Monday 28 March 2011

छोटे परदे पर यूपी की लड़ाई

यूपी में साल 2012 में विधान सभा के चुनाव होने वाले हैं। आबादी के लिहाज से यूपी देश का सबसे बड़ा राज्य है लिहाजा न्यूज चैनलों में भी यूपी को लेकर मारा मारी है। फिलहाल यूपी के दर्शकों के लिए चार 24 घंटे के न्यूज चैनल उपलब्ध हैं। सबसे पुराने खिलाड़ी ईटीवी उत्तर प्रदेश, सहारा यूपी और बाद में आए जी यूपी और जनसंदेश। लेकिन अब कई और खिलाड़ी चुनाव से पहले मैदान में आने को तैयार हैं। इनमें महुआ न्यूज का उत्तर प्रदेश चैनल, पंजाब टूडे समूह का यूपी न्यूज रिलांच की तैयारी में है तो साधना भी यूपी उत्तराखंड चुनाव मैदान के लिए ताल ठोकने को तैयार है। 


साधना को ताजा नीलामी में डीडी डाइरेक्ट प्लस पर जगह मिल गई है। लिहाजा ये चैनल यूपी के गांव गिरांव में भी फ्री में उपलब्ध होगा। वहीं राष्ट्रीय चैनल यूपी पर विशेष तैयारी तो करेंगे ही। अब हम थोडा पीछे चलते हैं। 2007 के विधान सभा चुनाव को याद करें तो तब बीएसपी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई थी। लेकिन अपनी चुनावी तैयारी में तब मीडिया प्लानिंग बीएसपी के चुनावी तैयारी का हिस्सा नहीं था। बीएसपी ने बूथ लेवल पर कार्यकर्ताओं को तैयार कर ये चुनाव जीता था। यहां तक की पूरे चुनाव कंपेन के दौरान बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने एक भी प्रेस कान्फ्रेंस तक को संबोधित नहीं किया था। मीडिया को मनुवादी कहने वाली मायावती लगातार चुनाव प्रचार में मीडिया से दूर रहीं। चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री बनने के दौरान उन्होने पहली बार मीडिया को संबोधित किया। इस दौरान भी उन्होने मीडिया की भूमिका पर चुटकी ली थी। साथ ही उन्होने मीडिया की औकात बताते हुए इस ओर इशारा कर दिया था कि वे अपने वोटरों और कार्यकर्ताओं के बल पर सत्ता में आई हैं उन्हें मीडिया की कोई जरूत नहीं है। लेकिन पांच साल बाद हालात बदले नजर आ रहे हैं। मीडिया से दूर रहने वाली मायावती के लोगों ने जनसंदेश नामक यूपी आधारित न्यूज चैनल शुरू किया। इस चैनल के बारे में कहा जाता है कि इस पर माया सरकार के खिलाफ कोई खबर नहीं चलती। चैनल का लोगो भी पार्टी के झंडे के रंग का है। यानी दक्षिण भारतीय नेताओं की तरह माया मेमसाब ने भी एक चैनल खोलवा लिया। हालांकि इस चैनल पर मालिकाना हक उनका नहीं है लेकिन कहा जा रहा है कि इसको बीएसपी के एक नेता ही चलाते हैं। इतना ही नहीं लखनऊ से जनसंदेश टाइम्स नामक एक अखबार का भी प्रकाशन शुरू हो गया है। ये अखबार भी घोषित तौर पर पार्टी का नहीं है लेकिन कहा जाता है कि अखबार को पार्टी हितों का ध्यान रखते हुए ही शुरू करवाया गया है। यानी की साथ है इस बार के चुनाव में माया मेमसाब भी मीडिया का सहारा लेंगी। ऐसे में कई नए टीवी चैनलों के सामने भी राजनीतिक खबरों के साथ खेलने का अच्छा मौका है। अगर राजनीतिक विज्ञापनों की बात करें तो कांग्रेस जैसी पार्टी टीवी चैनलों के चुनाव के दौरान विज्ञापनों का अच्छा खासा पैकेज जारी करती है। बिहार और झारखंड के विधान सभा चुनावों के दौरान ऐसा खूब देखा गया। ये अलग बात है कि इन राज्यों में कांग्रेस सत्ता में नहीं आई। लेकिन चुनाव से पहले कुकरमुत्ते की तरह उगने वाले ये चैनल राजनैतिक पार्टियों के विज्ञापनों की ओर मुंह बाए हुए रहेंगे। इसके साथ ही अलग पार्टी के नेताओं के कंपेन को भी अपने ढंग से पेश करेंगे। हालांकि चुनाव की घोषणा हो जाने के बाद आचार संहिता का पालन करना पड़ता है। ये चुनावी आचार संहित चैनलों पर भी लागू होती है। लेकिन नेताओं के इंटरव्यू, नेता जी के साथ दिन भऱ दौरा, चुनाव के दौरान अलग अलग शहरों में लाइव पंचायत लगाकर ये चैनल वोटरों के बीच नेताजी की छवि को चमकाने की पूरी कोशिश करेंगे। वहीं जिन चैनलों के मालिकों के हित जिन पार्टियों से सधते हों उनके लिए अघोषित तौर पर काम करते नजर आएंगे। हालांकि यूपी में चुनाव से पहले इस बार सरकार के खिलाफ मुद्दे तो खूब हैं लेकिन देखना ये होगा कि ये चैनल असली मुद्दों को कितना जनता के बीच पेश करते हैं कि फिर राजनैतिक पार्टियों के प्रोपगांडा का हिस्सा बनकर रह जाते हैं।
-    ---  विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com

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