-विद्युत प्रकाश मौर्य vidyutp@gmail.com
देश का पहला 24 घंटे के न्यूज चैनल होने का गौरव जी न्यूज को प्राप्त है। उसके बाद आज तक, एनडीटीवी, स्टार न्यूज, आईबीएन-7, डीडी न्यूज, सहारा समय, न्यूज 24 जैसे चैनलों की बात करें तो उन्होंने अपनी राष्ट्रीय पहचान बना ली है। पर
इसके बाद कुछ और नाम पर गौर फरमाएं- जैन टीवी, आजाद चैनल, एमएचवन न्यूज, टीवी-100, यूपी न्यूज, हरियाणा न्यूज, हरियाली न्यूज, पीबीसी जैसे नाम लोगों की जेहन में अभी कहां हैं। होंगे भी कैसे इन चैनलों
का नाम अभी मीडिया जगत के लोगों भी ठीक से नहीं पता। इनमें से कई चैनलों का रीजनल
बेस है,पर ये जिस रीजन में हैं वहां भी उनकी कोई पहचान नहीं
बन पाई है। दरअसल कई समूहों के लिए टीवी चैनल खोलना ऐसा धंधा हो गया है जिससे वे
अपने कारोबार के हितों को मीडिया में आकर बचाए रहना चाहते हैं। अभी दर्जनों ऐसे
समूह हैं तो समाचार चैनल खोलने को तैयार बैठे हैं। कई बड़ी परियोजनाओं पर काम भी
चल रहा है।
कई भाषायी
चैनलों को बहुत अच्छा बाजार मिला है। आज देश में जिस भाषा के बोलने वाले तीन चार
करोड़ से ज्यादा लोग हैं उनमें कई कई चैनल सफलतापूर्वक चल रहे हैं। पर हिंदी में
एक राष्ट्रीय चैनल खोलने और चलाने के लिए राष्ट्रीय नेटवर्क के अलावा काफी रूपया
चाहिए। इसके साथ ही स्थापित चैनलों की प्रतिस्पर्धा कर पाने के लिए कई सालों तक
घाटा उठाकर बाजार में बने रहने के लिए का साहस भी चाहिए। क्योंकि समाचार चैनल
खोलना तुरंत फायदा कमाने वाला कारोबार नही हैं। वहीं राष्ट्रीय चैनलों में आजकल
वही चैनल सफल हैं जिनके पास कई चैनलों का समूह है, इससे वे एक नेटवर्क से मिलने वाली खबर का इस्तेमाल अलग अलग चैनलों के लिए
भी कर लेते हैं। आज आजतक के पास चार चैनल, एनडीटीवी के
पास पांच चैनल हैं तो आईबीएन, सहारा, जी और स्टार के पास भी कई चैनलों का समूह है। दरअसल इलेक्ट्रानिक मीडिया
के लिए खबरों का संकलन एक महंगी प्रक्रिया है। इसके साथ ही काबिल पत्रकारों का
पारिश्रमिक भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे में जिस तेजी से नये समाचार चैनल आ रहे हैं
उनकी सफलता पर सवालिया निशान लगना स्वभाविक है। आखिर वे कब तक प्रतिस्पर्धा में
खड़े रहने का साहस लेकर मैदान में उतर रहे हैं। समाचार के मैदान में उतरने वाले
नये खिलाड़ियों में नाइन एक्स, विनोद शर्मा का इंडिया
न्यूज, त्रिवेणी समूह का वाइस आफ इंडिया, मराठी दैनिक साकाल का साकाल टीवी, एटीएन समूह एनई
टीवी का फोकस टीवी जैसे नाम हैं। अगर रिलायंस समूह 20 टीवी चैनलों का समूह लेकर आता है तो वह कई साल तक घाटा उठाकर भी मैदान में
रह सकता है। पर तमाम नए प्रोजेक्टों का क्या होगा।
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