Monday 14 March 2011

टीवी पर हिंदी की बढ़ती ताकत


छोटे पर्दे पर हिंदी की बढ़ती ताकत साफ दिखाई देती है। देश भर के लोगों को तक पहुंचने के लिए हिंदी से बढ़िया कोई माध्यम नहीं हो सकता है, ये बात टेलीविजन ने बड़ी शिद्दत से समझा है। तभी तो जब भारत में विदेशी चैलनों ने पांव रखे तो उन्हें जल्द ही महसूस हो गया कि विदेशी धारावाहिकों को अंग्रेजी में दिखाकर लोकप्रिय नहीं हुआ जा सकता है। लिहाजा सोनी और स्टार प्लस ने धीरे धीरे अपने धारावाहिकों को हिंदी में डब करके दिखाना शुरू कर दिया।
भारत में जब विदेशी चैनलों का पदार्पण हुआ तो उन्होंने पहले हिंदी की ताकत को नहीं समझा था। परंतु कुछ ही सालों में लगभग सभी विदेशी चैनलों ने अपनी रणनीति में बदलाव लाना शुरू कर दिया। उनकी समझ में आ गया कि अंग्रेजी में कार्यक्रम पेश करके सिर्फ कुछ लाख इलीट क्लास तक ही पहुंचा जा सकता है। सोनी एंटरटेनमेंट ने सबसे पहले हिंदी के महत्व को समझा। जो भी विदेशी धारावाहिक सोनी पर आए उन्हें हिंदी में डब करके ही दर्शकों को समाने पेश किया गया। हालांकि कई डब धारावाहिक भी खासे लोकप्रिय नहीं हो सके। स्टार प्लस प्रारंभिक दौर में मूल रूप से अंग्रेजी का ही चैनल था लेकिन धीरे धीरे स्टार ने हिंदी में कार्यक्रमों का प्रसारण आरंभ कर दिया। न सिर्फ धारावाहिक और खबरें बल्कि चैनल पर फिल्में का प्रसारण शुरू कर दिया। आज स्टार पर हिंदी के कई चैनल हैं। स्टार मूवीज पर दिखाई जाने वाली फिल्मों को भी हिंदी में डब करके दिखाया जा रहा है।

डिस्कवरी चैनल में भी शुरूआत में कुछ कार्यक्रमों में हिंदी आडियो फीड देना आरंभ किया लेकिन अच्छा रेसपांस मिलने पर डिस्कवरी के सभी कार्यक्रम 24 घंटे हिंदी में उपलब्ध होने लगे। सबसे बडी बात है कि डिस्कवरी ने अपने चैनल पर बहुत ही शिष्ट और शालीन हिंदी को चुना है। बेहतर किस्म के अनुवाद के साथ डिस्कवरी के कार्यक्रम हिंदी में उपलब्ध हैं। अब डिस्कवरी के प्रतिस्पर्धी चैनल नेशनल ज्योग्राफिक भी हिंदी में उपलब्ध है। तो हिस्ट्री चैनल के कार्यक्रम भी हिंदी में देखे जा सकते हैं। डिस्कवरी ने हिंदी को ज्यादा मुश्किल न बनाते हुए तकनीकी शब्दावली को को आमजन तक पहुंचाने के लिए विद्वानों के टीम की मदद ली है। अपने चैनल के लिए डिस्कवरी ने तकनीकी शब्दावली की अपनी डिक्सनरी विकसित की है। आप महसूस कर सकते हैं कि डिस्कवरी के डब कार्यक्रमें की हिंदी सरकारी विभागों को बोझिल अनुवाद से कहीं बेहतर है। इसके लिए डिस्कवरी ने विद्वान पत्रकारों और साहित्यकारों के टीम की मदद ली है।

डबिंग का कारोबार

हिंदी के इस बढ़ते बाजार से लोगो को रोजगार को नए मौके मिले हैं। तमाम चैनलों पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों के हिंदी अनुवाद के लिए जहां अनुवादकों की टीम को रोजगार मिला है तो डबिंग आर्टिस्टों को भी रोजगार मिला है। मूवी चैनल और दूसरे तमाम चैनलों को कार्यक्रमों को अनुवाद करने के बाद डबिंग आर्टिस्टों से डब कराया जाता है। इससे दूसरी तीसरी श्रेणी के फिल्म टीवी कलाकारों को रोजगार का नया मौका मिला है तो संघर्षशील कलाकारों को भी एक और प्लेटफार्म मिला है। डबिंग का ये कारोबार अब भारतीय बाजार में सिर्फ हिंदी तक ही सीमित नहीं है बल्कि अब डबिंग बांग्ला, तमिल, तेलगु जैसी प्रमुख भारतीय भाषाओं में भी हो रही है।

