Saturday 12 March 2011

क्या भविष्य होगा इन चैनलों का


-विद्युत प्रकाश मौर्य vidyutp@gmail.com
 जिस तरह कुछ लोग व्यसायिक हित साधने मात्र के लिए अखबार निकालते हैं उसी तरह देश में आजकल टीवी चैनलों की हालत हो गई है। कई समाचार चैनलों के छोटे छोटे प्रोजेक्ट आ रहे हैं जो कहीं दर्शकों में जगह बना पाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। कुछ प्रमुख समाचार चैनल जिन्हें देश भर में लोग देख रहे हैं उसके अलावा कई छोटे-छोटे समाचार चैनलों के प्रोजेक्ट आ रहे हैं जो भले ही अपनी बड़ी बड़ी योजनाओं का दावा करते हों पर उनकी दर्शकों में पैठ को देखकर कहा जा सकता है कि उनकी हालात भी कुछ वैसी ही है जैसे देश में छोटे-छोटे अखबार निकाले जाते हैं जो महज विज्ञापन के हित साधने के लिए होते हैं।

देश का पहला 24 घंटे के न्यूज चैनल होने का गौरव जी न्यूज को प्राप्त है। उसके बाद आज तकएनडीटीवीस्टार न्यूजआईबीएन-7, डीडी न्यूजसहारा समयन्यूज 24 जैसे चैनलों की बात करें तो उन्होंने अपनी राष्ट्रीय पहचान बना ली है। पर इसके बाद कुछ और नाम पर गौर फरमाएंजैन टीवीआजाद चैनलएमएचवन न्यूजटीवी-100, यूपी न्यूजहरियाणा न्यूजहरियाली न्यूजपीबीसी जैसे नाम लोगों की जेहन में अभी कहां हैं। होंगे भी कैसे इन चैनलों का नाम अभी मीडिया जगत के लोगों भी ठीक से नहीं पता। इनमें से कई चैनलों का रीजनल बेस है,पर ये जिस रीजन में हैं वहां भी उनकी कोई पहचान नहीं बन पाई है। दरअसल कई समूहों के लिए टीवी चैनल खोलना ऐसा धंधा हो गया है जिससे वे अपने कारोबार के हितों को मीडिया में आकर बचाए रहना चाहते हैं। अभी दर्जनों ऐसे समूह हैं तो समाचार चैनल खोलने को तैयार बैठे हैं। कई बड़ी परियोजनाओं पर काम भी चल रहा है।
कई भाषायी चैनलों को बहुत अच्छा बाजार मिला है। आज देश में जिस भाषा के बोलने वाले तीन चार करोड़ से ज्यादा लोग हैं उनमें कई कई चैनल सफलतापूर्वक चल रहे हैं। पर हिंदी में एक राष्ट्रीय चैनल खोलने और चलाने के लिए राष्ट्रीय नेटवर्क के अलावा काफी रूपया चाहिए। इसके साथ ही स्थापित चैनलों की प्रतिस्पर्धा कर पाने के लिए कई सालों तक घाटा उठाकर बाजार में बने रहने के लिए का साहस भी चाहिए। क्योंकि समाचार चैनल खोलना तुरंत फायदा कमाने वाला कारोबार नही हैं। वहीं राष्ट्रीय चैनलों में आजकल वही चैनल सफल हैं जिनके पास कई चैनलों का समूह हैइससे वे एक नेटवर्क से मिलने वाली खबर का इस्तेमाल अलग अलग चैनलों के लिए भी कर लेते हैं। आज आजतक के पास चार चैनलएनडीटीवी के पास पांच चैनल हैं तो आईबीएनसहाराजी और स्टार के पास भी कई चैनलों का समूह है। दरअसल इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए खबरों का संकलन एक महंगी प्रक्रिया है। इसके साथ ही काबिल पत्रकारों का पारिश्रमिक भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे में जिस तेजी से नये समाचार चैनल आ रहे हैं उनकी सफलता पर सवालिया निशान लगना स्वभाविक है। आखिर वे कब तक प्रतिस्पर्धा में खड़े रहने का साहस लेकर मैदान में उतर रहे हैं। समाचार के मैदान में उतरने वाले नये खिलाड़ियों में नाइन एक्सविनोद शर्मा का इंडिया न्यूजत्रिवेणी समूह का वाइस आफ इंडियामराठी दैनिक साकाल का साकाल टीवीएटीएन समूह एनई टीवी का फोकस टीवी जैसे नाम हैं। अगर रिलायंस समूह 20 टीवी चैनलों का समूह लेकर आता है तो वह कई साल तक घाटा उठाकर भी मैदान में रह सकता है। पर तमाम नए प्रोजेक्टों का क्या होगा।  
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