अगर आपको नाचना नहीं आता तो कोई
बात नहीं। एमटीवी की वीजे मारिया आपको डांस सीखा देगी। ऐसा डांस जिसे आप कहीं भी
कभी भी उपयुक्त मौके पर कर सकें। ये डांस शम्मी कपूर से लेकर शाहरूख खान के स्टाइल
का हो सकता है। वह आपको माधुरी दीक्षित के लटके झटके भी सीखाती है। ये नमूना उस
संगीत चैनल का जो आपको 24 घंटे डांस
म्यूजिक की दुनिया में ले जाकर युवाओं को सही राह पर ले जाने का दावा करता है।
सेटेलाइट चैनलों की फेहरिस्त
में एमटीवी और चैनल वी की आगमन के साथ ही एक नई संस्कृति की शुरूआत हुई है। इन
चैनलों का देश के युवाओं पर व्यापक असर पड़ा है। बालीवुड की फिल्मों पर भी इन
म्यूजिक चैनलों का असर पडा है। भारत की सांस्कृतिक नगरी वाराणसी के गंगा तट पर बसी
एक कालोनी के छोटे से कमरे में रहने वाले ब्रिटेन से आए एरिक कहते हैं कि वे यहां
तबला सीखने आए हैं। वे अपने गुरू का सम्मान करते हैं और बड़ी तन्मयता से तबला सीख
रहे हैं। वे एमटीवी द्वारा परोसी जा रही है संस्कृति से उब कर यहां आए हैं। उन्हें
शास्त्रीय संगीत में शांति मिलती है। निश्चय ही चैनल वी और एमटीवी द्वारा परोसे जा
रहे है संगीत में शोर ज्यादा है और वैज्ञानिकता कम। लेकिन फरवरी 1998 तक एमटीवी ने
भारत के 83 लाख घरों में अपनी जगह बना ली थी।
ये संगीत चैनल बड़ी चुस्त
दुरुस्त रणनीति के साथ आए हैं। म्यूजिक चैनलों ने अपने अपने चैनल पर खूबसूरत
वीडियो जॉकी ( वीजे) रखे हैं, जो कम
कपड़े पहनती हैं, खुद नाचती हैं साथ ही युवा दर्शकों को भी
झूमने नाचने के लिए प्रेरित करती हैं। उनके साथ ही विश्व के जाने माने उपभोक्ता
ब्रांड भी। इन ब्रांडों से प्राप्त होने वाले विज्ञापन पर ही ये चैनल चल रहे हैं।
एमटीवी और चैनल वी जब भारत में आए तो पहले ही विदेशी म्यूजिक ही दिखा रहे थे।
लेकिन भारतीय युवाओं के बीच ज्यादा लोकप्रिय होने के लिए इन्होंने तेजी से अपने
कलेवर में बदलाव किया। इन चैनलों पर भारतीय वीजे दिखाई देने लगे। हालांकि सिर्फ
नाम के भारतीय थे। कपड़ों और बोलचाल से अंग्रेजी। कभी कभी बीच में टूटी फूटी हिंदी
बोल देते थे। रूबी भाटिया, कोमल सिद्धू, नताशा जैसे चेहरे युवाओं को लुभाने के लिए आ गए।
मजे की बात एमटीवी ने अपने सभी
वीजे को सेक्सी कहकर किसी प्रोडक्ट के रुप में दर्शकों के सामने परोसा। कोमल
सिद्धू को उन्होने सेक्सिएस्ट वीजे ऑफ द टाउन कहा। अपनी नई नवेली वीजे मारिया को
उन्होंने सेक्सी के साथ फन लविंग और चहक भरी आवाज का स्वामी कहकर पेश किया।
नए गायकों की फौज- वहीं इन
म्यूजिक चैनलों ने भारत के पॉप और रीमिक्स गाने वालों को भी एक नया मंच दिया।
सुनीता राव, इला अरूण, उषा उत्थुप, शेरॉन प्रभाकर, श्वेता
शेट्टी, अनामिका, दलेर मेहंदी, अलीशा चिनाय, लकी अली, हरिहरन
जैसे लोगों को अपनी प्रतिभा दिखाने का पूरा मौका इन टीवी चैनलें पर मिला। गायकों
की अच्छी मार्केटिंग हुई, कई गायक अच्छा खासा रूपया कमाने
लगे। परंतु इन पॉप गायकों की लोकप्रियता शार्ट कट में मिली। शास्त्रीय संगीत के
साधकों की तरह इन्होंने कोई लंबी मेहनत नहीं की है। श्वेता शेट्टी का अलबम दीवाने तो दीवाने हैं.. सिर्फ संगीत के कारण नहीं बल्कि उसके म्यूजिक वीडियो के
उत्तेजक पिक्जराइजेशन के कारण लोकप्रिय हुआ।
इन संगीत चैनलों ने गायक बनने
का रास्ता आसान कर दिया है। जाने माने हास्य कलाकार महमूद के बेटे लकी अली जल्द ही
पॉप स्टार बन गए तो फिल्मों में बुरी तरह असफल विकास भल्ला गायक बन गए। संगीत
चैनलों गायकों की मार्केटिंग कर रहे हैं। संगीत चैनलों को टारगेट ऑडिएंस ( लक्षित
स्रोता समूह ) 15 से 35 साल के बीच के युवा हैं, जिन्हें दिग्भ्रमित करना आसान होता है।
फिल्मों को लोकप्रिय संगीतकार आनंद
राज आनंद स्वीकार करते हैं कि संगीत चैनलों के प्रभाव बालीवुड के फिल्मों के
म्यूजिक पर भी पड़ा है। संगीत में पैरों की थिरकन का महत्व बढ़ा है। आधिकांश लोग
