Saturday, 26 March 2011

शैक्षिक चैनल - ब्लैक बोर्ड की जगह टीवी स्क्रीन ने ली


याद किजिए बचपन के गांव का स्कूल। स्कूल एक पेड़ के नीचे लगता है। क्योंकि स्कूल की अपनी कोई बिल्डिंग नहीं है। बरसात होने पर स्कूल में छुट्टी कर दी जाती है। स्कूल में लकड़ी का एक ब्लैकबोर्ड भी हुआ करता है जिस पर मास्टरजी कुछ लिखते हैं हालांकि वह बच्चों को ठीक से समझ में नहीं आता है। पर वे डर के मारे कुछ पूछ नहीं पाते। अब ब्लैकबोर्ड की वे सारी बातें टीवी पर कई शैक्षिक चैनल बच्चों को बेहतर ढंग से बता रहे हैं। यह नए दौर के छात्रों के लिए वरदान जैसा है। हांलाकि भारत का राष्ट्रीय प्रसारक दूरदर्शन इस मामले में कुछ पीछे जरूरत रहा लेकिन उसने में इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय के साथ मिलकर ज्ञान दर्शन जैसा चैनल आरंभ कर दिया है।

हालांकि दूरदर्शन पर विश्वविद्यालय अनुदार आयोग यानी यूजीसी की ओर से शैक्षिक कार्यक्रमों का प्रसारण पहले से ही किया जा रहा था। लेकिन सही मायने में शैक्षिक चैनल की परिकल्पना तब साकार हुई जब डिस्कवरी चैनल का भारत में पदार्पण हुआ ।

 1985 में अमेरिका में प्रारंभ हुआ ये चैनल दुनिया भर में न सिर्फ स्कूली बच्चों का चहेता चैनल है बल्कि इसे भारी संख्या में बड़े बूढ़े लोग भी चाव से देखते हैं। भारत में अपनी मांग को देखते हुए डिस्कवरी ने हिंदी आडियो फीड और दूसरे क्षेत्रीय भाषाओं में भी अपनी सेवा आरंभ कर दी है।
1982 में जॉन हेनाड्रिक्स को ये ख्याल आया कि जिसमें कथा कहानी न दिखाकर वास्तविक घटनाओं पर खोजपूर्ण और ज्ञानवर्धक फीचर दिखाया जाए। उनकी ये कल्पना 1985 में मूर्त रूप ले सकी। डिस्कवरी अंतराष्ट्रीय स्तर पर तब चर्चा में आया जब 1989 में यूनाइटेड आर्टिस्ट प्रोग्रामिंग के तहत इंग्लैंड और स्केंडनेविया के दो लाख घरों में इसका प्रवेश हुआ। 1996 में इस चैनल का प्रसार दुनिया के 92 देशों में 8.90 करोड़ घरों तक हो गया था। अगस्त 1995 से ये चैनल भारत में भी देखा जा रहा है। डिस्कवरी चैनल ने तब एक और इतिहास रचा जब अमेरिकी दर्शकों के लिए उसने 66 घंटे का सीधा प्रसारण दिखाया।

आज डिस्कवरी वास्तविक घटनाओं पर फीचर प्रोग्राम दिखाने वाला दुनिया का प्रमुख चैनल है। इस चैनल पर प्रोग्राम बनाने के लिए दुनिया के श्रेष्ठ निर्माताओं और फिल्मकारों की सेवाएं ली जाती हैं। वाल्टर फ्रोंकाइटर,जेम्स वर्क, डेसमंड मोरिस, जॉन रोमर, ह्यूगो वान लेविक जैसे वैज्ञानिक, फिल्मकार और पत्रकारों ने डिस्कवरी को अपनी सेवाएं दी हैं। भारत की बात करें तो गौतम घोष और श्याम बेनेगल जैसे निर्माताओं ने डिस्कवरी के लिए कार्यक्रमों का निर्माण किया है। डिस्कवरी पर जेम्स वर्क का धारावाहिक ए जर्नी बियांड प्लेनेट अर्थ का निर्माण एक चुनौतीपूर्ण कार्य था जिसे काफी लोकप्रियता मिली। इतना ही नहीं डिस्कवरी तकनीकी तौर पर टीवी में कई नए प्रयोग किए हैं। अमेरिका मे देखे जा रहे 500 से ज्यादा चैनलों के बीच डिस्कवरी ने मॉनीटर योर च्वाएस टीवी की परिकल्पना विकसित की है। इसके तहत आप अपनी पसंद के कार्यक्रम को अपनी पसंद के समय के मुताबिक देख सकते हैं। यानी अब टीवी सेट खोलना एक किताब की दुकान पर जाने जैसा है जहां अपनी सुविधा के अनुसार आप अपनी पसंद की किताबें पढ़ सकते हैं।

