Saturday, 25 April 2020

गुलमोहर एक बार फिर खिल उठे हैं ( कविता )


गुलमोहर एक बार फिर खिल उठे हैं
सड़क के दोनों तरफ
हरियाली अंगड़ाई ले रही है...

गुलमोहर के अनगिनत फूल
अप्रैल की दोपहरी को भी
बना रहे हैं मनभावन

पर इन सड़कों पर आज
तुम भी नहीं हो
और मैं भी नहीं

तुम और मैं ही क्या
कोई भी तो नहीं है
इन गुलमोहर  की छांव तले
चलने के लिए

एक अनजान भय
बनारस की सड़कें हुईं है सुनसान

पता है न तुम्हें
मौलश्री के पेड़ के नीचे की
शाम भी हो गई है सुनसान

मौसम तो आएगा
गुलमोहर भी यूं ही
हर साल खिलेंगे

पर क्या हम तुम
फिर कभी यूं ही
बेतकल्लुफ
होकर मिलेंगे....

-         - विद्युत प्रकाश मौर्य
 ( 25 अप्रैल 2020 ) 

2 comments:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 10 अप्रैल 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अब कोरोना काल में तो बेतकल्लुफ हो कर नहीं ही मिल सकते ....
सुन्दर अभिव्यक्ति