हो। इसके लिए डिजिटल वीडियो ब्राडकास्ट हैंडहेल्ड (डीवीबी-एचतकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। मीडिया में आई रिपोर्ट के अनुसार दूसरी प्रमुख मोबाइल फोन निर्माता कंपनी सेमसंग भी अपने फोन पर टीवी के प्रसारण के लिए डिजिटल मीडिया ब्राडकास्ट (डीएमबीतकनीक का इस्तेमाल करने जा रहा है। ब्रिटेन की कंपनी ब्रिटिश टेलकाम और वर्जिन मोबाइल जैसी कंपनियां भी मोबाइल फोन पर टीवी प्रसारण के लिए अपने उपभोक्ताओं को सुविधा देने मे जुटी हैं।

ब्रिटेन की कंपनी क्वालकाम भी अपने उपभोक्ताओं को मोबाइल फोन पर टीवी देखने की सुविधा दे रहा है। उसने इसके लिए मीडिया फ्लो नामक तकनीक विकसित की है। लगभग यूरोप की हर कंपनी मोबाइल फोन के साथ टीवी प्रसारण की सुविधा देने पर लगी है। यानी यूरोप मे शुरूआत हो चुकी है तो अब भारत जैसे देश की बारी है। यानी मोबाइल पर टीवी के एक नए युग की शुरूआत। हो सकता है आपको यह सब मुफ्त में न प्राप्त हो। टीवी चैनल मोबाइल पर प्रसारण के लिए कुछ शुल्क तय कर सकते हैं। इससे मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर की कमाई में भी इजाफा होगा। मोबाइल कंपनियां अपने उपभोक्ताओं को यह सेवा वैल्यू एडेड सर्विस के रुप मे पेश करेंगी। आपको एक उन्नत किस्म का हैंडसेट खरीदना पड़ सकता है। हां मोबाइल पर टीवी देखने के लिए आपको छोटे से स्क्रीन पर ही आश्रित रहना पड़ेगा। पर आपको एक आजादी मिल सकेगी। कभी भी कहीं भी अपना मनपसंद टीवी चैनल देख सकने की। तो हो जाइए तैयार एक नए कनवरजेंस के लिए।
 --- विद्युत प्रकाश मौर्य


Wednesday, 4 May 2011

नए चैनलों को घास नहीं डालते केबल वाले


रोज कुकुरमुत्ते की तरह शुरू होने वाले सेटेलाइट चैनल को अब केबल आपरेटर घास नहीं डालते हैं। आज भारत में 400 से ज्यादा सेटेलाइट चैनलों के सिग्नल रिसिव हो रहे हैं। किसी शहर के बड़े केबल आपरेटर की बात की जा तो वह 100 से 125 चैनल दिखाने की क्षमता रखता है। ऐसे में उसकी मर्जी पर है कि वह कौन से चैनल दिखाए और कौन से नहीं दिखाए। कुछ साल पहले तमाम सेटेलाइट चैनल केबल आपरेटर के सामने अपनी मनमानी कर पाते थे। पर अब स्थिति ऐसी नहीं है। अब अगर कोई नया चैनल लांच होता है तो पहले दिन से उसकी मार्केटिंग बहुत शानदार होनी चाहिए तभी वह बाजार में जगह बना पाता है। बुरी मार्केटिंग का ही नतीजा है कि कई चैनल लांचिंग के कई कई महीनों के बाद कई शहरों में दिखाई तक नहीं देते।