कार्टून कैरेक्टर हिंदी में

टर्नर समूह ने 1992 में 24 घंटे का कार्टून चैनल शुरू किया था। भारतीय बच्चों के बीच 1996 में कार्टून नेटवर्क आया। लेकिन जल्दी ही कार्टून नेटवर्क ने भारत के लिए सभी कार्टून धारावाहिकों की हिंदी में डबिंग आरंभ कर दी। अब दुनिया के जाने माने कार्टून कैरेक्टर हिंदी में संवाद करते नजर आने लगे। शुरूआत में कार्टून नेटवर्क ने टून तमाशा नाम से दो घंटे का सिगमेंट शुरू किया था लेकिन धीरे धीरे सभी कार्टून चैनल भारतीय बच्चों को लिए 24 घंटे हिंदी आडियो फीड प्रदान करने लगे। अब सिर्फ कार्टून नेटवर्क ही नहीं बल्कि डिज्नी, निकोलोडियन, हंगामा टीवी, पोगो जैसे सभी चैनलों पर हिंदी देखी जा सकती है।

टीवी को देखकर कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है। इतना ही नहीं अब हालीवुड के फिल्में के भी हिंदी में बड़ी तेजी से डबिंग होने लगी है। आजकल हर साल रिलीज होने वाले दर्जनों हालीवुड की फिल्में अंग्रेजी के साथ ही हिंदी में भी डब होकर रिलीज होती हैं। हिंदी में होने कारण ये छोटे छोटे शहरें के सिनेमाघरों तक भी जाकर अच्छा कारोबार करती हैं। जाहिर हम कह सकते हैं कि बाजार ने हिंदी की ताकत को समझा है। हिंदुस्तान मे 60 करोड़ से ज्यादा लोग हिंदी बोलते समझते, लिखते पढ़ते हैं। इसी भाषा में खाते पीते और हंसते मुस्कुराते हैं। इसकी ताकत तो विदेशी चैनलों ने भी खूब समझा है।

टीवी चूंकि दृश्य श्रव्य माध्यम है। टीवी देखने के लिए साक्षर होना जरूरी नहीं है। इसलिए टीवी की पहुंच अखबारों की तुलना में ज्यादा बड़े आडिएंश तक है। इसलिए सभी चैनल हिंदी की इस ताकत को समझ रहे हैं। वहीं लंबे कथानक वाले लोकप्रिय धारावाहिकों के कारण अहिंदी भाषी लोग भी हिंदी समझने सीखने की कोशिश कर रहे हैं। इसलिए हम कह सकते हैं हिंदी के प्रचार प्रसार में हिंदी फिल्में के बाद हिंदी में कार्यक्रम दिखाने वाले टीवी चैनलों की भी बड़ी भूमिका है। टीएमजी नामक चैनल ने टेक्नोलॉजी की खबरों को हिंदी में दिखाना शुरू किया तो सीएनबीसी चैनल ने बाजार की नब्ज पकड़ने के लिए हिंदी की मदद ली। बड़ी संख्या में शेयर बाजार में निवेश करने वाले हिंदीभाषियों के लिए सीएनबीसी आवाज नामक हिंदी चैनल आया। बिजनेस चैनलों की फेहरिस्त में ये हिंदी चैनल काफी लोकप्रिय हुआ। टीवी पर हिंदी धारावाहिकों के बदलौत हिंदी का प्रचार प्रसार विदेशों में भी हो रहा है। पड़ोसी देशों के लोग हिंदी समझ रहे हैं तो विदेशों में एनआरआई परिवारों के बच्चे भी हिंदी के कारण अपनी जड़ों से जुड़े हुए प्रतीत हो रहे हैं। यानी सूचना सम्राज्यवाद के इस दौर में हिंदी मजबूत हो रही है।

जाहिर है इससे हिंदी जानने समझने वाले और अनुवाद करने वाले प्रोफेशनलों की मांग बढ़ी है। यानी हिंदी का बाजार बढ़ता जा रहा है। कई यूनीवर्सिटियों में फंक्शनल हिंदी और फंक्शनल इंग्लिश की पढ़ाई भी शुरू हो चुकी है। अगर आप बढ़िया अनुवाद कर सकते हैं तो बाजार को आपकी जरूरत है। 




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