ऐसा संगीत बना रहे हैं जो लोगों को झूमने नाचने पर मजबूर करे। म्यूजिक चैलनों के
कारण हर नए अलबम का म्यूजिक वीडियो बनाया जाने लगा है। म्यूजिक वीडियो का
पिक्जराइजेशन ग्लैमरस और सेक्सी करने की कोशिश की जाती है। याद किजिए अनामिका के
म्यूजिक वीडियो कैटवाक की तो शेफाली जरीवाला के कांटा लगा की। ये सब खास तौर पर
टीवी के म्यूजिक चैनलों को ध्यान में रखकर ही बनाए गए थे।
रीमिक्स का बाजार- संगीत चैनलों
ने रीमिक्स म्यूजकि को नया बाजार दिया है। पुराने गानों क रीमिक्स करके नए गायक
म्यूजिक वीडियो बनाकर कमाई करने लगे। अपने जमाने की लोकप्रिय गायिका आशा भोसलें ने
जब देखा कि उनके गाने को रीमिक्स कर संगीत कंपनियां कमाई कर रहे हैं। आशा भोंसले
को अचरज तब हुआ जब उनके गाए पुराने गानों को लोग उनके सामने की ही किसी नए गायक का
बताने लगे। मजबूर होकर आशा जी भी रीमिक्स के बाजार में उतर आईं। संगीत के इस बुरे
दौर से लता मंगेश्कर जैसी महान गायिका, मन्ना डे जैसे गायक तो खैय्याम और नौशाद जैसे संगीतकार दुख जताया। म्यूजिक
चैनलों की जरूरत के हिसाब से नुसरत फतेह अली खां के सूफी संगीत का भी म्यूजिक
वीडियो बनाया गया।
म्यूजिजक के साइड इफेक्ट्स- म्यूजिक चैनलों ने युवाओं को आकर्षित करने के लिए क्लब एमटीवी जैसे
कार्यक्रम शुरू किए जिसमें सैकड़ो युवा बिकनी, वन पीस और टू
पीस में नाचते गाते नजर आते हैं। चैनल वी पर म्यूजिक वीडियो में आलिंगन और चुंबन
के दृश्य आम हैं। म्यूजिक चैनलों का दावा है कि वे युवाओं को तथाकथित तौर पर समर्थ
और बोल्ड बना रहे हैं। कई लोगों ने इन म्यूजिक चैनलों पर युवा पीढ़ी को दिग्भ्रमित
और गुमराह करने का आरोप लगाया।
लेकिन म्यूजिक चैनलें का दावा है कि वे युवा पीढ़ी
को स्वस्थ मनोरंजन देकर उन्हें अपराध की दुनिया से दूर कर रहे हैं। बदलते वक्त के
साथ एमटीवी और चैनल वी अपने कार्यक्रमों के कलेवर में बदलाव भी ला रहे हैं। एमटीवी
बकरा तो चैनल वी कई तरह के रियलिटी शो और कामेडी वाले शो लाकर युवाओं को अपने साथ
जोडकर रखने की कोशिश मे लगा है। भारत में कदम रखने के साथ ही एमटीवी और चैनल वी ने
म्यूजिक वीडियो अवार्ड्स की शुरूआत की। इन अवार्डस में देशी- विदेशी संगीत का
रीमिक्स पेश किया गया। एक ऐसी रात जिसमें कलाकारों के संगीत के साथ मस्ती और जाम
का भी दौर था। संगीत चैनलों के साथ ही इसके वीजे बड़े बड़े शहरो को होटलों के डांस
फ्लोर पर युवाओं को अपनी संगीत की धुन पर नचाने लगे। देश के महानगरों में लेटलाइट
पार्टियों का दौर शुरू हो गया। इन पार्टियों की प्रायोजक शीतल पेय और बीयर बनाने
वाली कंपनियां थीं। जाहिर है इससे महानगरों में एक ऐसी नई पीढ़ी आ गई है जो इन
संगीत चैनलों के साथ कथित तौर पर मैच्योर हो रही है।
लेकिन चैनल वी और एमटीवी से
प्रभावित होकर तमाम देशी कंपनियां भी म्यूजिक चैनल लेकर आईं। एटीएन म्यूजिक,
म्यूजिक एशिया जी म्यूजिक ऐसी प्रारंभिक कंपनियां थी जो संगीत चैनल
के रूप में आईं। इन चैनलों पर बालीवुड का संगीत और प्राइवेट म्यूजिक वीडियो अलबम
दिखाए जाते थे।
सेटेलाइट चैनलों की फेहरिस्त में म्यूजिक चैनल खोलना अपेक्षाकृत
सस्ती प्रक्रिया है। इन चैनलों पर प्रमोशनल म्यूजिक वीडियो या तो मुफ्त में दिखाए
जाते हैं या फिर पैसे लेकर सिर्फ पुरानी फिल्में को गाने दिखाने के लिए पैसे देने
पड़ते हैं। कई संगीत चैनल बिना किसी एंकर या वीडियो जॉकी के भी संचालित किए जाते
हैं। बाद में आए संगीत चैनलों में नाइन एक्सएम और एमएच वन जैसे चैनल भी ठाक ठाक
चले। वहीं क्षेत्रीय भाषाओं में संगीत चैनलों की शुरूआत हुई। जैसे पंजाबी में कई
संगीत चैनल आए जिन्होंने उभरते पंजाबी गायकों को मंच प्रदान किया तो संगीत बांग्ला,
संगीत भोजपुरी जैसे क्षेत्रीय म्यूजिक चैनल भी देखे जा रहे हैं।
दक्षिण भारत में क्षेत्रीय भाषाओं में कई संगीत चैनल सफलतापूर्वक चल रहे हैं।
- विद्युत प्रकाश मौर्य