सैकड़ों चैनलों के बीच डिस्कवरी ने एक मिसाल कायम की है। ये कोई अश्लील कार्यक्रम प्रसारित नहीं करता। यहां फिल्में या संगीत भी नहीं है। फिर भी इस चैनल के पास पर्याप्त विज्ञापन भी हैं और दर्शक भी हैं। डिस्कवरी की पेरेंट कंपनी डीसीआई का मुख्यालय बेथेस्डा संयुक्त राज्य अमेरिका में है। डिस्कवरी ने अपने कार्यक्रमों को पांच खंडों बांट रखा है। विज्ञान एवं तकनीक, प्रकृति ( पर्यावरण एवं वन्य जीवन), इतिहास, विश्व संस्कृति और मानवीय साहसिक कार्य। इन खंडों में हर उम्र और हर हर क्षेत्र से जुडे लोगों को लिए कार्यक्रम समाहित हो जाते हैं। यही कारण है कि स्कूल, कॉलेज के छात्रों, शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों के बीच ये चैनल लोकप्रिय है। भारत पर विशेष तौर पर केंद्रित डिस्कवरी ने इंडिया वीक का प्रसारण किया। बियोंड हिमालयाज के आगे कई और कार्यक्रम डिस्कवरी पर भारतीय परिपेक्ष्य में प्रसारित हुए हैं। ज्ञानवर्धक खबरें और रोचक फीचर प्रसारित करने के लिए डिस्कवरी को ढेर सारे अंतराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। चौबीस घंटे हिंदी में एक से बढ़कर एक फीचर देखकर लोग चकित हो जाते हैं ये डिस्कवरी की विशेषता है। डिस्कवरी ने अपने कार्यक्रमों की हिंदी में डबिंग शुरू की जो अच्छी हिंदी के भी मिसाल बन गए।

सिर्फ इतना ही नहीं डिस्कवरी ने अपने पहले चैनल की सफलता से उत्साहित होकर पूरी तरह वन्य जीवों पर केंद्रित दूसरे चैनल एनीमल प्लैनेट शुरू किया। पांच जनवरी 1999 से भारत में शुरू हुए इस चैनल में बीबीसी की भी 20 फीसदी हिस्सेदारी है। डीसीआई ने ये चैनल अमेरिका में 1996 में आरंभ किया था। इस चैनल पर मानवीय कौतूहल शांत करने के अलावा मानव जीवन और वन्य जीवों के बीच सुंदर तारतम्य बनाने की कोशिश की गई है। दुनिया के सभी बड़े चिडियाघरों और जंगलों की सैर ये चैनल घर बैठे ही कराता है। बाद में डिस्कवरी ने विज्ञान पर केंद्रित डिस्कवरी साइंस नामक एक और चैनल आरंभ किया है। वहीं ट्रैवल एंड लिविंग डिस्कवरी समूह का एक और चैनल है जिसमें आप दुनिया भर की सैर कर सकते हैं तथा दुनिया के अलग अलग हिस्सों के लोगों की जीवन शैली से वाकिफ हो सकते हैं। यानी डिस्कवरी का कुनबा बढ़ता ही जा रहा है। आज की तारीख में कोक और पेप्सी की तरह डिस्कवरी दुनिया भर में लोकप्रिय ब्रांड बन चुका है। अपने कार्यक्रमों को लोकप्रिय बनाने के लिए डिस्कवरी ने देश भर के स्कूलों में जाकर क्वीज प्रतियोगिताओं का आयोजन भी शुरू कर दिया है।

अब बात डिस्कवरी के प्रतिद्वंद्वी की। नेशनल ज्योग्राफिक डिस्कवरी का प्रमुख प्रतिस्पर्धी चैनल है। इस चैनल के पृष्ठभूमि में दुनिया भर में एक शताब्दी से डाक्यूमेंटेशन के मामले में जानी मानी नेशनल ज्योग्राफिक सोसाइटी है। नेशनल ज्योग्राफिक ने भी भारत में हिंदी आडियो फीड के साथ अपना प्रसारण शुरू किया है। डिस्कवरी की तुलना में इसे एक गंभीर चैनल माना जाता है। नेशनल ज्योग्राफिक ने भारतीय बच्चों के बीच अपने पांव जमाने के लिए लोकप्रिय स्कूलों में जाकर क्वीज प्रतियोगिताओँ का भी आयोजन किया है। वहीं दुनिया के कई देशों प्रसारित होने वाला हिस्ट्री चैनल भी मूल रूप से ज्ञानवर्धक चैनल है। स्टार समूह का ये चैनल आपको इतिहास के झरोखे में ले जाता है।
भारत में दूरदर्शन ने अपने मुख्य चैनल पर यूजीसी द्वारा बनाए शैक्षिक कार्यक्रमों के प्रसारण का सिलसिला आरंभ किया था। हालांकि ये प्रसारण अपने लक्षित श्रोता समूह के बीच ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो सके। पर शैक्षिक टेलीविजन के रूप में दूरदर्शन का ये प्रयास मील का पत्थर साबित हुआ। अब दूरदर्शन ने इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय के साथ मिलकर ज्ञान दर्शन नामक सेटेलाइट चैनल शुरू किया है। ये चैनल इग्नू के विभिन्न पाठ्यक्रमों में उत्तर अध्ययन कर रहे छात्रों के लिए काफी उपयोगी है। हालांकि इसको लोकप्रिय बनाने के लिए विशेष प्रयास की जरूरत है।
वहीं जी टीवी ने अपने शैक्षिक विंग जी एजुकेशन और जेड कैरियर एकेडमी को विस्तार देते हुए इसे एक स्वतंत्र चैनल का रूप दे दिया। जेड टीवी ने नाम से शुरू इस चैनल पर कंप्यूटर एजुकेशन प्रमुख हाईलाइट था। इसी तरह महर्षि महेश योगी द्वारा स्थापित महर्षि वैदिक विश्वविद्यालय ने एक सेटेलाइट चैनल आरंभ किया है। वैदिक विश्वविद्यालय के अध्ययन करने वाले तमाम लोग इस चैनल का लाभ उठा रहे हैं।
दुनिया भर में आनलाइन एजुकेशन की परिपाटी तो शुरू हो गई है लेकिन आने वाले दिनों में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि दुनिया के कई बड़े विश्वविद्यालय भी अपना स्वतंत्र टीवी चैनल आरंभ करें।   
   


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