Wednesday, 6 May 2020

नहीं रहे चंबल के बागी मोहर सिंह

कभी चंबल घाटी में उनके नाम का आतंक था। मध्य प्रदेश की चंबल घाटी डाकुओं की वजह से ज्यादा पहचानी जाती थी। यहां एक से बढ़कर एक दुर्दांत डाकू हुए हैं। उनमें से एक थे मोहर सिंह। माधो सिंह और मोहर सिंह की जोड़ी थी। लोग उनके नाम से ही दहशत में रहते थे। मह्त्मा गांधी सेवा आश्रम जौरा, मुरैना साथी प्रफुल्ल श्रीवास्तव ने खबर दी है कि मोहर सिंह का मंगलवार 5 मई 2020 को निधन हो गया।

मोहर सिंह ने मंगलवार सुबह अपने निवास पर आखिरी सांस ली। वह कई सालों से मधुमेह की बीमारी से पीड़ित थे उनके निधन के वक्त उनकी उम्र करीब 92 साल थी। बताया हैं कि बागी जीवन में उन्होंने करीब 80 से ज्यादा हत्याएं की थीं। उन पर पुलिस रिकॉर्ड में 300 से ज्यादा मामले दर्ज थे। सरकारी दस्तावेजों में उन पर तब दो लाख रुपये का इनाम था। वहीं, उनके गैंग पर 12 लाख रुपये का इनाम घोषित था।

मोहर सिंह जमीनी विवाद के बाद 1958 में चंबल घाटी में बागी बनकर कूद गए थे। जी हां वे लोग डाकू नहीं खुद को बागी कहलाना पसंद करते थे। जब वे बीहड़ में कूदे तो कम उम्र के थे, लिहाजा किसी गुट ने उन्हें गैंग में शामिल नहीं किया। साल 1972 में 14 अप्रैल को जौरा आश्रम में उन्होंने बिनोवा जी और जय प्रकाश नारायण की पहल और गांधीवादी एसएन सुब्बाराव जी के प्रयास से आत्मसमर्पण कर दिया था। उन्होंने मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी के सामने बड़े समारोह में सरेंडर किया।

आत्मसमर्पण के बाद मोहर सिंह पूरी तरह से सामाजिक कार्यों में लगे रहते थे। मोहर सिंह गांधीजी के विचारों से प्रभावित थे। गरीब लड़कियों की शादी कराने में वे सबसे आगे रहे। उनका आखिरी समय भिंड जिले में गुजरा। 


1982 बनी फिल्म चंबल के डाकू में अभिनय -  महात्मा गांधी सेवा आश्रम के अपने कई दौरे में मुझे मोहर सिंह को करीब से देखने का मौका मिला था। बॉलीवुड की सुपर हिट फिल्म चंबल के डाकू माधो सिंह मोहर सिंह के जीवन पर बनी थी। दरअसल 1982 में बनी इस फिल्म में माधों सिंह और मोहर सिंह ने खुद अभिनय भी किया था। चंबल के डाकू समस्या पर यह कोई पहली फिल्म थी जिसमें रीयल लाइफ के बागियों ने अभिनय किया था।

शांति के सिपाही चले ---- सुब्बाराव जी अपने एक लेख में घाना बर्ड सेंक्चुरी  के गेस्ट हाउस में मोहर सिंह से मुलाकात को याद करते हैं। मोहर सिंह सरेंडर के बाद लंबे समय तक खुली जेल में रखे गए थे। बाद में राजस्थान सरकार ने बाकी बागियों के सरेंडर के लिए भी उनकी सेवाएं ली थी। इसी क्रम में वे राजस्थान भी गए थे। सुब्बाराव जी मोहर सिंह और माधो सिंह को 1970-71 के कालखंड में मोहर सिंह को सरेंडर करवाने के लिए अपने प्रयासों को याद करते हैं। मोहर सिंह उनके द्वारा गाए गए भजन – शांति के सिपाही चले...सुनकर भावुक हो गए थे। बाद में उनके समझाने पर वे जय प्रकाश नारायण से मिलने को तैयार हुए और सरेंडर के लिए हामी भरी थी। मोहर सिंह के लिए जौरा का गांधी आश्रम प्रिय स्थल था। वे अक्सर वहां आते रहते थे। 

-        विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( (CHAMBAL KE DAKU, MOHAR SINGH, SN SUBBARAO, JOURA, MORENA ) 

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