Thursday, 20 September 2018

गांधी के विचारों से ही मिटेंगी पृथ्वी पर खींची इंसानी लकीरें- सुब्बराव

बापू की 150वीं जयंती वर्ष के अवसर पर राष्ट्रीय युवा योजना ग्वालियर इकाई के द्वारा युवा संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। नगर के सिटी सेंटर स्थित होटल जानकी इन के सभागार में आयोजित युवा संवाद कार्यक्रम में प्रख्यात गांधीवादी और सर्वोदयी नेता एसएन सुब्बाराव ( भाई जी ) ने व्याख्यान दिया और युवाओं को संबोधित किया।
व्याख्यान की षुरुआत करते हुए सुब्बाराव ने चंद्रमा पर कदम रखने वाले प्रथम मनुष्य नील आर्मस्ट्राग की पंक्तियों से की। प्रथम चंद्रयात्री ने चंद्रमा से पृथ्वी को देखते हुए कहा था कि चांद से देखने पर पृथ्वी बेहद खूबसूरत दिखती है क्योंकि वहां से पृथ्वी पर कोई लकीर नहीं दिखती। भाई जी ने कहा कि परमषक्ति ने पृथ्वी का निर्माण किया लेकिन इंसानों ने जगह-जगह खरोंच और लकीर खींच दिया। देश, धर्म, जाति और नस्लों की इन इंसानी लकीरों से पृथ्वी रक्तरंजित हो चुकी है और इसे सिर्फ महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलकर ही बचाया जा सकता है। राष्ट्र् और विश्व को जोड़ने के प्रण के साथ भाई जी ने ओजस्वी स्वर में प्रेरणास्पद समूह गान का आह्वान किया। अपने न्यूयार्क प्रवास की एक घटना का उल्लेख करते हुए भाई जी ने बताया कि कैसे गांधी के सिद्धांतों और विचारों से वहां के नागरिक प्रेरणा लेते हैं लेकिन दुर्भाग्यवश हम बहुत से भारतीय उन्हें आज भी प्रासंगिक नहीं मानते।
भाई जी ने कहा कि हमें स्वयं में उस आत्मषक्ति को तलाषने की अत्यंत आवश्यकता है जिसने एक समय बचपन में भयभीत रहने वाले बालक मोहनदास को इतनी षक्ति दी जिसने उस ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दे दिया जिनके सामा्रज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता था। भारत की आजादी के बाद दुनिया में 117 से ज्यादा देषों को औपनिवेषिक गुलामी से आजादी मिली थी। प्रत्येक आजाद राष्ट्र के राष्ट्रनायक ने अपनी लिखी किताबों में एक बात का जिक्र्र अवष्य किया कि उन्हें इस संघर्ष की प्रेरणा महात्मा गांधी के संघर्षों और विचारों से मिली थी वरना वो सपने में भी आजाद होने की कल्पना नहीं करते थे। अफ्रीका में 1906 में एषियाटिक आर्डिनेंस और अष्वेतों के हक के लिए अंग्रजों के विरुद्ध महात्मा गांधी की षक्ति के संदर्भ में भाई जी ने बताया कि, सैकड़ों वर्ष पूर्व आदिगुरु शंकराचार्य ने कहा है कि समस्त शक्तियों के स्रोत आप स्वयं हैं। दुनिया में अब तक हुए समस्त धर्म प्रवर्तकों और धर्म संस्थापकों ने इसी स्व शक्ति को पहचानने और इस तक पहुंचने की बात कही है। आत्मशक्ति की यह पहचान सिर्फ सत्कर्मों के दीपक को जलाने से ही संभव है।

वर्तमान समय में संसार में व्याप्त हिंसा, मतभेद, बेरोजगारी, भूख और तनावपूर्ण वातावरण में सिर्फ गांधी के सिद्धांतों के द्वारा ही शांति तक पहुंचा जा सकता है। धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्र की सीमा में उलझे में विश्व और भारत को जोड़ने की अत्यंत आवश्यकता है। देष की तरुणाई अपनी आत्मशक्ति से विश्व को जोड़ने का यह कल्याणकारी कार्य कुशलतापूर्वक कर सकती है। आज हमें एक-दूसरे के धर्म को समझने और उसका सम्मान करने की जरुरत है। हमें ऐसी नीतियों की जरुरत है जो ऐसा विकास करें जिससे प्रकृति और वृक्षों को क्षति न पहुंचे जिससे सभी निरोग और स्वस्थ रहें। हमें अपने भ्रष्टाचार से दूर रहकर व्यवहार में शिष्टता और जीवन में पारदर्शिता लाने की जरुरत है। हम यह सुगमतापूर्वक कर सकते हैं क्योंकि हम सबके अंदर ही राम और रावण होते हैं। हमें अपने भीतर के राम को बढ़ाना है और इसलिए हमें राम से मार्गदर्शन लेना होगा।

चंबल के आत्मसमर्पण कर चुके दस्युओं के प्रसंग को याद करते हुए भाई जी ने कहा कि जब प्रख्यात गांधीवादी समाज सेविका सरला बहन (कैथरीन मैरी हिलमैन) उन दस्युओं से पूछती थी कि तुम्हें राम के विचार आकर्षित करते हैं या रावण का अहंकार तो वो सभी स्वयं को राम के विचारों से प्रभावित बताते थे। आज भी हमें अपने अंदर उसी विचार को बढ़ाने की जरुरत है। व्याख्यान के अंत में भाई जी ने उपस्थित युवाओं से राष्ट्र निर्माण में योगदान देने और जिम्मेदार नागरिक बनने का आह्वान किया। उपस्थित युवाओं और श्रोताओं ने बा-बापू के विचारों को आत्मसात करने और अंदर के भय से भयमुक्त होकर गौरवान्वित भारतीय होने का संकल्प लिया।
( ग्वालियर में 18 सितंबर 2018 का व्याख्यान )

Tuesday, 18 September 2018

मूक फिल्मों के दौर में तीन दिन

देश की पहली कामर्सियल फिल्म राजा हरिश्चंद्र 1913 में बनी। ये बात सभी जानते हैं। पर दादा साहब फाल्के की यह मूक फिल्म कितने लोगों ने देखी। राजा हरिश्चंद्र समेत दादा साहेब फाल्के की कई और मूक फिल्मों को देखने का सौभाग्य मिला दिल्ली के इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फार आर्ट्स में 14 से 16 सितंबर 2018 के बीच हुए मूक फिल्म समारोह में।
पत्रकार इकबाल रिजवी की पुस्तक पोस्टर बोलते हैं का विमोचन भी हुआ। ( 14  सितंबर 2018 ) 


