साल 2020 के फरवरी के आखिरी सप्ताह में दिल्ली दंगों की आग में झुलसी। मुझे बनारस के दंगे याद हैं। तब में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ता था। हालांकि हम बीएचयू कैंपस में सुरक्षित थे। पर शहर जल रहा था। ठीक इसी तरह दिल्ली में मेरे पड़ोस में मेरे घर से चार किलोमीटर आगे का इलाका कई दिन तक झुलसता रहा है। इस असर मेरे बेटे की पढ़ाई पर पड़ा। उसके स्कूल में हो रही सालाना परीक्षाएं स्थगित हो गईं। बाद में ये परीक्षाएं शुरू हुईं। होली 10 मार्च को थी तो नौ मार्च को पहला पेपर। फिर 11 मार्च को दूसरा पेपर। ऐसे में होली कौन मनाए। अनादि की परीक्षा 19 मार्च को खत्म हो रही थी। इसलिए मैंने उनका और उनकी मां का 19 मार्च की शाम हमसफर एक्सप्रेस में पटना जाने का टिकट बना दिया था। स्कूल से संदेश था कि 7 अप्रैल को अगले सत्र में स्कूल खुलेगा।
19 मार्च की शाम को मैं उन्हें आनंद विहार रेलवे स्टेशन पर हमसफर
एक्सप्रेस में विदा कर आया। इस बीच देश में कोरोना को लेकर दहशत बढ़ती जा रही थी।
हर रोज कुछ नए संक्रमित मिल रहे थे। बीमारी चीन से आगे बढ़ कर स्पेन, इटली और इरान
में कहर ढा रही थी। रेलवे स्टेशन पर यात्रा करने वाले दहशत में थे। होली के बाद काफी
लोग अपनी छुट्टियां रद्द करा रहे थे। रेलवे ने 40 फीसदी ट्रेनें यात्री कम होने के
कारण रद्द कर दी थीं।
माधवी और वंश सुबह सुबह सकुशल पटना पहुंच गए। इस बीच 19 मार्च को रात
आठ बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी टीवी पर प्रकट हुए। राष्ट्र के नाम संदेश में
कहा कि 22 मार्च को देश भर में आप लोग जनता कर्फ्यू लगाएं जिससे कोरोना से निपटा
जा सके।
मैं 20 और 21 मार्च को अवकाश पर घर में रहा। 22 मार्च को बंद के दिन
दफ्तर जाकर काम किया। इन दिनों हिन्दुस्तान हिंदी दैनिक का दफ्तर नोएडा के सेक्टर
63 में है।
आखिरी दिन कड़ी चावल का स्वाद – 21 मार्च की दोपहर में मैं अपनी कालोनी के गेट पर
कड़ी चावल वाले के पास गया। ये सोचकर की खाना बनाने से अच्छा है कड़ी चावल खा लें। उससे अपने लिए एक प्लेट पैक कराया। कड़ी चावल वाले ने
बताया कि आज से छुट्टी कर रहा हूं। स्टाफ को भी पैसे देकर घर भेज रहा हूं। कल देश भर में
जनता कर्फ्यू है। पता नहीं ये कब तक चले। उस दुकानदार को अंदेशा हो गया था कि ये बंदी ज्यादा
दिन चलने वाली है। और सचमुच ऐसा ही हुआ।
22 मार्च जनता कर्फ्यू - देश
भर में लोगों ने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू को सफल बनाया। पर कुछ जगह लोग नहीं
माने। घंटी शंख बजाते लोगों ने अहमदाबाद, पीलीभीत में रैली निकाल दी। पर कोरोना के
अंदेशे से कई राज्यों ने अपने यहां लॉकडाउन का ऐलान शुरू कर दिया। 23 मार्च को
पंजाब, चंडीगढ़, महाराष्ट्र, कर्नाटक आंध्र, तेलंगाना जैसे राज्य सख्त कदम उठा
चुके थे।
22 मार्च को देश भर में यात्री रेलगाडियों का संचालन बंद कर दिया गया
था। बाद में रेलवे ने 25 मार्च तक रेलबंदी का ऐलान किया। 24 मार्च को रेलबंदी को
बढ़ाकर 14 अप्रैल तक कर दिया गया। रेलवे के 160 साल के इतिहास में ऐसा कभी नहीं
हुआ। तमाम राज्य बसों और टैक्सियों का संचालन रोक चुके हैं।
21 दिनों का लॉकडाउन - 24 मार्च को रात आठ बजे एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी टीवी पर
आए। इस बार उन्होंने आधे घंटे के भाषण में 25 मार्च से 14 अप्रैल तक देश भर में
पूर्ण लॉकडाउन का ऐलान किया। यह कर्फ्यू और इमरजेंसी जैसा होगा। हमने 1975 की इमरजेंसी नहीं देखी। पर यह
इमरजेंसी से कुछ ज्यादा स्वास्थ्य इमरजेंसी। एक अदृश्य वायरस ने पूरी दुनिया को
तबाह कर दिया है। मंदिर में रहने वाले भगवान से कोई उम्मीद नहीं। उनके दरवाजे भी
बंद चुके हैं। देश के सारे प्रमुख मंदिरों के पट बंद किए जा चुके हैं।
चलों चलें ये शहर हुआ बेगाना... |
24 मार्च की रात को दफ्तर से लौटते वक्त एनएच नौ पर देखा बड़ी संख्या
में लोग सामान लिए हुए पैदल पैदल अपने घर जा रहे थे। वाहन बंद होने पर लोग कई सौ
किलोमीटर दूर अपने घर पैदल चलकर जाने को मजबूर हैं। ये ऐसे लोग हैं जिनका दिल्ली
में कोई स्थायी आशियाना नहीं है। काम बंद होने के बाद रोटी के लाले पड़ गए हैं। पीठ
पर बैग लादे हाईवे पर चलते हुए कई लोग दिल्ली से बरेली पहुंच गए। कई इससे भी आगे।
रास्ते में खाने की दुकाने बंद। पीने का पानी भी मयस्सर नहीं।
देश में 9.38 लाख शहरों में बेघर लोग रहते हैं। ये जानकारी सरकार ने संसद
में दी है। पर बेघरों की वास्तविक संख्या इससे कहीं ज्यादा होगी। आखिर इस बंदी में
वे लोग कहां रहेंगे। कैसे बसर करेंगे। 24 मार्च को हमारे दफ्तर ने कोशिश की। लोग
घर से काम करें। हमें कंप्यूटर सिस्टम दिए गए हैं, ताकि हम घर से ही काम कर सकें।
- vidyutp@gmail.com
( LOCK DOWN DAYS, DELHI, GAZIABAD )
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