अब नए लांच होने वाले चैनल विभिन्न शहरों में केबल नेटवर्क चला रहे एमएसओ ( मल्टी सिस्टम आपरेटरऔर बड़े केबल आपरेटरों को तरह तरह के प्रलोभन देकर लुभाते हैं जिससे उनके चैनल को केबल वाले प्राइम बैंड में जगह देकर दिखाएं। जैसे एनडीटीवी ने अपना नया मनोरंजन चैनल एनडीटीवी इमैजिन जिस दिन से लांच किया उसी दिन से वह देश भर के सभी प्रमुख केबल नेटवर्क पर उपलब्ध था। अच्छी मार्केटिंग का ही नतीजा था कि चैनल ने जल्द ही लोगों में अपनी जगह बना ली। जाहिर है कंटेट तो अच्छा होना ही चाहिए पर अच्छे कंटेट के बावजूद मार्केटिंग सही नहीं हो तो कुछ वैसा ही होता हैजंगल में मोर नाचा किसने देखा। यह काफी कुछ वैसा ही है जैसे कोई अखबार नया संस्करण लांच करता है तो इलाके के तमाम हाकरों को खुश रखने के लिए रणनीति अपनाता है।

इसका एक और अच्छा उदाहरण नाइन एक्स के चैनल हैं। नाइन एक्स के म्यूजिक और जनरल इंटरटेनमेंट चैनल ने बाजार में बहुत अच्छी जगह बना ली है। हालांकि अब चैनल वितरण के लिए कई और विकल्प भी हैं। जैसे डीटीएच आईपीटीवी और वेबकास्टिंग के फारमेट। पर अभी ये सब फारमेट उतने लोकप्रिय नहीं हो सके हैं। देश में केबल के समांतर धीरे-धीरे डीटीएच का बाजार बन रहा हैपर डाइरेक्ट टू होम के प्लेटफार्म पर जाने के लिए भी किसी नए चैनल को अच्छी खासी सालाना फीस देनी पड़ती है। अभी दूरदर्शनडिश टीवी औरटाटा स्काई तीन प्रमुख डीटीएच आपरेटर देश में काम कर रहे हैं। पर कोई जरूरी नहीं है कि हर नए टीवी चैनल को इन प्लेटफार्म पर जगह मिल ही जाए। ऐसे में केबल आपरेटरों को खुश करना ही नए चैनल के लिए जरूरी बन जाता है। ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जब एक छोटे शहर के केबल आपरेटरों ने किसी बड़े चैनल का भी बहिष्कार कर दिया हो। किसी चैनल के लिए मुश्किल तब बढ़ जाती है जब वह शहर टीआरपी टाउन हो। 

ऐसे में कोई भी ब्राडकास्टिंग कंपनी केबल आपरेटरों को नाराज नहीं करना चाहती है। कई शहरों में तो अब केबल वाले विभिन्न सेटेलाइट चैनलों से उन्हें प्राइ बैंड पर दिखाने के लिए पैसे की वसूली करने में भी लगे हुए हैं। वहीं खराब मार्केटिंग के कारण कई चैनल बुरी तरह घाटे में जा रहे हैं तो कई बंद होने के कागार पर भी पहुंच चुके हैं। हर इलाके के रीजनल भाषा के चैनल को तो केबल वाले प्राथमिकता देते हैं पर नेशनल चैनल और अन्य विधा के चैनलो के साथ परेशानी पेश आती है। 
 --- विद्युत प्रकाश मौर्य vidyutp@gmail.com

Monday, 2 May 2011

तो ये बिग बॉस का घर है....


तो यह बिगबास का घर है। इसमें ऐशो आराम की सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। हालांकि पहले जब इस तरह के रियलिटी शो की परिकल्पना की गई थी तो उसमें लोकप्रिय हस्तियों को साधारण से घर में रहने को कहा जाता था। पर अब इसमें समय के अनुसार सुविधाएं बढ़ाई गई हैं। घर तो फाइव स्टार होटल जैसा है। बस वहां आपको टेलीविजन और अखबार नहीं मिलता किसी को फोन नहीं कर सकते। यानी तीन महीने तक संचार से कटे हुए रहना है। बातचीत होगी तो बिग बास के माध्यम से या कभी कभी कोई मेहमान मिलने आएगा थोड़ी देर के लिए। सोनी टीवी पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक बिग बास में रहने वाले के लिए अरामदेह पलंग। उससे लगा हुआ वार्डरोबअलमारीअत्याधुनिक टायलेट बाथरूम उपलब्ध कराए गए हैं। इसके साथ ही किचेन में हफ्ते भर का राशन पहुंचा दिया जाता है। राशन में सब कुछ होता है। हां आपको अपना खाना खुद ही बनाना होता है। इसके साथ ही स्विमिंग पुलआधुनिक जिम और सौना सिस्टम आदि भी उपलब्ध कराए गए हैं। बस 24 घंटे आप जो कुछ भी करते हैं कैमरा देखता रहता है। माइक्रोफोन सुनता रहता है। बस शौचालय और स्नानागार में कैमरा और माइक्रोफोन नहीं है।
बिग बास के घर में रहना काफी हद तक किसी स्वंयसेवी संगठन के शिविर में रहने जैसा ही है। बस बिग बास के सुविधाएं थोड़ी ज्यादा है साथ ही तीन महीने रहने का बंदिश भी है। समय समय पर धारावाहिक में बिग बास कुछ आदेश जारी करता रहता है जिसका सबको पालन करना पड़ता है। कई बार इस में गेम शो होते हैं तो मजाकिया प्रतियोगिताएं भी। अनुशासनहीनता दिखाने पर बिग बास लोगों को बुरी तरह डांट भी पिलाता है और बाहर करने की धमकी भी देता है। जैसे की भोजपुरी फिल्मों के स्टार रवि किशन को गाली गलौज की भाषा इस्तेमाल करने के कारण डांट पड़ी है। बिग बास में भाग लेना एक प्रतियोगिता की तरह है इसमे 90 दिन रहने वाले को विजेता घोषित किया जाएगा और उसे बड़ी प्राइज मनी मिलेगी। यानी यह के खेल है जिसे आप 24 घंटे खेल रहे हैं। इसमें भाग लेने वाला व्यक्ति तीन महीने किसी अन्य प्रोजेक्ट पर काम नहीं कर सकता है। बिग बास की भूमिका में अरशद वारसी का भूमिका न्यायपूर्ण है।
बिग बास के घर में जिन लोगों ने प्रवेश किया। उनमें पुराने दिनों के फिल्म स्टार दीपक पराशरभोजपुरी स्टार रवि किशनआशिकी फेम के हीरो राहुल रायक्रिकेटर से स्टार बने सलिल अंकोलाचर्चित आइटम डांसर राखी सावंत और कश्मीरा शाहबाबी डार्लिंग आदि प्रमुख हैं। सलिल अंकोला को बालाजी टेलीफिल्म्स के साथ एक साल का करार करने का बावजूद बिग बास में आ जाने के कारण इस शो से बाहर निकल जाना पड़ा है। उनकी जगह भरने के लिए दीपक तिजोरी का आगमन हुआ है।
बिग बास से हर हप्ते बाहर होने के लिए दो लोग नामांकित होते हैं। इनमें से किसी एक को बाहर होना ही पड़ता है। इसमें बिग बास के घर में रहने वाले लोग ही अपने किसी साथी को नामांकित करते हैं। इसके अलावा एसएमएस के दर्शकों की राय भी ली जाती है। वहीं कुछ सेलिब्रिटी से भी पूछा जाता है। इन सबके अलावा बिग बास के पास भी विटो पावर है। पहले दो हफ्ते में बाबी डार्लिंग और दीपक पराशर बाहर हो चुके हैं। हालांकि इस शो में भाग लेने वाले सारे लोग फिल्म इंडस्ट्री के ही हैं। अच्छा होता कि इसमें अलग अलग प्रोफेशन के लोगों को चुना जाता। हो सकता है इस तरह के धारावाहिक अन्य टीवी चैनलों पर भी आने वाले दिनों में देखने को मिलें।
 ( बिग बॉस सीजन 1 सोनी टीवी पर 3 नवंबर 2006 से 26 जनवरी 2007 तक चला था। इसमें राहुल रॉय विजेता घोषित किए गए थे।)
- विद्युत प्रकाश मौर्य