यह अतीत में खो जाने का एक सुनहरा मौका था। समारोह के दौरान विषय परावर्तन करते हुए आईजीएनसीए के डाक्टर सचिदानंद जोशी ने मूक फिल्मों के महत्व को काफी सुगम ढंग से रेखांकित किया। इसे सफल बनाने में वरिष्ठ पत्रकार सुरेश शर्मा की बड़ी भूमिका रही। पहले दिन मूक फिल्म समरोह के उदघाटन के मौके पर प्रसिद्ध फिल्मकार श्याम बेनेगल और पटकथा लेखक अतुल तिवारी मौजूद थे।

दादा साहेब फाल्के की राजा हरिश्चंद्र – 1913
सिनेमा के अतीत के दौर पर सार्थक चर्चा के बाद दादा साहेब फाल्के की उस फिल्म का प्रदर्शन हुआ जिसने भारतीय सिनेमा जगत के इतिहास की नींव रखी। ये फिल्म सिर्फ 14 मिनट की बची है। फिल्म में कहानी को आगे बढ़ाने के लिए बीच बीच में अंग्रेजी-हिंदी में शीर्षकों का सहारा लिया गया था। पुणे फिल्म आर्काईव ने इसका डिजिटल वर्जन बनाने के साथ बैक स्कोर म्युजिक लगा दिया है। दादा साहेब फाल्के ने राजा हरिश्चंद्र की कहानी के लिए मार्कडेय पुराण की कथा को आधार बनाया था। फिल्म की कहानी में महर्षि विश्वामित्र विलेन की भूमिका में हैं,  हालांकि फिल्म का अंत सुखांत है। बाद में राजा हरिश्चंद्र पर कई और फिल्में भी बनीं। खुद दादा साहेब फाल्के 1943 के बाद इस फिल्म को सवाल बनाना चाहते थे। पर उनके गरम दल से जुड़ाव के कारण ब्रिटिश सरकार ने उन्हें अनुमति नहीं दी। देश आजाद होने से पहले दादा साहब का निधन हो चुका था। 


1400 मूक फिल्में बनी 1913 से 1931 के बीच।

09 फिल्में ही उपलब्ध है मूक दौर की बाकी सारी फिल्में नष्ट हो गईं।

1944 में 16 फरवरी को दादा साहेब फाल्के का निधन हो गया। 


1870 में 30 अप्रैल को फाल्के साहब का जन्म नासिक जिले में तीर्थ स्थल त्रयंबकेश्वर में हुआ था। 


पहले दिन समारोह में दादा साहेब फाल्के की 1918 में बनी श्रीकृष्ण जन्म और 1919 में बनी कालिया मर्दन का प्रदर्शित की गईं। श्रीकृष्ण जन्म का 12 मिनट का और कालिया मर्दन का 48 मिनट का फुटेज उपलब्ध है।

मूक फिल्म समारोह के तीसरे और आखिरी दिन 1903 में बनी फिल्म लाइफ एंड पैसन ऑफ जीसस क्राइस्ट देखने का मौका मिला। यह विश्व की शुरुआती फीचर फिल्मों में शामिल की जाती है। दादा साहेब फाल्के फ्रांस में बनी इस फिल्म से बहुत प्रेरित थे। उन्होंने लंदन में इस फिल्म के कई शो देखे थे। उन्हें इस फिल्म को देखकर ही भारत में फिल्में बनाने की प्रेरणा मिली थी।

इस शो में हमें दादा साहेब की अगली फिल्म लंका दहन देखने का मौका मिला । यह फिल्म 1917 में बनी थी। पर इस फिल्म की अब महज 5 मिनट की फुटेज ही उपलब्ध है। इसमें अशोक वाटिका का दृश्य है। अन्ना सालुंके ने इसमें दोहरी भूमिकाएं की थी। फिल्म में दादा साहेब फाल्के के कैमरामैन गणपत शिंदे हनुमान बने हैं। ये भारतीय फिल्मों के इतिहास में पहला डबल रोल था।

क्या आपको पता है कि 1928 में बनी शिराज ताजमहल पर बनी पहली फिल्म थी। एक घंटे 24 मिनट की इस मूक फिल्म में ताजमहल की कहानी बिल्कुल अलग अंदाज में है। इसकी कहानी निरंजनपाल ने लिखी थी। वे गरम दल के नेता बिपिन चंद्रपाल के बेटे थे। 

फिल्म शिराज का दृश्य ( 1928 ) 
शिराज की कहानी शाहजहां और उसकी रानी मुमताज की प्रेम कहानी तो है। पर शिराज इसमें वह चरित्र है जिसके घर बचपन में नूरजहां पली थी। शिराज भी नूरजहां से प्रेम करता था। इस फिल्म की कहानी के मुताबिक शिराज ही ताजमहल का वास्तुकार है। हालांकि निरंजन पाल को शिराज की कहानी कहां से मिली ये नहीं पता चलता। ये फिल्म ब्रिटेन और जर्मनी के फिल्म कपंनियों के सहयोग से बनी थी। इसमें हिमांशु राय शिराज की भूमिका में हैं।

हमने आखिरी फिल्म देखी नोटिर पूजा। 1932 में बनी इस फिल्म मेंकवि गुरु रविंद्रनाथ टैगोर ने भी छोटी सी भूमिका की थी। फिल्म 21 मिनट की है। टैगोर इस फिल्म के निर्देशक भी हैं। वास्तव मेंयह फिल्म टैगोर के 1926 के एक ड्रामा की रिकार्डिंग है।
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com

( RAJA HARISHCHANDRA, NOTIR PUJA, SHIRAJ, LANKA DAHAN, KALIA MARDAN, SRI KRISHNA JANAM ) 


Sunday, 16 September 2018

सबके प्यारे...भाई जी

90 साल के नौजवान 

07 फरवरी 2018 को महान गांधीवादी सुब्बाराव अपना 90वां जन्मदिन मनाया। भले ही उम्र के 90वें साल में वे प्रवेश कर रहे हों पर वे तो हैं 90 साल के नौजवान....

