Sunday, 20 March 2011

छोटे परदे पर मध्यम वर्ग


क्योंकि सास भी कभी बहु थीजैसे तमाम धारावाहिकों में उच्चवर्गीय परिवारों का ग्लैमर और उनके अहंकारों की टकराहट दिखाकर टीवी ने बड़ी संख्या में भले ही दर्शक बटोर लिए हों पर उसमें भारत का मध्यम वर्ग कहीं भी अपनी छवि नहीं देख पा रहा था। पर टीवी पर एक बार फिर से उस मध्यम वर्ग की वापसी होने लगी है। स्टार वन के दो धारावाहिक इंडिया कालिंग और ये दिल चाहे मोर जैसे धारावाहिक एक बार फिर लेकर आए हैं मध्यम वर्ग को। इंडिया कालिंग की चांदनी उसी मध्यम वर्ग की प्रतिनिधि है। चांदनी परिस्थितिवश जालंधर से मुंबई जाती है। वहां वह काल सेंटर में काम करती है। वह भले ही आधुनिक वातावरण में काम करती हैफराटे के साथ अंग्रेजी बोलना जानती हैपर वह अपने परंपरागत संस्कारों को भी नहीं भूली है। वह आगे बढ़ने के अपनी पुरानी रिवायतों को नहीं भूलना चाहती है। उसे हर रोज अपना जालंधर याद आता है। वह मुंबई में अपने बी जी बनाई सरसों की साग अपने साथिनों को भेंट करती है। वह काल सेंटर में भी पटियालवी सलवार सूट पहनती है। पर साथ ही अपनी सहकर्मी से कोंकणी सीखने की भी कोशिश करती है। दरअसल बहुत दिनों बाद टीवी पर एक अच्छा धारावाहिक देखने को मिला है जिसमें परंपरागत भारतीय मूल्यों की खुशबू है। कई साल पहले हम जाएं तो दूरदर्शन पर बुनियाद और हमलोग जैसे धारावाहिकों ने धूम मचाई थी। इन धारावाहिकों में भारतीय मूल्यों की बात रिफ्लेक्ट होती थी। बुनियाद का मास्टर हवेलीराम ऐसा चरित्र था जो अपने नैतिक मूल्यों की रक्षा की कोशिश में लगा हुआ था। उस चरित्र ने टीवी के तत्कालीन दर्शकों में अच्छी छाप छोड़ी। उसके बाद टीवी धारावाहिको में मुंबई के फिल्मों के अनुकरण की होड़ सी लग गई। कई धारावाहिकों ने कास्ट्यूमसेटों की भव्यता में तो फिल्मों को भी पीछे छोड़ दिया। एकता कपूर ने जिस तरह के धारावाहिकों का ट्रेंड शुरू किया उनमें से अधिकांश में मध्यम वर्ग गायब था। अगर कोई मध्यम वर्ग का चरित्र आ भी गया तो वह उच्च वर्ग के लोगों के बीच जाकर उनके साथ संवाद स्थापित करने में ही व्यस्त हो जाता था। सोनी के धारावाहिक कुसुम को आम लड़की की कहानी कह कर प्रचारित किया गया था पर कुसुम की कहानी भी बाद में भटक कर रह गई। अब स्टार वन ने दो ऐसे धारावाहिक आरंभ किए हैं जिसके चरित्र भी हालांकि मुंबई भागते हैं। पर वहां मध्यम वर्ग मौजूद रहता है।
इंडिया कालिंग के बहाने जहां पंजाबी सभ्यता और संस्कृति को बड़ी मजबूती से इंट्रोड्यूस किया गया वहीं इसमें काल सेंटर का भी कल्चर है। किसी काल सेंटर के वातावरण पर बना यह पहला धारावाहिक है। इसमे काल सेंटर के अंदर के वातावरण को गंभीर लहजे में पेश किया जा रहा है। कहा नहीं जा सकता कि आने वाले दिनों में यह धारावाहिक क्या रुप लेगा पर फिलहाल टीवी पर ऐसे धारावाहिक की जरूरत महसूस की जा रही थी। वहीं स्टार वन के दूसरे धारावाहिक में एक लड़का और एक लड़की मुंबई भागते हैं दोनों की संयोगवश मुलाकात हो जाती है। उसके बाद कहानी में नाटकीय सिचुएशन बनते हैं। भारत में सपने लेकर मुंबई भागने का सिलसिला बहुत ही पुराना है। यही ट्रेंड इस धारावाहिक में नाटकीय ढंग से आरंभ हुए हैं। टीवी दर्शकों में सबसे बड़ा वर्ग मध्यम वर्ग ही है। पर टीवी के तमाम चैनलों के बीच इस तरह के धारावाहिकों का अभाव सा है जिसमें आम आदमी अपना शहर और अपना चेहरा कहीं देख सके। इसी कमी को ये धारावाहिक कहीं न कहीं पूरा करते हुए नजर आ रहे हैं।


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