रोज कुकुरमुत्ते की तरह शुरू
होने वाले सेटेलाइट चैनल को अब केबल आपरेटर घास नहीं डालते हैं। आज भारत में 400 से ज्यादा सेटेलाइट चैनलों के सिग्नल रिसिव हो रहे हैं। किसी शहर के बड़े
केबल आपरेटर की बात की जा तो वह 100 से 125 चैनल दिखाने की क्षमता रखता है। ऐसे में उसकी मर्जी पर है कि वह कौन से
चैनल दिखाए और कौन से नहीं दिखाए। कुछ साल पहले तमाम सेटेलाइट चैनल केबल आपरेटर के
सामने अपनी मनमानी कर पाते थे। पर अब स्थिति ऐसी नहीं है। अब अगर कोई नया चैनल
लांच होता है तो पहले दिन से उसकी मार्केटिंग बहुत शानदार होनी चाहिए तभी वह बाजार
में जगह बना पाता है। बुरी मार्केटिंग का ही नतीजा है कि कई चैनल लांचिंग के कई कई
महीनों के बाद कई शहरों में दिखाई तक नहीं देते।
अब नए लांच होने वाले चैनल
विभिन्न शहरों में केबल नेटवर्क चला रहे एमएसओ ( मल्टी सिस्टम आपरेटर) और बड़े केबल आपरेटरों को
तरह तरह के प्रलोभन देकर लुभाते हैं जिससे उनके चैनल को केबल वाले प्राइम बैंड में
जगह देकर दिखाएं। जैसे एनडीटीवी ने अपना नया मनोरंजन चैनल एनडीटीवी इमैजिन जिस दिन
से लांच किया उसी दिन से वह देश भर के सभी प्रमुख केबल नेटवर्क पर उपलब्ध था।
अच्छी मार्केटिंग का ही नतीजा था कि चैनल ने जल्द ही लोगों में अपनी जगह बना ली।
जाहिर है कंटेट तो अच्छा होना ही चाहिए पर अच्छे कंटेट के बावजूद मार्केटिंग सही
नहीं हो तो कुछ वैसा ही होता है- जंगल में मोर नाचा
किसने देखा। यह काफी कुछ वैसा ही है जैसे कोई अखबार नया संस्करण लांच करता है तो
इलाके के तमाम हाकरों को खुश रखने के लिए रणनीति अपनाता है।
इसका एक और अच्छा उदाहरण नाइन
एक्स के चैनल हैं। नाइन एक्स के म्यूजिक और जनरल इंटरटेनमेंट चैनल ने बाजार में
बहुत अच्छी जगह बना ली है। हालांकि अब चैनल वितरण के लिए कई और विकल्प भी हैं।
जैसे डीटीएच आईपीटीवी और वेबकास्टिंग के फारमेट। पर अभी ये सब फारमेट उतने
लोकप्रिय नहीं हो सके हैं। देश में केबल के समांतर धीरे-धीरे डीटीएच का बाजार बन रहा है, पर डाइरेक्ट
टू होम के प्लेटफार्म पर जाने के लिए भी किसी नए चैनल को अच्छी खासी सालाना फीस
देनी पड़ती है। अभी दूरदर्शन, डिश टीवी और, टाटा स्काई तीन प्रमुख डीटीएच आपरेटर देश में काम कर रहे हैं। पर कोई
जरूरी नहीं है कि हर नए टीवी चैनल को इन प्लेटफार्म पर जगह मिल ही जाए। ऐसे में
केबल आपरेटरों को खुश करना ही नए चैनल के लिए जरूरी बन जाता है। ऐसे कई उदाहरण
सामने आए हैं जब एक छोटे शहर के केबल आपरेटरों ने किसी बड़े चैनल का भी बहिष्कार
कर दिया हो। किसी चैनल के लिए मुश्किल तब बढ़ जाती है जब वह शहर टीआरपी टाउन हो।
ऐसे में कोई भी ब्राडकास्टिंग कंपनी केबल आपरेटरों को नाराज नहीं करना चाहती है।
कई शहरों में तो अब केबल वाले विभिन्न सेटेलाइट चैनलों से उन्हें प्राइ बैंड पर
दिखाने के लिए पैसे की वसूली करने में भी लगे हुए हैं। वहीं खराब मार्केटिंग के
कारण कई चैनल बुरी तरह घाटे में जा रहे हैं तो कई बंद होने के कागार पर भी पहुंच
चुके हैं। हर इलाके के रीजनल भाषा के चैनल को तो केबल वाले प्राथमिकता देते हैं पर
नेशनल चैनल और अन्य विधा के चैनलो के साथ परेशानी पेश आती है।
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