Sunday, 10 May 2020

तुमसे दूर रहके हमने जाना प्यार क्या है.. (व्यंग्य )

निकलो न बेनकाब जमाना खराब है... जिस गीतकार ने ये पंक्तियां लिखी होंगी वह बड़ा दूरदर्शी रहा होगा। उसे पता था कि एक दिन कोरोना का कहर दुनिया में छाने वाला है। तब जमाने के सितम से बचने के लिए हर कोई नकाब पहनकर ही घर से निकलेगा।
पर बॉलीवुड के तमाम गीतकार तो सच्चाई से दूर रहे। वे लिखते रहे – जाने दो न, पास आओ न आओ ना... सन 1985 में फिल्म सागर में ये गीत सुनने को मिला था। अब तो ये गीत आप हरगिज मत सुनिएगा। तब उनको नहीं पता था कि पास आने के कितने खतरे हैं। अब तो लोग कह रहे हैं कि कोई कितने भी प्रलोभन देकर बुलाए मगर जाना मत। घर में ही रहना।

थोड़ा पीछे चलते हैं साल 1965 में तो रुश्तमे हिंद फिल्म में एक गीतकार ने लिख मारा – बैठो मेरे पहलू में खुदा के वास्ते। नहीं जनाब  ऐसा न कहो आजकल तो खुदा के वास्ते दूर दूर ही रहो तो अच्छा।
इसके बाद 1976 में आई फिल्म नौनिहाल के लिए कैफी आजमी साहब ने गीत लिखा – तुम्हारे जुल्फों के साए में शाम कर लूंगा. सफर एक उम्र का पल में तमाम कर लूंगा। तब कैफी साहब को गुमां न रहा होगा कि प्रेयसी के जुल्फों के साये में शाम करना कितना महंगा सौदा साबित हो सकता है।

भला पास आने की क्या जरूरत है प्यार का एहसास तो दूर रहकर भी किया जा सकता है। सन 1976 में फिल्म अदालत के गीत के बोल पर गौर फरमाइए तुमसे दूर रहके  हमने जाना की प्यार क्या है...दिल ने माना यार क्या है... तो इन पंक्तियों को लिखने वाले गुलशन बावरा भी बड़े समझदार थे।

कुछ और गीतकारों ने भी समझदारी भरे बोल लिखे – वो पास रहें या दूर नजरों में समाये रहते हैं, इतना तो बता दे कोई, क्या इसी को प्यार कहते हैं। वो गीतकार कमर जलालाबादी थे जो इतनी समझदारी भरी बातें करते थे। उन्होंने 1949 में ही इतनी समझदारी भरी बात कह दी थी।

थोडा आगे बढ़िए तो सन 1985 में फिल्म यादों की कसम में गीत आया। बैठ मेरे पास तुझे देखती रहूं... अब भला देखने के लिए पास जाकर बैठने की क्या जरूरत है। छह फीट की दूरी से भी तो देखा जा सकता है। पर गीतकार ने अगली पंक्ति बड़ी समझदारी पूर्ण लिखी- ना तू कुछ कहे ना मैं कुछ कहूं।

सबसे समझदारी वाला गीत तो था – एक डाल पर तोता बोले, एक डाल पर मैना. दूर दूर तक बैठे हैं दोनों पर प्यार तो बोलो है ना... मतलब दूर दूर रहकर भी प्यार हो सकता है...सन 1974 में आए इस गीत के शब्दकार थे इंद्रजीत सिंह। अब कोरोना काल में में मुहब्बत करने का दस्तूर यही है कि आप अलग अलग डाल पर बैठे रहिए। मतलब फिजिकल डिस्टेंसिंग बनाए रखिए। पर सोशल डिस्टेंसिंग नहीं। ये बड़ा गलत शब्द है। शरीर से शरीर की दूरी बनी रहनी चाहिए। पर दिल से दिल की दूरी तो हरगिज नहीं।
-         विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com 
( (CORONA AND SONGS ) 







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