देश-विदेश में फैले लाखों युवा उन्हें प्यार से भाई जी कहते हैं। उनका असली नाम है एस एन सुब्बराव। उनका जन्म फरवरी 1929 को कर्नाटक के बेंगलूर शहर में हुआ। उनके पुरखे तमिलनाडु में सेलम से आए थे। इसलिए उनका पूरा नाम सेलम नानजुदैया सुब्बराव है। सुब्बराव एक ऐसे गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता हैं जिन्होंने गांधीवाद को अपने जीवन में पूर्णता से अपनाया है। पर उनका सारा जीवन खास तौर पर नौजवानों को राष्ट्रीयताभारतीय संस्कृतिसर्वधर्म समभाव और सामाजिक उत्तरदायित्वों की ओर जोड़ने में बीता है। वे सही मायने में एक मोटिवेटर हैं। उनकी आवाज में जादू है। शास्त्रीय संगीत में सिद्ध हैं। कई भाषाओं में प्रेरक गीत गाते हैं। उनकी चेहरे में एक आभा मंडल है। जो एक बार मिलता है उनका हो जाता है। उन्हें कभी भूल नहीं पाता। कई पीढ़ियों के लाखों लोगों ने उनसे प्रेरणा ली है।

सारा भारत अपना घर
सुब्बराव जी का कोई स्थायी निवास नहीं है। सालों भर वे घूमते रहते हैं। देश के कोने कोने में राष्ट्रीय एकता व सांप्रदायिक सद्भावना के शिविर। शिवर नहीं तो किसी न किसी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि। देश के हर बड़े छोटे शहर में युवा उन्हें जानते हैं। जहां से गुजरना हो पहले पोस्टकार्ड लिख देते हैं। लोग उनका स्वागत करते हैं। वे अपने युवा साथियों के घर में ठहरते हैं। कभी होटल या गेस्ट हाउस में नहीं। दिल्ली बंगलोर नहीं उनके लिए देश के लाखों युवाओं का घर अपने घर जैसा है।
हाफ पैंट व बुशर्ट 

लंबे समय से खादी का हाफ पैंट और बुशर्ट ही उनका पहनावा है। हमनेउनको उत्तरकाशी में दिसबंर की ठंड में भी देखा है जब एक पूरी बाजी की ऊनी शर्ट पहनीपर उतनी ठंड में भी हाफ पैंट में रहे। यह उनकी आत्मशक्ति है। सालों भर दुनिया के कई देशों में यात्रा करते हुए भी उनका यही पहनावा होता है। कई लोग उनके व्यक्तित्व व सादगी से उनके पास खींचे चले आते हैं उनका परिचय पूछते हैं।




चंबल का संत
सुब्बराव जी की भूमिका चंबल घाटी में डाकूओं के आत्मसमर्पण कराने में रही है। उन्होंने डाकुओं से कई बार जंगल में जाकर मुलाकात की। अपने प्रिय भजन आया हूं दरबार में तेरे... गायक डाकुओं का दिल जीता। उनके द्वारा स्थापित महात्मा गांधी सेवा आश्रम जौरामुरैना (मप्र) में ही जय प्रकाश नारायण के समक्ष माधो सिंहमोहर सिंह सहित कई सौ डाकुओं ने आत्मसमर्पण किया था। सुब्बराव जी का आश्रम इन डाकुओं के परिजनों को रोजगार देने के लिए कई दशक से खादी और ग्रामोद्योग से जुड़ी परियोजनाएं चला रहा है। चबंल घाटी के कई गांवों में सुब्बराव जी की ओर दर्जनों शिविर लगाए गए जिसमें देश भर युवाओं ने आकर काम किया और समाज सेवा की प्रेरणा ली।

पूरे देश में युवा शिविर- 
सुब्बराव जी द्वारा संचालित संस्था राष्ट्रीय युवा योजना अब तक देश के कोने कोने में 200 से अधिक राष्ट्रीय एकता शिविर लगा चुकी है। कश्मीर से कन्याकुमारी तकलक्षद्वीपपोर्ट ब्लेयरशिलांगसिलचर से लेकर मुंबई तक। आतंकवाद के दौर में पंजाब में और नक्सलवाद से ग्रसित बिहार के इलाकों में भी। कैंप से युवा संदेश लेकर जाते हैं । देश के विभिन्न राज्यों के लोगों के साथ सद्भावनापूर्ण व्यवहार करने कादोस्ती का और सेवा का। हजारों युवाओं की जीवनचर्या इन कैंपों ने बदल दी है। कई पूर्णकालिक समाजसेवक बन जाते हैं जो कई जीवन किसी भी क्षेत्र में रहकर सेवा का संकल्प लेते हैं।





कैंप ही जीवन है जीवन ही कैंप-
भाई जी के लिए पूरा जीवन ही एक कैंप की तरह है। तभी उन्होंने विवाह नहीं किया। कोई स्थायी घर नहीं बनाया। बहुत कम संशाधनों में उनका गुजारा चलता है। दो खादी के झोले और एक टाइपराइटर। यही उनका घर है। 78 वर्ष की उम्र में भी अक्सर देश के कोने-कोने में अकेले रेलगाड़ी में सफर करते हैं। रेलगाड़ी में बैठकर भी चिट्टियां लिखते रहते हैं। अगले दो महीने में हर दिन का कार्यक्रम तय होता है। एक कैंप खत्म होने के बाद दूसरे कैंप की तैयारी। सुब्बराव जी को केवड़िया गुजरात में 25 हजार नौजवानों का तो बंगलोर में 1200 नौजवानों का शिविर लगाने का अनुभव है।
पोस्टकार्ड की ताकत-
सालों से पोस्टकार्ड लिखना उनकी आदत है। टेलीफोन ई-मेल के दौर में भी उनका अधिकांश संचार पोस्टकार्ड पर चलता है। पूर्व रेल मंत्री सीके जाफरशरीफ कहते हैं कि सुब्बराव जी एक पोस्टकार्ड लिख देंगे तो नौजवान बोरिया बिस्तर लेकर कैंप में पहुंच जाते हैं। यह सच भी है। उनके आह्वान पर उत्तरकाशी भूकंप राहत शिविरसाक्षरता शिविर और दंगों के बाद लगने वाले सद्भावना शिविर में देश भर से युवा पहुंचे हैं।

विदेशों में गांधीवाद का प्रसार - हर साल के कुछ महीने सुब्बराव जी विदेश में होते हैं। वहां भी कैंप लगाते हैंखासकर अप्रवासी भारतीय परिवारों के युवाओं के बीच। इस क्रम में वे हर साल अमेरिकाजर्मनीजापानस्वीटजरलैंड जैसे देशों की यात्राएं करते हैं।









पुरस्कार सम्मान से दूर-
सुब्बराव जी पुरस्कार सम्मान से दूर रहने वाले व्यक्ति हैं। उन्होंने पद्म पुरस्कारों के लिए बड़ी सदाशयता से ना कर दी। उन्हें जिंदाबाद किए जाने से सख्त विरोध है। वे कहते हैं जो जिंदा है उसका क्या जिंदाबाद। हालांकि समय समय पर उन्हें कई पुरस्कारों से नावाजा गया है। सांप्रदायिक सौहार्द के लिए उन्हें राजीव गांधी सद्भावना अवार्ड, जमनालाल बजाज पुरस्कार, कबीर सम्मान से नवाजा जा चुका है।


साल 2010 में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से अणुव्रत पुरस्कार प्राप्त करते सुब्बराव।
राष्ट्रीय एकता पुरस्कार  1992

- नेशनल यूथ अवार्ड ( एनवाईपी को) 1995
 काशी विद्यापीठ वाराणसी की ओर से डी. लिट की मानद उपाधि -1997
विश्व मानवाधिकार प्रोत्साहन पुरस्कार-2002

राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार -2003
- राष्ट्रीय सांप्रदायिक सदभाव पुरस्कार - 2003
रचनात्मक कार्यों के लिए जमनालाल बजाज पुरस्कार-2006

महात्मा गांधी मेमोरियल नेशनल अवार्ड -2008

अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए अणुव्रत अहिंसा पुरस्कार -2010

जीवनकाल उपलब्धि पुरस्कार-2014 (भारतीय साथी संगठन द्वारा) 


- जीवनकाल उपलब्धि पुरस्कार-2015 ( 14 मई 2015 को स्पंदन आर्ट फाउंडेशन द्वारा)




( A Write up on SN Subbarao ) 


-विद्युत प्रकाश मौर्य,   ईमेल -vidyutp@gmail.com

संपर्क - एसएन सुब्बराव, निदेशक, राष्ट्रीय युवा योजना, कमरा नंबर 11, गांधी शांति प्रतिष्ठान, 221 दीन दयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली -110002 
फोन - 9810350404, 01123222329  ई मेल - nypindia@gmail.com

Saturday, 15 September 2018

ये शख्‍स 654 खूंखार डाकुओं से करवा चुके हैं सरेंडर

डकैती से बदनाम हो चुकी चंबल घाटी के 654 खूंखार डाकुओं को सरकार के समक्ष आत्मसमर्पण कराने वाले इस शख्स से मिलिए। ये हैं बेंगलूरू के प्रसिद्ध गांधीवादी डॉ. एसएन सुब्बाराव।

बकौलसुब्बाराव पचास-साठ के दशक में चंबल घाटी के खूंखार डाकूओं के आतंक से जहां सरकार परेशान थीवहीं तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल पुलिस के जरिए इन पर शिकंजा कसने में लगे थे। लगभग रोज होने वाली मुठभेड़ में कभी डाकू मर रहे थे तो कभी पुलिसकर्मी शहीद हो रहे थे।

उस वक्त मुझे लगा कि शायद सरकार का तरीका गलत है। हर रोज हो रही हिंसा जब देखी न गई तो प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के मिलकर मैंने गांधीवादी तरीके से डाकुओं को समझाने का एक मौका मांगा।’ अमर उजाला से बातचीत करते हुए डॉ. एसएन सुब्बाराव ने बताया कि एक दुबले-पतले व्यकित पर प्रधानमंत्री ने भरोसा जताया।

लोकनायक जयप्रकाश नारायण व आचार्य विनोबा भावे जैसी हस्तियों ने मुझे प्रोत्साहन दिया। इसके बाद उन्होंने अपने जीवन के चार साल चंबल घाटी के डाकुओं के बीच ही बिताकर उन्हें महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित किया। डॉ. सुब्बाराव के प्रयास ही थे कि डकैती से बदनाम हो चुकी चंबल घाटी के 654 खूंखार डाकुओं ने सरकार के समक्ष आत्मसमर्पण कर समाज की मुख्य धारा में शामिल होने का फैसला किया।

उनके प्रयासों को जवाहर लाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक ने सराहा। अपने इन्हीं गांधीवादी प्रयासों के लिए प्रसिद्ध 90 वर्षीय डॉ. एसएन सुब्बाराव मंगलवार को हिसार जिले के गांव किरतान पहुंचे हुए थे। यहां उन्होंने शहीद चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा का अनावरण किया।

देश की सारी भाषाओं की समझ
डॉ. एसएन सुब्बाराव का कहना है कि उन्हें देश की लगभग सभी भाषाओं की समझ है। इन भाषाओं में बोलने-समझने के साथ-साथ वह इन भाषाओं में गीत भी गा लेते हैं। इस पर वे तर्क देते हैं कि गांधीवादी विचारों से लोगों को अवगत करवाने के लिए उन्हें देश के कोने-कोने में जाना होता हैइसलिए अलग-अलग प्रांत में अलग-अलग भाषा होने के कारण वहां के लोगों से बेहतर संवाद के लिए भाषा सीखनी जरूरी होती है।

जब लगा कि आज तो मर जाऊंगा:
 एक किस्सा सुनाते हुए डॉ. सुब्बाराव ने बताया कि मध्य प्रदेश की चंबल घाटी में डाकुओं के बीच उन्हें समझाने गए थे। वहां डाकू आपस में ही लड़ पड़े। चारों ओर से गोलियां चल रहीं थीं। तभी एकबारगी लगा कि आज तो मर जाऊंगा। इसी बीच एक गोली किसी अन्य आदमी को आकर लगी और वो गिर पड़ा।

इस दिल दहला देने वाली घटना के बाद भी उन्होंने हौसला नहीं खोयाडाकुओं को सज्जन बनाने के लिए पूरे प्रयास किए। आखिरकार 1972 में महात्मा गांधी सेवा आश्रम में लोकनायक जयप्रकाश नारायण की मौजूदगी में डाकुओं ने आत्मसमर्पण भी किया।
डॉ. एसएन सुब्बाराव बताते हैं कि अलग-अलग भागों में डाकुओं में युवा चेतना शिविर लगाकर बदलाव कर उन्हें आत्मसमर्पण के लिए राजी किया। कभी 50 तो कभी 20 लोगों का मन बदलता तो उनका सरकार के सामने आत्मसमर्पण करवा देते। आखिरी बार जब डाकुओं ने आत्मसमर्पण किया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी उन्हें देखने के लिए पहुंची।अन्ना हजारे ने भी माना गुरु
देश के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे भी डॉ. सुब्बाराव को अपना गुरु मानते हैं। एक किस्सा सुनाते हुए डॉ. सुब्बाराव ने कहा कि अन्ना हजारे आर्मी से रिटायर होने के बाद अपने गांव रालेगण सिद्धी में शराब पीने वालों को पीटकर उनकी बुरी आदतें छुड़वाते थे। उन्होंने अन्ना को ऐसे लोगों को गांधीवादी तरीके से समझाने के लिए प्रेरित किया।

इसके बाद अन्ना ने कभी हाथ नहीं उठाया। कुछ दिन पहले ही अन्ना ने अपने गांव में कार्यक्रम आयोजित कर डॉ. सुब्बाराव से ग्रामीणों को मुखातिब करवाया था। अन्ना हजारे की इच्छा है डॉ. सुब्बाराव का 100 वां जन्म दिन उनके गांव रालेगण सिद्धी में मनाया जाए।

डॉ. एसएन सुब्बारावप्रसिद्ध गांधीवादी ने कहा कि भारतीयों को दुनिया भर में खूब सम्मान मिलता है। सिर्फ गंदगी और भ्रष्टाचार के कारण नीचा झुकना पड़ता है। देश की असली दौलत नौजवान हैं। यही युवा पीढ़ी देश को भ्रष्टाचारभुखमरीगंदगी व नशे के जाल से बाहर निकाल भारत मां का गौरव बढ़ा सकती है।

निरंतर करते हैं यात्राएंडॉ. एसएन सुब्बाराव ब्रह्मचार्य जीवन जीते हैं। गर्मी हो या सर्दी खादी की कमीज और निकर ही सुब्बाराव की वेशभूषा है। अपने कपड़े स्वयं धोते हैं। फिर निरंतर यात्राएं करने के लिए निकल पड़ते हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए रेलगाड़ी में सफर करते हैं।

10 वर्ष की उम्र में ही गीता और उपनिषद् के भक्ति गीतों का गायन करने लगे। अगस्त 1942 को ब्रिटिश विरोधी नारे लगाने पर गिरफ्तार हुए। उनकी संगठन कुशलता के तो प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी कायल थे। अब तक अमेरिकाइंग्लैंडजर्मनीकनाडासिंगापुरइंडोनेशियाश्रीलंका सहित अनेक देशों की यात्रा कर चुके हैं।



 - कपिल भारतीय अमर उजालाहिसार(हरियाणा)

National Youth project
National Youth Project is a NGO founded by noted Gandhian Dr. S.N. Subbarao in 1970.

Contact add:
Dr. S.N Subbarao, Director, NYP
221, Dindyal upadhayay Marg, New Delhi-110002 (INDIA)
Tel. 011-23222329
Email : nypindia@hotmail.com

Thursday, 13 September 2018

राष्ट्रीय युवा योजना के शिविरों की झलकियां...

साल 2010 में मुजफ्फरपुर (बिहार)  में आयोजित राष्ट्रीय एकता शिविर में भारत की संतान गीत में हिस्सा अलग अलग राज्यों के प्रतिनिधि। ( फोटो सौजन्य मुकेश झा) 
20 से 25 मई 2015 में करीमनगर आंध्र प्रदेश में आयोजित शिविर में जुटे अलग अलग राज्यों के प्रतिनिधि युवा।



युवाओं के नारे 

देश की ताकत नौजवान
देश की दौलत नौजवान
देश की किस्मत नौजवान
नौजवान जिंदाबाद

दिल्ली हो या गौहाटी, अपना देश अपनी माटी।

कश्मीर से कन्याकुमारी, भारत माता एक हमारी।

हाथ लगे निर्माण में, नहीं मांगने नहीं मारने।

नव तरुणाई आई है...सदभावना लाई है

युवा शक्ति की कामना...सदभावना सदभावना

काशी हो या अमृतसर. सारा भारत अपना घर.

जोड़ो जोड़ो – भारत जोड़ो

राज्यों के नारे
आए हम बिहार से..नफरत मिटाने प्यार से
बुद्ध हो या गांधी. लाए प्यार की आंधी.

सोणा फूल गुलाब दा. सारा देश पंजाब दा.


Wednesday, 12 September 2018

सज्जनों की सक्रियता से रुकेगा अपराध – सुब्बाराव

भोपाल। गांधीवादी विचारक डॉ. एस.एन. सुब्बाराव ने कहा है कि सज्जनों की निष्क्रियता और दुर्जनों की सक्रियता जैसी दो बुराईयां समाज में विद्यमान हैंइसी वजह से अपराधवृत्ति समाप्त नहीं हो रही है। अच्छे लोग यदि सक्रिय हो जायें तो किसी हद तक अपराधों पर अंकुश लग सकता है। डॉ. सुब्बाराव ने यह बात आज यहां ''अपराध-विवेचना एवं सामाजिक जागरूकता'' विषय पर अपने व्याख्यान में कही। म.प्र. राष्ट्रभाषा प्रचार समिति द्वारा बसंत व्याख्यानमाला के तहत ''मंथन'' कार्यक्रम में इस व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में म.प्र. मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष श्री जस्टिस डी.एम. धर्माधिकारी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। डॉ. सुब्बाराव ने कहा कि अपराधमुक्त समाज के लिये पुलिस और अच्छे लोगों के बीच समन्वय आवश्यक है। समाज जितना अधिक जिम्मेदार होगा सरकार और पुलिस पर काम का बोझ उतना ही कम होगा। 

श्री सुब्बाराव ने कहा कि बापू ने सर्वप्रथम देश की एकता को कायम रखने का संदेश दिया थाइसलिये हमें क्षेत्रीयता और भाषायी संकीर्णताओं से ऊपर उठकर अपने वैविध्यपूर्ण सांस्कृतिक स्वरूप को बनाये रखने के लिये सामूहिक प्रयास करने होंगे। उन्होंने कहा कि भाषाओं के आधार पर देश को कमजोर करना घातक होगा। इसलिये हिन्दी के प्रसार के साथ ही क्षेत्रीय भाषाओं को भी समान रूप से बढ़ने के अवसर मिलने चाहिये। श्री सुब्बाराव ने कहा कि अच्छा शहर वही होता है जहां पुलिस की कम से कम जरूरत पड़े। लेकिन विडंबना है कि चौराहों पर लाल बत्ती जलते रहने के बावजूद भी यातायात पर नियंत्रण के लिये 4-5 पुलिस कर्मियों का एक समूह खड़ा रहता है। जिस दिन लोग स्वेच्छा से नियमों का पालन करेंगेउस दिन अपराधवृत्ति कम हो जायेगी। श्री सुब्बाराव ने कहा कि पाप से घृणा होनी चाहियेपापी से नहीं। (February 14, 2010)

अपनी शक्ति पहचानें युवा: डा. एसएन सुब्बाराव
गोरखपुर: गांधी विचारक व चिंतक डा. एसएन सुब्बाराव (भाई जी) ने यहां युवाओं का आह्वान किया कि वे देश को विश्वगुरु बनाने के लिए जाति-धर्म एवं भेदभाव की संकीर्ण सोच से मुक्त होकर कार्य करें। कोई भी कार्य करते समय युवा शक्ति को भटकाव से बचना होगा। उन्हें अपनी शक्ति का सही आकलन और उपयोग करना होगा। अगर युवा सही दिशा में दिल और दिमाग से कार्य करेंगे तो वे निश्चित रूप से आगे बढ़ेंगे। साथ ही पूरा समाज व देश भी प्रगति पथ पर अग्रसर होगा।
सुब्बाराव बापू स्नातकोत्तर महाविद्यालय पीपीगंज के खेल मैदान में 22वें प्रादेशिक रोवर/रेंजर समागम समारोह को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि विश्व में सभी देश ताकत व हथियार की होड़ में अरबों रुपये पानी की तरह बहा रहे हैं। अगर किसी भी देश का युवा आगे बढ़कर देश व समाज हित में कार्य करें तो वे देश वैसे ही पूरे विश्व में आगे बढ़ जाएगा। देश के युवाओं को गांधी जीबादशाह खान एवं मदर टेरेसा के विचारों और उनके आदर्शो को अपने जीवन में उतारते हुए समाज में कार्य करना होगा।  (Mon, 23 Feb 2015, JAGRAN)


ललितपुर। गांधीवादी विचारक डॉ. एस.एन. सुब्बाराव ने कहा कि हमें नशे की गंदी लत से अपने देश को बचाना होगा। हमें मिलकर इस बुरी आदत को युवाओं से दूर करते हुए जागरूक होने की आवश्यकता है। उन्होंने युवाओं से सुबह जल्दी उठकर एक घंटा योग व एक घंटा देश सेवा करने की बात पर जोर देते हुए कहा कि बाकी 22 घंटे दिनचर्या के अन्य कार्यों को करेंतभी हमारा देश नशा मुक्त हो सकता है।  राष्ट्रीय युवा योजना और जनचेतना मंच के तत्वावधान में नेहरू महाविद्यालय के प्रांगण में चल रहे नशा मुक्ति एकता शिविर में डॉ. एस.एन. सुब्बाराव व इंडोनेशिया से आए इन्द्रय उडयन शामिल हुए और संयुक्त रूप से शिविर का नेतृत्व किया। ( 22 JAN 2015)

समय की पाबंदी नहीं
आगरा: सर्वोदय चरखा मंडल और सर्वोदय सत्संग मंडल द्वारा लता कुंज बालूगंज में कार्यक्रम आयोजित किया गया। मुख्य अतिथि गांधीवादी नेता एसएन सुब्बाराव ने कहा कि भारतवर्ष में लोगों के पास घड़ियां बहुत हैं लेकिन समय की पाबंदी नहीं है। आध्यात्म को सामाजिकता से जोड़ा जाए। गांधीजी ने इसी राष्ट्रवाद को समझाया था। जिसमें आध्यात्म और सामाजिकता मिली-जुली हुई थी। ( जागरण, 13 अप्रैल 2015)



Tuesday, 11 September 2018

जल,जंगल जमीन के लिए जनादेश यात्रा

जनादेश सत्याग्रह से आयेगा बहुत बड़ा बदलाव- सुब्बाराव
( आगरा/ 11 अक्टूबर 2007 )  आजीविका के अधिकार एवं भूमि सुधार की माग को लेकर चलाई जा रही सत्याग्रह पदयात्रा अपने उददेष्यों को पाने में पूरी तरह सफल होगी। देष की आजादी के 60 बर्ष बाद यदि आम गरीब एवं वंचित आदमी पेट के लिये रोटी की मांग करता है तो यह उसका वाजिव अधिकार है तथा सरकार को इसे गंभीरता से लेकर इसके समाधान के प्रयास करना चाहिए। उपरोक्त उदगार ख्याति प्राप्त गांधीवादी विचारक डॉ.एस.एन. सुब्बाराव के है वे आज शाम आगरा के गोपालपुरा से शक्तिमैदान में एकता परिषद के सत्याग्रह पदयात्रियों को सम्बोधित कर रहे थे।

सुब्बाराव ने कहा कि एकता परिषद एवं उसके अध्यक्ष पी.व्ही. राजगोपाल गरीब एवं बंचित समुदाय के अधिकारों के लिये अहिसंक तरीके से संघर्ष कर रहे है। अब की बार गांधी जयंती के दिन ग्वालियर चंबल की धरती से उन्होने देष और दुनिया के बहुत बड़े सत्याग्रह की शुरूआत की है। जिसमें पी.व्ही. राजगोपाल के नेतृत्व में 25 हजार लोग हमारी राजनैतिक दूषित व्यवस्थाओं को चुनौती देने के लिये दिल्ली तक की पदयात्रा पर निकल पड़े है। उन्होने पदयात्रियों के अनुषासन एवं संकल्प शीलता की सराहना करते हुये कहा कि आप लोगों ने अहिसंक सत्याग्रह के माध्यम से अपनी समस्याओं के समाधान एवं व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई शुरू की है इसे जरूर सफलता मिलेगी।

बैठक को जनादेष सत्याग्रह के नायक पी.व्ही. राजगोपाल ने संबोधित करते हुये कहा कि उन्हे गरीब एवं वंचित वर्ग के हकों की लड़ाई में भरपूर सहयोग एवं समर्थन मिल रहा है। जगह जगह गणमान्य नागरिक समाज सेवी, महिला एवं छात्र छात्रायें सत्याग्रहियों को भरपूर सम्मान एवं सहयोग दे रहे है गरीब वर्ग के लोगों के सम्मान मिलने का यह पहला उदाहरण है यहां तक कि सभी राजनैतिक दलों के नेता भी सत्याग्रहियों से हमदर्दी दिखाने आ रहे है। राजगोपाल ने नेताओं पर कटाक्ष करते हुए कहा कि नेताओं और मंत्रियों के आने एवं न आने से कोई फर्क नही पड़ता अपितु महत्वपूर्ण यह है कि नेताओं को अपनी साठ साल में बंचित एवं गरीब वर्ग क साथ की गई गलतियों का अहसास होना जरूरी है। पी.व्ही राजगोपाल ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार हमें तोड़ने के लिये मजबूर नही करे। यदि सरकार ने गरीब भूमिहीन एवं आदिवासियों को आजीविका के लिये जरूरी वन एवं जमीनों पर अधिकार नही दिये तो वे वन कानून तोड़ने को मजबूर होगें। राजगोपाल की इस बात का सभा स्थल पर मौजूद हजारों सत्याग्रहियों ने हाथ उठाकर एवं झंडे लहराकर समर्थन किया।

इससे पूर्व आम सभा को माकपा के सासद अतुल अनजान ने कहा कि देष नेताओं से नही नीतियों से चलता है। उन्होने कहा कि 110 करोड़ जनसंख्या वाले देष में 82 करोड़ गांव में रहते है देष के 66 प्रतिषत लोग गरीबी रेखा से नीचे है। ऐसे में गांव एवं गरीबों की उपेक्षा कर उनके हितों की नीति बनाये बगैर देष तरक्की कैसे कर सकता है। अंजान ने अपने संबोधन में कहा कि योजना आयोग गरीबों का विरोधी है। जल बिरादरी के राजेन्द्र भाई ने कहा कि जो लोग अपनी नदियों की हत्याकर उनके पानी को पीने लायक भी नही छोड़ते वह देखें कि एक टेंकर से एक हजार सत्याग्रही अपनी जरूरत पूरी करते है। एक दिन साथ में यात्रा करने से पता चलेगा कि सत्याग्रही प्रकृति से कम लेते हे।, मेहनत और पसीने से उससे ज्यादा लौटते है।

आम सभा में विनोवा जी के अनुयायी बाल विजय भाई ने कहा कि गांधी के अहिसात्मक आन्दोलन को जनादेष सत्याग्रह आगे बढ़ायेगा क्यों कि गांधी जी के बाद यह आन्दोलन कुछ थम सा गया था जिसे राजगोपाल ने फिर से सक्रिय कर दिया हैं आम सभा को गांधी शान्ति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष राधा बहन, एकता परिषद के राष्ट्रीय संयोजक रनसिंह परमार, फ्र्रान्स के जॉन विर एवं जनादेष समन्वयन समिति आगरा की अध्यक्ष श्रीमती मनोरमा शर्मा ने भी सम्बोधित किया।

जनादेश यात्रा पर नवभारत टाइम्स में प्रकाशित लेख

अपने हक की तलाश में सफर पर ( 2 Aug 2007)
( आशुतोष अग्निहोत्री ) हुकूमत का मौलिक चरित्र एक ही होता है- जनता से पैसा उगाही का। मुगलों ने जजिया कर लगाया था, अंग्रेजों ने नमक कर लगाया और आज वंचित भूमिहीनों के हितों को नजरअंदाज कर उद्योगपतियों को जमीन देकर कमाई की जा रही है। अपने हित में वंचितों ने आवाज उठाई तो उसे दबा दिया गया। यह किस्सा वर्तमान से अतीत तक फैला है और अगर सुधार नहीं हुआ, तो भविष्य में भी चलता रहेगा। याद कीजिए कि आज से 77 बरस पहले गांधी जी ने वायसराय लॉर्ड इरविन से कहा था कि नमक कानून बदला जाए, वरना 12 मार्च 1930 से वे अपने सहयोगियों के साथ डांडी के लिए यात्रा शुरू करेंगे।

हुकूमत ने इस यात्रा की गंभीरता को नहीं समझा। डांडी यात्रा 6 अप्रैल 1930 को पूरी हो गई और अंग्रेजी राज के पतन में मील का पत्थर साबित हुई। 23 दिनों तक 240 मील तक की इस यात्रा में पूरा देश भावनात्मक रूप से बापू के साथ था। सैकड़ों लोग इसमें शरीक होते रहे, लेकिन 77 लोग साबरमती आश्रम से डांडी तक बराबर बापू के साथ रहे। 77 बरस बाद इन पदयात्रियों की संख्या बढ़कर 25 हजार तक पहुंचने वाली है। जल, जंगल और जमीन पर अपने अधिकार की मांग लेकर 25 हजार गरीब, वंचितों का समूह 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन ग्वालियर (एमपी) से दिल्ली के लिए कूच करेगा। ग्वालियर-दिल्ली राजमार्ग पर यह विहंगम दृश्य होगा।

इतिहास में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जब विरोध दर्ज कराने के लिए किसी एक जगह पर लाखों लोग जमा हुए हों। इराक युद्ध के खिलाफ मार्च 2007 में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में करीब 85 हजार लोगों ने रैली निकाली। फरवरी 2003 में इसी मुद्दे पर लंदन शहर में वेस्टमिंस्टर और वाइटहॉल के बीच करीब 15 लाख लोगों ने जुलूस निकाला। लेकिन भारत में 25 हजार लोगों की साढ़े 3 सौ किलोमीटर की यह पदयात्रा अपने आप में मिसाल होगी। कोई हैरानी नहीं कि इस घटना को रेकॉर्ड्स की किताबों में दर्ज कर लिया जाए। इस यात्रा के संयोजक स्वयंसेवी संगठन एकता परिषद ने इसे जनादेश नाम दिया है। इसकी योजना करीब डेढ़ साल पहले ग्वालियर में 10 हजार वंचितों की संसद में बनी थी। तब यह मांग उठाई गई थी कि राष्ट्रीय स्तर पर भूमि वितरण का काम दोबारा किया जाए।

जमीन के बारे में ज्यादातर कानून केंद्र सरकार पास करती है, लेकिन यह विषय राज्यों का है। पिछले साल भी 2 से 20 अक्टूबर के बीच ग्वालियर से दिल्ली तक यात्रा निकाली गई थी, लेकिन वह इतने बड़े पैमाने पर नहीं थी। इसी के बाद परिषद ने जनादेश की तरफ से की गई मांगों की प्रति प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी थी। भूमि सुधारों पर योजना आयोग की उप समिति को भी यह मांगपत्र दिया गया। अंत में सरकार की तरफ से इस बारे में बात करने की जिम्मेदारी ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह को सौंप दी गई। उन्होंने परिषद को भेजे एक पत्र में कहा है कि भूमि सुधार राज्यों का विषय है इसलिए केंद्र ज्यादा कुछ करने की स्थिति में नहीं है। यह बहुत चलताऊ जवाब था। कोई ठोस कदम न उठाए जाने के बाद अब जनादेश यात्रा का आयोजन किया जा रहा है, ताकि राष्ट्रीय भूमि प्राधिकरण की स्थापना, भूमि विवाद के मुकदमों को तय समय में निपटाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने और उनके लिए सिंगल विंडो सिस्टम लागू करने के लिए सरकार पर दबाव बढ़े।

 28 अक्टूबर को जनादेश के दिल्ली पहुंचने पर उसकी अगवानी के लिए 25 हजार लोग यहां भी जमा होंगे। पुअरेस्ट एरिया सिविल सोसायटी प्रोग्राम के तहत आने वाले संगठनों का सहयोग इसे हासिल है। यह देश का सबसे बड़ा सिविल सोसायटी प्रोग्राम है, जिसके जरिए कमजोर वर्गों को अपने पैरों पर खड़ा करने की कोशिशें हो रही हैं। साढ़े छह सौ से ज्यादा छोटे-बड़े स्वयंसेवी संगठनों ने ऐसे इलाकों की पहचान की है जहां भूमिहीन, दलित या आदिवासी ज्यादा हैं और उन्हें उनकी जमीनों पर कब्जा नहीं मिल रहा है। पिछड़े इलाकों की हकीकत को समझने के लिए एक मिसाल काफी होगी। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की ज्युति तहसील में घघरू माडवी के पिता केशव ने कई साल पहले अपनी साढ़े 12 एकड़ जमीन एक गैर आदिवासी को खेती के लिए 4 साल के पट्टे पर दी थी। पट्टे की मियाद खत्म होने के बाद भी जमीन उसे वापस नहीं मिली। 20 साल तक मुकदमा लड़ने के बाद ही हाई कोर्ट के फैसले पर घघरू को जमीन वापस मिल पाई। इन 20 बरसों में उसने हर तरह की तकलीफ झेली, जिसका कोई मुआवजा मिलने से रहा। गढ़चिरौली की गिनती देश के सबसे पिछड़े इलाकों में की जाती है। जिले के अस्सी फीसदी से ज्यादा गांवों में पक्की सड़कें तक नहीं हैं।

गैर आदिवासियों द्वारा आदिवासियों की जमीन पर कब्जे का सिलसिला पीढ़ियों से चला आ रहा है। आदिवासियों की जमीनें पट्टे, फर्जी कागजात या जोर जबर्दस्ती से छीन ली जाती हैं। ज्युति तहसील के सभी 82 गांवों में जमीन पर कब्जे की घटनाएं मिल जाएंगी। कुछ गांवों में तो कोलम और गोंड आदिवासियों की पूरी आबादी को ही बेदखल कर दिया गया। इसी नाइंसाफी के खिलाफ आंदोलन अब धीरे-धीरे फैल रहा है। जनादेश यात्रा इस सिलसिले में मील का पत्थर साबित हो सकती है, लेकिन असल सवाल तो यही है कि क्या राज्य सत्ता इस आवाज को सुनेगी? उसे सुनना चाहिए, अगर हालात की गंभीरता का उसे अहसास है। अब दिल्ली को तय करना है कि वह सत्याग्रह की राह पर चल रहे देश के लाखों दलित, भूमिहीन और वंचितों को उनका वाजिब हक दिलवाएगी या उन्हें उनके हाल पर रहने देगी।

अगर सरकार अब भी नहीं चेती तो नंदीग्राम किसी एक जगह का नाम नहीं रह जाएगा। केंद्रीय गृह मंत्रालय की 2004-05 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक 2 साल पहले 9 राज्यों के 76 जिले नक्सल प्रभावित थे। 2 साल के भीतर ये 12 राज्यों में फैल गए। आज 172 जिलों में नक्सली सक्रिय हैं। स्पेशल टास्क फोर्स और पुलिस का आधुनिकीकरण जैसे तरीके इस बगावत के सामने बेअसर साबित हुए, क्योंकि समाधान कहीं और है। वंचितों को उनका हक देने से ही बात बनेगी, यह समझकर भी अनजान बनने का दिखावा सरकार कब तक करती रहेगी?

मिलकर लड़ें लड़ाई तो झुकेगी सरकार’
( भास्कर न्यूज , ग्वालियर ) एकता परिषद के आह्वान पर जल, जंगल और जमीन पर अपना अधिकार मांगने जनादेश यात्रा पर निकले 20 हजार भूमिहीन गरीब, आदिवासियों ने बुधवार को ग्वालियर जिले से विदाई ली। इस अवसर पर परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष पीवी राजगोपाल ने कहा कि हम लोग इसी तरह मिलकर संघर्ष करेंगे तो सरकार जरूर झुकेगी और हमारी समस्याएं हल होंगी।

सबके लिए खुला है, मंदिर है ये हमारा - जनादेश पदयात्रा के पड़ाव स्थल पर शाम को होने वाली प्रार्थना सभा में एक अलग ही माहौल देखने को मिलता है। प्रसिद्ध गांधीवादी सुब्बाराव जी की प्रार्थना- सबके लिए खुला है, मंदिर है ये हमारा, के स्वर जब गूंजते हैं तो उन्हें दोहराने के साथ ही पदयात्री, दिनभर की यात्रा की थकान भूल जाते हैं।
पांच हजार जोड़ी चप्पल मंगाईं -  पदयात्रा में शामिल आदिवासियों में से अधिकांश के पांव में जूते-चप्पल तक नहीं हैं। नंगे पैर रास्ता तय कर रहे लोगों में कईयों के पांव में पहले ही दिन छाले पड़ गये। श्री राजगोपाल ने इन लोगों का हाल देखने के बाद यात्रा की व्यवस्था संभाल रहे साथियों को पांच हजार जोड़ी चप्पलों की व्यवस्था कराने के निर्देश दिए।

( https://www.ektaparishad.in/) 

Monday, 10 September 2018

सुब्बाराव को जमनालाल बजाज एवार्ड

एसएन सुब्बराव जी को जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित करते इन्फोसिस के संरक्षक नारायणमूर्ति।

प्रख्यात गांधीवादी और राष्ट्रीय युवा योजना के निदेशक डा. एसएन सुब्बराव को प्रतिष्ठित जमनालाल बजाज पुरस्कार से नवाजा गया। यह पुरस्कार उन्हें 6 नवंबर 2006 को मुंबई में इन्फोसिस के संरक्षक एनआर नारायणमूर्ति के हाथों मिला। इस पुरस्कार में उन्हें 5 लाख रुपए की राशि प्रदान की गई।
इससे पूर्व सुब्बराव जी को राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार दिया जा चुका है। उन्हें काशी विद्यापीठ वाराणसी ने मानद डाक्टरेट की उपाधि भी प्रदान कर रखी है।

सुब्बराव जी को लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड


नई दिल्ली में 14 मई 2015 को राष्ट्रीय युवा योजना के निदेशक श्री एस एन सुब्बराव जी को लाइफ टाइम एटीवमेंट अवार्ड से विभूषित करते प्रख्यात साहित्यकार डाक्टर नरेंद्र कोहली। सुब्बराव जी को ये सम्मान स्पंदन आर्ट फेस्टिवल की ओर प्रदान किया गया। संस्था के निदेशक अनंत विकास जी साथ हैंं।इस मौके पर गांधी शांति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष राधा भट्ट को भी संस्था ने लाइफ टाइम अचिवमेंट सम्मान से नवाजा गया। 





पुस्तक विमोचन - बिहार विधानसभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी की जीवनी बेघरों के घर से (संपादकः नरेन्द्र पाठक) का लोकार्पण प्रख्यात गांधीवादी डा. एस.एन. सुब्बराव (भाई जी), निदेशक-राष्ट्रीय युवा योजना द्वारा 3 जुलाई 2015 को संपन्न हुआ।




Subbarao in Abroad.
THE ENLIGHTENED ONE: Dr. S.N. Subba Rao (above right) shares an analogy, using beans, with EMU student Catherine Perrow during Rao's visit to campus Aug. 23. Rao, a recipient of numerous social services awards who has been called "the living spirit of Mahatma Gandhi," spent the day interacting with EMU students and community members to share his experiences and insights. Rao serves as the director of the National Youth Project Trust in India, teaching young people the principles of truthfulness, tolerance and self-help.

Rao was 13 when he joined — Aug. 8, 1942 — India's freedom struggle through the Quit India Movement. As he recalled that day, Rao said he, like many students, left their classrooms to protest in the streets against British occupation of India. Because he was wearing a shirt of woven cloth like Gandhi typically wore, he was taken to the "lockup" by British police. After he was released, he said to himself, "Well, this is something. I have my country." (you can see link www.emich.edu/focus_emu/ 083005/raophoto.html)



राष्ट्रीय युवा योजना की पत्रिका युवा संस्कार का साल 2015 का दूसरा अंक।