लॉकडाउन
के दिनों में कुछ पढ़ने के लिए अलमारी खंगाली तो कई किताबें हाथ लगी उसमें राहुल
सांकृत्यायन की भी तीन पुस्तकें थीं। इनमें से एक घुमक्कड़ स्वामी को मैं 2003 में
ही पढ़ चुका था। पर इसे एक बार और पढ़ने की इच्छा हुई। यह स्वामी हरिशरणानंद की
जीवनी है। पर यह जीवनी से ज्यादा कहीं यात्रा वृतांत है। पुस्तक में अदभुत
घुमक्कड़ी है। पुस्तक का कथ्य आरंभ होता है कानपुर शहर से। लेखक कानपुर के इतिहास
के बारे में कई तरह की जानकारियां देते हैं। ब्रिटिश काल में कानपुर के उत्कर्ष की
कथा सुनाते हैं। पुस्तक का काल खंड 1908 से लेकर 1930 के बीच का है।
कुल
117 पृष्ठों की यह पुस्तक आपको लगातार सैर कराती रहती है। पर इस सैर के साथ
इतिहास, परंपरा, संस्कृति और आयुर्वेद के ज्ञान से लगातार रुबरू कराती रहती है। स्वामी
हरिशरणानंद योग की तलाश में और सच्चे तपस्वी की तलाश में लंबा भटकते हैं। इस दौरान
वे साधु बनने के बाद पहले अयोध्या पहुंचते हैं। वहां से हरिद्वार, ऋषिकेश,
गंगोत्री, यमुनोत्री, त्रियुगीनारायण, केदारनाथ, बदरीनाथ समेत पूरे उत्तराखंड की
खाक छानते हैं। वे कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर भी जाते हैं।
उनकी
सच्चे योगी से मुलाकात तो नहीं होती है, पर इस दौरान कई साधु मित्र बनते हैं। वे
अपना प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद का ज्ञान बढ़ाते हैं। बाद में वे हिमाचल
प्रदेश में चंबा, भारमौर आदि स्थलों की यात्रा करते हैं। आगे वे लौहार और उसके
आसपास के कई स्थलों में भी काफी वक्त गुजारते हैं। घुमक्कड़ स्वामी का काफी वक्त
गुजरता है अमृतसर में। लंबे अनुभव के बाद वे वैद्य बन चुके हैं और यहां पर वे अपनी
फार्मेसी की शुरुआत करते हैं। अपनी फार्मेसी से वे देश भर में काफी नाम भी अर्जित
करते हैं। ऐसे युवा संन्यासी की कथा है घुमक्कड़ स्वामी। जो लोग यात्रा साहित्य
में रुचि रखते हैं उनके लिए पठनीय पुस्तक है।
पुस्तक
– घुमक्कड़ स्वामी, लेखक – राहुल सांकृत्यायन, किताब महल
- --- विद्युत प्रकाश मौर्य
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