Tuesday 31 May 2011

अंतरराष्ट्रीय समाचार चैनल.. समय की जरूरत


हाल में भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय ने घोषणा की है कि वह बीबीसी और सीएनएन जैसा अंतरराष्ट्रीय टीवी चैनल शुरू करेगा। इस चैलन की शुरूआत के लिए लगभग 350 करोड़ की भारी भरकाम राशि का निवेश किया जाएगा। जाहिर है कि इसके लिए दूरदर्शन दुनिया भर में अपने पत्रकारों की टीम की नियुक्ति करेगा। कुछ लोग इसे सरकार के लिए पैसे की बरबादी मान रहे हैं। पर इस विषय पर गंभीरता से विचार किया जाए तो वास्तव में ऐसा नहीं है। 

आज हम एज हम इन्फारमेशन में जी रहे हैं। इस युग में जो जितना सूचना संपन्न है वह उतना ही शक्तिशाली है। आज दुनिया में लड़ाई सिर्फ हथियारों से ही नहीं लड़ी जा रही है। बल्कि एक लड़ाई ऐसी भी लड़ी जा रही है जिसमें लोगों को सूचना देकर अपने पक्ष में करने की कोशिश की जाती है। यह दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य है कि भारत दुनिया में चीन और अमेरिका के बाद तीसरी सबसे बड़ी शक्ति के रुप में उभर रहा है। ऐसे में भारत को अपनी छवि को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पेश करने के लिए एक सशक्त अंतरराष्ट्रीय समाचार चैनल की आवश्यकता है। जैसी खबरों को लेकर साख बीबीसी  और सीएनएनफाक्स न्यूज या एनबीसी की है उसी तरह का एक चैनल भारत की ओर से हो यह बहुत बड़ी जरूरत है।

जो लोग यह सोचते हैं कि इस चैनल से कोई आर्थिक लाभ नहीं होगावे गलत सोचते हैं। बहुत सारे काम आर्थिक लाभ के लिए ही नहीं किए जाते हैं बल्कि इमेज बिल्डिंग के लिए भी किए जाते हैं। आज भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए अपनी दावेदारी जता रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव पद के लिए अपने उम्मीदवार शशि थरुर को प्रस्तुत कर रहा है। टाइम जैसी अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं की कवर स्टोरी भारत पर बन रही है। ऐसे में भारतीय पक्ष को विश्व पटल पर पेश करने के लिए हमें एक अंतरराष्ट्रीय मंच की बहुत बड़ी जरूरत है।

अब हम बीबीसी और सीएनएन की भूमिका को समझने की कोशिश करें। पूरी दुनिया में बीबीसी की खबरों को लेकर साख है। हिंदुस्तान के गांव के लोग एक जमाने से बीबीसी रेडियो की खबरों की विश्वसनीयता के कायल है। इसके लिए बीबीसी ने हमेशा सबसे अच्छा वेतनमान देकर हिंदी के बेहतरीन पत्रकारों को अपनी सेवा में रखा है। क्या बीबीसी की हिंदी सेवाटीवी चैनल और रेडियो और इंटरनेट पर हिंदी में आकर्षक वेबसाइट ये सब कुछ आर्थिक लाभ के लिए हैं। नहीं यह सब कुछ ग्रेट ब्रिटेन की विदेश नीति का हिस्सा है। वही ब्रिटेन जिसने दुनिया के दर्जनों देशों पर लंबे समय तक शासन किया। 

अब अपनी खबरों की विश्वसनीयता को लेकर दुनिया के अन्य देशों के मानस पटल पर प्रभाव जमा रहा है। यह सब कुछ ब्रिटेन की विदेश नीति का हिस्सा है जिसमें हिंदीउर्दूबांग्ला जैसी कई अन्य भाषाओं के लिए अपनी सेवा आरंभ कर रखी है। अगर हम बीबीसी की खबरों को सूक्ष्मता से समझने की कोशिश करें तो वह हर जगह बड़ी ही सफाई से ग्रेट ब्रिटेन के हितों का ख्याल रखने की कोशिश करता है। इसको आम आदमी नहीं समझ सकता। वह तो बीबीसी की क्रिडेबलिटी का कायल है। यही बीबीसी की बहुत बड़ी सफलता और उसकी जमा पूंजी है। ठीक इसी तरह वाइस आफ अमेरिका और रेडियो जर्मनी जैसे चैनल हैं। या दुनिया कई और संपन्न देश जो हिंदी में पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन करते हैं और रेडियो तथा टीवी चैनलों पर अपनी उपस्थिति पेश करते हैं। यह सब कुछ एक सोची समझी लंबे समय तक चलाई जाने वाली स्ट्रेडजी के तहत होता है।  
---- विद्युत प्रकाश मौर्य - Vidyut Prakash Maurya
E mail - vidyutp@gmail.com 



No comments: